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Bihar Politics: चुनाव से पहले कांग्रेस का बड़ा दांव, क्या 21 नए चेहरे बिहार में कर पाएंगे कमाल? यहां समझें समीकरण
सुनील राज, पटना। देश में मंडल की राजनीति के बाद से बिहार जैसे प्रदेश में पिछड़ी जातियों का वोट सभी राजनीतिक दलों के लिए तुरुप का इक्का रहा है।
कांग्रेस भी अल्पसंख्यक, पिछड़ा, अति पिछड़ा वोट को अपना परंपरागत वोट बताती रही है, लेकिन इस वर्ष बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव के ऐन पहले पार्टी ने अपने 40 संगठनात्मक जिलों में जिन 40 अध्यक्षों की नियुक्ति की है उनमें 14 सवर्ण बिरादरी से आते हैं।
पांच दलित, सात अल्पसंख्यक, 10 ओबीसी, तीन अतिपिछड़ा समाज और एक वैश्य समाज से आते हैं। यह पहला मौका नहीं है, इसके पूर्व पार्टी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह ने मई 2023 में 39 जिलों में अध्यक्ष नियुक्त किए थे, उनमें 25 जिलों की कमान सवर्ण अध्यक्षों को दी गई थी।
इनमें 11 भूमिहार, पांच राजपूत, आठ ब्राह्मण और एक कायस्थ बिरादरी के थे। इनके अलावा चार यादव, पांच मुस्लिम, तीन पासवान और एक रविदास बिरादरी से आते थे। इन जिलाध्यक्षों में दो महिलाएं भी थी। 2023 की कमेटी की अपेक्षाकृत नई कमेटी में अगड़ों की संख्या में काफी कमी आई है।
कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावारू ने 27 मार्च को जिला और प्रखंड के संगठन में बदलाव के लिए एक स्क्रीनिंग कमेटी बनाई थी।
इस कमेटी ने महज चार दिनों में जिलों का आकलन करने के बाद अपनी अनुशंसा केंद्रीय हाईकमान को भेजी थी। जिसके बाद नए 21 चेहरों को पार्टी में जिलाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है। जबकि 19 पुराने चेहरों को वापस जिलाध्यक्ष पद का जिम्मा दिया गया है।
पार्टी के अंदर चल रही ये चर्चा- पार्टी के अंदरखाने भी जिलाध्यक्षों के 14 पद सवर्णो को देने को लेकर दबी जुबान चर्चा होनी शुरू हो गई है। हालांकि कांग्रेस मीडिया विभाग के अध्यक्ष राजेश राठौड़ कहते हैं।
- नए जिलाध्यक्षों को लेकर कोई शंका, विवाद नहीं है। कांग्रेस सबको साथ लेकर चलने में विश्वास करती है। जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में भी इसका ख्याल रखा गया है।
हालांकि, पार्टी के बाहर राजनीति गलियारों में इस बात की चर्चा है कि कांग्रेस मंडल की राजनीति के तीन दशकों के बाद बिहार में काफी कमजोर हुई है।
ऐसे में वह नया दांव चलकर अगड़ी जातियों के अपने पुराने वोटरों को लुभाने में जुटी है। साथ ही दलित, पिछड़ा, अति पिछड़ा का हिमायती होने का दावा भी कर रही है।
बहरहाल कांग्रेस अपने इस प्रयोग में कितना सफल होगी इसका निर्णय तो विधानसभा चुनाव 2025 के बाद ही हो पाएगा।
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'लालू ने कहा था चोरी करने वालों को जेल भेजो', अमित शाह ने संसद में पढ़ा RJD सुप्रीमो का पुराना बयान
डिजिटल डेस्क, पटना/नई दिल्ली। लोकसभा में बुधवार (2 अप्रैल) को वक्फ संशोधन बिल पेश किया गया। बिल पर खूब बहस छिड़ी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी इस पर अपना पक्ष रखा। वहीं, उन्होंने विपक्षी नेताओं को लालू यादव का एक पुराना बयान भी याद दिलाया। जिसमें लालू ने वक्फ को लेकर एक कड़ा कानून लाने की मांग की थी। अमित शाह ने संसद में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का पुराना बयान पढ़ा।
शाह ने कहा कि
'मैडम, सरकार ने जो ये संशोधन विधेयक पेश किया है। सरकार की पहल का हम स्वागत करते हैं। शाहनवाज हुसैन और अन्य सदस्यों ने अपनी बातों को यहां रखा, मैं उनका समर्थन करता हूं। आप देखिए कि सारी जमीनें हड़प ली गई हैं। चाहे सरकारी हो या गैर सरकारी, वक्फ बोर्ड में जो काम करने वाले लोग हैं। उनके द्वारा सारी प्राइम लैंड को बेच दिया गया है। पटना में ही डाक बंगले की जितनी प्रॉपर्टी थी, सब पर आपर्टमेंट बन गए। इस तरह की काफी लूट-खसोट हुई है। हम संशोधन विधेयक तो आपको अंत में लाए हैं, समर्थन करते हैं, लेकिन मैं चाहता हूं कि भविष्य में आप कड़ा कानून लाइए। ये जो चोरी करने वाले लोग हों, उनको जेल की सलाखों के पीछे डालिए।'
अमित शाह ने इसके बाद विपक्ष की ओर इशारा करते हुए कहा कि अब साहब; लालू प्रसाद की इच्छा इन्होंने तो पूरी नहीं की नरेंद्र मोदी जी ने पूरी कर दी। शाह की इस बात को सुनकर एनडीए के सदस्यों ने हंसते हुए अपनी मेज भी थपथपाई।
अमित शाह ने हंसते हुए कहा कि ये लालू यादव ने कहा था कि कड़ा कानून लाइए। इसके बाद शाह ने अन्य सदस्यों का भी पुराना भाषण पढ़ा।
अमित शाह ने और क्या कहा?इसके अलावा, अमित शाह ने लोकसभा में कहा कि वक्फ एक प्रकार की चैरिटेबल संस्था है, जहां कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति को सामाजिक, धार्मिक या जनकल्याण के उद्देश्य से दान करता है, बिना उसे वापस लेने के अधिकार के। इसमें 'दान' शब्द का विशेष महत्व है, क्योंकि दान केवल उसी चीज का किया जा सकता है, जो हमारी स्वयं की संपत्ति हो। सरकारी संपत्ति का दान कोई नहीं कर सकता।
उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों को डराकर वोट बैंक खड़ा किया जा रहा है। भय का माहौल बनाकर भारत में भ्रांति फैलाई जा रही है। गृह मंत्री शाह ने सदन में कहा कि जो लोग धार्मिक संस्थाओं का संचालन करते हैं, उनमें किसी गैर-मुस्लिम व्यक्ति को शामिल करने का प्रावधान न पहले था और न ही एनडीए सरकार ऐसा करने जा रही है।
जो लोग बड़े-बड़े भाषण देते हैं कि समानता का अधिकार खत्म हो गया या दो धर्मों के बीच भेदभाव होगा या मुस्लिमों के धार्मिक अधिकारों में दखल दिया जाएगा, उन्हें कहना चाहता हूँ कि ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला है।
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'अगर नरेंद्र मोदी का चेहरा पसंद नहीं है तो...', ललन सिंह ने संसद में विपक्ष से कह दी तीखी बात
राज्य ब्यूरो, पटना। केंद्रीय मंत्री एवं जदयू के वरिष्ठ नेता राजीव रंजन सिंह ऊर्फ ललन सिंह (Lalan Singh) ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) धर्मनिरपेक्ष नीतियों के आधार पर बिना किसी भेदभाव के देश के सभी लोगों के विकास की योजना पर काम कर रहे हैं।
बुधवार को लोकसभा में पेश वक्फ संशोधन बिल (Waqf Amendment Bill) का समर्थन करते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि वोट की राजनीति के कारण कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इस बिल का विरोध कर रहे हैं। बिल को मुस्लिम विरोधी बता कर प्रचारित किया जा रहा है।
'अगर नरेंद्र मोदी का चेहरा पसंद नहीं है तो...'उन्होंने कहा कि वक्फ बोर्ड कोई धार्मिक संस्था नहीं है। यह वक्फ संपत्तियों के संचालन की एक नियामक समिति है। विपक्ष के लोगों को अगर नरेंद्र मोदी का चेहरा पसंद नहीं है तो न देखें, लेकिन उनके अच्छे कार्यों की प्रशंसा तो करें।
ललन ने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को कांग्रेस या दूसरे दलों से धर्मनिरपेक्षता का प्रमाण पत्र नहीं चाहिए। नीतीश कुमार ने 20 वर्षों के अपने शासनकाल में बिहार के मुसलमानों के लिए जितना काम किया, उतना काम कांग्रेस अपने लंबे शासनकाल में भी नहीं कर पाई थी।
'नीतीश ने सबसे विकास के लिए काम किया'ललन सिंह ने कहा, नीतीश ने भागलपुर के दंगा पीड़ितों को न्याय दिलाया। कब्रिस्तानों की घेराबंदी कराई। मुसलमानों के शैक्षणिक एवं आर्थिक विकास के लिए कई योजनाएं बनाई, जिनका लाभ पूरी मुस्लिम आबादी को मिल रहा है। नीतीश ने बिना किसी विवाद के सबके विकास के लिए काम किया। नीतीश कुमार ने यह सब भाजपा के सहयोग से किया।
ललन सिंह ने बताया वक्फ संशोधन बिल का फायदा?केंद्रीय मंत्री ने कहा कि वक्फ संशोधन बिल के पारित होने के बाद मुसलमानों के कमजोर तबके को लाभ मिलेगा। आज वक्फ की संपत्ति का लाभ खास लोगों को मिल रहा है। मुसलमानों की बड़ी आबादी इसके लाभ से वंचित है।
उन्होंने कहा, बिल का उद्देश्य यह है कि वक्फ की संपत्तियों का लाभ गरीब मुसलमानों को भी मिले। वक्फ की संपत्ति का अपने हक में उपयोग करने वाले लोग ही संशोधन बिल का विरोध कर रहे हैं। कांग्रेस वोट के लिए बिल का विरोध कर रही है।
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हैदराबाद यूनिवर्सिटी के पास विवादित 400 एकड़ जमीन पर चल रहे काम पर 24 घंटे की रोक, तेलंगाना HC का आदेश
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। तेलंगाना उच्च न्यायालय ने बुधवार को हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के पास कांचा गाचीबोवली में 400 एकड़ भूमि पर चल रहे काम को 24 घंटे के लिए रोक दिया। न्यायालय ने यह अंतरिम आदेश छात्रों और वात फाउंडेशन द्वारा दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान पारित किया।
यह आदेश वात फाउंडेशन और हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी (एचसीयू) के छात्रों द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) के जवाब में आया है। अदालत ने अधिकारियों को कल यानी 3 अप्रैल तक भूमि पर काम बंद करने का निर्देश दिया है, जब अगली सुनवाई होनी है।
याचिकाकर्ताओं ने यह तर्क देते हुए रोक लगाने की मांग की थी कि तेलंगाना औद्योगिक अवसंरचना निगम (टीजीआईआईसी) सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन करते हुए बुलडोजर से पेड़ों को काट रहा है।
उन्होंने तर्क दिया कि भले ही भूमि पिछले वर्ष जून में राज्य सरकार के आदेश के अनुसार टीजीआईआईसी को आवंटित की गई हो, फिर भी कंपनी को पेड़ों को उखाड़ने और जमीन को समतल करने के लिए भारी वाहनों के उपयोग के संबंध में शीर्ष अदालत के आदेशों का पालन करना होगा।
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वक्फ बोर्ड की घट जाएगी शक्ति! अभी कितनी हैं संपत्ति; कानून बना तो सरकार के हाथ में क्या-क्या जाएगा?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री किरेन रिजिजू ने बुधवार को लोकसभा में दूसरी बार वक्फ संशोधन विधेयक 2024 पेश किया। विधेयक पर कुल आठ घंटे चर्चा होगी। अगर यह लोकसभा में पारित होता है तो गुरुवार को इसे राज्यसभा में पेश किया जा सकता है। बिल के समर्थन में सरकार का कहना है कि इससे जवाबदेही तय होगी। वक्फ बोर्ड के कामकाज में पारदर्शिता आएगी। विपक्षी दल इसे संविधान के खिलाफ बताने में जुटे हैं।
वक्फ संशोधन विधेयक पर राष्ट्रव्यापी बहस के बीच आइए जानते हैं वक्फ बोर्ड क्या है, इसका गठन कब हुआ, इसके पास कितनी संपत्ति है... नए संशोधन विधेयक में क्या अलग है, सरकार और विपक्ष के तर्क क्या हैं... सरकार को किन-किन दलों का साथ मिला, पुराने कानूनों के किन प्राविधानों पर सरकार को आपत्ति है।
वक्फ क्या है?वक्फ अरबी का शब्द है। इसका मतलब खुदा के नाम पर दी जाने वाली वस्तु या संपत्ति है। इसे परोपकार के उद्देश्य से दान किया जाता है। कोई भी मुस्लिम अपनी चल और अचल संपत्ति को वक्फ कर सकता है। अगर कोई भी संपत्ति एक भी बार वक्फ घोषित हो गई तो दोबारा उसे गैर-वक्फ संपत्ति नहीं बनाया जा सकता है।
पहली बार कब बना वक्फ एक्ट?देश में पहला वक्फ अधिनियम 1954 में बनाया गया था। इसी के तहत वक्फ बोर्ड का गठन किया गया था। इसका मकसद वक्फ के कामकाज को सरल बनाना था। 1955 में पहला संशोधन किया गया। 1995 में नया वक्फ कानून बनाया गया था। इसके तहत राज्यों को वक्फ बोर्ड गठन की शक्ति दी गई। साल 2013 में संशोधन किया गया और सेक्शन 40 जोड़ी गई।
देशभर में वक्फ बोर्ड के पास कितनी संपत्ति?देशभर में सबसे अधिक जमीन भारतीय रेलवे और सशस्त्रबलों के पास है। संपत्ति के मामले में वक्फ बोर्ड तीसरे नंबर पर आता है। उसके पास आठ लाख एकड़ से अधिक जमीन है। बोर्ड की अनुमानित संपत्ति 1.2 लाख करोड़ रुपये है। 2009 में वक्फ बोर्ड के पास कुल 4 लाख एकड़ जमीन थी।
कौन करता है संपत्तियों का रख-रखाव?वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन वक्फ बोर्ड करते हैं। देशभर में कुल 32 वक्फ बोर्ड हैं। हर राज्य में एक वक्फ बोर्ड होता है। यूपी और बिहार में दो शिया वक्फ बोर्ड भी हैं। वक्फ बोर्ड एक कानूनी इकाई है। यह संपत्ति को अर्जित करने और प्रबंधन का काम देखता है। वक्फ संपत्तियों को न तो बेचा जा सकता है और न ही पट्टे पर दिया जा सकता है।
अभी वक्फ बोर्ड में कौन-कौन होता?अभी तक वक्फ बोर्ड में अध्यक्ष के अलावा प्रदेश सरकार के सदस्य, मुस्लिम सांसद, विधायक, बार काउंसिल के सदस्य, इस्लामी विद्वान और वक्फ के मुतवल्ली शामित होते थे।
वक्फ अधिनियम में संशोधन क्यों?कानून में संशोधन करने के पीछे सरकार का तर्क है कि वक्फ बोर्ड के कामकाज को सुव्यवस्थित बनाना और वक्फ संपत्तियों का कुशल प्रबंधन सुनिश्चित करना है। वक्फ संशोधन विधेयक 2024 का उद्देश्य वक्फ अधिनियम- 1995 में संशोधन करना है। इससे वक्फ संपत्तियों का रेगुलेशन और प्रबंधन करने में आसानी होगी।
- पिछले अधिनियम की कमियों को दूर करना।
- अधिनियम का नाम बदलने जैसे बदलाव करके वक्फ बोर्डों की कार्यकुशलता को बेहतर करना।
- वक्फ की परिभाषाओं को अपडेट करना।
- पंजीकरण प्रक्रिया में सुधार करना।
- वक्फ रिकॉर्ड के प्रबंधन में तकनीक का दखल बढ़ाना।
सरकार का मानना है कि मौजूदा वक्फ कानून ने कई तरह के विवादों को जन्म दिया है। वक्फ के 'एक बार वक्फ... हमेशा वक्फ' के सिद्धांत से विवाद उपजे हैं। बेट द्वारका के द्वीपों पर दावों को अदालतों ने भी उलझन भरा माना। सरकार का तर्क है कि वक्फ अधिनियम 1995 और 2013 में इसमें किया गया संशोधन अब प्रभावकारी नहीं है। इससे कुछ समस्याएं पैदा हुई हैं।
अभी क्या समस्या आ रही थी?- वक्फ भूमि पर अवैध कब्जा।
- कुप्रबंधन और स्वामित्व विवाद।
- संपत्ति पंजीकरण और सर्वेक्षण में देरी।
- बड़े पैमाने पर मुकदमे और मंत्रालय को शिकायतें।
- अभी तक वक्फ न्यायाधिकरणों के निर्णयों को हाई कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती थी।
- इससे वक्फ प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही तय नहीं होती थी।
- कुछ राज्य वक्फ बोर्डों ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया है। इस वजह से सामुदायिक तनाव पैदा हुआ।
- वक्फ अधिनियम की धारा 40 का सबसे अधिक दुरुपयोग किया गया। इसके तहत निजी संपत्तियों को वक्फ घोषित किया गया। इसने मुकदमेबाजी को जन्म दिया।
वक्फ अधिनियम केवल एक धर्म पर लागू होता है। किसी अन्य धर्म के लिए ऐसा कोई कानून नहीं है। दिल्ली उच्च न्यायालय में दाखिल एक जनहित याचिका में वक्फ बोर्ड की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाए गए थे।
क्या है विवादित सेक्शन 40?वक्फ अधिनियम के सेक्शन 40 पर बहस छिड़ी है। इसके तहत बोर्ड को रिजन टू बिलीव की की ताकत मिली है। अगर बोर्ड का मानना है कि कोई संपत्ति वक्फ की संपत्ति है तो वो खुद से जांच कर सकती है और वक्फ होने का दावा पेश कर सकता है। अगर उस संपत्ति में कोई रह रहा है तो वह अपनी आपत्ति को वक्फ ट्रिब्यूनल के पास दर्ज करा सकता है। अगर कोई संपत्ति एक बार वक्फ घोषित हो गई तो हमेशा वह वक्फ रहेगी। इस वजह से कई विवाद भी सामने आए हैं। नए कानून में इस सेक्शन को हटा दिया गया है।
विपक्ष क्यों कर रहा विरोध?वक्फ संशोधन विधेयक के खिलाफ विपक्षी दलों का तर्क है कि यह मुस्लिमों की धार्मिक आजादी पर हमला है। वक्फ की संपत्तियों पर कब्जा करने के उद्देश्य से विधेयक लाया जा रहा है। विपक्षी दलों का तर्क यह भी है कि कानून संविधान के खिलाफ है। तानाशाही तरीके से लाया गया है। संयुक्त संसदीय कमेटी में शामिल विपक्ष के सदस्यों के संशोधनों को शामिल नहीं किया गया है।
सरकार के साथ कौन-कौन दल?वक्फ बिल पर सरकार को जेडीयू, टीडीपी, जेडीएस, हम, लोजपा (रामविलास) शिवसेना, रालोद और पवन कल्याण की पार्टी जनसेना का साथ मिला है।
वक्फ संशोधन विधेयक 2024 में क्या-क्या बदलाव?- अधिनियम का नाम वक्फ अधिनियम- 1995 से बदलकर एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम- 1995 करने का प्रस्ताव।
- वक्फ के रूप में पहचानी गई सरकारी संपत्तियां वक्फ नहीं होगी। विवादों का समाधान कलेक्टर द्वारा किया जाएगा।
- वक्फ निर्धारण की शक्ति वक्फ बोर्ड के पास नहीं होगी।
- वक्फ का सर्वेक्षण, सर्वेक्षण आयुक्तों और अपर आयुक्त द्वारा संचालित कलेक्टरों को संबंधित राज्यों के राजस्व कानूनों के अनुसार करने का अधिकार होगा।
- केंद्रीय वक्फ परिषद: दो गैर-मुस्लिम होंगे। सांसदों, पूर्व न्यायाधीशों और प्रतिष्ठित व्यक्तियों का मुस्लिम होना जरूरी नहीं है। दो महिला सदस्यों का होना भी जरूरी। मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधि, इस्लामी कानून के विद्वान, वक्फ बोर्डों के अध्यक्ष मुस्लिम समुदाय से होंगे।
- राज्य वक्फ बोर्ड: राज्य सरकार दो गैर-मुस्लिमों, शिया, सुन्नी, पिछड़े वर्ग के मुसलमानों, बोहरा और आगाखानी समुदाय से एक-एक सदस्य को मनोनीत कर सकती। कम से कम दो मुस्लिम महिलाओं का होना जरूरी है।
- वक्फ न्यायाधिकरण: अपर जिला मजिस्ट्रेट शामिल होंगे। मुस्लिम कानून विशेषज्ञ के प्रावधान को हटाया गया है। इसमें जिला न्यायालय के न्यायाधीश और एक संयुक्त सचिव (राज्य सरकार) शामिल होंगे। न्यायाधिकरण के आदेश के खिलाफ 90 दिनों के भीतर अदालत में अब अपील कर सकेंगे।
- केंद्र सरकार की शक्तियां: राज्य सरकारें कभी भी वक्फ खातों का ऑडिट कर सकती हैं। केंद्र सरकार को वक्फ पंजीकरण, खातों और लेखा परीक्षा पर नियम बनाने का अधिकार दिया गया है। शिया वक्फ 15 फीसदी से अधिक होने पर शिया और सुन्नी के अलग-अलग वक्फ बोर्ड होंगे। बोहरा और अगाखानी वक्फ बोर्ड को भी अनुमति दी गई है।
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साल 2026 के लिए H-1B वीजा का शुरुआती सेलेक्शन प्रोसेस खत्म, जिन भारतीयों का हुआ चयन, वो अब क्या करें?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। वित्त वर्ष 2026 के लिए एच-1बी वीजा लॉटरी के लिए प्रारंभिक सेलेक्शन प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। 31 मार्च को 85,000 की वार्षिक लिमिट पूरी हो चुकी है। बता दें कि एक साल में 65,000 एच-1बी जारी की जाती है। लॉटरी के जरिए सेलेक्शन प्रक्रिया पूरी की जाती है। इसके अलावा 20 हजार वीजा उन छात्रों को दिया जाता है, जिन्होंने अमेरिका के कॉलेज-यूनिवर्सिटी से डिग्री हासिल की है।
बता दें कि अमेरिका में नौकरी के लिए H-1B वीजा बेहद जरूरी होता है। अगर आप भी अमेरिका में नौकरी हासिल करना चाहते हैं, तो फिर आपको H-1B वीजा हासिल करने पर जोर देना चाहिए।
जिन लोगों का सेलेक्शन हुआ, वो अब क्या करें...जिन लोगों ने लॉटरी अप्लाई की है वो अपने USCIS अकाउंट में जाकर ये देख सकते हैं कि उनका सेलेक्शन हुआ है या नहीं। USCIS ने आवश्यक कोटा पूरा करने के लिए उचित रूप से प्रस्तुत पंजीकरणों में से पर्याप्त लाभार्थियों का चयन किया है। अब जबकि प्रारंभिक चयन प्रक्रिया पूरी हो गई है वो चयनित लाभार्थी H-1B कैप-विषय याचिका दायर करने के लिए पात्र है।
H-1B वीजा रजिस्ट्रेशन के बारे में जरूरी बातेंआवेदकों को प्रत्येक लाभार्थी को इलेक्ट्रॉनिक रूप से रजिस्टर करने के लिए USCIS ऑनलाइन अकाउंट का इस्तेमाल करना होगा। प्रत्येक लाभार्थी के लिए 215 डॉलर (आज की करेंसी के हिसाब से 18,730.84 रुपये) H-1B रजिस्ट्रेशन फीस का भुगतान किया जाएगा। USCIS ने H-1B पंजीकरण शुल्क को प्रति लाभार्थी 10 डॉलर से बढ़ाकर 215 डॉलर किया है।
भरनी होती है बेसिक जानकारीH-1B कर्मचारियों को रोजगार देने के इच्छुक संभावित याचिकाकर्ताओं को पंजीकरण प्रक्रिया पूरी करनी होती है। प्रत्येक वित्त वर्ष में प्रारंभिक पंजीकरण अवधि 14 दिनों तक चलती है। जिन लोगों ने चयनित पंजीकरण कराया होगा, केवल वे ही H-1B कैप-विषय याचिका दायर करने के पात्र होंगे।
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