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Prashant Kishor: चुनाव से पहले पीके ने फिर लिया पीएम मोदी का नाम, बिहार के लोगों से कर दी बड़ी अपील
राज्य ब्यूरो, पटना। Bihar Politics जन सुराज पार्टी (जसुपा) के सूत्रधार प्रशांत किशोर (पीके) ने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर बिहार की उपेक्षा का आरोप लगाया है।
मंगलवार को बयान जारी कर पीके ने कहा कि नरेन्द्र मोदी बिहार की जनता से वोट लेकर गुजरात में फैक्ट्री लगा रहे हैं।
पूरे देश का पैसा लेकर गुजरात के गांव-गांव में फैक्ट्री लगाई जा रही है और बिहार के लोग वहां मजदूरी करने के लिए विवश हैं।
जनता से उन्होंने पूछा है कि जब वोट आपका है तो फैक्ट्री कहां लगनी चाहिए, गुजरात में या बिहार में? अपील यह कि वोट अपने बच्चों और बिहार के भविष्य के लिए दें।
उन्होंने कहा कि इस बार वोट नेता का चेहरा देखकर नहीं, अपने बच्चों का चेहरा देखकर देना है। वोट जाति-धर्म पर नहीं, शिक्षा और रोजगार के लिए देना है। लालू-नीतीश-मोदी नहीं, बल्कि जनता का राज लाना है।
बिहार बदलों रैली को लेकर जन सुराज पार्टी की बैठकबता दें कि जन सुराज पार्टी ने 11 अप्रैल को बिहार बदलो रैली" का आयोजन पटना के गांधी मैदान में किया जा रहा है। यह रैली केवल एक राजनीतिक आयोजन नहीं, बल्कि बिहार के भविष्य को संवारने का एक संकल्प है।
इसका उद्देश्य जनता को सशक्त बनाना, शासन में पारदर्शिता लाना और राज्य की बुनियादी समस्याओं के स्थायी समाधान के लिए ठोस नीति निर्माण को बढ़ावा देना है।
बिहार लंबे समय से स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और भ्रष्टाचार जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है। प्रशासनिक लापरवाही और औद्योगिक विकास की धीमी गति ने राज्य की प्रगति को अवरुद्ध कर रखा है।
एकमा में दर्जनों लोग जनसुराज में हुए शामिल- एकमा विधानसभा क्षेत्र के रामपुर बिंदालाल पंचायत के विष्णुपुरा कला गांव निवासी समाजसेवी विकास कुमार सिंह ने अपने सर्मथकों के साथ जन सुराज पार्टी में शामिल हुए।
- पटना में जनसुराज पार्टी के कार्यालय में पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर, अध्यक्ष मनोज भारती, सारण जिलाध्यक्ष बच्चा प्रसाद राय, एकम विधानसभा प्रभारी अशरफ राजा खान के समक्ष वे जन सुराज पार्टी में शामिल हुए।
- प्रशांत किशोर के साथ आगामी विधानसभा चुनाव पर चर्चा हुई तथा जन सुराज पार्टी की तरफ से उन्हें एकमा विधानसभा क्षेत्र में पार्टी को मजबूत करने का दायित्व सौंपा गया।
- मौके पर प्रशांत सिंह, विजय यादव, ओम प्रकाश सिंह, देवेंद्र ओझा, नरेंद्र सिंह, उज्ज्वल सिंह, संदीप सिंह, सुनील यादव एवं सत्येंद्र सिंह आदि मौजूद रहे।
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Tejashwi Yadav: अमित शाह की यात्रा के बाद तेजस्वी का खुला चैलेंज, बोले- छेड़िएगा तो छोड़ेंगे नहीं
राज्य ब्यूरो, पटना। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के आरोपों को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने आधारहीन और तथ्यहीन बताया है।
वे आरोप बिहार और लालू-राबड़ी के शासन-काल के संदर्भ में हैं। अपराध से जुड़े आंकड़े गिनाते हुए मंगलवार को प्रेस-वार्ता मेंं तेजस्वी ने कहा कि ये आंकड़े जिस राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के हैं, वह गृह मंत्रालय की अधीनस्थ इकाई है।
तेजस्वी ने कहा- शाह को जवाब देने के लिए हम पर्याप्तउन्होंने कहा कि भाजपा झूठ और जुमलेबाजी से बाज आए, अन्यथा तर्कों-तथ्यों के साथ बहस कर ले। लालू प्रसाद को छोड़िए, शाह को उत्तर देने के लिए तेजस्वी ही पर्याप्त हैं।
डबल इंजन की सरकार में शाह कोई ऐसा उदाहरण बताएं, जिसमें बिहार सर्वश्रेष्ठ रहा हो। मोदी सरकार ने गुजरात को कितनी सहायता दी और बिहार को कितनी। शाह सब कुछ सच-सच बताएं, अन्यथा वे छेड़ेंगे तो हम छोड़ने वाले नहीं हैं।
तेजस्वी ने कहा कि जंगलराज से संबंधित पटना हाई कोर्ट की टिप्पणी वस्तुत: पटना नगर निगम के संदर्भ में थी। तब नगर निगम का नेतृत्व भाजपा के पास था।
वह टिप्पणी वस्तुत: भाजपा के कामकाज पर थी, नहीं कि विधि-व्यवस्था और बिहार सरकार के संदर्भ में। गृह मंत्री का दायित्व देश को एकजुट रखने का है, जबकि शाह की सच्चाई सर्वविदित है।
प्रेस वार्ता में दो नेता रहे मौजूद- प्रेस-वार्ता में शक्ति सिंह यादव और चित्तरंजन गगन उपस्थित रहे। तेजस्वी ने कहा कि परिवारवाद पर चर्चा करते हुए उन्हें पासवान और मांझी परिवार नहीं दिखता।
- बिहार मंत्रिमंडल में 50 प्रतिशत चेहरे राजनीतिक परिवार से हैं। आश्चर्यजनक यह कि शाह यह बता रहे कि लालू के भाई-भाभी भी विधायक थे। उनके इस ज्ञान पर क्षोभ है। उन्हें बिहार के बारे में कुछ नहीं पता।
- जिस जानकी मंदिर के निर्माण की वे बात कर रहे वह तो पहले से अस्तित्व में है। 80 करोड़ से उसके सुंदरीकरण की योजना को मैंने अपने हस्ताक्षर से स्वीकृति दी थी।
- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बिहार की बंद चीनी मिलों को चालू कराने का वादा कर गए थे। शाह उसकी चर्चा नहीं करेंगे। चारा घोटाले की बात होगी, लेकिन सृजन घोटाला के 3000 करोड़ की वसूली कब और कैसे होगी।
- इसी के साथ उन्होंने महागठबंधन सरकार के दौरान हुए कामकाज और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार में बिहार को मिली सहायता का उल्लेख किया। रेल मंत्री के रूप में लालू के दौर को उपलब्धियों वाला बताया।
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Bihar Assembly Election: जेपी से पहले नरेंद्र थे लालू के गुरु? क्लर्क की नौकरी; राबड़ी-राजनीति और रोचक किस्सा
अजय सिंह, नई दिल्ली/ पटना । "हम सब में से वह अकेला था, जो परिवार के नाम 'राय' का उपयोग नहीं करता था। वह हमेशा लालू राय के स्थान पर लालू यादव लिखता था। यह सब उसके स्कूल के शुरुआती दिनों की बात है। हमारा इस ओर ध्यान भी नहीं गया, जब तक कि उसने राजनीति में नाम कमाना शुरू कर दिया, लेकिन वह जाति का नाम यादव हमेशा अपने नाम के आगे लगाता था।"
वरिष्ठ पत्रकार संकर्षण ठाकुर अपनी किताब 'द ब्रदर्स बिहारी' में लालू यादव के बड़े भाई महावीर यादव के हवाले से लिखते हैं " लालू यादव हम सब भाई-बहनों में वह शुरू से ही खास था। हम सब शुरू से जानते थे कि उसमें कोई ऐसी बात थी, जो हममें से किसी के पास नहीं थी।
दरअसल, लालू यादव जिस इलाके से आते हैं वहां यादव समुदाय के लोग अपना सरनेम राय लिखा करते हैं। लालू यादव के पिता का नाम भी कुंदन राय है। लेकिन बचपन से चालाक लालू अपना सरनेम राय नहीं लिखते हैं। इसके पीछे भी दिलचस्प वाकया है।
फुलवारिया से पटना कैसे पहुंचे लालू यादव?लालू यादव छोटे से आंगन में एक छोटे से ईंट के टुकड़े से अपनी स्लेट पर कुछ चित्रकारी कर रहे थे कि तभी वहां से फुलवारिया के एक जमींदार गुजरे और लालू पर नजर पड़ते ही कहा- ओहो, देखा एही कलयुग है। अब ई ग्वार का बच्चा भी पढ़ाई-लिखाई करी। बैरिस्टर बनाबे के बा का...
(फोटो: लालू यादव फेसबुक पेज)
लालू यादव के चाचा यदुनंद राय, जो उस समय पटना पशु चिकित्सा महाविद्यालय में ग्वाला का काम करते थे, इस टिप्पणी से इतने तिलमिला गए कि उन्होंने अपने भतीजे को तुरंत पटना ले जाकर पढ़ाई-लिखाई का प्रबंध करने का निर्णय ले लिया।
और यहीं से कुंदन राय के बेटे लालू यादव की सियासी कहानी की शुरुआत होती है। लालू यादव फुलवारिया (गोपालगंज) से पटना आते हैं। वेटनरी कॉलेज में लालू यादव का ठिकाना मिलता है। मिलर स्कूल में स्कूलिंग करते हैं। उसके बाद पटना विश्वविद्यालय के बीएन कॉलेज में दाखिला कराते हैं।
कौन हैं नरेंद्र सिंह जो लालू को छात्र राजनीति में लाए?बिहार में उस समय साइंस कॉलेज और बीएन कॉलेज पटना विश्वविद्यालय के बेहतर कॉलेजों में से एक थे। जब तक लालू यादव को बी.एन कॉलेज में प्रवेश मिला, वह विश्वविद्यालय राजनीति का एक गढ़ भी बन चुका था। राममनोहर लोहिया की लीडरशिप में समाजवादी आंदोलन उत्तर भारत के स्कूल-कॉलेजों में तूफान लाने के लिए आतुर था। गैर-कांग्रेसवाद की लहर युवाओं को अपनी तरफ आकर्षित करने लगी थी।
ऐसे में लालू यादव के लिए बीएन कॉलेज में रहकर राजनीति से दूर रह पाना आसान नहीं था। पढ़ाई में कमजोर लालू यादव के लिए राजनीति का ककहरा सीखना आसान था।
इसी बीच, लालू यादव को एक नामी-गिरामी साथी मिलता है। नाम था नरेंद्र सिंह जो कि सोशलिस्ट नेता श्रीकृष्ण सिंह के पुत्र थे। लालू यादव जिस समय पटना यूनिवर्सिटी में पहुंचे थे उस समय नरेंद्र सिंह समाजवादी छात्र कार्यकर्ता के रूप में फेमस हो चुके थे।
कहा जाता है कि वह नरेंद्र सिंह ही थे , जो लालू यादव को राजनीति में लाए। 'नरेंद्र सिंह बताते हैं कि पिछड़ी जाति के छात्रों को राजनीति में लाना चाहता था और उस समय लालू यादव सबसे मुफीद लगे।' लालू यादव का एक किस्सा संकर्षण ठाकुर ने अपनी किताब में नरेंद्र सिंह के हवाले से लिखा है:
मुझे याद है, वे कॉलेज के गलियारे की रेलिंग पर चढ़ गए और अपना गमछा हिला-हिलाकर कुछ ही मिनटों में सैकड़ों छात्रों को इकट्ठा कर लिया।
लालू यादव को क्लर्क की नौकरी कैसे मिली?लालू यादव के परिवार की आर्थिक हालत बहुत ही बुरी थी। लालू जानते थे कि गांव से पटना पहुंचकर राजनीति करूंगा तो परिवार का खर्च कौन और कैसे चलाएगा? इसलिए एक बार वो पुलिस में बहाल होने की नाकाम कोशिश भी कर चुके थे।
'नरेंद्र सिंह कहते हैं कि एक बार छात्र नेताओं की बैठक थी, लेकिन उस बैठक में लालू यादव नहीं आए। दूसरे दिन जब हमने पूछा कि बैठक में शामिल क्यों नहीं हुए। पहले तो लालू यादव ने छिपाने की कोशिश की लेकिन फिर बताया कि वो पुलिस में भर्ती होना चाहते हैं, लेकिन दौड़ (फिजकल टेस्ट) नहीं निकाल पाए।'
इसी बीच, लालू यादव 1968 और 1969 में पटना विश्वविद्यालय में छात्र महासचिव के पद पर निर्वाचित हुए। लेकिन 1970 में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ अध्यक्ष पद के चुनाव में उनकी करारी हार हो गई। पराजय के बाद लालू यादव टूट चुके थे और छात्र राजनीति को तिलांजलि देने का मन बना चुके थे।
लालू एक बार फिर नौकरी की तलाश में निकल गए। इस बार उन्हें सफलता भी मिल गई और पटना पशु चिकित्सा महाविद्यालय में क्लर्क के पद पर तैनाती हो गई। लालू यादव के परिवार की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
अब्दुल गफूर की सरकार और छात्र राजनीतिनौकरी मिलने के बाद लालू यादव के जीवन में राबड़ी देवी का पदार्पण हुआ। साल 1973 में लालू यादव और राबड़ी देवी परिणय सूत्र में बंध गए। लेकिन कहा जाता है कि इंसान का नेचर और सिग्नेचर नहीं बदलता। लालू यादव के साथ भी वही हुआ। हिसाब-किताब में कमजोर लालू को क्लर्क की नौकरी नहीं भायी और एक बार फिर छात्र राजनीति में कूद गए।
1973 में लालू यादव पटना विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो गए। भाजपा के दिवंगत नेता सुशील कुमार मोदी उस वक्त महासचिव चुने गए थे। हालांकि, लालू यादव छात्र राजनीति में कोई खास करिश्मा नहीं दिखा पाए। 1974 में अब्दुल गफूर की सरकार ने राज्य के सभी कॉलेजों में छात्र संगठनों की गतिविधियों पर रोक लगा दी। इस घटना के बाद छात्रों में उबाल आ गया।
लालू यादव कैसे और क्यों हुए लापता?बिहार विधानसभा के घेराव में पुलिस ने छात्रों पर जमकर गोलियां बरसाईं। पटना में कर्फ्यू लगा और कई छात्रों की गिरफ्तारी हुई। हालांकि, लालू यादव पुलिस की गिरफ्त से बच निकले।
संकर्षण ठाकुर अपनी किताब में लिखते हैं कि नरेंद्र सिंह और नीतीश कुमार को चिंता हो रही थी कि लालू यादव को कुछ हो तो नहीं गया? क्योंकि पटना में पुलिस ने जमकर गोलियां बरसाई थीं। लालू यादव गोलीबारी से पहले ही रेलवे ट्रैक पार कर अपने भाई के घर पहुंच गए थे। लालू यादव के भाई वेटनरी कॉलेज में रहते थे।
अंधेरा होने के बाद नीतीश और नरेंद्र जब लालू यादव के भाई के घर पहुंचे तो लालू खाना बनाने में मशगूल थे। दोनों नेताओं को देखते ही लालू यादव बोले
हम त भाग अइली (हम तो भाग निकले)। बहुत बढ़िया मीट बनइले हई, आवा, आवा खा ल (बहुत बढ़िया मीट बनाया है, आप लोग भी खा लो)।
1977 में लालू कैसे पहुंचे छपरा?पटना में हुई गोलीबारी के बाद छात्रों की क्रांति पूरे राज्य में फैल गई। गफूर सरकार को बर्खास्त करने की मांग उठने लगी। लालू यादव ने जयप्रकाश नारायण से छात्रों के आंदोलन की अगुआई करने की गुहार लगाई। इसी बीच, गया में भी पुलिस ने छात्रों पर बर्बरतापूर्ण ढंग से गोलियां बरसाईं जिसमें आठ लोगों की जान चली गई।
इसके बाद पटना के गांधी मैदान में विशाल रैली हुई। जेपी की अगुआई में पटना ठसाठस भर गया। इतनी भीड़ पटना में एकसाथ कभी नहीं जुटी थी। लालू यादव इस रैली के बाद छात्र राजनेता के रूप में उभरे।
1975 में इमरजेंसी के दौरान लालू यादव की गिरफ्तारी होती है। जेल से बाहर आने के बाद 1977 में छपरा से जनता पार्टी का सिंबल लालू के हाथों में होता है। लालू फुलवरिया से पटना और फिर दिल्ली पहुंच जाते हैं।
Source:
- The Brothres Bihari: संकर्षण ठाकुर
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बिहार का पहला आधुनिक बांसघाट शवदाहगृह मई में होगा पूरा, 89.40 करोड़ रुपये किए जाएंगे खर्च
डिजिटल टीम, पटना। बिहार का पहला आधुनिक शवदाहगृह पटना के बांसघाट में बन रहा है। राजधानी पटना में लगभग 4.5 एकड़ जमीन पर 89.40 करोड़ रुपये की लागत से नया शवदाहगृह मई में बनकर तैयार हो जाएगा। इसके बाद इसका उद्घाटन किया जाएगा।
आधुनिक सुविधाओं से युक्त शवदाहगृहनिर्माण कंपनी बुडको के इंजीनियर के अनुसार, पहले शवदाहगृह केवल 1.24 एकड़ में था। इसमें कई आवश्यक सुविधाओं का अभाव था। नया शवदाहगृह आधुनिक तकनीकों से लैस होगा और यहां चार विद्युत शवदाह यूनिट, छह लकड़ी आधारित और आठ परंपरागत शवदाह स्थलों की व्यवस्था होगी। यहां एक ही जगह अंतिम संस्कार के लिए सभी तरह की सुविधाएं मौजूद होंगी।
यह मिलेंगी विशेष सुविधाएं- अस्थि विसर्जन और नहाने के लिए दो तालाब
- पाइपलाइन की मदद से गंगा नदी से इन दोनों तालाबों तक आएगा पानी
- दो प्रतीक्षा कक्ष, दो प्रार्थना घर और दो पूजा हॉल
- 6 ब्लॉक शौचालय, एक कार्यालय और 2 चेंजिंग रूम
- एक प्रशासनिक कार्यालय, कैंटीन, मंदिर और स्टाफ क्वॉर्टर
- 40 स्क्वॉयर मीटर का सब-स्टेशन
- शवगृह, पार्किंग, आंतरिक सड़कें और सार्वजनिक उद्घोषणा प्रणाली
- कैंटीन, मंदिर, स्टॉफ क्वॉर्टर और 40 वर्ग मीटर का सब-क्वार्टर
- परिसर में शवगृह, पार्किंग, सड़क, मंत्र/श्लोक और पब्लिक अनाउंसमेंट सिस्टम
पुराने शवदाहगृह का जीर्णोद्धारपुराने शवदाहगृह जीर्णोद्धार के तहत 4 हजार 260 वर्ग मीटर में वेंडिंग जोन और वेटिंग रूम, 1 ब्लॉक शौचालय, चेंजिंग रूम, पार्किग तथा बैठने के लिए शेड बन रहे हैं। परंपरागत शवदाहगृह में अस्थि विसर्जन की व्यवस्था, गंगा जल शावर भी बनाए गये हैं। इस परियोजना के पूरा होने से पटना और आसपास के क्षेत्रों के नागरिकों को अंतिम संस्कार के लिए अत्याधुनिक सुविधाएं मिलेंगी, जिससे यह स्थान अधिक सुव्यवस्थित और पर्यावरण के अनुकूल बनेगा।
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