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'पिता-चाचा ने मेरी मां और चाची की काटी कलाई', नाबालिग ने बताया वाकया, कहा- मैंने रोक ली थी सांस
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कोलकाता में ट्रिपल सुसाइड-मर्डर में बचे इकलौते चश्मदीद ने पुलिस के सामने ऐसे राज खोले जिसे सुनकर सब सन्न रह गए। इस हादसे में जीवित बचे चौदह वर्षीय प्रतीप डे ने राज्य बाल अधिकार कार्यकर्ता को बताया कि उसकी मां सुदेशना और चाची रोमी को उसके पिता और चाचा ने कलाई काट कर आत्महत्या करने के लिए कहा, लेकिन जब वो दोनों नहीं मानीं तो दोनों भाईयों ने मिलकर उनका कलाई काट दिया।
बच्चे का कहना है कि उसके पिता और चाचा ने लेनदारों से तंग आकर सुदेशना और रोमी को आत्महत्या करने के लिया कहा था। प्रतीप ने पश्चिम बंगाल बाल अधिकार संरक्षण आयोग (WBCPCR) की सलाहकार अनन्या चक्रवर्ती को यह भी बताया कि उसके चाचा ने उसके पिता के कहने पर तकिये से उसका गला घोंटने की कोशिश की थी। लड़के ने कथित तौर पर उन्हें बताया कि वह केवल सांस थामने की "योग तकनीक" का इस्तेमाल करके और मरने होने का नाटक करके बच गया था।
पहले नशीली दवाईयां और फिर छत से कूदकर जान देने की थी प्लानिंग
अनन्या चक्रवर्ती ने प्रतीप की ओर से बताई गई बातों को बताते हुए कहा कि डे भाईयों ने खीर में नशीली दवाईयां खाई थीं, लेकिन जब उससे उनकी जान नहीं गई तो दोनों भाईयों ने अपने चार मंज़िला घर की छत से कूदने की योजना बनाई थी।
प्रतीप ने उन्हें बताया कि सुदेशना और रोमी ने आत्महत्या से मना कर दिया था, इसी वजह से उनकी हत्या कर दी गई।
"प्रतीप ने कहा कि वह बेहोश था और उसे दोषी महसूस हो रहा था कि वह अपनी मां और चाची को नहीं बचा सका, हालांकि वह उन्हें तड़पते हुए सुन सकता था जब उसके पिता और चाचा उन्हें मार रहे थे।" अनन्या चक्रवर्ती, WBCPCR
तकिए से चाचा ने मारने की कोशिश की
जब उसके पिता और चाचा उसे मारने आए थे, तो प्रतीप ने कहा कि उसने गहरी सांस ली और उसे जितना हो सका रोके रखा। जब उसके चाचा ने तकिया हटाया और जाँच की कि वह साँस ले रहा है या नहीं, तो उसने मरने का नाटक किया। प्रतीप ने बताया कि जब वे यह सोचकर अपने कमरे से बाहर निकले कि वह मर चुका है, तभी उसने फिर से सांस ली।
चचेरी बहन की जहरीली खीर खाने से मौत
पश्चिम बंगाल बाल अधिकार संरक्षण आयोग (WBCPCR) की सलाहकार अनन्या चक्रवर्ती को बताया कि जब उसके चाचा और पिता उसे मरा हुआ समझकर कमरे से बाहर निकले, तो प्रतीप डे ने अपनी चचेरी बहन प्रियंवदा को मृत हालत में देखा। प्रतीप ने बताया कि प्रियंवदा के मुंह से झाग निकल रहा था। वह इकलौती थी जिसकी मौत खीर में मौजूद जहर से हुई थी।
प्रतीप ने बताया कि वह फिर ऊपर गया और उसने देखा कि उसके पिता और चाचा आत्महत्या करके मरने की तैयारी कर रहे थे। उन्होंने उसे भी अपने साथ शामिल होने के लिए मना लिया।
"जब हमने उससे पूछा कि वह क्यों राजी हुआ, तो उसने कहा कि उसके सभी प्रियजन मर चुके हैं। उसने कहा: 'उसके जीने का क्या मतलब था?' "अनन्या चक्रवर्ती, WBCPCR
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में क्या आया सामने?
लालबाजार में पुलिस ने बताया कि उन्हें गुरुवार को विस्तृत पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली और उन्होंने तीनों जीवित बचे लोगों के बयानों से उनका मिलान किया। पुलिस सूत्रों के अनुसार, दोनों भाइयों के बयानों में विसंगतियां थीं। प्रसून ने पुलिस के सामने दावा किया है कि सुदेशना और रोमी ने खुद अपनी कलाई काटी थी।
पुलिस अब पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर भरोसा कर रही है, जो इस बात की ओर इशारा करती है कि महिलाओं के हाथों पर कट खुद नहीं लगाए गए थे। एक अधिकारी ने कहा, "किसी और ने महिलाओं के हाथों की नसें काटी थीं।"
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Bihar Jobs 2025: चुनाव से पहले मेहरबान नीतीश सरकार, 12 लाख युवाओं को मिलेगी सरकारी नौकरी
राज्य ब्यूरो, पटना। बिहार विधानमंडल का बजट सत्र शुक्रवार को राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खां के अभिभाषण के साथ आरंभ हो गया। दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करते हुए राज्यपाल ने नीतीश सरकार की उपलब्धियां गिनाईं।
सेंट्रल हॉल में आयोजित संयुक्त अधिवेशन में उन्होंने कहा कि इस वर्ष चुनाव की घोषणा के पहले राज्य में युवाओं को 10 लाख की जगह 12 लाख सरकारी नौकरी दी जाएगी।
इसी प्रकार से रोजगार सृजन के तहत अब तक 10 लाख की जगह 24 लाख लोगों को रोजगार दिया गया है। विधानसभा चुनाव की घोषणा के पहले ही राज्य में 34 लाख लोगों को रोजगार मिलेगा। वहीं, अभी तक नौ लाख 35 हजार से अधिक युवाओं को सरकारी नौकरी दी जा चुकी है।
लगभग आधे घंटे के अभिभाषण में राज्यपाल ने कहा कि पहली फरवरी 2025 को केंद्र सरकार द्वारा पेश किए गए बजट में बिहार के विकास में सहयोग के लिए मखाना बोर्ड का गठन, राज्य में नये हवाई अड्डों का निर्माण, पश्चिम कोसी नहर परियोजना के लिए आर्थिक सहायता, पटना आईआईटी का विस्तार और राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी, उद्यमिता एवं प्रबंधन संस्थान की स्थापना की घोषणा की गई है।
केंद्र सरकार ने की थी विशेष आर्थिक मदद की घोषणाबिहार के लिए केंद्र सरकार ने विशेष आर्थिक मदद की घोषणा की थी। इसमें बिहार की सड़क परियोजनाओं, विद्युत परियोजनाओं, एयरपोर्ट, मेडिकल कॉलेज, खेल-कूद के विकास और पर्यटन स्थलों के विकसित करने के लिए विशेष सहायता की घोषणा की गई थी।
बिहार को बाढ़ से बचाने के लिए कोसी-मेची नदी जोड़ परियोजना और सिंचाई परियोजना के लिए भी मदद देने की घोषणा की गई थी।राज्यपाल ने बताया कि 24 नवंबर 2005 से राज्य में कानून का राज स्थापित है। साथ ही लगातार विकास का काम हो रहा है।
राज्य में कानून का राज बनाए रखना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताराज्य सरकार ने सुशासन और न्याय के साथ विकास पर जोर दिया है। राज्य के सभी क्षेत्रों का विकास और सभी वर्गों का उत्थान इसमें शामिल है। शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, सड़क, पेयजल के क्षेत्रों में विशेष ध्यान दिया गया है।
उन्होंने कहा कि राज्य में अब किसी तरह के डर एवं भय का वातावरण नहीं है। राज्य में कानून का राज बनाए रखना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है।
सरकार द्वारा अपराध नियंत्रण और विधि व्यवस्ता के संधारण के लिए हर थाने के कार्य को दो हिस्सों में जैसे पहला केसों के अनुसंधान और दूसरा विधि-व्यवस्था के संधारण में बांट दिया गया है। राज्य में पुलिस बल की संख्या बढ़कर 1 लाख 10 हजार हो गई है, जिसमें महिलाएं 30 हजार हैं।
पुलिस के 21 हजार 391 रिक्त पदों पर भी नियुक्ति की प्रक्रिया अंतिम चरण में हैं। सरकार पुलिस बल की संख्या को और बढ़ाने जा रही है। इसके लिए 2 लाख 27 हजार से भी अधिक नए पदों का सृजन कर तेजी से पुलिस की बहाली की जा रही है।
थानों की संख्या बढ़ाकर 1380 हो गई है। आपात स्थिति से निपटने के लिए डायल 112 की इमरजेंसी सेवा प्रारंभ की गई है।
राज्यपाल के अभिभाषण के समय विधानसभा अध्यक्ष नंद किशोर यादव, विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, उप मुख्यमंत्री विजय सिन्हा, विरोधी दल के नेता तेजस्वी यादव, पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी सहित सभी दलों के विधायक और विधान परिषद के सदस्य उपस्थित थे।
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नीरज कुमार, पटना। भारत के विभिन्न राज्यों एवं पड़ोसी देश नेपाल में बार-बार भूकंप आने की प्रवृति ने लोगों में भय का वातावरण पैदा कर दिया है। बार-बार भूकंप आने का मुख्य कारण प्लेटों का खिसकना माना जा रहा है। वर्तमान में देश का प्रायद्विपीय भाग औसतन दो सेंटीमीटर की गति से प्रतिवर्ष हिमालय की ओर बढ़ रहा है।
इससे हिमालय पर्वतमाला धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठ रहा है। पिछले 50 वर्षों में माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई में लगभग 0.7 मीटर की वृद्धि हुई है। 1970 के आसपास माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 8848 मीटर मापी गई थी।
पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में हो रहा बदलावराजधानी के एएन कॉलेज के अवकाश प्राप्त शिक्षक एवं भूगोलवेता प्रो. नुपूर बाेस का कहना है कि पृथ्वी के चुबंकीय क्षेत्र में तेजी से बदलाव हो रहा है। इससे प्लेटों में काफी हलचल देखा जा रहा है। पृथ्वी के आंतरिक भाग में हलचल होने का प्रभाव सतह पर भूकंप के रूप में देखा जा रहा है। गनीमत है कि छोटे-छाेटे भूकंपों के माध्यम से पृथ्वी के आंतरिक भाग में दबाव कम हो जा रहा है।
अगर लंबे समय तक कोई भूकंप नहीं आता है तो कोई बड़ा भूकंप भी आ सकता है, जिसे काफी तबाही मच सकती है। 1934 में बिहार में बहुत बड़ा भूकंप आया था, इससे प्रदेश में काफी नुकसान हुआ था। उसके बाद से बिहार के उत्तरी भाग यानी नेपाल में अक्सर भूकंप का आगमन हो रहा है। उसकी तीव्रता सामान्यत: पांच से लेकर सात के आसपास देखी जा रही है।
घरों के आसपास खाली जगह रखना जरूरीभूकंप की दृष्टि से शहरों में आवासीय परिसर के आसपास खाली जगह भरते जा रहे हैं। शहरों में अपार्टमेंट कल्चर का प्रचलन काफी तेजी से बढ़ रहा है।
ऐसे में जरूरी है कि घरों के आसपास कुछ भाग खाली रखें, ताकि भूकंप आने पर घरों से बाहर निकलकर खाली जगह पर खड़ा हो सकें। तेज भूकंप आने पर सबसे ज्यादा खतरा अपार्टमेंट में रहने वाले लोगों को होता है।
सिंधू से लेकर ब्रह्मपुत्र तक मैदानी भाग- भारत में उत्तर में सिंधू नदी से लेकर गंगा एवं पूर्वोत्तर में ब्रह्मपुत्र नद तक के क्षेत्र को मैदानी भाग माना जाता है। यह भाग नदियों के गाद आदि से बना है, जबकि प्रायद्विपीय भाग अत्यंत कठोर है।
- भूकंप आने पर सबसे ज्यादा खतरा देश के मैदानी भाग को ही है। इस इलाके में जब भी तेज गति का भूकंप आता है, इमारतें भरभराकर गिरने लगती है। इससे जान-माल के नुकसान होने का खतरा रहता है।
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नई टेक्नोलॉजी में इस्तेमाल होने वाले खनिजों के निर्यात पर चीन का अंकुश, अब यूक्रेन के भंडार पर अमेरिका की नजर
एस.के. सिंह, नई दिल्ली।
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेन्सकी वॉशिंगटन में हैं, जहां वे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात करेंगे। दोनों नेताओं के बीच एक समझौता होने की उम्मीद है, जिससे अमेरिका को यूक्रेन के कुछ महत्वपूर्ण खनिजों की एक्सेस मिल जाएगी। हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि समझौते के बदले अमेरिका, यूक्रेन को रूस के खिलाफ सुरक्षा की गारंटी देगा या नहीं। समझौते के मुताबिक एक फंड बनाया जाएगा जिसमें यूक्रेन तेल, गैस तथा अन्य खनिजों से मिलने वाले राजस्व का आधा जमा करेगा। अमेरिका और यूक्रेन दोनों मिलकर इस फंड को मैनेज करेंगे और इसका प्रयोग यूक्रेन के विकास में किया जाएगा। ट्रंप के पहले प्रस्ताव के मुताबिक इस फंड का पैसा अमेरिका की तरफ से अब तक दी गई मदद को लौटाने में किया जाना था। ट्रंप ने कहा था कि अमेरिका ने अब तक यूक्रेन को 500 अरब डॉलर की मदद की है। इस लिहाज से देखा जाए तो समझौते की नई शर्तें यूक्रेन के लिए आसान हुई हैं। ट्रंप की पुरानी शर्तों पर जेलेन्सकी ने कहा था कि मैं ऐसे किसी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करने वाला जिसका बोझ यूक्रेन की आने वाली 10 पीढ़ियों पर पड़े।
यूक्रेन में महत्वपूर्ण (क्रिटिकल) और दुर्लभ (रेयर अर्थ) दोनों तरह के खनिजों का भंडार है। इन खनिजों का प्रयोग सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की बैटरी से लेकर रक्षा टेक्नोलॉजी तक में होता है। अभी चीन दुर्लभ और महत्वपूर्ण खनिजों का दुनिया का सबसे बड़ा सप्लायर है। अमेरिका और यूरोप चीन पर निर्भरता कम करना चाहते हैं। वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो क्रिटिकल यानी महत्वपूर्ण खनिजों की सप्लाई लगातार मुश्किल होती जा रही है। यही नहीं, युद्ध के बाद यूक्रेन का लगभग 53% खनिज भंडार इस समय रूस के नियंत्रण में चला गया है। विशेषज्ञ यूक्रेन पर रूस के हमले को भी खनिजों पर नियंत्रण की लड़ाी से जोड़कर देखते हैं।
बाइडेन प्रशासन के सख्ती बढ़ाने के बाद दिसंबर 2024 में चीन ने अमेरिका को कई महत्वपूर्ण खनिजों के निर्यात पर पाबंदी लगा दी। इनमें सेमीकंडक्टर में इस्तेमाल होने वाला गैलियम, सेमीकंडक्टर और इन्फ्रारेड टेक्नोलॉजी में इस्तेमाल होने वाला जर्मेनियम, मिसाइलों में प्रयोग किया जाने वाला एंटीमनी और ईवी बैटरी बनाने के लिए जरूरी ग्रेफाइट भी शामिल हैं। चीन इनका सबसे बड़ा सप्लायर है। वह दुनिया का 60 फीसदी जर्मेनियम, 80 फीसदी गैलियम और 78 फीसदी एंटीमनी उत्पादन करता है। दुर्लभ खनिजों में 17 तत्व आते हैं। सेल फोन और हार्ड ड्राइव से लेकर इलेक्ट्रिक तथा हाइब्रिड वाहनों तक अनेक कंज्यूमर टेक्नोलॉजी में इनका इस्तेमाल होता है।
अमेरिका ने 50 खनिजों को क्रिटिकल श्रेणी में डाल रखा है और इनमें से 26 का आयात वह चीन से करता है। चीन के पास 4.4 करोड़ टन रेयर अर्थ मिनरल का भंडार है जबकि अमेरिका के पास 18 लाख टन का। दुर्लभ खनिजों का 90 प्रतिशत उत्पादन (रिफाइनिंग के बाद) चीन ही करता है। इन पर सरकारी अंकुश बढ़ाने के लिए चीन ने हाल ही एक नए नियम का ड्राफ्ट जारी किया है। सरकार के निर्देश पर चाइनीज कंपनियां खनिजों की प्रोसेसिंग करने वाली मशीनों का निर्यात भी बंद कर रही हैं।
यूरोपियन यूनियन ने 34 खनिजों को क्रिटिकल श्रेणी में रखा है और इनमें से 22 के भंडार यूक्रेन में हैं। यूक्रेन के पास बैटरी बनाने में काम आने वाले लिथियम और कोबाल्ट, एयरोस्पेस इंडस्ट्री के लिए महत्वपूर्ण स्कैनडियम, इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट में प्रयोग होन वाला टेंटेलम, एयरोस्पेस, मेडिकल, ऑटोमोबाइल और मरीन इंडस्ट्री में प्रयुक्त होने वाले टाइटेनियम का भंडार है। इनके अलावा एयरोस्पेस, डिफेंस और परमाणु ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में प्रयोग होने वाले निकल, मैंगनीज, बेरिलियम, हैफियम, मैग्नीशियम, जिरकोनियम का भंडार भी उसके पास है। परमाणु हथियार और लेजर में इस्तेमाल होने वाले मिनरल अर्बियम और यिट्रियम भी उसके पास हैं। वैसे तो यूक्रेन के कुल भंडार का सही आकलन अभी तक नहीं हुआ है, फिर भी माना जाता है कि दुनिया का पांच प्रतिशत और यूरोप का सबसे बड़ा क्रिटिकल मिनरल भंडार यूक्रेन के पास है।
यहां यूरोप का सबसे बड़ा टाइटेनियम भंडार भी है जिसका प्रयोग एयरोस्पेस, मेडिकल और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में होता है। अनुमान है कि यूक्रेन के पास 5 लाख टन लिथियम का भंडार है जो यूरोप में सबसे बड़ा है। ईवी बैटरी और न्यूक्लियर रिएक्टर में इस्तेमाल होने वाले ग्रेफाइट का दुनिया का 20% भंडार मध्य और पश्चिमी यूक्रेन में है।
खनिजों के कारण ही है यूक्रेन में ट्रंप की रुचिजवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और चीन मामलों के विशेषज्ञ प्रो. बी.आर. दीपक जागरण प्राइम से कहते हैं, “राष्ट्रपति ट्रंप की यूक्रेन में रुचि वहां मौजूद लिथियम, टाइटेनियम, मैंगनीज जैसे महत्वपूर्ण खनिजों और दुर्लभ खनिजों के समृद्ध भंडार के कारण है। ये खनिज इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा और रिन्यूएबल एनर्जी जैसे उद्योगों के लिए बेहद जरूरी हैं। यूक्रेन के खनिजों तक पहुंच सुनिश्चित करके अमेरिका, चीन पर अपनी निर्भरता कम कर सकता है। अभी तक चीन, अमेरिका को इन खनिजों का बड़ा सप्लायर रहा है।”
ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर और चीन मामलों की जानकार डॉ. गुंजन सिंह कहती हैं, “अमेरिका के बिना अकेला यूरोप यूक्रेन की मदद नहीं कर सकता है। इसलिए संभव है कि अमेरिकी मदद हासिल करने के लिए यूक्रेन समझौता कर ले। लेकिन यहां यह सवाल भी उठेगा कि यूक्रेन को क्या मिल रहा है।”
यूक्रेन के पास 15 लाख करोड़ डॉलर का खनिज भंडारअगर यूक्रेन के डोनेट्स्क, खेरसॉन, लुहान्स्क और काला सागर क्षेत्र में खनिज भंडारों को देखें तो पता चलता है कि रूस ने इन इलाकों पर नियंत्रण क्यों किया है। ये इलाके हाइड्रोकार्बन के अलावा ग्रेफाइट, लिथियम और यूरेनियम जैसे महत्वपूर्ण खनिजों से समृद्ध हैं। एक आकलन के अनुसार यूक्रेन के खनिज भंडारों की वैल्यू 15 लाख करोड़ डॉलर के आसपास है। ये खनिज भंडार यूक्रेन की संप्रभुता के साथ ऊर्जा में यूरोप की आत्मनिर्भरता और अमेरिका तथा चीन के बीच तकनीकी वर्चस्व की प्रतिस्पर्धा के लिए भी अहम हैं।
यूक्रेन ने 2013 में तेल और गैस के निजीकरण की पहल शुरू की थी, तो 2014 में रूस ने क्रीमिया पर कब्जा किया और डोनबास में सैन्य अभियान चलाया था। उसके बाद यूक्रेन 2017 में नई ऊर्जा रणनीति लेकर आया और वर्ष 2021 में जेलेन्सकी ने इन खनिजों के खनन के लिए बाहरी निवेशकों को टैक्स में छूट देने की घोषणा की, तो रूस ने 2022 में फिर हमला कर दिया।
यूक्रेन को महत्वपूर्ण खनिजों का पावर हाउस कहा जाता रहा है। यूक्रेन में खनिज भंडार तो काफी हैं लेकिन इनको लेकर अभी तक जो अध्ययन हुए हैं उन्हें खनन के लिहाज से पर्याप्त नहीं माना जाता है। कनाडाई गैर-सरकारी संगठन सेकडेव (SecDev) के प्रिंसिपल रॉबर्ट मुग्गाह और सीईओ रफाल रोहोजिंस्की ने एक लेख में बताया है कि 2022 में रूस के आक्रमण से पहले, यूक्रेन ने करीब 20,000 खनिज भंडारों को पंजीकृत किया था। इनमें कोयला, गैस, लोहा, मैंगनीज, निकेल, अयस्क, टाइटेनियम और यूरेनियम के भंडार शामिल हैं। युद्ध से पहले यूक्रेन माइक्रोचिप बनाने में काम आने वाली नियॉन जैसी नोबल गैस के सबसे बड़े सप्लायर में एक था। यूरोप में लिथियम और दुर्लभ खनिजों के सबसे बड़े भंडार वहीं हैं। इनमें से अधिकांश भंडार लुहान्स्क, डोनेट्स्क, जापोरिज्झिया, निप्रोपेत्रोव्स्क, पोल्टावा और खारकीव तक फैले हैं।
अमेरिकी हस्तक्षेप का व्यापक भूराजनीतिक असरप्रो. दीपक के अनुसार, यूक्रेन के खनिज संसाधनों में राष्ट्रपति ट्रंप की रुचि को व्यावसायिक और भू-राजनीतिक, दोनों नजरिए से देखा जाना चाहिए। व्यावसायिक दृष्टि से यूक्रेन के समृद्ध खनिज संसाधनों में हिस्सेदारी लेना एक सौदागर (डील मेकर) ट्रंप की पृष्ठभूमि के अनुरूप है। इसका उद्देश्य अमेरिका को आर्थिक लाभ दिलाना और महत्वपूर्ण खनिजों के लिए विदेशी स्रोतों पर निर्भरता कम करना है। भू-राजनीतिक रूप से देखें तो इसके रणनीतिक प्रभाव हैं। यूक्रेन के खनिज संसाधनों पर नियंत्रण से न केवल इन खनिजों की अमेरिकी आपूर्ति श्रृंखला मजबूत होगी, बल्कि यह भी सुनिश्चित होगा कि ये पूरी तरह से रूस के हाथों में न चले जाएं। यदि रूस इन संसाधनों पर पूरी तरह से नियंत्रण कर लेता है, तो आगे चलकर उसमें चीन की हिस्सेदारी से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
रूस के नियंत्रण के कारण कितनी सफलता मिलेगीरिपोर्ट्स के अनुसार यूक्रेन का लगभग 53% खनिज भंडार रूस के कब्जे में है। प्रो. दीपक कहते हैं, यूक्रेन के अधिकांश खनिज भंडार इसके पूर्वी क्षेत्र में स्थित हैं, जहां का बड़ा इलाका अभी रूसी नियंत्रण में है। इसलिए यह सौदा कई चुनौतियों और जोखिमों से भरा हो सकता है। कुछ जटिल मुद्दे जिनका समाधान आवश्यक होगा, वे हैं सुरक्षा गारंटी, विवादित क्षेत्रों में निवेश से जुड़े खतरे और इन्फ्रास्ट्रक्चर से संबंधित समस्याएं।
रॉबर्ट-रफाल के अनुसार, यूक्रेन पर 2022 में आक्रमण करने के कुछ ही महीनों के भीतर रूस ने 12.5 लाख करोड़ डॉलर से अधिक मूल्य के यूक्रेन के खनिजों पर नियंत्रण कर लिया था। दुनिया के सबसे बड़े कोयला भंडारों में एक यूक्रेन का है। इसके 56 प्रतिशत हिस्से पर रूस का नियंत्रण है। यूक्रेन के पास यूरोप का दूसरा सबसे बड़ा गैस और तेल भंडार है और रूस ने यूक्रेन की 20 प्रतिशत गैस फील्ड और 11 प्रतिशत ऑयल फील्ड पर भी कब्जा कर लिया। रूस ने 2022 के अंत तक यूक्रेन के लिथियम, टैंटलम, सीजियम और स्ट्रोंशियम के 50 प्रतिशत से लेकर 100 प्रतिशत भंडारों पर नियंत्रण कर लिया था। ये धातुएं ग्रीन एनर्जी के साथ रक्षा उद्योगों के लिए भी आवश्यक हैं। युद्ध से पहले यूक्रेन यूरोप का लौह अयस्क, लिथियम, मैंगनीज और स्टील का प्रमुख आपूर्तिकर्ता था।
यूक्रेन के पास यूरोप का सबसे बड़ा में यूरेनियम भंडार भी है, जो विश्व भंडार का अनुमानित 2 प्रतिशत है। यूरेनियम परमाणु ऊर्जा के लिए महत्वपूर्ण है। परमाणु ऊर्जा के लिए अहम बेरिलियम का भंडार भी यूक्रेन के पास है। वह गैलियम का पांचवां सबसे बड़ा उत्पादक रहा है। यूक्रेन सेमीकंडक्टर ग्रेड की नियॉन गैस का भी बड़ा उत्पादक है और अमेरिका को 90 प्रतिशत सप्लाई वही करता रहा है। माना जाता है कि यूरोप का सबसे बड़ा लिथियम भंडार भी यूक्रेन में ही है। एक अनुमान के अनुसार यूक्रेन के काला सागर रिजर्व में लगभग दो लाख करोड़ घन मीटर प्राकृतिक गैस है और इसके लगभग 80 प्रतिशत हिस्से पर रूस का नियंत्रण है। यूक्रेन के ड्नीपर-डोनेट्स्क क्षेत्र में ही तेल, गैस और कोयले का 80 प्रतिशत भंडार का है। यूक्रेन की तरक्की के लिए इन खनिजों पर उसका नियंत्रण होना जरूरी है।
रॉबर्ट-रफाल लिखते हैं, “उभरते भू-राजनीतिक परिदृश्य में यूक्रेन के संसाधनों पर जिसका नियंत्रण होगा, वह वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालेगा। यूक्रेन के खनिजों पर नियंत्रण का मतलब है कि रूस इनकी सप्लाई चेन को प्रभावित कर सकता है। इसलिए युद्धविराम हो या शांति समझौता, यूक्रेन की खनिज संपदा उसके केंद्र में रहेगी। अगर यूक्रेन को अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा गारंटी के बदले रूस के नियंत्रण वाले इलाकों को छोड़ना पड़ा, तो इससे उसकी आर्थिक नींव कमजोर हो सकती है। इन क्षेत्रों को छोड़ने का मतलब है कि यूक्रेन को अपनी तरक्की के लिए यूरोपीय और अमेरिकी सहायता पर निर्भर रहना पड़ेगा।””
यूक्रेन पहले कह चुका है कि रूस के नियंत्रण से बाहर के हिस्से को विकसित करना ट्रंप के हित में है ताकि रूस आगे न बढ़े। यूरोपीय यूनियन का कहना है कि अगर यूक्रेन यूनियन में शामिल हो जाए तो यूरोप की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।
अमेरिका-रूस सहयोग कितना संभवविशेषज्ञ यूक्रेन पर रूस के हमले को भी खनिजों की लड़ाई से जोड़ते हैं। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पिछले सोमवार को कहा था कि वे रूस के साथ यूक्रेन के कब्जे वाले इलाकों में भी अमेरिकी कंपनियों के साथ मिलकर दुर्लभ खनिजों का खनन करने के लिए तैयार हैं। पुतिन ने यह भी कहा कि रूस में यूक्रेन की तुलना में काफी अधिक खनिज भंडार है।
प्रो. दीपक के अनुसार, अमेरिकी कंपनियों और रूस के बीच दुर्लभ खनिजों के खनन में सहयोग को देखना दिलचस्प होगा। हालांकि किसी भी सौदे के लिए भू-राजनीतिक बाधाओं को पार करना और अमेरिका-रूस तथा यूरोपीय संघ-यूक्रेन-रूस के बीच आपसी अविश्वास को दूर करना आवश्यक होगा। महत्वपूर्ण खनिजों के खनन में इस सहयोग के बदले रूस विभिन्न प्रतिबंधों को हटाने की मांग कर सकता है।
वे कहते हैं, “यह असंभव नहीं है, फिर भी इन जटिलताओं को देखते हुए खनन पर अमेरिका-रूस के बीच किसी समझौते के लिए बड़े राजनयिक प्रयासों, संभावित रियायतों और विश्वास बहाली के उपायों की आवश्यकता होगी। इस प्रकार के सहयोग को व्यवहार्य बनाने के लिए भू-राजनीतिक परिदृश्य को अधिक सहयोगात्मक (कोऑपरेटिव) बनाना होगा।”
रूस और चीन के रिश्तों पर कितना असरप्रो. दीपक कहते हैं, पुतिन और रूस के प्रति राष्ट्रपति ट्रंप के ‘अति सौहार्दपूर्ण’ रुख पर काफी बहस हो रही है। यदि ट्रंप प्रशासन रूस के साथ घनिष्ठ संबंधों की दिशा में कदम उठाता है, जिसमें खनिजों के खनन में सहयोग भी शामिल है, तो इसका व्यापक भू-राजनीतिक प्रभाव पड़ेगा। इससे रूस को अमेरिकी प्रभाव में लाया जा सकेगा। तब रूस-चीन की रणनीतिक साझेदारी भी कमजोर हो सकती है। यदि ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका ने रूस के करीब जाने का संकेत दिया है, तो उसने चीन-रूस संबंधों की मजबूती की भी परीक्षा की होगी।
वे कहते हैं, चीन और रूस के बीच ‘असीमित साझेदारी’ की गहराई को देखते हुए कहा जा सकता है कि यह चीन-रूस संबंधों को गंभीर चोट नहीं पहुंचाएगा, हालांकि यह निश्चित रूप से एक नया परिप्रेक्ष्य जोड़ सकता है। फिर भी यह मेल-मिलाप 1972 में रिचर्ड निक्सन की ऐतिहासिक चीन यात्रा के बाद अमेरिका-चीन संबंधों में आए परिवर्तन जैसे नतीजे नहीं दे सकता। चीन इस समय अमेरिका, यूरोपीय संघ और रूस समेत वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। इसलिए 1972 के भू-राजनीतिक बदलाव जैसा अभी कुछ होने की संभावना नहीं दिखती। हालांकि, यह चीन को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए बाध्य कर सकता है। न सिर्फ अमेरिका और रूस के साथ संबंधों के संदर्भ में, बल्कि यूक्रेन और यूरोपियन यूनियन के साथ भी। यह चीन को अन्य देशों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने के लिए भी प्रेरित कर सकता है, ताकि वह शक्ति संतुलन में संभावित बदलावों का मुकाबला कर सके। भारत-चीन संबंधों के पुनर्मूल्यांकन को भी इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।
डॉ. गुंजन भी कहती हैं, “अमेरिका के रूस के करीब आने से चीन और रूस के संबंधों पर असर पड़ने की संभावना नहीं है, क्योंकि सब जानते हैं कि ट्रंप सिर्फ 4 साल के लिए हैं। ट्रंप जो कर रहे हैं वह रिपब्लिकन पार्टी की भी पॉलिसी नहीं रही है। आने वाले समय में ट्रंप पर घरेलू दबाव भी बन सकता है।”
वे कहती हैं, ट्रंप की नीतियों से एक तरह से चीन को दूसरे देशों के साथ संबंध बढ़ाने में मदद मिल रही है। यूक्रेन युद्ध में चीन ही रूस के साथ मजबूती से खड़ा रहा है। वह रूस से यह भी कह सकता है कि हम ज्यादा पैसे देंगे, हमें वहां खनन की इजाजत दी जाए।
विशेषज्ञों के अनुसार चीन इस बात से चिंतित हो सकता है कि अगर रूस के साथ अमेरिका के मतभेद खत्म हुए, तो ट्रंप प्रशासन का पूरा फोकस चीन पर आ जाएगा। तब उसकी मुश्किलें ज्यादा बढ़ सकती हैं।
अमेरिका की विश्वसनीयता पर भी सवालडॉ. गुंजन के अनुसार, इस पूरे प्रकरण में सबसे बड़ी बात है कि अमेरिका की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगा है। संयुक्त राष्ट्र में वोटिंग के दौरान पहली बार अमेरिका उत्तर कोरिया के साथ खड़ा दिखा। ट्रंप के अब तक के व्यवहार को देखें तो पुतिन के साथ उनके संबंध वैसे नहीं जैसे दूसरे नेताओं के रहे। वे पुतिन के साथ बात भी करना चाहते हैं। अगर ट्रंप रूस के साथ इतनी बात करने के बाद भी युद्ध खत्म करवाने में नाकाम रहते हैं तो अमेरिका की कोई विश्वसनीयता नहीं रह जाएगी। जिस तरह ट्रंप यूक्रेन के खिलाफ रूस का समर्थन कर रहे हैं, उससे यह सवाल भी उठने लगा है कि कहीं वे ग्रीनलैंड पर अमेरिकी नियंत्रण की अपनी बात को वाजिब ठहरने की कोशिश तो नहीं कर रहे। गौरतलब है कि ग्रीनलैंड में भी महत्वपूर्ण खनिजों के भंडार हैं।
वे कहती हैं, “ट्रंप ने पहले कहा कि अमेरिका ने यूक्रेन को 500 अरब डॉलर दिए। ट्रंप खनिजों से वह रकम वसूलना चाहते थे। इस तरह के अप्रोच की उम्मीद अमेरिका से नहीं की जाती है। वह भी तब जब पैसे दिए जाने के समय अमेरिका ने ऐसी कोई शर्त नहीं रखी थी। अभी तक अमेरिका को ग्लोबल लिबरल ऑर्डर का समर्थक माना जाता था, लेकिन लगता है ट्रंप को उन सबसे कोई मतलब नहीं है। वे बिजनेस की मानसिकता से कम कर रहे हैं। अमेरिका की नीति इतनी अनप्रेडिक्टेबल कभी नहीं रही, ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी नहीं।
डॉ. गुंजन कहती हैं, “राष्ट्रपति ट्रंप एक तरह से एडहॉक फैसले ले रहे हैं। इनके आधार पर कोई दीर्घकालिक नजरिया बनाना मुश्किल है। अब ताइवान को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं और कहा जा रहा है कि अगर चीन उस पर नियंत्रण करता है तो शायद अमेरिका ताइवान की मदद के लिए न आए। वैसे भी अमेरिका वन चाइना पॉलिसी के तहत आधिकारिक रूप से ताइवान को चीन का हिस्सा मानता है।”
जो भी हो, विशेषज्ञ इतना तो मानते हैं कि यूक्रेन युद्ध के समाधान में ट्रंप प्रशासन की भूमिका उसकी व्यापक ऊर्जा रणनीति के अनुरूप होगी। अब तक के फैसलों से लगता है कि ट्रंप ऊर्जा के मामले में अमेरिका पर यूरोप की निर्भरता बढ़ाना चाहते हैं। साथ ही वे रिसोर्स-पॉलिटिक्स के जरिए मित्र देशों पर रक्षा खर्च बढ़ाने का दबाव भी डालना चाहते हैं।
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Patna Airport: पटना एयरपोर्ट से कब मिलेगी इंटरनेशनल फ्लाइट, नए टर्मिनल पर भी आया लेटेस्ट अपडेट
जागरण संवाददाता, पटना। जय प्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय विमान क्षेत्र, जिसे पटना एयरपोर्ट (Patna Airport) के नाम से भी जाना जाता है। इसकी स्थापना वर्ष 1973 में हुई थी। वर्ष 1999 तक काठमांडू (नेपाल) के लिए पटना एयरपोर्ट से विमान सेवा थी। दिल्ली-काठमांडू फ्लाइट के हाइजैक होने के बाद से पटना एयरपोर्ट से वहां के लिए विमान सेवा बंद कर दी गईं।
26 वर्षों से पटना एयरपोर्ट नाम का अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा बन कर रह गया है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (आइसीएओ) एवं अंतरराष्ट्रीय वायु परिवहन संघ (आइएटीए) ने अब तक दर्जा नहीं छीना। यही कारण है कि दो दशक बाद इसे अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा की तर्ज पर तैयार किया जा रहा है।
हालांकि, रनवे का विस्तार नहीं किए जाने की वजह से निकटतम भविष्य में पटना एयरपोर्ट से विदेशों के लिए फ्लाइट के उड़ान भरने की संभावना नजर नहीं आती। अलबत्ता, छोटे देश जैसे नेपाल के लिए विमान सेवा फिर से शुरू की जा सकती है। अब भी इस हवाईअड्डा की गिनती घरेलू (डोमेस्टिक) एयरपोर्ट में ही होती है। देशभर के व्यस्ततम हवाईअड्डे में पटना एयरपोर्ट 15वें स्थान पर है। यहां सीमा शुल्क विभाग के भी अधिकारी तैनात हैं।
क्षेत्रफल में किया गया विस्तारवर्ष 2018 में पटना एयरपोर्ट का विस्तार करने की योजना तैयार की गई थी। कोरोनाकाल में निर्माण कार्य प्रभावित हुआ। इसके बाद काम में तेजी आई। पुराना टर्मिनल भवन 7,200 वर्ग मीटर में था। इसका क्षेत्रफल बढ़ा कर 57 हजार वर्ग मीटर हो जाएगा। इसके कंक्रीट पेव्ड उड़ान पट्टी की लंबाई 6,900 फीट है, जबकि रनवे सात हजार फीट लंबा है। इस वजह से यहां विमानों की सुरक्षित लैंडिंग नहीं हो पाती।
सामान्य तौर पर विमान 2.5 डिग्री के क्षितिज पर लैंड कराए जाते हैं, लेकिन पटना एयरपोर्ट का रनवे छोटा होने के कारण तीन डिग्री क्षितिज पर लैंडिंग करानी पड़ती है। यह जोखिम भरा होता है। दूसरी ओर पटना एयरपोर्ट की बाउंड्री के बाद रेल पटरी है, जहां गंदगी का अंबार लगा रहता है। मांस-मछली की भी दुकानें हैं। ऐसे में बर्ड-हिट की घटनाएं भी होती हैं।
बढ़ जाएगी विमानों की आवाजाहीनए टर्मिनल भवन से यात्रियों की आवाजाही के बाद पुराना टर्मिनल भवन तोड़ा जाएगा। जहां अभी पुराना टर्मिनल है, वहां विमानों की पार्किंग होगी। अभी सिर्फ चार विमान एक साथ खड़े हो सकते हैं। विस्तार के बाद 14 विमानों की पार्किंग संभव है। छह एरोब्रिज भी बनाए जाएंगे।
सबसे पहले नए एटीसी टावर का संचालन शुरू हुआ। यह बीआइसी परिसर से सटा है। इसके बाद कार्गो टर्मिनल की शुरुआत की गई। मल्टी लेवल पार्किंग बनकर तैयार है, लेकिन नए टर्मिनल भवन से संचालन शुरू होने पर उसका उपयोग किया जाएगा।
दस वर्षों में तीन गुना हुई यात्रियों की संख्याआंकड़ों पर गौर करें तो दस वर्षों में पटना हवाईअड्डे से यात्रा करने वाले लोगों की संख्या तीन गुना बढ़ गई। वर्ष 2011-12 में यात्रियों की वार्षिक संख्या 10 लाख 21 हजार 544 थी, जो वर्ष 2023-24 में 34 लाख 40 हजार 450 तक पहुंच गई। इसी तरह एयर ट्रैफिक मूवमेंट भी दो गुना बढ़ा है।
पांच वर्ष पहले तक गो-एयर की सबसे अधिक फ्लाइटें थीं। अब सर्वाधिक फ्लाइटें इंडिगो की हैं। हाल में एयर इंडिया एक्सप्रेस की फ्लाइट का परिचालन भी यहां से शुरू हुआ है। इससे माल लदान में भी बढ़ोतरी हुई है। दस वर्षों में सबसे अधिक माल ढुलाई 12 हजार 409 मैट्रिक टन दर्ज की गई है।
अभी 35 से 50 मिनट ही रुक पाते हैं विमान- पटना एयरपोर्ट पर कम सुविधाएं होने के कारण विमान 35 से 50 मिनट तक ही रुक पाते हैं। नया टर्मिनल शुरू होने के बाद इसका समय बढ़ जाएगा। इससे ट्रांजिट निरीक्षण, रखरखाव समेत अन्य आवश्यक काम आसान हो जाएंगे।
- नए टर्मिनल में खास सुविधाएं होंगी, जैसे रात में विमानों का ठहराव, धुलाई और रखरखाव, पार्किंग आदि। विमानों के शौचालय की सफाई के लिए भूमिगत सीवरेज सिस्टम बन गया है।
1,216 करोड़ रुपये की लागत से बन रहे पटना एयरपोर्ट के नए टर्मिनल का काम 65 प्रतिशत पूरा हो चुका है। अप्रैल में इसके उद्घाटन की तैयारी की जा रही है। इलेक्ट्रिक का काम सुचारू रहने के साथ सेंट्रलाइज्ड एसी की टेस्टिंग भी पूरी कर ली गई है। हालांकि, लोकापर्ण के एक महीने बाद काम पूरा होने की उम्मीद है। इसके बाद एयरोब्रिज और पार्किंग बे का निर्माण होगा।
दीवारों पर पुट्टी का काम लगभग समाप्त कर लिया गया है। लकड़ी का भी चल रहा है। इसके बाद दीवारों पर मधुबनी पेंटिंग की जाएगी। इस नए टर्मिनल में व्यस्त समय में 4,500 यात्रियों के एक साथ आवागमन की सुविधा होगी। अभी 1,300 यात्री एक साथ आ-जा सकते हैं।
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'बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों का नेटवर्क ध्वस्त करो', अमित शाह ने तैयार किया दिल्ली का सुरक्षा प्लान
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। डबल इंजन सरकार के साथ दिल्ली को सुरक्षित बनाने का रोडमैप तैयार हो गया है। केंद्रीय गृह व सहकारिता मंत्री अमित शाह ने दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता, गृह मंत्री आशीष सूद, दिल्ली पुलिस आयुक्त संजय अरोड़ा व दिल्ली सरकार व केंद्रीय गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक में इस रोडमैप को हरी झंडी दे दी।
रोडमैप में रोहिंग्या व बांग्लादेशियों के अवैध नेटवर्क को ध्वस्त करने, अंतरराज्यीय गैंगस्टर गिरोहों के खिलाफ निर्दयता के साथ कार्रवाई करने के साथ ही थाना स्तर पर जन समस्याओं को सुनने व निपटाने की पूरा प्रविधान मौजूद है।
घुसपैठियों पर होगी कार्रवाईअमित शाह ने कहा कि दिल्ली की डबल इंजन सरकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपेक्षाओं के अनुरूप विकसित दिल्ली-सुरक्षित दिल्ली के लिए दुगुनी गति से काम करेगी। बैठक में दिल्ली को सुरक्षित बनाने के लिए अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठ की समस्या से निपटने पर विस्तार से चर्चा हुई।
(फोटो: @AmitShah)
अमित शाह ने साफ किया कि अवैध घुसपैठियों का मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जुड़ा है और इनके खिलाफ पूरी सख्ती के साथ कार्रवाई हो, जिसमें इन्हें चिन्हित कर वापस बांग्लादेश या म्यांमार भेजना सुनिश्चित करना भी शामिल है।
नेटवर्क के खिलाफ होगी कार्रवाई- उन्होंने कहा कि दिल्ली में बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों के देश में घुसने से लेकर उनके दस्तावेज बनवाने और यहां रहने में मदद करने वाले पूरे नेटवर्क के खिलाफ कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
- अमित शाह ने कहा कि देश की राजधानी में कानून-व्यवस्था में लापरवाही कतई बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्होंने कहा कि लगातार खराब प्रदर्शन करने वाले पुलिस थानों और सब-डिविजन के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो। इस सिलसिले में दिल्ली में सक्रिय अंतरराज्यीय गैंगस्टर गिरोहों पर भी चर्चा हुई।
- शाह ने साफ किया कि इन्हें समाप्त करना दिल्ली की प्राथमिकता होनी चाहिए और उनके खिलाफ पूरी निर्दयता से कार्रवाई करनी होगी। इसी तरह से उन्होंने ड्रग्स तस्करी के मामले में टॉप टू बॉटम और बॉटम टू टॉप अप्रोच के साथ काम करने का निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि किसी मामले में उससे जुड़े पूरे नेटवर्क का पता लगाकर ध्वस्त करना होगा।
दिल्ली में दशकों से किसी भी निर्माण के लिए दिल्ली पुलिस की इजाजत लेने का नियम चला आ रहा था। अमित शाह ने इसे तत्काल खत्म करने को कहा। शाह ने स्पष्ट निर्देश दिया कि दिल्ली में निर्माण से संबंधित मामलों में दिल्ली पुलिस की परमिशन की जरुरत नहीं होनी चाहिए।
दिल्ली के वरिष्ठ नागरिकों, महिलाओं और बच्चों को सुरक्षित वातावरण देकर आमजन की समस्याओं का निराकरण हमारी प्राथमिकता है। DCP स्तर के अधिकारी जन-सुनवाई कैंप आयोजित कर जनता की समस्याओं का त्वरित समाधान सुनिश्चित करें।
लॉ एंड ऑर्डर में किसी तरह की कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।… pic.twitter.com/angAqTNWfn
— Amit Shah (@AmitShah) February 28, 2025इसी तरह से कानून-व्यवस्था से जुड़ी जनता की शिकायतों पर सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए अमित शाह ने डीसीपी स्तर के अधिकारी थाना स्तर पर जाकर जन-सुनवाई कैंप लगाने का निर्देश दिया और जनता की समस्याओं के त्वरित निराकरण करने को कहा। वहीं झुग्गी झोपड़ी क्लस्टर में महिलाओं व महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए नई सुरक्षा समितियां बनाई जाएंगी, जिनमें पुलिस अधिकारी के साथ-साथ स्थानीय लोगों की भी भागीदारी होगी।
जाम और जलभराव का होगा समाधानअमित शाह ने 2020 के दिल्ली दंगों की सुनवाई में हो रही देरी को गंभीरता से लेते हुए इसे जल्द पूरा करने के लिए कदम उठाने को कहा। इन मामलों के जल्द निपटान के लिए दिल्ली सरकार विशेष अभियोजक नियुक्त करेगी। शाह ने दिल्ली पुलिस में अतिरिक्त पदों पर भर्ती की प्रक्रिया जल्द शुरू करने का भी निर्देश दिया।
बैठक में दिल्ली में रोजाना लगने वाले जाम व मानसून के दौरान जलभराव की समस्या पर भी चर्चा हुई। शाह ने दिल्ली पुलिस को रोजाना जाम लगने वाले स्थानों को चिन्हित करने का निर्देश दिया और दिल्ली पुलिस आयुक्त व मुख्य सचिव को मिलकर इसका त्वरित हल निकालने को कहा। उन्होंने जलभराव के स्थानों को चिन्हित करने और इससे निपटने के लिए दिल्ली सरकार को 'मानसून एक्शन प्लान' बनाने को कहा।
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नौकरी के सालभर के भीतर हो जाए मौत तो मिलेगा न्यूनतम 50 हजार का बीमा लाभ, हर साल 5 हजार लोगों को फायदा
पीटीआई, नई दिल्ली। श्रम मंत्री मनसुख मांडविया की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय न्यासी बोर्ड की बैठक में कर्मचारी जमा-लिंक्ड बीमा (ईडीएलआई) योजना के तहत बीमा लाभ बढ़ाने सहित कई फैसले लिए गए।
ईडीएलआई योजना के बीमांकित मूल्यांकन के बाद, बोर्ड ने सदस्यों के परिवार को अधिक वित्तीय सुरक्षा और सहायता प्रदान करने के लिए योजना में प्रमुख संशोधनों को मंजूरी दी।
मंत्रालय ने कहा कि बोर्ड ने सेवा के एक वर्ष के भीतर मृत्यु होने पर न्यूनतम लाभ की शुरुआत को मंजूरी प्रदान की। अगर किसी ईपीएफ सदस्य की मृत्यु एक वर्ष की निरंतर सेवा पूरी किए बिना हो जाती है तो उसे न्यूनतम 50,000 रुपये का जीवन बीमा लाभ प्रदान किया जाएगा। इस संशोधन के परिणामस्वरूप हर साल सेवा के दौरान मृत्यु होने के 5,000 से अधिक मामलों में लाभ मिलने की उम्मीद है।
Modi Government's Commitment to Labour Welfare!
Chaired the 237th meeting of the Central Board of Trustees, EPF in New Delhi. The Board has recommended an 8.25% interest rate on EPF for FY 2024-25. Key modifications in the EDLI Scheme were also approved which will enhance… pic.twitter.com/7hz6ByHi10
सेवा में रहते हुए योगदान जमा नहीं होने पर भी मिलेगा ईडीएलआइ का लाभ
सीबीटी ने उन सदस्यों के लिए भी लाभ को मंजूरी प्रदान कर दी है, जो सेवा में तो रहते हैं, लेकिन उनका योगदान जमा नहीं होता है। पहले ऐसे मामलों में ईडीएलआइ का लाभ देने से मना कर दिया जाता था, लेकिन अब अगर अंतिम अंशदान के छह महीने के अंदर किसी कर्मचारी का निधन हो जाता है तो उसे ईडीएलआइ का लाभ मिलेगा, बशर्ते सदस्य का नाम संस्थान ने अपने रजिस्टर से नहीं हटाया हो। संशोधन के परिणामस्वरूप हर साल इस तरह से मृत्यु के 14,000 से अधिक मामलों में लाभ मिलने का अनुमान है।
एक से दूसरी नौकरी के बीच दो महीने तक के अंतराल को माना जाएगा निरंतर सेवा
सीबीटी ने योजना के तहत सेवा निरंतरता पर विचार करने के प्रस्ताव को भी मंजूरी प्रदान की है। इससे पहले, दो प्रतिष्ठानों में रोजगार के बीच एक या दो दिन (जैसे सप्ताहांत या छुट्टियां) का अंतर होने पर न्यूनतम 2.5 लाख रुपये और अधिकतम सात लाख रुपये के ईडीएलआइ लाभ से इन्कार कर दिया जाता था, क्योंकि एक वर्ष की निरंतर सेवा की शर्त पूरी नहीं होती थी।
नए संशोधनों के तहत, दो प्रतिष्ठानों में नौकरी के बीच दो महीने तक के अंतराल को अब निरंतर सेवा माना जाएगा, जिससे अधिक मात्रा में ईडीएलआइ लाभ के लिए पात्रता सुनिश्चित होगी। नियमों में संशोधन से प्रत्येक वर्ष सेवा में मृत्यु के 1,000 से अधिक मामलों में लाभ मिलने की उम्मीद है।
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