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Profile of BR Gavai: जस्टिस बीआर गवई होंगे देश अगले CJI, मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने भेजी सरकार को सिफारिश

Dainik Jagran - National - April 16, 2025 - 5:43pm

एएनआई, नई दिल्ली। भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने औपचारिक रूप से न्यायमूर्ति बी.आर. गवई Justice  gavai, को अपना उत्तराधिकारी बनाने का प्रस्ताव दिया है। नियुक्ति प्रक्रिया के तहत यह सिफारिश विधि मंत्रालय को भेजी गई है।

न्यायमूर्ति गवई वर्तमान में सीजेआई खन्ना के बाद सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं। उम्मीद जताई जा रही है कि वो देश के 52वें मुख्य न्यायधीश होंगे। वो 14 मई को CJI के रूप में शपथ लेंगे। 

परंपरा के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा चीफ जस्टिस ही अपने उत्तराधिकारी का नाम सरकार को भेजते हैं। इस बार भी यही प्रक्रिया अपनाई गई है। कानून मंत्रायल ने औपचारिक तौर पर जस्टिस खन्ना से उनके उत्तराधिकारी का नाम पूछा था, जिसके जवाब में उन्होंने जस्टिस गवई का नाम आगे बढ़ाया।

कौन हैं जस्टिस गवई?

जस्टिस गवई को 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया था। उनका जन्म 24 नवंबर को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। वे दिवंगत आर.एस. गवई के बेटे हैं, जो बिहार और केरल के राज्यपाल रह चुके हैं।

बॉम्बे हाईकोर्ट में एडिशनल जज के रूप में उन्होंने 14 नवंबर 2003 को अपनी न्यायिक करियर की शुरुआत की थी। बतौर जज वो मुंबई, नागपुर, औरंगाबाद और पणजी के विभिन्न पीठों पर काम कर चुके हैं।

सुप्रीम कोर्ट के इन अहम फैसलों का हिस्सा थे गवई
  • आर्टिकल 370 हटाए जाने वाले फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं की जिन पांच मेंबर वाली संवैधानिक बेंच सुनवाई कर रही थी, उनमें जस्टिस गवई भी थे।
  • राजनीतिक फंडिंग के लिए लाई गई इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को खारिज करने वाली बेंच का भी गवई हिस्सा थे।
  • नोटबंदी के खिलाफ दायर अर्जियों पर सुनवाई करने वाले बेंच में भी वो शामिल थे।

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भारत की तकनीक ताकत एआई में खोलेगी आत्मनिर्भरता का रास्ता, अमेरिका-चीन के बीच बन रहा संतुलन

Dainik Jagran - National - April 16, 2025 - 5:32pm

नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। अमेरिका के एआई डिफ्यूजन नियम ने दुनिया भर में चल रही एआई जंग में एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। एआई में खुद की बादशाहत साबित करने को लेकर आतुर देशों की तकनीक को आत्मनिर्भरता पर एक बड़ा कुठाराघात माना जा रहा है। अमेरिका ने तकनीकी प्रभुत्व को बनाए रखने, चीन को सीमित करने और अपने सहयोगियों को सावधानीपूर्वक AI तकनीक उपलब्ध कराने के लिए लागू किया है। यह सिर्फ एक तकनीकी नियंत्रण नहीं, बल्कि नए शीतयुद्ध का हिस्सा है जहां हथियार चिप्स, मॉडल्स और डेटा हैं। दरअसल इस विवाद की शुरुआत दो दशक पहले शुरू हो चुकी थी। 2010 के दशक में चीन ने मेड इन चाइना 2025" नीति की घोषणा की। इस नीति का लक्ष्य उच्च तकनीक वाले क्षेत्रों (जैसे एआई, 5G, रोबोटिक्स) में आत्मनिर्भरता हासिल करना था। चीन की कंपनियों, जैसे हुआवेई, एसएमआईसी, और सेंसटाइम ने वैश्विक एआई मार्केट में प्रभाव बढ़ाना शुरू किया। अमेरिका को आशंका हुई कि ये टेक्नोलॉजीज न केवल आर्थिक, बल्कि सैन्य क्षमताओं को भी बढ़ा सकती हैं। अक्टूबर 2022 में यूएस ब्यूरो ऑफ इंडस्ट्री एंड सिक्योरिटी (बीआईएस) ने एआई और हाई-परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग के लिए इस्तेमाल होने वाले उन्नत जीपीयू चिप्स की चीन को बिक्री पर पाबंदी लगाई। अमेरिका की चीन पर तकनीक नकेल कसने की ये पहली शुरुआत थी।

विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत की टियर-2 स्थिति उसे एक सुरक्षा कवच देती है। वह अमेरिका के साथ मिलकर धीरे-धीरे आत्मनिर्भरता की दिशा में बढ़ सकता है। लेकिन अगर वह तेजी से चिप निर्माण व मॉडल डेवलपमेंट में निवेश नहीं करता, तो वह पीछे छूट सकता है। वहीं चीन पहले से ही अमेरिका से अलग होकर पूरी आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। इसका रास्ता तेज है लेकिन अलगाव, मानकों से भिन्नता, और सीमित प्रदर्शन की चुनौतियां बनी हुई हैं। भारत की गति भले ही धीमी हो, लेकिन वह वैश्विक एआई इकोसिस्टम में जुड़ा रहेगा। चीन तेजी से आत्मनिर्भर बन सकता है, लेकिन अलगाव और सीमित प्रतिस्पर्धा उसके लिए खतरा बन सकती है।

डेटा सेंटर्स बनाने में हो सकती है देरी

दीपक शर्मा कहते हैं कि अमेरिका का एआई डिफ्यूजन नियम भारत और चीन दोनों देशों की एआई तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा को प्रभावित करता है। वह बताते हैं कि भारत को टियर-2 देश के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिससे उसे सीमित रूप से उन्नत एआई चिप्स और बंद AI मॉडल वेट्स तक पहुंच मिलती है, वह भी केवल लाइसेंस और सुरक्षा अनुपालन के तहत। यह भारत की स्थिति को अमेरिका के रणनीतिक साझेदार के रूप में दिखाता है, हालांकि जापान और दक्षिण कोरिया जैसे टियर-1 सहयोगियों की स्थिति इससे अलग है।

भारत के लिए एआई इन्फ्रास्ट्रक्चर को बड़े पैमाने पर विकसित करने में बाधा आ सकती है क्योंकि चिप आयात की एक सीमा तय कर दी गई है। इससे रिलायंस जैसी भारतीय तकनीकी कंपनियों या बेंगलुरु की एआई स्टार्टअप्स को डेटा सेंटर्स बनाने में देरी हो सकती है। लेकिन इसका एक सकारात्मक पक्ष यह है कि यह नियम भारत को घरेलू एआई क्षमताओं को मजबूत करने के लिए भी प्रेरित करेगा। इंडिया AI मिशन जैसे कार्यक्रम लोकल चिप डिजाइन और ओपन-सोर्स AI मॉडल पर ध्यान दे रहे हैं।

भारत अपनी क्वाड और इंडो-पैसिफिक रणनीति के अंतर्गत अमेरिका से सहयोग करते हुए कुछ छूट प्राप्त करने की दिशा में प्रयास कर सकता है, जिससे चिप्स की निर्भरता कम हो। हालांकि, भारत के पास अभी एक परिपक्व सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन इकोसिस्टम नहीं है। इसकी पहली फैब यूनिट 2026 के अंत तक शुरू होगी। तब तक टीएसएमसी और अमेरिकी सप्लायर्स पर निर्भरता बनी रहेगी। इस स्थिति में यह नियम भारत को आत्मनिर्भरता की दिशा में प्रेरित करता है, लेकिन हार्डवेयर अंतराल के कारण इसकी राह लंबी होगी।

चीन का सॉफ्टवेयर इकोसिस्टम अमेरिका व पश्चिमी देशों के मुकाबले कम परिपक्व

दीपक शर्मा कहते हैं कि चीन को टियर-3 (आर्म्स एम्बार्गो) देश के रूप में रखा गया है, जहां उसे उन्नत AI चिप्स और बंद मॉडल वेट्स तक पहुंच के लिए लगभग सभी लाइसेंस नकार दिए जाते हैं। यह अमेरिका की रणनीति के अनुरूप है कि चीन की एआई आधारित सैन्य और आर्थिक शक्ति को सीमित किया जाए।

चीन को अत्याधुनिक जीपीयू और फ्रंटियर मॉडल्स तक पहुंच में बड़ी रुकावट का सामना करना पड़ रहा है। इससे वह बड़े पैमाने पर एआई मॉडल ट्रेन नहीं कर पा रहा है। हालांकि, हुआवेई, एसएमआईसी, और बाइरन टेक्नोलॉजी जैसी कंपनियां घरेलू हार्डवेयर के विकास में लगी हैं। यह नियम उन्हें और तेजी से आत्मनिर्भर बनने को मजबूर करता है। चीन संभवतः ओपन-सोर्स मॉडल्स या थर्ड पार्टी देशों के ज़रिए चिप्स की स्मगलिंग कर लूपहोल का लाभ उठा सकता है, लेकिन ये विधियां स्थायी और भरोसेमंद नहीं हैं। इसके कारण चीन को अपने ही प्लेटफॉर्म्स जैसे पैडलपैडल और हॉर्मोनी ओएस पर निर्भर रहना पड़ता है। चीन का दृष्टिकोण, विशाल शोध और अनुसंधान बजट, और वर्टिकल इंटीग्रेशन उसे तेजी से आत्मनिर्भरता की दिशा में ले जाते हैं। हालांकि, इसके चिप्स अभी भी प्रदर्शन में पीछे हैं, और सॉफ्टवेयर इकोसिस्टम अमेरिका व पश्चिमी देशों के मुकाबले कम परिपक्व हैं।

तक्षशिला फाउंडेशन के रिसर्च एनालिस्ट अश्विन प्रसाद कहते हैं कि अमेरिका के दृष्टिकोण से देखें तो यह नियम मुख्य रूप से चीन को लक्षित करता है, जबकि भारत को लेकर वह अपेक्षाकृत उदासीन है। अमेरिका का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि चीन उन्नत एआई मॉडल्स और कंप्यूटर संसाधनों तक पहुंच न बना सके, और इसलिए उसे टायर-3 में रखा गया है जो सबसे प्रतिबंधित श्रेणी है।

भारत के मामले में, अमेरिका यह समझता है कि भारत अभी वैश्विक AI सप्लाई चेन में कोई अपूरणीय भूमिका नहीं निभा रहा है। इसी वजह से अमेरिका ने भारत को टायर-1 में शामिल करने की आवश्यकता नहीं समझी।

यह सच है कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में रणनीतिक साझेदारी और हाल के वर्षों में भारत-अमेरिका के बीच तकनीकी सहयोग में वृद्धि हुई है, लेकिन इसके बावजूद भारत की मौजूदा एआई तकनीकी क्षमताएं इतनी मजबूत नहीं हैं कि अमेरिका उसे टायर-1 में प्रमोट करे।

अमेरिका की नीति चीन के खिलाफ प्रतिबंध और नियंत्रण की है, जबकि भारत के प्रति उसका रवैया नरम लेकिन सीमित भरोसे वाला है — जो भारत की तकनीकी आत्मनिर्भरता की वर्तमान स्थिति को दर्शाता है। यदि भारत को टायर-1 का दर्जा पाना है, तो उसे एआई चिप्स, मॉडल डेवलपमेंट और कंप्यूटर इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में तेजी से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना होगा।

भारत को टियर-2 में रखने से IndiaAI मिशन पर असर

भारत की AI और तकनीकी आत्मनिर्भरता एक रणनीतिक आवश्यकता भी है और अवसर भी। यदि भारत कंप्यूटर-निर्भरता को कम करते हुए, वैश्विक साझेदारियों का लाभ उठाए, और नवाचार को प्रोत्साहित करे, तो वह अगले दशक में वैश्विक AI नेतृत्व की दौड़ में मजबूत स्थिति में आ सकता है। एक्सपर्ट मानते हैं कि स्टार्टअप फंडिंग, टैक्स बेनिफिट्स, इनोवेशन हब जैसी योजनाओं ने तकनीकी प्रतिभाओं को भारत लौटने के लिए प्रेरित किया है। वहीं स्किल इंडिया और एनईपी जैसे कार्यक्रम भारत को AI इनोवेशन के लिए दीर्घकालिक पूंजी प्रदान करते हैं।

अश्विन प्रसाद कहते हैं कि एआई डिफ्यूजन नियमों के तहत, प्रत्येक अधिकृत भारतीय इकाई 2025 में 1,00,000 GPU तक खरीद सकती है, और आने वाले वर्षों में यह सीमा और बढ़ सकती है। इसलिए, ये नियम "IndiaAI" के 18,000+ GPU आधारित कंप्यूटर इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के लक्ष्य को सीधे प्रभावित नहीं करते।

हालांकि, यह भारत की तकनीकी ताकत या आत्मनिर्भरता में कोई ठोस योगदान नहीं करता। कुछ वर्षों में ये जीपीयू पुराने हो सकते हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या भारत सरकार फिर से इन्हें आयात करने पर निर्भर रहेगी? और अगर भविष्य में एआई डिफ्यूजन नियम और सख्त हो गए तो क्या होगा?

एआई जैसी तकनीक में पूरी तरह आत्मनिर्भर बनना संभव नहीं है, क्योंकि इसकी सप्लाई चेन वैश्विक है। भारत को ऐसे क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करनी चाहिए, जिसमें उसकी मौजूदगी इतनी अहम हो जाए कि अगर अमेरिका भविष्य में कोई और निर्यात नियंत्रण नीति बनाए, तो वह भारत को नजरअंदाज न कर सके।

एआई फ्रंटियर में रह सकता है पीछे

दीपक शर्मा कहते हैं कि IndiaAI मिशन के तहत 10,000-30,000 GPU की व्यवस्था की जानी है। NVIDIA H100 जैसे हाई-एंड चिप्स पर पाबंदी से गुजरात स्थित योट्टा जैसे डेटा सेंटर प्रभावित हो सकते हैं, जिससे हेल्थकेयर, एग्रीकल्चर जैसे सेक्टर्स में बड़े AI मॉडल ट्रेन करना मुश्किल होगा। 24 मार्च 2025 की चर्चाओं में सामने आया कि वैश्विक चिप संकट और अमेरिकी नियंत्रण पहले से ही भारत के आईटी सेक्टर को प्रभावित कर रहे हैं। पर्याप्त जीपीयू नहीं मिले तो भारत फ्रंटियर एआई में पीछे रह सकता है।

इनोवेशन और स्टार्टअप पर पड़ सकता है असर

दीपक शर्मा बताते हैं कि सीमित चिप एक्सेस के कारण बड़े मॉडल पर आधारित समाधान (जैसे भाषाई जनरेटिव एआई, स्मार्ट कृषि समाधान) धीमे पड़ सकते हैं। उन्नत मॉडल पर ट्रेनिंग में बाधा आ सकती है। हार्डवेयर की कमी के चलते स्टार्टअप्स वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पिछड़ सकते हैं। गवर्नेंस पर असर नहीं, लेकिन आयात निर्भरता पर नीति बनानी पड़ेगी।

भारत को क्या करना चाहिए?

घरेलू चिप निर्माण को गति देना

दीपक शर्मा कहते हैं कि टाटा की गुजरात फैब (2026-27 तक शुरू), CDAC के वेगा चिप जैसे स्वदेशी प्रयास करने होंगे। इससे लंबे अंतराल में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी। हालांकि इसमें 3 से 5 साल का समय और भारी निवेश लगेगा। वहीं वैकल्पिक चिप आपूर्तिकर्ता खोजना भी आवश्यक है जैसे कि जापान की कियोक्सिया, ताइवान की मीडिया टेक, चीन की हुआवेई एसेंड। इसके अलावा क्षेत्रीय गठजोड़ को भी मजबूत करना होगा। जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे टियर-1 देशों से मॉडल सह-विकास, GPU साझेदारी बढ़ानी होगी।

ओपन-सोर्स AI मॉडल को अपनाना

Llama 3.1, BhashaAI जैसे मॉडल अपनाने होंगे। स्टार्टअप्स को कम कंप्यूटर में मॉडल ऑप्टिमाइज़ करने के लिए फंडिंग देनी होगी। अमेरिकी पाबंदियों से बचते हुए नवाचार संभव करने होंगे। सॉफ्टवेयर में भारत की ताकत से तत्काल लाभ होगा।

वैलिडेटेड एंड-यूज़र स्टेटस पाना

रिलायंस, इंफोसिस जैसी कंपनियां इस स्टेटस से 2 साल में 3.2 लाख GPU तक पा सकती हैं। अमेरिका के नियमों के अंदर रहते हुए चिप्स की पहुंच संभव हो सकेगी।

कंप्यूटर एफिशिएंसी को प्राथमिकता देना

दीपक शर्मा मानते हैं कि मॉडल प्रूनिंग, क्वांटाइज़ेशन, फेडरेटेड लर्निंग जैसी तकनीकें अपनाना होगी। इससे कम GPU में बेहतर आउटपुट, ऊर्जा की बचत, टिकाऊ एआई संभव हो सकेगी। 10,000 AI प्रोफेशनल्स को ट्रेन करने का लक्ष्य रखना होगा। भारतीय भाषाओं में डेटा सेट तैयार करना होगा।

एआई में आत्मनिर्भर बनने के लिए चीन से लेना होगा सबक

भारत की महत्वाकांक्षा है कि वह एआई में आत्मनिर्भर बने, जो अमेरिकी एआई डिफ्यूजन नियमों के तहत "टियर 2" दर्जे से प्रभावित है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत, चीन जैसे "टियर 3" देश से बहुत कुछ सीख सकता है। इस बारे में दीपक शर्मा कहते हैं कि 2019 के अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद, चीन ने तेजी से एआई हार्डवेयर और मॉडलों में आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाए। हालांकि भारत का लोकतांत्रिक ढांचा, आर्थिक सीमाएं और वैश्विक गठजोड़ अलग हैं, फिर भी चीन की रणनीतियां "IndiaAI Mission" के लिए व्यावहारिक सबक प्रदान करती हैं। भारत और चीन के बीच सहयोग की संभावना है, लेकिन भूराजनीतिक जटिलताओं के चलते वह सीमित है।

एआई चिप्स कर सकते हैं आयात

अश्विन प्रसाद कहते हैं कि एआई डिफ्यूजन नियमों के तहत, भारतीय स्टार्टअप्स और उद्योग अपने लिए आवश्यक एआई चिप्स का आयात कर सकते हैं। इसमें कुछ नौकरशाही प्रक्रियाएं जरूर हैं, लेकिन पहले की तुलना में अब ये नियम अधिक स्पष्ट और व्यवस्थित हैं। पहले ये नियम मनमाने तरीके से लागू होते थे।

हालांकि, इन नियमों में एक सख्त सीमा तय है कि कोई भी भारतीय कंपनी कितनी एआई चिप्स खरीद सकती है, लेकिन यह सीमा इतनी ऊंची है कि निकट भविष्य में कोई भी भारतीय डेटा सेंटर उस सीमा तक नहीं पहुंचेगा। फिर भी, यह एक स्पष्ट संकेत है कि जब तक भारत के पास अपनी तकनीकी शक्ति नहीं होगी, तब तक कोई भी विदेशी देश भारत की तकनीकी पहुंच को नियंत्रित कर सकता है। यह रचनात्मक असुरक्षा ही भारत में तकनीकी शक्ति को विकसित करने की नीति और सोच को प्रेरित करेगी।

तकनीकी शक्ति का अर्थ केवल आत्मनिर्भरता नहीं है। इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि भारत किसी भी माध्यम से व्यापार, कूटनीति या साझेदारी के जरिए वह तकनीक प्राप्त कर सके जो उसे चाहिए।

चीन से सीखी जा सकने वाली प्रमुख बातें

1. हार्डवेयर में सरकारी निवेश

चीन का तरीका:

दीपक शर्मा बताते हैं कि चीन ने हर साल लगभग 400 अरब डॉलर R&D में निवेश कर एसएमआईसी और हुआवेई जैसी कंपनियों को आगे बढ़ाया। 'मेड इन चाइना 2025' जैसी योजनाओं ने हार्डवेयर से लेकर सॉफ्टवेयर तक संपूर्ण आपूर्ति श्रृंखला को प्राथमिकता दी।

भारत के लिए सबक:

₹2,000 करोड़ के "IndiaAI कंप्यूटर बजट" को और बढ़ाना होगा। टाटा का गुजरात फैब (2026-27) और सी-डैक की "वेगा" चिप को तेजी से आगे बढ़ाना चाहिए। भारत के निजी क्षेत्र आधारित मॉडल को सरकार-निजी साझेदारी के रूप में मज़बूत करना होगा।

2. घरेलू AI इकोसिस्टम का निर्माण

चीन का तरीका:

पैडलपैडल हॉरमोनीओएस और डीपसीक जैसे टूल्स ने चीन को टेंसरफ्लो, CUDA जैसे पश्चिमी प्लेटफॉर्म से कम निर्भर बनाया।

भारत के लिए सबक:

BhashaAI जैसे प्लेटफॉर्म को एग्रीटेक, हेल्थटेक जैसे स्थानीय क्षेत्रों के लिए विकसित किया जा सकता है। भारत की वैश्विक सॉफ्टवेयर साख चीन से बेहतर है, जो विदेशी भागीदारों को आकर्षित कर सकती है।

3. प्रतिभा प्रतिधारण और अनुसंधान पर ध्यान

चीन का तरीका:

हर साल 4.7 मिलियन स्टेम ग्रेजुएट्स तैयार कर, सरकार ने उन्हें स्थानीय कंपनियों से जोड़ा।

भारत के लिए सबक:

IndiaAI द्वारा 10,000 विशेषज्ञ तैयार करने का लक्ष्य तभी सफल होगा जब स्टार्टअप अनुदान, टैक्स में छूट और प्रोत्साहन योजनाएं शुरू की जाएं ताकि टैलेंट देश में रहे।

4. संसाधनों का रचनात्मक उपयोग

चीन का तरीका:

तीसरे देशों के जरिए चिप्स की ट्रांसशिपमेंट, ओपन-सोर्स टूल्स का उपयोग आदि तरीकों से चीन ने अमेरिकी प्रतिबंधों को मात देने की कोशिश की।

भारत के लिए सबक:

"टियर 2" होने के नाते भारत 320,000 GPU तक वैध रूप से उपयोग कर सकता है। चीन की तरह हाइब्रिड क्लाउड और रीजनल कंप्यूटर शेयरिंग जैसे मॉडल अपनाए जा सकते हैं।

रणनीतिक सिफारिशें

हाइब्रिड आत्मनिर्भरता:

दीपक शर्मा कहते हैं कि भारत को चीन जैसे हार्डवेयर निवेश और भारत की सॉफ्टवेयर ताकत को मिलाकर काम करना चाहिए। ₹5,000 करोड़ अतिरिक्त बजट फेब्स और लोकल फ्रेमवर्क्स पर लगाया जाए।

ऑस्ट्रेलिया के साथ भागीदारी बढ़ाना अहम

अश्विन प्रसाद कहते हैं कि चीन ने शिक्षा और शोध अवसंरचना जैसे बुनियादी तत्वों पर ध्यान केंद्रित करके अपनी घरेलू क्षमताएं विकसित की हैं। पिछले कुछ दशकों में, चीन ने अपने देश में एक ऐसा अनुसंधान और नवाचार इकोसिस्टम तैयार किया है, जिससे डीपसीक जैसे बड़े भाषा मॉडल विकसित किए जा सके।

चीन अब भी एआई में पूर्ण आत्मनिर्भरता से दूर है, लेकिन उसने अमेरिका के निर्यात नियंत्रण के बावजूद एक ऐसा इकोसिस्टम खड़ा कर लिया है जिससे वह नवाचार कर पा रहा है और आगे बढ़ भी रहा है। अगर भारत भविष्य में तकनीकी प्रगति की दौड़ में पीछे नहीं रहना चाहता, तो उसे भी ऐसा इकोसिस्टम तैयार करना होगा।

जहां तक सहयोग की बात है, सवाल यह है कि क्या मौजूदा आर्थिक प्रतिस्पर्धा के माहौल में दोनों देश सचमुच मिलकर काम करना चाहते हैं? एक ओर चीन भारत की टेक्नोलॉजी मैन्युफैक्चरिंग में प्रगति को रोकने के प्रयास कर रहा है, तो दूसरी ओर भारत सरकार भी चीनी निवेशों को हतोत्साहित कर रही है।

भारत के लिए ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ सहयोग करना ज्यादा लाभकारी हो सकता है, जिनकी एआई क्षमताएं भारत के समान स्तर पर हैं और जिनके साथ भू-राजनीतिक संबंध भी अनुकूल हैं।

वैश्विक गठजोड़

अमेरिका, जापान, ताइवान जैसे देशों के साथ प्राथमिकता में साझेदारी रखी जाए। दीपक शर्मा कहते हैं कि BRICS जैसे मंचों पर चीन से सीमित सहयोग किया जा सकता है जैसे ओपन-सोर्स मॉडल पर ज्ञान साझा करना। टाटा का फेब प्रोजेक्ट और 10,000 GPU लक्ष्य को तेजी से पूरा करने के लिए पीएलआई स्कीम को और मजबूत किया जाए।

अमेरिका और चीन के बीच अधिक अलगाव देखने को मिलेगा

अश्विन प्रसाद का कहना है कि निर्यात नियंत्रण और रणनीतिक प्रतिस्पर्धा के कारण अमेरिका और चीन के बीच अधिक डिकप्लिंग (अलगाव) देखने को मिलेगा। इसका असर यह होगा कि दोनों देशों में तकनीक से जुड़े मानक, नियम और उसके संचालन के तरीके भी अलग हो जाएंगे। यह देखना बाकी है कि अन्य देश अमेरिका या चीन में से किसके साथ गठबंधन करना पसंद करेंगे। लेकिन भारी आर्थिक प्रभावों को देखते हुए, कुछ हद तक झुकाव के बावजूद, देश एआई में भारी निवेश करते रहेंगे और जहां तक संभव हो पूर्ण निर्भरता से बचने की कोशिश करेंगे। यह बात भारत के लिए भी उतनी ही प्रासंगिक है, क्योंकि भारत रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखना चाहता है।

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'Harvard a JOKE': Trump renews attack

Business News - April 16, 2025 - 5:25pm
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Waqf Law: वक्फ कानून पर लग सकती है रोक? सुप्रीम कोर्ट कर रहा विचार, केंद्र ने अदालत से मांगा समय

Dainik Jagran - National - April 16, 2025 - 5:06pm

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश की शीर्ष अदालत ने वक्फ कानून के विरोध में दाखिल याचिकाओं की सुनवाई करते हुए अंतरिम रोक लगाने पर विचार किया, लेकिन केंद्र द्वारा समय मांगे जाने के बाद अंतिम समय में इसे टाल दिया गया।

अब सुप्रीम कोर्ट में कल दोपहर 2 बजे फिर सुनवाई होगी और सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अंतरिम आदेश जारी करने पर विचार किया जाएगा। बता दें कि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से कल सुनवाई की मांग की थी।

केंद्र सरकार से पूछे सवाल

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून को असंवैधानिक बताते हुए कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं। वहीं इसके विरोध में कई जगहों पर हिंसक प्रदर्शन भी हुए। सुप्रीम कोर्ट ने इन हिंसक प्रदर्शनों पर चिंता जताई है।

शीर्ष अदालत ने वक्फ बाय यूजर पर भी केंद्र सरकार से सवाल किए। अदालत ने कहा कि 14वीं से 16वीं शताब्दी के बीच बनी ज्यादातर मस्जिदों पास बिक्री विलेख नहीं होंगे, तो उनका रजिस्ट्रेशन कैसे किया जाएगा।

अदालत में कल होगी सुनवाई
  • सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र की तरफ से दलील पेश करते हुए कहा कि अगर किसी भूमि की जांच कलेक्टर कर रहा हो, तो कानून ऐसा नहीं कहता कि उसका उपयोग बंद हो जाएगा। केवल निर्णय तक उसे लाभ नहीं मिलेगा।
  • सभी की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने कानून के कुछ हिस्से पर अंतरिम आदेश जारी करने पर विचार किया, लेकिन सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से कल सुनवाई करने की मांग की। इसके बाद आदेश जारी नहीं किया गया।

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Bihar: जेपी गंगा पथ के 36 KM विस्तार से बक्सर और आरा वालों को होगा फायदा, नया फोरलेन भी बनेगा

Dainik Jagran - April 16, 2025 - 4:56pm

जितेंद्र कुमार, पटना। दीघा से कोईलवर तक जेपी गंगा पथ के 36 किलोमीटर विस्तार के पहले बिहटा से दानापुर वाया मनेर पुराना एनएच-30 को चौड़ा किया जाएगा। दानापुर के शाहपुर से बिहटा चौराहे तक 22 किलोमीटर पुराना एनएच-30 की चौड़ाई 14 मीटर करने के लिए डीपीआर तैयार कर लिया गया है।

गोला रोड के साथ दीघा-खगौल नहर रोड को भी 14 मीटर चौड़ीकरण योजना का कार्य मानसून के पहले आरंभ करने की तैयारी है। मुख्यमंत्री की प्रगति यात्रा के दौरान घोषित सड़क परियोजनाओं का डीपीआर तैयार कर लिया गया है। पटना पश्चिम पथ प्रमंडल को तीन बड़ी सड़क परियोजनाओं के कार्यान्वयन की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

दानापुर कैंट के बाद शाहपुर से मनेर होते बिहटा चौराहा तक 22 किलोमीटर सड़क चौड़ीकरण पर 70 करोड़ खर्च आने की संभावना है। इस मार्ग के चौड़ीकरण से बक्सर और आरा की ओर से सीधे दानापुर, दीघा और जेपी गंगा पथ से सुगम संपर्क हो जाएगा।

यह मार्ग दीघा जेपी गंगा पथ का कोईलवर तक विस्तार होने तक नया विकल्प मिलेगा। दानापुर-बिहटा एलिवेटेड रोड के निर्माण कार्य से बक्सर की ओर से पटना के रास्ते में जाम की बाधा दूर होने की उम्मीद है।

गोला रोड चौड़ीकरण पर 20 करोड़ का डीपीआर

दानापुर में नेहरू मार्ग (बेली रोड) से गोला रोड की चौड़ाई बढ़ाकर 14 मीटर करने के लिए निविदा की प्रक्रिया मई तक पूरा कर लिया जाएगा। निर्माण कार्य के लिए अस्थाई अतिक्रमण को हटाने के लिए सीमांकन का कार्य पूरा कर लिया गया है। वर्तमान में यह सड़क 7.5 मीटर चौड़ी है। चौड़ीकरण के बाद सात-सात मीटर के दो लेन से आवागमन सुगम हो सकेगा।

सड़क विस्तार में नाले को भी आवागमन के लिए उपयोगी बनाने का प्रविधान डीपीआर में किया गया है। इस परियोजना पर 20 कराेड़ रुपये खर्च का अनुमान है। सड़क के दोनों ओर फुटपाथ और बीच में डिवाइडर बनाया जाएगा, ताकि दाेनों लेन पर निर्बाध आवागमन हो सके।

खगौल नहर रोड चौड़ीकरण की वजह से हटेगा स्कूल

खगौल आरओबी से दीघा तक सोन नहर रोड की चौड़ाई बढ़ाकर 14 मीटर किया जाएगा। इस योजना पर 70 करोड़ खर्च होने का अनुमान है। निर्माण कार्य के लिए चुलहाईचक और कोथवां मौजे में नहर किनोर निर्मित प्राथमिक विद्यालय को तोड़कर दूसरे भवन में स्थानांतरित किया जाएगा।

नहर किनारे अतिक्रमण को हटाकर फोरलेन बनाया जाएगा। मई तक इस परियोजना का कार्य आरंभ करने के लिए जमीन की मापी कर ली गई है। अतिक्रमण को चिह्नित कर जिला प्रशासन हटाने की तैयारी कर रहा है।

दानापुर-मनेर रोड, गोला रोड और खगौल नहर रोड परियोजना का कार्य समय पर पूरा कराने के लिए आवश्यक प्रक्रिया पूरी कर ली गई है। निविदा को अंतिम रूप देते ही कार्य आरंभ कराया जाएगा। तीनों परियोजना में जमीन की कोई बाधा नहीं होगी। सरकारी जमीन पर अस्थाई अतिक्रमण को समय रहते लोग नहीं खाली कर सके तो नोटिस देकर हटाया जाएगा, ताकि लोकहित का कार्य समय पर पूरा हो। - डॉ. चंद्रशेखर सिंह, जिलाधिकारी, पटना

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SC refuses to stay operation of Waqf

Business News - April 16, 2025 - 4:32pm
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Bihar IPS Officers: बिहार से दिल्ली जाएंगे 2 आईपीएस अफसर, गृह विभाग ने जारी किया नोटिफिकेशन

Dainik Jagran - April 16, 2025 - 3:55pm

राज्य ब्यूरो, पटना। बिहार कैडर के दो वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जा रहे हैं। इनमें अपर पुलिस महानिदेशक (एडीजी) सुशील मानसिंह खोपड़े और आईजी शालीन शामिल हैं। गृह विभाग ने दोनों अधिकारियों को विरमित करने की अधिसूचना जारी करते हुए उनकी सेवाएं भारत सरकार को सौंप दी है।

विभागीय जानकारी के अनुसार, एडीजी मद्यनिषेध सुशील खोपड़े को पोत परिवहन महानिदेशालय में अपर महानिदेशक (संयुक्त सचिव स्तर) की जिम्मेदारी दी गई है।

उनकी सेवाएं सेवानिवृत्ति की तिथि 30 सितंबर, 2029 या अगले आदेश तक पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रायल, भारत सरकार को सौंपी गई है।

वहीं, आतंकवाद निरोधक दस्ता (एटीएस) के आईजी शालीन केंद्रीय प्रतिनियुक्ति में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) में आईजी के पद पर योगदान देंगे। शालीन बिहार पुलिस में एटीएस आईजी के साथ आईजी सुरक्षा के अतिरिक्त प्रभार में भी थे।

हरजोत कौर बम्हारा ने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के एसीएस का पदभार ग्रहण किया

दूसरी ओर, भारतीय प्रशासनिक सेवा के 1992 बैच की अधिकारी हरजोत कौर बम्हरा ने मंगलवार को अपर मुख्य सचिव (एसीएस) पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग का पदभार ग्रहण किया। पद ग्रहण करने के बाद अरण्य भवन में वरीय वन पदाधिकारियों ने अपर मुख्य सचिव का स्वागत किया गया।

विभागीय बैठक का आयोजन किया गया, जिसमें विभागीय योजनाओं एवं क्रियाकलाप के संबंध में वन पदाधिकारियों के द्वारा विस्तार से प्रस्तुतीकरण दिया गया।

बैठक में अपर मुख्य सचिव के द्वारा विभाग में विभिन्न संवर्गों में रिक्त पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया में तेजी लाने तथा विभिन्न संवर्गों में आवश्यकतानुसार नये पदों का सृजन करने का निर्देश दिया गया।

इसके अतिरिक्त ईको-डेवलेपमेंट समिति/संयुक्त वन प्रबंधन समिति एवं फारेस्ट बांउंड्री का सुदृढीकरण करने पर विशेष ध्यान देते हुए कार्रवाई को कहा गया।

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