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ट्रंप के Tariff War से बचने के लिए भारत ने बनाया मास्टर प्लान, Reciprocal टैक्स के मामले पर नरम पड़ा अमेरिका
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भले ही बार-बार दो अप्रैल, 2025 से भारतीय उत्पादों पर पारस्परिक टैक्स लगाने की धमकी दे रहे हों, लेकिन उनकी सरकार की तरफ से कुछ नरमी के संकेत दिए गए हैं। यह संकेत भारतीय अधिकारियों के साथ चल रही वार्ता में दिए गए हैं। कोशिश यह है कि दोनों रणनीतिक साझेदार देशों के बीच ट्रेड वार को किसी भी तरह से टाला जाए।
इसी कोशिश में मंगलवार को अमेरिका के उप व्यापार प्रतिनिधि ब्रेंडेन लॉंच पांच दिवसीय यात्रा पर नई दिल्ली पहुंच रहे हैं। पारस्परिक टैक्स लगाने की निर्धारित अवधि से पहले यह दोनों देशों के बीच अंतिम दौर की वार्ता होगी।
भारत के साथ संतुलित कारोबार बढ़ाना चाह रहा अमेरिकाअमेरिकी दूतावास के सूत्रों ने बताया कि, “भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय कारोबार को लेकर जारी वार्ता में शामिल होने के लिए उप व्यापार प्रतिनिधि (दक्षिण व मध्य एशिया) लॉंच 25-29 मार्च तक भारत में होंगे। यह अमेरिका की प्रतिबद्धता को दिखाता है कि वह भारत के साथ अपने संतुलित व फायदेमंद कारोबारी संबंधों को आगे बढ़ाना चाहता है। हम भारत के साथ निवेश व कारोबार संबंधी मौजूदा वार्ता का सम्मान करते हैं और आशा करते हैं कि एक रचनात्मक, बराबरी वाला व भविष्य केंद्रित विमर्श जारी रहेगा।''
इस बारे में भारत सरकार के संबंधित मंत्रालयों से भी कोई प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की गई लेकिन देर शाम तक कोई सूचना प्राप्त नहीं हुई है। 20 जनवरी, 2025 को दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने कम से कम सात मौकों पर भारत पर पारस्परिक शुल्क लगाने की धमकी देने के साथ ही भारत को अमेरिकी उत्पादों पर सबसे ज्यादा आयात शुल्क लगाने वाले देश के तौर पर चिन्हित कर चुके हैं।
ट्रंप के सामने पीएम मोदी ने उठाया था आयात शुल्क का मुद्दाहालांकि, भारत सरकार की तरफ से इस विषय पर बहुत ही कम बोला गया है। पिछले शुक्रवार को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने यह जरूर कहा है कि दोनों देशों के बीच एक पारस्परिक हितों वाले नतीजों पर पहुंचने के लिए कई स्तरों पर बातचीत चल रही है। फरवरी, 2025 में पीएम नरेन्द्र मोदी के साथ वॉशिंगटन में मुलाकात के दौरान भी राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत सरकार की तरफ से बहुत ज्यादा आयात शुल्क लगाने का मुद्दा उठाया था।
दोनों नेताओं के बीच हुई वार्ता के बाद जारी संयुक्त बयान में कहा गया था कि दोनों देश इस साल के अंत तक एक कारोबारी व निवेश समझौता करेंगे। इसके कुछ ही दिनों बाद केंद्रीय वाणिज्य व उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने अमेरिका का दौरा किया था।
अतिरिक्त टैक्स लगाने से कारोबारी मौहाल को नुकसान होगा: भारतसूत्रों के मुताबिक वाणिज्य मंत्री के इस दौरे और उसके बाद की अधिकारियों के स्तर पर होने वाली वार्ताओं में भारत ने यह तर्क रखा है कि जब इस साल के अंत तक कारोबारी समझौता किया जाना है तो उसके जरिए ही द्विपक्षीय कारोबार से जुड़े मुद्दों का समाधान किया जाए।
उसके पहले एक दूसरे पर अतिरिक्त टैक्स लगाने से कारोबारी मौहाल को नुकसान होगा। जानकारों का कहा है कि अमेरिकी पक्ष ने इस तर्क से सहमति जताई है।
भारत ने यह भी कहा है कि दोनों देशों को पिछले वर्ष मोदी और पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन के बीच आपसी कारोबार को बढ़ा कर 500 अरब डॉलर करने के लक्ष्य के लिए काम करना चाहिए। अगले तीन-चार दिनों तक जब नई दिल्ली में दोनों तरफ के अधिकारी मिलेंगे तो इन मुद्दों पर फिर से बात की जाएगी।
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Rupee on a roll, clocks strongest close in 2025
Bihar Teacher Transfer: बिहार में 10 हजार से अधिक टीचरों का तबदला, शिक्षा विभाग ने जारी किया नया नोटिफिकेशन
राज्य ब्यूरो, पटना। राज्य के सरकारी विद्यालयों के 10,225 शिक्षकों का ऐच्छिक स्थानांतरण किया गया है। इनमें 226 ऐसे शिक्षक हैं, जो स्वयं या जिनके पति-पत्नी या बच्चे कैंसर से ग्रस्त हैं।
जबकि 937 ऐसे शिक्षक हैं, जो स्वयं या जिनके पति-पत्नी या बच्चे किडनी, लीवर या हृदय रोग से पीड़ित हैं। 2,685 शिक्षकों को दिव्यांगता के आधार पर स्थानांतरण किया गया है।
इस संबंध में सोमवार को शिक्षा विभाग की ओर से संबंधित शिक्षकों की सूची जारी की गई। शिक्षा विभाग के मुताबिक स्थानांतरित शिक्षकों में 573 ऐसे हैं, जो स्वयं या जिनके पति-पत्नी या बच्चे ऑटिज्म-मानसिक दिव्यांगता से ग्रस्त हैं।
516 ऐसी महिला शिक्षकों का तबादला किया गया है, जो विधवा या परित्यक्ता हैं। 5,288 महिला शिक्षकों का पति के पदस्थापन के आधार पर स्थानांतरण किया गया है।
इस स्थानांतरण से नियोजित शिक्षकों को अलग रखा गया है। स्थानांतरित शिक्षकों का 10 अप्रैल से 20 अप्रैल तक विद्यालय आवंटन होगा।
इन सभी शिक्षकों के अंतर जिला आवेदनों पर विचार करते हुए उन्हें ऐच्छिक जिला आवंटित किया गया है। स्थानांतरित 10,225 शिक्षकों में 7,272 महिलाएं हैं। बाकी 2,953 पुरुष शिक्षक हैं।
स्वयं, पति-पत्नी या बच्चे के विभिन्न प्रकार के कैंसर के आधार पर जिन 226 शिक्षकों को स्थाननांतरित किया गया है, उनमें 113 महिला एवं 113 पुरुष शिक्षक हैं।
स्वयं, पति-पत्नी या बच्चे के किडनी, लीवर या हृदय रोग के आधार पर स्थानांतरित 937 शिक्षकों में 442 महिला एवं 442 पुरुष शिक्षक हैं।
स्वयं के दिव्यांगता के आधार पर स्थानांतरित 2,685 शिक्षकों में 620 महिला एवं 2,065 पुरुष शिक्षक हैं। स्वयं, पति-पत्नी या बच्चे के ऑटिज्म-मानसिक दिव्यांगता के आधार पर स्थानांतरित 573 शिक्षकों में 293 महिला एवं 280 पुरुष शिक्षक हैं।
स्थानांतरित सभी 10,225 शिक्षकों की सूची शिक्षा विभाग ने जारी कर दी है। संबंधित शिक्षकों के अंतर जिला स्थानांतरण का फैसला शिक्षा सचिव की अध्यक्षता वाली विभागीय स्थापना समिति की बैठक में सोमवार को लिया गया है।
समिति के अध्यक्ष शिक्षा सचिव अजय यादव की अध्यक्षता में हुई बैठक में इसके सभी सदस्य प्राथमिक शिक्षा निदेशक साहिला, प्राथमिक शिक्षा के उपनिदेशक संजय कुमार चौधरी एवं माध्यमिक शिक्षा के उपनिदेशक अब्दुस सलाम अंसारी शामिल थे।
शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि शिक्षकों का स्थानांतरण उनके द्वारा ई-शिक्षाकोष पोर्टल पर दिए गए घोषणा के आलोक में किया गया है।
स्थानांतरित सभी शिक्षकों को अब ई-शिक्षाकोष पोर्टल पर इस आशय के शपथपत्र देने होंगे कि उनके द्वारा दिए गए अभ्यावेदन एवं घोषणा में किसी प्रकारी सूचना गलत पाए जाने पर उन पर नियमानुसार अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकेगी।
प्राथमिकता के आधार किया जाएगा विचार- अधिकारी ने यह भी बताया कि शिक्षकों को इस आशय के भी शपथपत्र देने होंगे कि आवंटत जिला उन्हें स्वीकार है।
- समिति द्वारा उनके द्वारा दिए गए विद्यालय के विकल्प को प्राथमिकता के आधार पर विचार किया जाएगा।
- जहां प्राथमिकता के आधार पर रिक्ति उपलब्ध नहीं होगी, वहां उसके निकटतम विद्यालय के पंचायत-प्रखंड में पदस्थापन स्वीकार होगा।
- दोनों शपथ पत्र अपलोड करने के बाद ही शिक्षकों का विद्यालय आवंटन होगा। शपथ पत्र अपलोड नहीं करने वाले शिक्षकों का स्थानांतरण स्थगित रहेगा।
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भारत के स्वामित्व योजना की दुनिया भर में चर्चा, आयोजित हो रहा अंतरराष्ट्रीय सेमिनार; 22 देशों से पहुंचे अधिकारी
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। भूमि विवाद या कहें कि भूमि प्रशासन की विभिन्न चुनौतियों से जूझ रहे देशों को भारत ने एक आस दिखाई है। यह पंचायतीराज मंत्रालय की स्वामित्व योजना की सफलता की गूंज है कि विश्व के 22 देशों ने भारत से चुनौतियों का समाधान सीखने की ललक दिखाई है।
छह दिन की कार्यशाला में शामिल होने के लिए इन देशों के 44 वरिष्ठ अधिकारी पहुंचे हैं, जो स्वामित्व योजना के लाभ को जानेंगे, क्षेत्र भ्रमण करेंगे। इसके साथ ही अपने-अपने देशों की चुनौतियों को भी साझा करेंगे। विदेश मंत्रालय की ओर से भी आश्वस्त कर दिया गया है कि भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग कार्यक्रम के तहत भारत इच्छुक देशों को समग्र प्रशिक्षण देने के लिए भी तैयार है।
दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारंभपंचायतीराज मंत्रालय और विदेश मंत्रालय द्वारा भूमि प्रशासन पर आयोजित छह दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारंभ सोमवार को गुरुग्राम स्थित हरियाणा इंस्टीट्यूट आफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में हुआ।
सरकार के अधिकारियों ने तकनीकी नवाचार और सुरक्षित भूमि अधिकारों के माध्यम से ग्रामीण भारत को बदलने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दृष्टिकोण को मेहमान देशों के सामने रखा। बताया कि स्वामित्व योजना ने भारत में ग्रामीण भूमि प्रशासन में क्रांति ला दी है और अब इसे वैश्विक स्तर पर एक माडल के रूप में प्रदर्शित किया जा रहा है।
3.17 लाख से अधिक गांवों की ड्रोन मैपिंगपंचायतीराज मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव सुशील कुमार लोहानी ने स्वामित्व के पीछे के दृष्टिकोण और वैश्विक स्तर पर लागू करने की इसकी क्षमता को स्पष्ट किया। स्वामित्व योजना सुरक्षित संपत्ति अधिकारों के माध्यम से ग्रामीण सशक्तीकरण कर रही है। 3.17 लाख से अधिक गांवों की ड्रोन मैपिंग की गई है। इससे ग्रामीणों को आवासीय भूमि पर बैंकों से ऋण लेने की सुविधा मिली, साथ ही भूमि संबंधी विवादों का निपटारा आसान हो गया।
विदेश मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव विराज सिंह ने कहा कि यह पहल सहयोग और ज्ञान साझा करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता का उदाहरण है। अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए चलाए जा रहे आईटीईसी कार्यक्रम के माध्यम से भारत विभिन्न विषयों पर अब तक दुनिया भर के लगभग ढाई लाख प्रतिनिधियों को प्रशिक्षित कर चुका है।
कार्यशाला में इन मुद्दों पर होगी चर्चाकार्यशाला में शामिल देशों के प्रतिनिधि अपने यहां की भूमि संबंधी चुनौतियां बताएंगे तो उन पर भारत समाधान का रास्ता सुझाएगा। उनके लिए अलग से प्रशिक्षण पाठ्यक्रम तैयार करेगा। पंचायतीराज मंत्रालय के संयुक्त सचिव आलोक प्रेम नागर ने स्वामित्व योजना पर विस्तृत प्रस्तुतीकरण किया। ड्रोन फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष स्मित शाह ने भारत के तेजी से विकसित हो रहे ड्रोन ईकोसिस्टम के बारे में बताया।
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झुग्गी झोपड़ी, ट्रैफिक जाम और प्रदूषण से जूझ रहे शहर; फिर नगर निगम का बजट कहां खर्च हो रहा है?
जागरण टीम, नई दिल्ली। नीति आयोग के पूर्व सीईओ और जी-20 शेरपा अमिताभ कांत ने रायसीना डायलाग को संबोधित करते हुए शहरों को आर्थिक विकास और समृद्धि का संवाहक बताया है। भारत को विकसित देश बनाने में शहरों की भूमिका काफी अहम होने वाली है। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई इस बात का जीता जागता उदाहरण है।
मुंबई की जीडीपी 18 राज्यों की जीडीपी से अधिक है। इसी तरह नोएडा की जीडीपी कानपुर की जीडीपी से 12 गुना अधिक है, लेकिन काफी समय से देखा जा रहा है कि भारत में शहरीकरण तेज होने की वजह से शहर आकार में तो बड़े हो रहे है, लेकिन उनका नियोजित विकास नहीं हो रहा है।
भारतीय शहर झुग्गी झोपड़ी, ट्रैफिक जाम और प्रदूषण के लिए जाने जाते हैं। नियोजित विकास न होने से शहरों में रहने वाली एक बड़ी आबादी न सिर्फ न्यूनतम बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रही है, बल्कि लोग स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए निजी क्षेत्र की महंगी सुविधाओं पर निर्भर हैं।
जाहिर है कि ऐसे शहर आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने की क्षमता नहीं रखते हैं। अनियोजित विकास के पर्याय बन चुके शहर तेज शहरीकरण की राह में किस तरह की चुनौतियां पैदा रहे हैं, इसकी पड़ताल ही आज का मुद्दा है?
भारत के शहरीकरण मॉडल में समस्या
मुंबई के घरों में हर व्यक्ति के लिए जगह सिर्फ 30 वर्ग फीट है। वहीं चीन के शहरों में हर प्रति व्यक्ति जगह 120 वर्ग फिट से अधिक है।
देश में कैसी हैं संभावनाएं?भारत में पिछले कुछ दशकों में तेजी से शहरीकरण हुआ है, लेकिन वैश्विक स्तर के लिहाज से हम अभी बहुत पीछे हैं। इसके अलावा भारत में शहरों का विकास नियोजित नहीं है। इसकी वजह से शहर आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने में प्रभावी योगदान नहीं दे पा रहे हैं।
वेतन और पेंशन पर सबसे ज्यादा खर्च करते हैं नगर निगमभारत में दिल्ली और मुंबई नगर निकायों की सबसे अधिक चर्चा होती है। इनके फैसलों और काम से आम लोगों के साथ बहुराष्ट्रीय कंपनियां और देश के प्रभावशाली लोग भी प्रभावित होते हैं। दिल्ली नगर निगम का एरिया मुंबई की तुलना में लगभग तीन गुना है लेकिन दोनों का बजट लगभग बराबर है और दोनों लगभग एक ही तरीके काम करते हैं।
हालांकि, बजट खर्च करने की बात करें तो दोनों नगर निगम बजट का बड़ा हिस्सा नागरिक सुविधाओं के विकास पर नहीं वेतन, मजदूरी और पेंशन पर खर्च करते हैं। ऐसे में इस बात का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि दिल्ली और मुंबई में बुनियादी और नागरिक सुविधाओं की हालत क्यों खराब है।
आम लोग क्या सोचते हैं?निजी हाथों में सौंपा जाए कामराजेश कुमार चौहान का कहना है, 'अब समय आ गया है कि सरकारों को शहरीकरण की बाधाओं को दूर करने के लिए शहरों के हर काम को निजी क्षेत्र के हाथों में सौंप देना चाहिए। अक्सर देखा गया है कि निजी क्षेत्र में ऊपर से नीचे तक सभी कर्मचारियों को अपना काम पूरी जिम्मेदारी और सावधानी से करना पड़ता है, क्योंकि इन्हें डर रहता है कि ऐसा न करना इनकी नौकरी पर भारी पड़ सकता है।'
नियोजित शहर बसाने की जरूरतप्रमोद कुमार का कहना है कि भारत में शहरों का नियोजित विकास नहीं हो रहा है। इसकी वजह से कि जिम्मेदार संस्थाएं नियमों को परे रख कर काम करती हैं। आबादी पहले बस जाती है और बुनियादी सुविधाओं के लिए उनको दशकों तक इंतजार करना पड़ता है।
ऐसे हालात में रहने वाले नागरिक अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा भी नहीं दिला पाते। देश को अकुशल नागरिक मिलते हैं जो अपने जीवन को बेहतर बनाने में सक्षम नहीं होते हैं। इस तरह के शहर अर्थव्यवस्था में योगदान देने के बजाय बोझ साबित हो रहे हैं।
बदहाली के लिए स्थानीय निकाय जिम्मेदारवीरेन्द्र सचदेवा का मानना है कि शहरों की खराब स्थिति के लिए सबसे ज्यादा स्थानीय निकाय जिम्मेदार हैं। नगर निगमों और स्थानीय निकायों के काम करने का तौर तरीका निचले स्तर का है। ये भ्रष्ट्राचार और आर्थिक कुप्रबंधन का अड्डा बन गए हैं। इनकी हालत सुधारे बिना शहरों को व्यवस्थित नहीं किया जा सकता है।
MPs' Salaries Hiked: सांसदों की बढ़ गई सैलरी, पेंशन और भत्ते में भी इजाफा; जानिए कितना मिलेगा वेतन
एजेंसी, नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सांसदों के वेतन और भत्तों में बढ़ोत्तरी की है। इसके साथ ही पूर्व सांसदों के पेंशन में भी बढ़ोत्तरी हुई है। सबसे खास बात है कि यह बढ़ोत्तरी 1 अप्रैल 2023 से प्रभावी रहेगी। वेतन और भत्तों में इजाफा के बाद सांसदों को अब 1,24,000 रुपये मिलेंगे। इससे पहले सांसदों को 1 लाख रुपये मिलते थे।
वहीं, अब सांसदों का दैनिक भत्ता बढ़ाकर दो हजार से ढाई हजार कर दिया गया है। पूर्व सांसदों की पेंशन को 25 हजार से बढ़ाकर 31 हजार कर दिया गया है।
बता दें कि ये बढ़ोत्तरी सांसद सदस्यों के वेतन, भत्ते और पेशन अधिनियम, 1954 द्वारा प्रदत्त शक्तियों के तहत की गई है। पांच साल बाद सांसदों की सैलरी बढ़ाने का फैसला सरकार ने लिया है।
केंद्र सरकार ने जारी की अधिसूचना- संसदीय कार्य मंत्रालय की ओर से सोमवार को जारी राजपत्र अधिसूचना में कहा गया कि पांच साल से अधिक की सेवा के प्रत्येक वर्ष के लिए अतिरिक्त पेंशन को 2,000 रुपये से बढ़ाकर 2,500 रुपये कर दिया गया है। संसद के चल रहे बजट सत्र के बीच सांसदों के वेतन, भत्ते और पेंशन में संशोधन की घोषणा की गई है।
- मौजूदा और पूर्व सांसदों को दिए जाने वाले वेतन और भत्ते में पहले का संशोधन अप्रैल 2018 में घोषित किया गया था। 2018 में संशोधन में एक सांसद के लिए घोषित आधार वेतन 1,00,000 रुपये प्रति माह था। इस राशि को निर्धारित करने का उद्देश्य उनके वेतन को मुद्रास्फीति की दरों और जीवन यापन की बढ़ती लागत के अनुरूप लाना था।
- वहीं, 2018 के संशोधन के अनुसार, सांसदों को अपने कार्यालयों को अद्यतन रखने और अपने संबंधित जिलों में मतदाताओं के साथ बातचीत करने की लागत का भुगतान करने के लिए निर्वाचन क्षेत्र भत्ते के रूप में 70,000 रुपये का भत्ता मिलता है।
जानकारी दें कि सांसदों को कार्यालय भत्ता के रूप में 60,000 रुपये प्रतिमाह और संसदीय सत्रों के दौरान 2,000 रुपये दैनिक भत्ता मिलता है। अब इन भत्तों में भी बढ़ोत्तरी की जानी है। इसके अलावा सांसदों को फोन और इंटरनेट के इस्तेमाल के लिए सालाना भत्ता भी मिलता है। सांसद अपने और परिवार के साथ साल भर में कुल 34 फ्री उड़ान भर सकते हैं। इसके साथ ही व्यक्तिगत उपयोग के लिए किसी भी समय प्रथम श्रेणी की ट्रेन यात्रा कर सकते हैं।
मुफ्त बिजली का भी प्रावधानइतना ही नहीं सांसदों को सालाना 50,000 यूनिट मुफ्त बिजली और 4,000 किलोलीटर पानी का लाभ भी मिलता है। सरकार उनके आवास और ठहरने की व्यवस्था भी करती है।
अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान सांसदों को नई दिल्ली में किराए-मुक्त आवास प्रदान किया जाता है। उन्हें उनकी वरिष्ठता के आधार पर छात्रावास के कमरे, अपार्टमेंट या बंगले मिल सकते हैं। जो व्यक्ति आधिकारिक आवास का उपयोग नहीं करना चाहते हैं, वे मासिक आवास भत्ता प्राप्त करने के पात्र हैं।
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