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'झूठी शिकायतों के दबाव में न आएं', पद संभालने के बाद सीईओ सम्मेलन में और क्या बोले CEC ज्ञानेश कुमार
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राजनीतिक दलों की ओर से मतदाता सूची में गड़बड़ी को लेकर लगातार लगाए जा रहे नए-नए आरोपों के बीच चुनाव आयोग ने मंगलवार को सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के चुनावी प्रक्रिया से जुड़े शीर्ष अधिकारियों को निर्देश दिए है, कि वह राजनीतिक दलों के साथ नियमित बैठकें करें।
साथ ही उनके और से उठाए जा रहे मुद्दों को तत्परता से निपटाएं। आयोग ने यह निर्देश ऐसे समय दिए है, जब तृणमूल कांग्रेस की नेता व पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मतदाता सूची में गड़बड़ी के मुद्दे को लेकर मुखर है। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने मंगलवार को सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ( सीईओ) के दो दिन के सम्मेलन को संबोधित करते हुए ये निर्देश दिए हैं।
बैठक में मौजूद थे सभी राज्यों के डीईओबैठक में सभी राज्यों के जिला निर्वाचन अधिकारी (डीईओ ) और प्रत्येक राज्य से एक-एक मतदाता पंजीयन अधिकारी ( ईआरओ ) भी मौजूद थे। आयोग ने सभी राज्यों के सीईओ से 31 मार्च तक इस मुद्दे पर अमल रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है।
पद संभालने के बाद पहली बार सीईओ सम्मलेन में बोले आयुक्तमुख्य चुनाव आयुक्त की जिम्मेदारी संभालने के बाद ज्ञानेश कुमार पहली बार सभी राज्यों के सीईओ सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने राज्यों के सीईओ व डीईओ से कहा है कि मुद्दों को निपटाने में तय नियम प्रक्रियाओं का पालन किया जाए।
झूठी शिकायतों पर दबाव में न आएंआयोग ने इस दौरान बूथ स्तर के अधिकारी (बीएलओ) और चुनाव से जुड़े दूसरे अधिकारियों को इस बात के लिए प्रशिक्षित करने के निर्देश दिए है, कि वह झूठी शिकायतों पर बिल्कुल भी दबाव में न आएं। साथ ही मतदाताओं के साथ शालीनता के साथ पेश आएं।
28 अलग अलग हितधारकों की पहचानमुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) के साथ चुनाव आयुक्त डॉ. सुखबीर सिंह संधू व डा विवेक जोशी ने सीईओ के साथ कई विषयों पर बातचीत की। जिससे चुनाव सुधारों से जुड़ी पहले भी शामिल है। इस दौरान चुनाव प्रक्रिया से जुड़े 28 अलग-अलग हितधारकों की पहचान की गई है।
पांच मार्च को दिया जाएगा विषयों का ब्यौराजिनमें सीईओ, डीईओ व ईआरओ के साथ राजनीतिक दल, उम्मीदवार, मतदान एजेंट आदि शामिल हैं। बैठक में अलग-अलग सत्रों में प्रत्येक हितधारकों की क्षमता निर्माण की प्रक्रिया को और मजबूती देने पर विमर्श हुआ है। सम्मेलन के अंतिम दिन पांच मार्च को विमर्श में अंतिम रूप दिए गए विषयों का ब्यौरा दिया जाएगा।
गोगोई की पत्नी मामले में बढ़ रहा विवाद, सीएम हिमंत बोले- भारत में ISI की भूमिका की जांच में इंटरपोल की लेंगे मदद
पीटीआई, गुवाहाटी। कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई की ब्रिटिश पत्नी और पाकिस्तानी नागरिक से जुड़े मामले को लेकर विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने पाकिस्तानी नागरिक अली तौकीर शेख के भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप की जांच के आदेश दिए हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जांच अभी शुरुआती चरण मेंसाथ ही, मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत के आंतरिक मामलों में आइएसआइ की भूमिका की जांच के लिए अगर जरूरत पड़ी तो भारत सरकार इंटरपोल जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की मदद ले सकती है। इस संबंध में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को भी जानकारी दे दी गई है।
गौरतलब है कि सरमा और भाजपा लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता गोगोई पर हमला करते रहे हैं और आरोप लगाते रहे हैं कि उनकी पत्नी के आइएसआइ और पाकिस्तानी नागरिक अली तौकीर शेख से संबंध हैं। हालांकि, मुख्यमंत्री ने कहा कि जांच अभी शुरुआती चरण में है।
मामला बहुत संवेदनशीलउन्होंने संवाददाताओं से कहा कि मामला बहुत संवेदनशील है। उन्होंने कहा कि सरकार आने वाले दिनों में इसे यथासंभव आगे बढ़ाएगी। राज्य पुलिस ने 17 फरवरी को असम और भारत के आंतरिक मामलों पर इंटरनेट मीडिया पर की गई टिप्पणियों के संबंध में पाकिस्तानी नागरिक के खिलाफ मामले की जांच के लिए एक एसआइटी का गठन किया था।
पाकिस्तान योजना आयोग के सलाहकार और गोगोई की ब्रिटिश पत्नी एलिजाबेथ कोलबर्न के पूर्व सहयोगी शेख पर विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं। मुख्यमंत्री ने दावा किया कि एसआइटी ने पाकिस्तानी नागरिक से संबंधित बहुत सारी प्रारंभिक जानकारी हासिल की है। गृह मंत्रालय मुख्यमंत्री के पास है।
उन्होंने कहा कि जब वह भारत आए थे, तो उनके साथ पाकिस्तान के कई लोग थे। यहां तक कि पाकिस्तान के अटार्नी जनरल जैसे लोग भी भारत आए और लोगों की नजरों से दूर रहने के लिए छोटे होटलों में रुके। यह पूरा दौरा 2018 तक जारी रहा।
भारत में आइएसआइ या पाकिस्तानी सरकार का प्रभाव?उन्होंने दावा किया कि शेख 18-20 बार भारत आए, असम के बारे में ट्वीट और टिप्पणियां कीं और असमिया लोगों के संपर्क में थे। उन्होंने कहा कि हमें एक असमिया महिला का नाम मिला है, जिसका पति जेएनयू में काम करता है और वे दोनों इस शख्स के संर्पक में थे। जांच किसी एक व्यक्ति पर केंद्रित नहीं है, लेकिन ऐसा देखा गया है कि भारत में आइएसआइ या पाकिस्तानी सरकार का प्रभाव है।
गोगोई ने लगाया आरोपगोगोई ने आरोप लगाया है कि भाजपा उन्हें और उनके परिवार को बदनाम करने की हरसंभव कोशिश कर रही है और उन्होंने कहा कि वह उचित कानूनी कार्रवाई करेंगे।
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गेमिंग की लत पर कैसे पा सकते हैं कंट्रोल? IIT दिल्ली और एम्स ने मिलकर रिसर्च में निकाला समाधान
मनीष तिवारी, नई दिल्ली। समयसीमा और आत्मनियंत्रण का तरीका आनलाइन गेमिंग की लत का प्रभाव कम करने में एक हद तक सहायक हो सकता है। केंद्र सरकार की पहल पर आईआईटी दिल्ली और एम्स के एक साझा अध्ययन में यह निष्कर्ष व्यक्त किया गया है और इसके साथ ही इस पहलू को और अधिक स्पष्ट रूप से प्रमाणित करने के लिए व्यापक शोध की जरूरत रेखांकित की गई है।
आइआइटी दिल्ली के एआइ विशेषज्ञ तपन के. गांधी और एम्स के बिहेवियरल हेल्फ एक्सपर्ट यतन पाल सिंह बलहारा ने मंगलवार को इस शोध के नतीजों की जानकारी देते हुए कहा कि उन्होंने आल इंडिया गेमिंग फेडरेशन से उनके प्लेटफार्मों से जुड़कर इस विषय पर विस्तृत अध्ययन करने की अनुमति मांगी है, जिससे आनलाइन और रियलटाइम मनी गेमिंग की लत के शिकार लोगों को इससे बचाने के कुछ और रास्ते तलाशे जा सकें।
बच्चों और किशोरों पर ऑनलाइन गेमिंग का ज्यादा असरयतन पाल ने कहा कि पिछले दो-तीन साल में आनलाइन गेमिंग में फंसकर पैसा और समय गंवाने के साथ ही अपनी मानसिक-मनोवैज्ञानिक स्थिति खराब करने वाले लोगों की संख्या बहुत बढ़ी है। इनमें बच्चे और किशोर भी शामिल हैं।
सरकार ने टूल के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए कहाआइआइटी दिल्ली और एम्स के अध्ययन को अपनी तरह की पहली स्टडी बताया जा रहा है। तपन के. गांधी ने कहा कि हम आनलाइन गेमिंग के दूसरे पहलुओं का अध्ययन कर रहे थे, जब हमसे सरकार के अफसरों ने टाइम लिमिट और वालेंटरी सेल्फ एक्स्लूजन (वीएसए) यानी खुद ही कुछ अवधि के लिए खेल से अलग होने के टूल के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए कहा गया।
8300 भारतीय गेमरों पर किया गया अध्ययनआनलाइन गेमिंग वाली कंपनियां अपने प्लेटफार्म में ये टूल उपलब्ध कराती हैं और इसे स्वनियमन मान लिया गया है। तपन गांधी के अनुसार 8300 भारतीय गेमरों पर किए गए इस अध्ययन में उनकी टाइम लिमिट और वीएसई के साथ प्रतिदिन जमा किए जाने वाले धन, खेलों की संख्या, कुल पैसे, जीत और हार का विश्लेषण किया गया।
डाटा के साथ काम करने पर मिलता है सार्थक समाधानयह सामने आया कि दोनों टूल की मदद से गेम खेलने के समय और उनके खर्च में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई। गेमिंग व्यवहार में सर्वाधिक जोखिम वाले खिलाडि़यों में सबसे अधिक बदलाव देखने को मिला। तपन के. गांधी ने कहा कि यह छोटे साइज का अध्ययन है, लेकिन अगर हमें गेमिंग कंपनियों के डाटा के साथ काम करने को मिलता है तो एक सार्थक समाधान प्रस्तुत किया जा सकता है।
20 फीसदी इंटरनेट यूजर्स को लग चुकी है लतनीति-निर्धारकों को आनलाइन गेमिंग, खासकर जिनमें पैसा भी शामिल है, पर नियंत्रण और नियमन के नए तौर-तरीके तय किए जा सकते हैं। एम्स के यतन पाल सिंह के अनुसार आनलाइन गेमिंग की लत के शिकार लोगों की संख्या के लिए कोई आकलन अभी नहीं है, लेकिन यह तथ्य है कि इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले 20 प्रतिशत लोग इसके लती हो चुके हैं।
आनलाइन गेमिंग पर बनेगा सेंटर आफ एक्सीलेंसएआइ के साथ ही ब्रेन मैपिंग के एक्सपर्ट तपन गांधी ने बताया कि आइआइटी दिल्ली में आनलाइन गेमिंग पर केंद्रित एक सेंटर आफ एक्सीलेंस की स्थापना की तैयारी चल रही है। यह अपनी तरह का पहला सेंटर होगा, जो केवल गेमिंग और उसके प्रभाव-दुष्प्रभाव के अध्ययन पर केंद्रित होगा। इसके लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है।
प्राइवेट बिल्डरों से जुटी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, अदालतने कहा- रेरा की कार्यप्रणाली निराशाजनक
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भू-संपदा विनियामक प्राधिकरण (रेरा) के कामकाज की आलोचना करते हुए इसे 'निराशाजनक' करार दिया। प्राइवेट बिल्डरों से संबंधित याचिका पर सुनवाई कर रहे जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ को वरिष्ठ अधिवक्ता के परमेश्वर ने बताया कि रेरा कानून वास्तव में अपने क्रियान्वयन में विफल रहा है।
विभिन्न हितधारकों को प्रभावित करती है परियोजना विफलउन्होंने रियल एस्टेट क्षेत्र को प्रभावित करने वाले डोमिनो प्रभाव की ओर इशारा किया और कहा कि यदि किसी बिल्डर की एक परियोजना विफल होती है, तो उसकी अन्य परियोजनाएं भी विफल हो जाती हैं और अदालतें विफल परियोजना से संबंधित मामलों पर फैसला नहीं कर सकती हैं। माहिरा होम्स वेलफेयर एसोसिएशन से संबंधित मामले में पेश हुए परमेश्वर ने कहा कि यदि परियोजना विफल होती है, तो यह विभिन्न हितधारकों को प्रभावित करती है।
रियल एस्टेट क्षेत्र में कोर्ट के हस्तक्षेप की मांगउन्होंने रियल एस्टेट क्षेत्र के लिए नियामक तंत्र को मजबूत करने में कोर्ट के हस्तक्षेप की मांग की। जस्टिस सूर्यकांत ने परमेश्वर की दलीलों से सहमति जताते हुए कहा कि रेरा के तहत विनियामक प्राधिकरण का कामकाज निराशाजनक है, लेकिन उन्होंने कहा कि राज्य नए नियंत्रक उपाय का विरोध कर सकता है। भू-संपदा (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 को संसद द्वारा रियल एस्टेट क्षेत्र को विनियमित करने और आवास परियोजनाओं में निवेश करने वाले घर खरीदारों के पैसे की रक्षा के लिए अधिनियमित किया गया था।
प्राइवेट अस्पतालों में मरीजों, तीमारदारों का शोषण रोकने पर फैसला लें राज्य : सुप्रीम कोर्टसुप्रीम कोर्ट ने प्राइवेट अस्पतालों के दवा दुकानों में दवाओं और चिकित्सा उपकरणों की अधिक कीमतों के संबंध में निर्णय सरकार पर छोड़ दिया। कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराना सरकार का फर्ज है। राज्य मरीजों और उनके तीमारदारों का शोषण रोकने को लेकर उचित नीतिगत निर्णय लें।
कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर इस पर कोर्ट ने निर्देश दिया तो प्राइवेट अस्पतालों के कामकाज में बाधा हो सकती है और इसका व्यापक प्रभाव पड़ सकता है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एनके सिंह की पीठ ने एक जनहित याचिका का निपटारा करते हुए ये टिप्पणियां की।
दवा दुकानों से दवाइयां खरीदने के लिए मजबूरयाचिका में आरोप लगाया गया कि प्राइवेट अस्पताल मरीजों और उनके तीमारदारों को अस्पताल परिसर में स्थित दवा दुकानों या उनसे संबद्ध दवा दुकानों से दवाइयां खरीदने के लिए मजबूर करते हैं। इन अस्पतालों में संचालित दवा दुकानों में दवाओं और चिकित्सा उपकरणों के लिए अत्यधिक कीमतें वसूली जाती हैं।
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'पॉक्सो मामलों की सुनवाई के लिए पर्याप्त जज नहीं', सुप्रीम कोर्ट ने कहा- वर्षों से इनके पद खाली
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि देश के ट्रायल कोर्ट में पॉक्सो कानून के अंतर्गत मामलों की सुनवाई के लिए पर्याप्त जज नहीं हैं, जो इसके खिलाफ यौन अपराधों से निपटने के लिए हर जिले में एक विशेष अदालत स्थापित करने जैसे इसके निर्देशों को लागू कर सकें।
जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की पीठ 2019 के एक मामले को स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई कर रही थी, जिसका शीर्षक 'बाल दुष्कर्म की रिपोर्ट की गई घटनाओं में चिंताजनक बढ़ोतरी' था।
सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के मामलों से विशेष रूप से निपटने के लिए पॉक्सो अधिनियम के तहत 100 से अधिक एफआईआर वाले हर जिले में एक केंद्रीय-वित्तपोषित न्यायालय की स्थापना करने समेत कई निर्देश पारित किए थे।
कुछ निर्देश अभी अधूरे हैंमंगलवार को जस्टिस त्रिवेदी ने कहा, 'जिला अदालतों में रिक्त पदों को देखते हुए कुछ निर्देश अभी भी अधूरे हैं। हमारे जिला न्यायालयों में न्यायाधीश नहीं हैं। वर्षों से पद रिक्त पड़े हुए हैं। हमें जिला न्यायपालिका में पर्याप्त न्यायाधीश नहीं मिल रहे हैं।''
25 मार्च को हो सकता मामले का निपटारापीठ ने कहा कि 2019 के अन्य निर्देशों का पालन किया गया है और अब 25 मार्च को इस मामले का निपटारा किया जा सकता है। वहीं, पीठ ने उस रिपोर्ट पर भी ध्यान दिया जिसमें समय पर पॉक्सो मुकदमे पूरा करने में सबसे बड़ी बाधा फोरेंसिक लैब से रिपोर्ट मिलने में देरी को बताया गया।
रिपोर्ट के अनुसार 1 जनवरी से 30 जून 2019 तक देशभर में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की 24,212 एफआइआर दर्ज की गईं। इनमें से 11,981 मामलों की जांच अभी भी पुलिस कर रही है और 12,231 केसों में चार्जशीट फाइल कर दी गई है।
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केरल हाई कोर्ट ने 'रैगिंग' के खिलाफ सुनवाई लिए गठित की विशेष पीठ, याचिका में Ragging को बताया सामाजिक बुराई
पीटीआई, कोच्चि। केरल हाई कोर्ट ने मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश नितिन जामदार की अध्यक्षता में एक विशेष पीठ का गठन किया, जो राज्य के विधिक सेवा प्राधिकरण (केएलएसए) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करेगी।
विशेष पीठ के गठन का निर्देश दियायाचिका में रैगिंग विरोधी कानूनों के प्रभावी क्रियान्वयन और रैगिंग की घटनाओं की निगरानी के लिए एक तंत्र की स्थापना की मांग की गई है। यह याचिका मुख्य न्यायाधीश नितिन जामदार और न्यायमूर्ति एस मनु की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई, जिसने विशेष पीठ के गठन का निर्देश दिया।
केएलएसए ने अपनी याचिका में कहा है कि रैगिंग एक गंभीर सामाजिक बुराई है, जिसका प्रकोप शैक्षणिक संस्थानों में जारी है तथा उसके कारण विद्यार्थियों को गंभीर मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और यहां तक कि शारीरिक नुकसान भी हो रहा है।
रैगिंग को खत्म करने के लिए कानून के बाद भी हो रही घटनाएंप्राधिकरण ने दावा किया है कि रैगिंग को खत्म करने के लिए कानून, नियम और न्यायिक निर्देश होने के बावजूद, ऐसी घटनाएं हो रही हैं जो उन्हें लागू करने और जवाबदेही तय करने में खामियों को उजागर करती हैं। उसने कहा कि रैगिंग की व्यापकता न केवल विद्यार्थियों की संरक्षा और सुरक्षा को कमजोर करती है बल्कि प्रणालीगत विफलताओं को भी दर्शाती है।
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