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रेलवे की कंपनी IRFC जल्द बनेगी महारत्न, कंपनी का वित्तीय प्रदर्शन लगातार अच्छा हो रहा
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। नवरत्न बनने के बाद रेलवे की पीएसयू कंपनी (इंडियन रेलवे फाइनेंस कॉर्पोरेशन) महारत्न बनने की दौड़ में शामिल हो गई है। दो दिन पहले ही इसे मिनीरत्न से प्रोन्नत कर नवरत्न का दर्जा दिया गया है।
आईआरएफसी का शुद्ध लाभ 6,400 करोड़ रुपयेपिछले वित्त वर्ष तक आईआरएफसी का कुल राजस्व 26,600 करोड़ रुपये है जबकि शुद्ध लाभ 6,400 करोड़ रुपये से ज्यादा है। यह देश की तीसरी बड़ी सरकारी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) बन गई है।
आईआरएफसी के सीएमडी मनोज कुमार दुबे ने बुधवार को बताया कि 2018 में इस कंपनी को मिनी रत्न का दर्जा मिला था। सात वर्ष में नवरत्न बन गई। अब महारत्न का दर्जा हासिल करने का प्रयास है।
उन्होंने कहा कि कंपनी के नए स्वरूप में आने के बाद रेलवे से जुड़ी परियोजनाओं के सामने अब वित्तीय संकट नहीं आएगा, क्योंकि कंपनी को पहले की तुलना में वित्तीय एवं संचालन की स्वतंत्रता मिलेगी, जिससे कारोबार का विस्तार होगा।
अभी देश में 14 कंपनियों को महारत्न का दर्जाअभी देश में 26 कंपनियों को नवरत्न और 14 कंपनियों को महारत्न का दर्जा है। महारत्न का दर्जा उन्हें मिलता है, जो पहले से नवरत्न और वित्तीय रूप से सशक्त होती हैं। तीन वर्ष तक पांच हजार करोड़ रुपये से ज्यादा शुद्ध लाभ और कम से कम 25 हजार करोड़ रुपये का सालाना टर्नओवर होना चाहिए। साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में सूचीबद्ध भी होनी चाहिए। आईआरएफसी इनमें कई शर्तें पूरी करती है। कंपनी का वित्तीय प्रदर्शन लगातार अच्छा हो रहा है।
प्रीमियम ट्रेनों की स्वामित्व इसी कंपनी के पासदुबे ने बताया कि 80 प्रतिशत यात्री ट्रेनें एवं मालगाडि़यों का वित्तपोषण इसी कंपनी की ओर से किया जाता है। नवरत्न दर्जा मिलने से कंपनी के वित्तीय अधिकारों में वृद्धि हुई है। प्रीमियम ट्रेनों वंदे भारत और शताब्दी का स्वामित्व इसी कंपनी के पास है। इंजन, वैगन और कोच का भी स्वामित्व है, जिन्हें 30 वर्षों की लीज पर रेलवे को दिया गया है। रेलवे को विभिन्न योजनाओं में यह कंपनी वित्तीय मदद करती है। इसमें और तेजी आएगी।
रेलवे की फंडिंग व्यवस्था में किया जा रहा विस्तारकंपनी के गिर रहे शेयरों के बारे में पूछे जाने पर मनोज दुबे ने कहा कि धैर्य रखने की जरूरत है। कंपनी का मुनाफा लगातार बढ़ रहा है। अभी इसके लगभग 55 लाख शेयर होल्डर हैं। कंपनी को जनवरी 2021 में 26 रुपये के आईपीओ मूल्य पर स्टाक एक्सचेंज में सूचीबद्ध किया गया था, जो अब बढ़कर लगभग 120 रुपये हो गया है।
रेलवे को प्रत्येक वर्ष चार लाख करोड़ रुपये की जरूरतरेलवे की फंडिंग व्यवस्था में विस्तार किया जा रहा है। रेलवे को प्रत्येक वर्ष चार लाख करोड़ रुपये की जरूरत होती है, जिसमें रेलवे का अपना बजट 2.5 लाख करोड़ का होता है। शेष के लिए आईआरएफसी पर निर्भरता है।
Ranya Rao Arrest: पूरे शरीर पर चिपका रखे थे सोने के बिस्किट, सिक्योरिटी को ऐसे देती थी चकमा
जेएनएन, नई दिल्ली। सोना तस्करी के आरोप में गिरफ्तार कन्नड़ अभिनेत्री रान्या राव बेल्ट और कपड़ों में छिपाकर सोने की तस्करी करती थी। इसके लिए उसने खास जैकेट बना रखा था। मामले की जांच कर रहे अधिकारियों के अनुसार, रान्या संदेह से बचने के लिए अपने डीजीपी पिता के नाम का इस्तेमाल करती थी। वह पिक-अप के लिए पुलिसकर्मियों को बुलाती थी, जो फिर उसे एयरपोर्ट से घर ले जाते थे।
अधिकारियों ने बताया कि जांच की जा रही है कि क्या उससे जुड़ा कोई पुलिसकर्मी सोने की तस्करी में शामिल था। रान्या कर्नाटक के डीजीपी रैंक के अधिकारी रामचंद्र राव की सौतेली बेटी है। रामचंद्र इस समय कर्नाटक राज्य पुलिस आवास और बुनियादी ढांचा विकास निगम लिमिटेड के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक हैं।
बेंगलुरु अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर रान्या की गिरफ्तारी के बाद की गई छापेमारी में रान्या के बेंगलुरु के फ्लैट से करोड़ों रुपये की नकदी और सोना जब्त किया गया।
14 किलोग्राम सोने के साथ किया गया गिरफ्तार
राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआइ) के अधिकारियों ने रान्या को एयरपोर्ट पर 14.8 किलोग्राम सोने की तस्करी करते हुए उस समय गिरफ्तार किया गया था जब वह सोमवार रात दुबई से अमीरात की उड़ान से बेंगलुरु पहुंचीं। उसके पास से जब्त की गई सोने की छड़ों की कीमत 12.56 करोड़ रुपये है। रान्या लगातार दुबई की यात्रा कर रही थी। इस कारण डीआरआई अधिकारी अभिनेत्री की गतिविधियों पर नजर रख रहे थे।
डीआरआई अधिकारियों के अनुसार, 14.2 किलोग्राम सोना हाल के दिनों में बेंगलुरु हवाईअड्डे पर सबसे बड़ी जब्ती में से एक है। रान्या की गिरफ्तारी के बाद अधिकारियों ने बुधवार को बेंगलुरु के लावेल रोड स्थित उसके फ्लैट पर छापे मारे, जहां वह अपने पति के साथ रहती हैं। तलाशी में 2.06 करोड़ रुपये के सोने के आभूषण और 2.67 करोड़ रुपये की नकदी जब्त की गई। वहां उसने कथित तौर पर किराये के रूप में 4.5 लाख रुपये का भुगतान किया था। मामले में अब तक 17.29 करोड़ रुपये की जब्ती की गई है। इस बीच कर्नाटक के गृह मंत्री जी. परमेश्वर ने कहा, जांच जारी है। डीआरआइ को पूछताछ पूरी करने दीजिए। मैंने अपने विभाग से इस पर गौर करने के लिए कहा है।
पिता ने बेटी से किया खुद को अलग
रामचंद्र राव ने यह कहते हुए खुद को रान्या से दूर कर लिया है कि रान्या की शादी के बाद से वे संपर्क में नहीं है। वह अपने पति के साथ रहती है। उन्होंने कहा, "कानून अपना काम करेगा। मेरा करियर बेदाग रहा है। जब यह बात मीडिया के माध्यम से मेरे संज्ञान में आई तो मैं स्तब्ध रह गया। मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी।"
रामचंद्र राव ने पहली पत्नी की मृत्यु के बाद एक महिला से शादी की थी जिसकी पहली शादी से दो बेटियां हैं। रान्या उनमें से एक है।"
15 दिनों में चार बार की दुबई यात्रा
सूत्रों ने बताया कि पिछले 15 दिनों में रान्या के चार बार दुबई जाने और बेंगलुरु लौटने के बाद डीआरआइ ने अभिनेत्री के बारे में जानकारी जुटाई। वित्त मंत्रालय ने बयान में कहा, खुफिया जानकारी के बाद डीआरआई ने बेंगलुरु के केंपेगौड़ा अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर 12.56 करोड़ रुपये मूल्य की सोने की छड़ें ले जा रही 33 साल की भारतीय महिला (रान्या) को रोका। वह तीन मार्च को अमीरात की फ्लाइट से दुबई से बेंगलुरु पहुंची थी। बताया जाता है रान्या के साथ आए दो लोग ब्रीफकेस में तस्करी का सोना ले जा रहे थे। वह सुरक्षा जांच लगभग पूरी कर ली थी और बाहर निकलने ही वाली थे कि डीआरआई टीम ने उसे रोककर तलाशी ली। जांच करने पर 14.2 किलोग्राम वजन की सोने की छड़ें मिलीं जिसे उसने अपने शरीर में छिपा रखा था। गौरतलब है कि डीआरआइ वित्त मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।
न्यायिक हिरासत में भेजी गईं रान्या
न्यायिक हिरासत में भेजा गया रान्या को सीमा शुल्क अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया। उसे मंगलवार को विशेष अदालत में पेश किया गया। जज ने उसे 18 मार्च तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया। रान्या ने फिल्म में कन्नड़ सुपरस्टार सुदीप के खिलाफ मुख्य अभिनेत्री के रूप में काम किया है। उन्होंने अन्य दक्षिण भारतीय भाषा की फिल्मों में भी अभिनय किया है।
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तेलंगाना सुरंग हादसा: रेस्क्यू ऑपरेशन में क्या रोबोट की ली जा सकती मदद? एक्सपर्ट टीम संभावना तलाशने में जुटी
पीटीआई, नगरकुरनूल। तेलंगाना के नगरकुरनूल में श्रीशैलम लेफ्ट बैंक कैनाल (एसएलबीसी) के निर्माणाधीन खंड के ढहने के बाद पिछले 12 दिन से सुरंग में फंसे आठ लोगों के बचाव का अभियान बुधवार को तेज गति से जारी है। बचाव अभियान के तहत वैज्ञानिकों द्वारा सुझाए गए स्थानों पर मानव उपस्थिति का पता लगाने के लिए खोदाई की जा रही है।
रोबोटिक्स की टीम पहुंचीवहीं, रोबोटिक्स कंपनी की एक टीम आंशिक रूप से ध्वस्त एसएलबीसी सुरंग के अंदर गई, जहां लोग फंसे हुए हैं। राज्य सरकार बचाव अभियान में रोबोट के इस्तेमाल की संभावना तलाश रही है। अधिकारियों ने बुधवार को बताया कि दिल्ली स्थित राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक भी बचाव दलों के साथ भूकंप संबंधी अध्ययन करने के लिए सुरंग के अंदर गए हैं।
रोबोट काम कर सकेंगे या नहीं... टीम जांच कर रहीएक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हैदराबाद स्थित रोबोटिक्स कंपनी की टीम ने जांच की कि क्या रोबोट सुरंग के अंदर गहराई तक जा सकता है और क्या यह वहां काम कर सकता है, क्योंकि वहां आर्द्रता अधिक है। उन्होंने कहा कि टीम बताएगी कि रोबोट काम कर सकते हैं या नहीं। उन्होंने कहा कि दूसरी बात यह है कि जब भविष्य में सुरंग में परियोजना से संबंधित काम फिर से शुरू होगा तो चट्टानों की संरचनात्मक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए रोबोट शुरुआती खोज कर सकते हैं।
टीबीएम को काटने की कोशिशअधिकारियों के अनुसार, टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) के अंतिम हिस्सों को गैस कटर का उपयोग करके काटा जाएगा और 'लोको ट्रेन' में सुरंग से बाहर लाया जाएगा। एसएलबीसी परियोजना सुरंग में 22 फरवरी से इंजीनियर और मजदूर समेत आठ लोग फंसे हुए हैं और एनडीआरएफ, भारतीय सेना, नौसेना और अन्य एजेंसियों के विशेषज्ञ उन्हें सुरक्षित बाहर निकालने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं।
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दिल्ली में पल्ला से ओखला के बीच 22 किमी लंबाई में 80 फीसदी यमुना प्रदूषित, क्या है सबसे बड़ा कारण?
मनीष तिवारी, नई दिल्ली। यमुना नदी को प्रदूषण से मुक्त कराने के लिए फिर से किए जा रहे प्रयासों के बीच संसदीय समिति ने नदी संरक्षण के लिए स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी तय करने की जरूरत जताई है।
समिति का यह विचार इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि सरकारी एजेंसियों ने यह माना है कि इस नदी के प्रदूषण का कारण बन रहे दूषित जल में 80 प्रतिशत हिस्सेदारी म्युनिसिपल वेस्ट यानी नगरीय अपशिष्ट की है। यह समस्या इसलिए ज्यादा गंभीर हो जाती है, क्योंकि इसके निदान के लिए किसी एक विभाग अथवा अफसर की जिम्मेदारी तय नहीं है।
यमुना में प्रदूषण के कारणों की निगरानी की जिम्मेदारी तय हो- इसी आधार पर यह सुझाव भी दिया गया है कि यमुना के प्रदूषण के लिए जिम्मेदार कारणों के निदान के लिए समयबद्ध कार्यक्रम बनाया जाए और उसकी निगरानी के लिए किसी की जिम्मेदारी तय की जाए। जल संसाधन और नदियों के पुनर्जीवन के मामले में संसद की स्थायी समिति ने जब यमुना के हालात पर चर्चा की तो नगरीय निकायों की भूमिका का मुद्दा प्रमुखता से उठा।
- इन राज्यों के बोर्डों ने रखे अपने पक्ष
- उत्तर प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों ने अपने-अपने पक्ष रखे, यमुना में गिरने वाले नालों की संख्या और उनके लिए लगे एसटीपी की संख्या गिनाई तभी यह सामने आया कि सारे नालों से गिरने वाले दूषित जल का तो विवरण ही नहीं है।
उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश के हिस्से में कुल 137 ड्रेन हैं, लेकिन केवल 35 का हिसाब-किताब है। इनमें से 17 में पूरी तरह घरेलू सीवेज बहता है। हिमाचल प्रदेश के अधिकारियों के अनुसार, वैसे तो कोई नगरीय दूषित जल सीधे यमुना में नहीं जाता, लेकिन नगरीय सीमा में चार नाले ऐसे हैं जिनका पानी यमुना में जाता है।
दिल्ली में 9 ड्रेन वाटर ट्रीटमेंट के दायरे मेंसंबंधित निकाय समिति और जलशक्ति विभाग ने सुधार के लिए कोई कदम नहीं उठाए हैं। यही स्थिति हरियाणा की भी है, जिसकी दो ड्रेन बड़ी मात्रा में अपना दूषित जल यमुना में उड़ेल रही हैं। जहां तक दिल्ली की बात है तो यमुना को दूषित कर रहीं कुल 22 ड्रेन में से केवल नौ को पूरी तरह ट्रीटमेंट के दायरे में लिया जा सका है, दो को आंशिक तौर पर और बाकी बिना रोक-टोक के हैं।
पल्ला से ओखलीा के बीच यमुना सबसे ज्यादा प्रदूषितसारे आंकड़ों और तस्वीर को देखने के बाद समिति ने कहा कि दिल्ली में हालात खास तौर पर चिंताजनक हैं। पल्ला और ओखला के बीच का 22 किलोमीटर का हिस्सा पूरी यमुना का केवल दो प्रतिशत हिस्सा है, लेकिन नदी का 75-80 प्रतिशत प्रदूषण यहीं पर है।
प्रदूषण की रोकथाम के लिए जिम्मेदारी और जवाबदेही तय करनी होगी। अधिकारों और भूमिका की ओवरलै¨पग हो रही है। दो हजार से ज्यादा अवैध बस्तियां समस्या को कई गुना बढ़ा रही हैं और हैरानी की बात है कि लोग सीवेज सिस्टम से जुड़ने के लिए उत्साहित नजर नहीं आते।
750 कॉलोनियों में सीवर लाइन बिछींइन दो हजार अवैध कालोनियों में 750 में से ही सीवर लाइन बिछाई जा सकी है। कहीं डीडीए की अड़चन है, कहीं राजस्व विभाग की तो कहीं वन विभाग की मंजूरी का इंतजार करना पड़ रहा है। बुनियादी जिम्मेदारी दिल्ली जल बोर्ड की है, लेकिन उसके पास प्रवर्तन की शक्तियां नहीं हैं।
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सुप्रीम कोर्ट ने IAS अधिकारियों पर IPS और IFS पर दबदबा दिखाने को लेकर की कड़ी टिप्पणी, केंद्र ने क्या कहा?
एएनआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि IAS अधिकारी अक्सर IPS और IFS अधिकारियों पर अपना दबदबा दिखाने की कोशिश करते हैं।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने यह टिप्पणी उत्तराखंड सरकार की ओर से प्रतिपूरक वनरोपण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (कैंपा) निधि के कथित दुरुपयोग पर सुनवाई के दौरान की। पीठ कैंपा निधि का उद्देश्य वनरोपण एवं वन संसाधनों के संरक्षण को बढ़ावा देना है।
कैग रिपोर्ट में अनियमितताएं आईं सामने
कैग रिपोर्ट में पता चला है कि उत्तराखंड सरकार में 2019-2022 के दौरान कैंपा निधि में कई अनियमितताएं दिखीं, जिसमें आइफोन, लैपटाप, फ्रिज, कूलर की खरीद और कार्यालय की मरम्मत के अलावा कथित रूप से अदालती मामलों से लड़ने और निजी खर्चों के लिए भी कैंपा निधि का इस्तेमाल किया गया।
पीठ ने कहा कि सरकारी वकीलों और न्यायाधीशों के रूप में अपने अनुभव से पता है कि आईएएस अफसर, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों पर अपनी श्रेष्ठता दिखाते हैं। और यह प्रवृत्ति सभी राज्यों में हमेशा से एक मुद्दा बना रहा है, जिससे आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों में नाराजगी है।
IAS अपने दबदबा IPS, IFS पर दिखाते हैं: जस्टिस बीआर गवई
जस्टिस गवई ने कहा, ''तीन साल तक सरकारी वकील और 22 वर्षों तक न्यायाधीश के रूप में मैं अपने तजुर्बे के आधार पर आपको बता सकता हूं कि आईएएस अफसर, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों पर अपना दबदबा दिखाना चाहते हैं। सभी राज्यों में हमेशा संघर्ष होता है। आइपीएस और आईएफएस में हमेशा यह नाराजगी बनी रहती है कि एक ही कैडर का हिस्सा होने के बावजूद, आइएएस क्यों खुद को वरिष्ठ मानते हैं।''
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने क्या कहा?
इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को आश्वासन दिया कि वह प्रयास करेंगे कि अधिकारियों के बीच इस तरह के आंतरिक संघर्ष सुलझ जाएं। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आईफोन और लैपटाप खरीदने जैसी अस्वीकार्य गतिविधियों के लिए कैंपा फंड का इस्तेमाल करने पर चिंता जताते हुए संबंधित राज्य के मुख्य सचिव को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया।
पीठ ने कहा कि कैंपा निधि का इस्तेमाल हरित क्षेत्र को बढ़ाने के लिए किया जाना है। अस्वीकार्य गतिविधियों में इसका उपयोग और ब्याज ना जमा किया जाना गंभीर चिंता का विषय है। पीठ पर्यावरण संरक्षण और वनों के संरक्षण पर 1995 की जनहित याचिका, टीएन गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ पर सुनवाई कर रही थी।
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Bihar Jobs 2025: युवाओं के लिए गुड न्यूज, सरकार 2473 पदों पर करेगी भर्ती; जल्द निकलेगा नोटिफिकेशन
जागरण संवाददाता, पटना। सरकारी नौकरी के लिए हाई कोर्ट से लेकर विभाग तक दौड़ लगाने वाले डिप्लोमा फार्मासिस्ट छात्रसंघ के प्रतिनिधिमंडल बुधवार को प्रकाशित 10 हजार रिक्तियों में खुद को न पाकर, इतने मायूस हुए कि स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय के पास पहुंच गए।
उन्होंने स्वास्थ्य विभाग द्वारा सबसे पहले डिप्लोमा फार्मासिस्ट रिक्तियों की अधियाचना प्रकाशित करने का आग्रह भेजने पर भी देरी से उन्हें अवगत कराया। इस पर स्वास्थ्य मंत्री ने आश्वस्त किया कि अभी कुछ पदों पर नियुक्तियों का विज्ञापन निकाला गया है और अन्य का जल्द प्रकाशित होगा।
इस महीने निकलेगा नोटिफिकेशनइस माह डिप्लोमा फार्मासिस्ट की रिक्तियों का विज्ञापन भी प्रकाशित हो जाएगा। बताते चलें 19 वर्ष पूर्व डिप्लोमा फार्मासिस्ट पदों पर नियुक्ति निकली थी।
स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय को विज्ञापन प्रकाशन में देरी संबंधी आवेदन देते डिप्लोमा फार्मासिस्ट छात्रसंघ के पदाधिकारी। जागरण
डिप्लोमा फार्मासिस्ट ऑर्गेनाइजेशन छात्र संघ, के प्रदेश अध्यक्ष अरविंद कुमार ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग से 2473 पदों पर नियुक्ति की अधियाचना भेजी गई है।
'आयोग के स्तर से हो रही देरी'स्वास्थ्य मंत्री ने प्रतिनिधिमंडल से कहा कि चार माह पूर्व ही विभाग ने विज्ञापन प्रकाशन के लिए बिहार तकनीकी सेवा आयोग को अधियाचना भेज दी थी। आयोग के स्तर से विज्ञापन प्रकाशन में देरी हो रही है।
अरविंद ने बताया कि हाईकोर्ट ने लोकसभा चुनाव खत्म होने के तीन माह के अंदर सिर्फ डिप्लोमा फार्मासिस्टों की नियमित नियुक्ति हेतु विज्ञापन प्रकाशित कर नियुक्ति प्रक्रिया पूर्ण करने का आदेश दिया था। आठ माह में भी विज्ञापन नहीं निकलने पर हाई कोर्ट में अवमानना वाद याचिका विचाराधीन है।
रेलवे की सभी विभागीय पदोन्नति परीक्षाएं आरआरबी सीबीटी के माध्यम से कराएगादूसरी ओर, रेलवे बोर्ड की उच्च स्तरीय बैठक में निर्णय लिया गया कि सभी विभागीय पदोन्नति परीक्षाएं आरआरबी द्वारा केंद्रीयकृत परीक्षा सीबीटी के माध्यम से की जाएंगी। सभी क्षेत्रीय रेलवे परीक्षा के लिए एक कैलेंडर बनाया जाएगा। सभी परीक्षाएं कैलेंडर के आधार पर आयोजित की जाएंगी। कंप्यूटर आधारित टेस्ट (सीबीटी) में उम्मीदवारों को उनके प्रश्न पत्र, उत्तर पुस्तिकाएं और सही उत्तर कुंजियां दिखाई जाती हैं। उन्हें प्रश्नों और उत्तर कुंजियों की शुद्धता के बारे में आपत्ति (यदि कोई हो तो) उठाने का अवसर भी दिया जाता है।
पात्रता के सभी महत्वपूर्ण डेटा जैसे जाति, प्रमाण पत्र संख्या, मोबाइल नंबर, पहचान के निशान, फोटो और हस्ताक्षर, जन्म तिथि और योग्यता स्पष्ट रूप से परिभाषित और कैप्चर की गई। बिना किसी शिकायत के पूरी पारदर्शिता के साथ आरआरबी द्वारा परीक्षाएं आयोजित की जाती रहीं हैं। 2015 से लेकर आज तक सात करोड़ से अधिक उम्मीदवारों की परीक्षा बिना किसी पेपर लीक, प्रतिरूपण, रिमोट लॉग-इन और जासूसी उपकरणों के उपयोग द्वारा कंप्यूटर आधारित परीक्षणों के माध्यम से ली गई है।
आरआरबी द्वारा परीक्षा आयोजित करने के लिए खुली निविदा के माध्यम से विभिन्न मापदंडों को पूरा करने वाली एजेंसी का चयन किया गया था। रेलवे टीम द्वारा परीक्षा केंद्र का आडिट यथा बाहर बाथरूम की अनुमति नहीं, 100प्रतिशत सीसीटीवी कवरेज और रिकार्डिंग परीक्षा से दो घंटे पहले और परीक्षा के एक घंटे बाद तक की जाती है। सीसीटीवी से निगरानी की व्यवस्था की गई है।
परीक्षा के शहर के बारे में जानकारी परीक्षा की वास्तविक तिथि से लगभग दस दिन पहले बताई जाती है। परीक्षा का स्थान, केंद्र परीक्षा से केवल चार दिन पहले उपलब्ध कराया जाता है। परीक्षा केंद्र को मैन्युअल हस्तक्षेप से बचते हुए कम्प्यूटरीकृत माध्यम से आवंटित किया जाता है। केंद्र के अंदर प्रयोगशाला का आवंटन और बफर नोड्स सहित नोड्स, सभी स्वचालित होते हैं।
नकली आवेदनों का पता लगाने के लिए आवेदन पर क्यूआर कोड तथा उम्मीदवार की वास्तविकता स्थापित करने के लिए एडमिट कार्ड पर बारकोड। परीक्षा केंद्रों में उम्मीदवारों की जांच मेटल डिटेक्टरों से की जाती है। प्रवेश से पहले और परीक्षा के बीच में तथा प्रत्येक बायो ब्रेक के बाद बायोमेट्रिक उपस्थिति (एलटीआई और डिजिटल दोनों) ली जाती है।
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सीएम MK स्टालिन ने केंद्र से सरकारी दफ्तरों से हिंदी हटाने की मांग की, तमिल को आधिकारिक भाषा बनाने की अपील
एएनआई, चेन्नई। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार के कार्यालयों से राजभाषा हिंदी को हटाने की बेतुकी मांग रख दी है। उनका कहना है कि भाजपा के फैसलों के चलते ऐसा हुआ है। उन्होंने कहा कि हिंदी को थोपने के बजाय तमिल को 'आधिकारिक' भाषा बनाया जाए। उन्होंने आरोप लगाया कि सेंगोल की तरह सांकेतिक तरीके अपनाने के बजाय तमिलनाडु के विकास को वरीयता दी जाए।
सीएम स्टालिन ने बुधवार को एक्स पर पोस्ट में केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि वह तमिल संस्कृति का समर्थन करने का केवल दावा करते हैं। अगर भाजपा यह दावा करती है कि माननीय पीएम को तमिल से सच में प्रेम है। अगर ऐसा है तो वह उनके कामकाज में क्यों नहीं झलकता है।
"पीएम मोदी को तमिल के समर्थन में कदम उठाने चाहिए। वह ठोस कदम उठाते हुए केंद्र सरकार के कार्यालयों से हिंदी को बेदखल करें और उसकी जगह तमिल को 'आधिकारिक' भाषा बनाएं। हिंदी के साथ वह तमिल को आधिकारिक भाषा बनाएं और संस्कृत जैसी मृत भाषा के बजाय तमिल पर अतिरिक्त धन व्यय करें। तमिलनाडु में संस्कृत और हिंदी को बढ़ावा देने के बजाय तमिल पर खर्च करें।" सीएम एम के स्टालिन
52.83 करोड़ लोग बोलते हैं हिंदी
उल्लेखनीय है कि 2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार भारत में 121 भाषाएं और 270 मातृ भाषाएं हैं। भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची के अनुसार इन 121 भाषाओं में से हिंदी, बांग्ला, मराठी, तमिल सहित केवल 22 भारतीय भाषाओं को ही देश की आधिकारिक भाषा का दर्जा हासिल है। हिंदी देश की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भारतीय भाषा है जिसे 52.83 करोड़ लोग बोलते हैं। दूसरे शब्दों में कुल आबादी के 43.63 प्रतिशत लोग हिंदी बोलते हैं। दूसरी व तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में क्रमश: बांग्ला और मराठी हैं।
हिंदी पर स्टालिन कर रहे पाखंड: अन्नामलाई
तमिलनाडु में भाजपा अध्यक्ष के.अन्नामलाई ने मुख्यमंत्री एमके स्टालिन पर पलटवार करते हुए कहा कि वह हिंदी के बहाने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर बार-बार प्रहार करके पाखंड कर रहे हैं। हमारी तमिल भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए आपने अब तक क्या किया है यह बताने के बजाय आप बहानेबाजी करके दूसरे विषयों की ओर भाग रही हैं।
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Bihar: नीतीश सरकार ने दी खुशखबरी! बिहार में बनेंगी 18000 KM लंबी सड़कें, नेशनल हाईवे भी बनेंगे
राज्य ब्यूरो, पटना। ग्रामीण क्षेत्रों में दो वित्तीय वर्ष के भीतर 18000 किलोमीटर लंबाई में सड़कें बनाई जाएंगी। विधानसभा में बुधवार को यह जानकारी ग्रामीण कार्य मंत्री अशोक चौधरी ने दी। इनमें से 9000 किलोमीटर में इसी वित्तीय वर्ष निर्माण कार्य हो जाएगा। शेष 9000 किलोमीटर अगले वर्ष में। सरकार का प्रयास विधानसभा चुनाव से पहले निर्माण करा लेने का है।
सीतामढ़ी जिला में एक खस्ताहाल सड़क के संदर्भ में मुकेश कुमार यादव ने प्रश्न किया था। दूसरा प्रश्न मनोहर प्रसाद सिंह का था। वे कटिहार जिला के अमदाबाद प्रखंड में डेढ़ किलोमीटर लंबाई में सड़क नहीं होने 10 हजार की जनसंख्या की परेशानी का उल्लेख किए। ग्रामीण सड़कों के संदर्भ में ऐसे ही लगभग आधा दर्जन प्रश्न थे।
रामबली सिंह यादव के प्रश्न पर मंत्री ने कहा कि विपक्ष ग्रामीण सड़कों के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बधाई दे। इस विभाग का मंत्री रहते उनके नेता (तेजस्वी प्रसाद यादव) ने तो कुछ भी नहीं किया। उनके नेता जब आए थे तब राज्य में मात्र आठ हजार किलोमीटर ग्रामीण सड़कें थीं।
आज उसकी लंबाई बढ़कर एक लाख 17 हजार किलोमीटर हो गई है। ग्रामीण सड़कों के निर्माण में कोई भेदभाव नहीं किया गया है कि यह एनडीए विधायक का क्षेत्र है या राजद का। उल्लेखनीय है कि चौधरी के उत्तर के समय ही मुख्यमंत्री सदन में आए थे।
एनएच बनाने के लिए चिह्नित की जा रहीं कुछ और सड़केंविधानसभा में बुधवार को एक प्रश्न के उत्तर में सरकार ने बताया कि अभी बिहार में जनसंख्या घनत्व के आधार पर राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच) की लंबाई भले ही कम हो, लेकिन क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से यह राष्ट्रीय औसत से डेढ़ गुना अधिक है। राज्य में कुछ और सड़कें भी एनएच घोषित की जाएंगी। इसके लिए योग्य सड़कों को चिह्नित किया जा रहा है। प्रश्न अरुण शंकर प्रसाद का था।
अखबार की एक खबर के हवाले से उनका कहना था कि बिहार में मात्र 36 एनएच हैं, जिनकी कुल लंबाई 6131.80 किलोमीटर है। देश में एनएच 146145 किलोमीटर है। बिहार की तुलना में महाराष्ट्र, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक आदि में एनएच अधिक है। इसी के साथ उन्होंने पूछा था कि क्या यह सही नहीं है कि 2005 में राष्ट्रीय स्तर पर एनएच में बिहार की भागीदारी 5.4 प्रतिशत थी। वह घटकर अभी 4.04 प्रतिशत रह गई है, जबकि राष्ट्रीय औसत छह प्रतिशत का है।
उत्तर में पथ निर्माण मंत्री नितिन नवीन ने बताया कि 2005 में राज्य में दो-लेन और फोर-लेन सड़कों की लंबाई क्रमश: 1200 और 800 किलोमीटर थी। वह बढ़कर अब क्रमश: 2000 और 2600 किलोमीटर हो गई है। तब एनएच की लंबाई बिहार में मात्र 3600 किलोमीटर थी, जो बढ़कर अब 6000 किलोमीटर हो गई है। क्षेत्रफल (प्रति हजार किलोमीटर) के हिसाब से राष्ट्रीय औसत 39 किलोमीटर का है, जो बिहार में 60 किलोमीटर है।
अब राज्य में छह लेन की सड़कों का भी निर्माण हो रहा है। इसमें आमस-दरभंगा, पटना-बेतिया, आरा-सासाराम, वाराणसी-कोलकाता के अलावा राम जानकी मार्ग और बक्सर-चौसा मार्ग हैं। हम ग्रीन-फील्ड एलायनमेंट की ओर बढ़ चले हैं और बिहार को कई एक्सप्रेस-वे भी मिले हैं। इसी के साथ मंत्री ने काम में देरी, अड़चन या निर्माण एजेंसी के फिसड्डी होने जैसी शिकायतों को सही नहीं माना।
देरी तो हुई, फिर भी रैयतों को मिलेगा मुआवजा:मुंगेर जिला में गोगरी से हरिणमार-झौवा बहियार तक सड़क से जुड़े पुल निर्माण के लिए 2012 में ही किसानों की भूमि ली गई थी। उन्हें अभी तक मुआवजा नहीं मिला। प्रवण कुमार का प्रश्न था कि मुआवजा कब तक मिलेगा।
नितिन ने बताया कि रैयतों में से एक मो. सबुल 2023 में उच्च न्यायालय चले गए थे। पिछले वर्ष 13 अगस्त को न्यायालय ने मुआवजा भुगतान का आदेश दिया है। मुआवजे के लिए जिला प्रशासन द्वारा दर का निर्धारण किया जा रहा है। उसके बाद भुगतान कर दिया जाएगा।
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