Feed aggregator
Bihar Weather : बिहार में होली पर बारिश होगी या नहीं? IMD का अनुमान आया सामने; 12 मार्च से बदलेगा मौसम
जागरण संवाददाता, पटना। Bihar Weather Today: बिहार का मौसम फिलहाल शुष्क बना रहेगा। अगले तीन दिनों के दौरान अधिकतम तापमान में तीन से चार डिग्री का पूर्वानुमान है। न्यूनतम तापमान में पांच दिनों के दौरान एक से तीन डिग्री वृद्धि के आसार है। मौसम विज्ञान केंद्र पटना के अनुसार होली के पूर्व मौसम में थोड़े बहुत बदलाव की संभावना है।
12 मार्च की रात से पश्चिमी हिमालय में पश्चिमी विक्षोभ के सक्रिय होने की संभावना है। इसके प्रभाव से प्रदेश के मौसम गर्म होने के साथ कुछ स्थानों पर आंशिक बादल छाए रहेंगे।
होली पर तेज धूप का एहसास, नहीं होगी बारिशमौसम विभाग के मुताबिक बिहार में होली पर अधिकतम व न्यूनतम तापमान में क्रमिक वृद्धि होने से लोगों को अधिक गर्मी का एहसास होगा। हालांकि, इस दौरान बारिश की किसी भी तरह की संभावना नही हैं। लोग इस बार होली पर अधिक मस्ती कर सकेंगे।
कुछ स्थानों पर आंशिक रूप से बादल छाए रहे। पटना समेत 15 शहरों के अधिकतम तापमान में गिरावट दर्ज की गई। पटना का अधिकतम तापमान 31.1 डिग्री सेल्सियस जबकि 33.4 डिग्री सेल्सियस के साथ गोपालगंज में सर्वाधिक अधिकतम तापमान दर्ज किया गया।
वहीं, छपरा को छोड़ कर पटना सहित शेष शहरों के न्यूनतम तापमान में वृद्धि दर्ज की गई। पटना का न्यूनतम तापमान सामान्य से 2.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ 19.5 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया जबकि 13.0 डिग्री सेल्सियस के साथ औरंगाबाद में सबसे कम न्यूनतम तापमान दर्ज किया गया।
प्रमुख शहरों के तापमान में गिरावटपटना समेत प्रमुख शहरों के अधिकतम तापमान में गिरावट दर्ज की गई। औरंगाबाद के अधिकतम तापमान में 2.5 डिग्री सेल्सियस की गिरावट दर्ज की गई। गया में 1.8 डिग्री, डेहरी में 0.2 डिग्री, बक्सर में 1.5 डिग्री, भोजपुर में 0.9 डिग्री, सासाराम में 2.4 डिग्री, नालंदा में 0.9 डिग्री, शेखपुरा में 0.8 डिग्री, वैशाली में 0.8 डिग्री, मधुबनी में 0.2 डिग्री सेल्सियस की गिरावट दर्ज की गई।
Manipur: मणिपुर में राष्ट्रपति शासन को लेकर आज लोकसभा में होगी चर्चा, 3 जिलों से 17 उग्रवादी भी गिरफ्तार
पीटीआई, नई दिल्ली। मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की घोषणा को मंजूरी देने के लिए वैधानिक प्रस्ताव पर लोकसभा में मंगलवार को एक घंटे की चर्चा होगी। सोमवार को स्पीकर ओम बिरला की अध्यक्षता में लोकसभा की कार्यमंत्रणा समिति (बिजनेस एडवाइजरी कमेटी) की बैठक में यह फैसला लिया गया।
लोकसभा में मंगलवार से केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किए गए मणिपुर बजट पर चर्चा होगी। बजट पर चर्चा को 2024-25 के लिए अनुदानों की अनुपूरक मांगों के दूसरे बैच और 2021-22 के लिए अतिरिक्त अनुदानों की मांगों पर बहस के साथ जोड़ दिया गया है और इसके लिए छह घंटे आवंटित किए गए हैं।
13 मार्च को नहीं होगी बैठक- कार्यमंत्रणा समिति ने होली के कारण 13 मार्च को होने वाली बैठक को रद करने का भी फैसला किया है। इसने सिफारिश की है कि 13 मार्च की बैठक की भरपाई के लिए लोकसभा शनिवार (29 मार्च) को बैठे। इसने रेलवे पर चर्चा के लिए 10 घंटे और जल शक्ति, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालयों की अनुदानों की मांगों पर बहस के लिए एक-एक दिन आवंटित किया है।
- इससे पहले, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को लोकसभा में मणिपुर का 2025-26 का बजट पेश किया। इसमें 35,103.90 करोड़ रुपये खर्च का प्रविधान है, जो चालू वित्त वर्ष में 32,656.81 करोड़ रुपये था।
- सीतारमण ने बजट पेश करते हुए कहा, '13 फरवरी, 2025 को संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत जारी उद्घोषणा के परिणामस्वरूप, मणिपुर राज्य विधानमंडल की शक्तियां संसद द्वारा या उसके अधिकार के तहत प्रयोग की जा सकती हैं।'
- कुल प्राप्तियां 35,368.19 करोड़ रुपये आंकी गई हैं, जो 2024-25 में 32,471.90 करोड़ रुपये थीं। दस्तावेजों के अनुसार, मार्च 2025 को समाप्त होने वाले चालू वित्त वर्ष में पूंजीगत परिव्यय 19 प्रतिशत बढ़ाकर 7,773 करोड़ रुपये कर दिया गया है।
मणिपुर पुलिस ने तीन अलग-अलग जिलों से 17 उग्रवादियों को गिरफ्तार किया है और विभिन्न संगठनों के उग्रवादियों से कार, दोपहिया वाहन और नकद राशि बरामद की है। अधिकारियों ने बताया कि इंफाल पश्चिम जिले से 13 उग्रवादियों को गिरफ्तार किया गया, जबकि तीन उग्रवादियों को इंफाल पूर्वी जिले से और एक को म्यांमार की सीमा से लगे टेंग्नौपाल जिले से गिरफ्तार किया गया।
गिरफ्तार किए गए 17 उग्रवादियों में से तीन महिलाएं भी हैं। पुलिसकर्मियों ने 14 मोबाइल फोन, दो कारें, एक दोपहिया वाहन, 1.07 लाख रुपये नकद और कई आपत्तिजनक दस्तावेज भी बरामद किए हैं।
यह भी पढ़ें: Manipur में फ्री ट्रैफिक मूवमेंट के बाद भड़की हिंसा, आज बंद का एलान; 24 घंटे में एक की मौत और कई घायल
झमाझम बारिश से सराबोर होगा उत्तर भारत, 13 मार्च के बाद से बदल जाएगा मौसम; पढ़िए Weather Report
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। इस वक्त पूरे देश में मौसम की विविधता देखने को मिल रही है। जहां एक ओर गुजरात के कुछ हिस्सों में लू चल रही है, तो वहीं जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में बर्फबारी व बारिश देखने को मिल रही है।
अब मौसम विभाग ने अनुमान जताया है कि आने वाले दिनों में उत्तर भारत का मौसम पूरी तरह से बदलने जा रहा है। संभावना जताई जा रही है कि 12 मार्च से देश के हिमालयी रीजन में पश्चिमी विक्षोभ का असर देखने को मिल सकता है।
राजकोट में सबसे अधिक रहा तापमानबीते 24 घंटे में जम्मू क्षेत्र, हिमाचल प्रदेश, अरुणाच प्रदेश में बर्फबारी और बारिश देखने को मिली है। इसके साथ ही अंडमान व निकोबार द्वीप समूह, असम और केरल में भी जमकर बारिश हुई है। जबकि सौराष्ट्र व कच्छ के हिस्सों में हीटवेव की स्थिति बनी रही।
राजकोट में बीते 24 घंटे का सबसे ज्यादा अधिकतम तापमान दर्ज किया गया, जो 41.1 डिग्री रहा। मौसम विभाग ने अनुमान जताया है कि 10 से 12 मार्च के बीच गुजरा, 11 और 12 मार्च को दक्षिणी पश्चिम राजस्थान, 11 से 13 मार्च को विदर्भ और 13 व 14 मार्च को ओडिशा में हीटवेव की स्थिति दिख सकती है।
राजस्थान में साइक्लोनिक सर्कुलेशन- मौसम विभाग के मुताबिक, इस वक्त पश्चिमी ईरान के आस-पास पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय हुआ है, जो आने वाले दिनों में अपना प्रभाव दिखाएगा। वहीं इसके अलावा राजस्थान, असम और हिंद महासागर में साइक्लोनिक सर्कुलेशन बना हुआ है।
- पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र और अरुणाचल प्रदेश में 10 से 16 मार्च के दौरान बारिश की संभावना जताई गई है। वहीं उत्तर पश्चिम भारत के मैदानी इलाकों में 12 से 15 मार्च तक बारिश होगी। वहीं अनुमान जताया गया है कि इस हिस्से में अगले 3 दिनों में तापमान में बढ़ोतरी हो सकती है, लेकिन फिर इसमें 2 से 4 डिग्री की गिरावट दर्ज की जाएगी।
मौसम विभाग ने 11 मार्च को तमिलनाडु में बहुत भारी वर्षा का अलर्ट जारी किया है। इसके अलावा केरल, अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय में बारिश की संभावना जताई गई है।
उत्तर भारत की बात करें, तो जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में 13 व 14 मार्च को बारिश की संभावना जताई गई है। इस दौरान बिजली चमकने और बादल गरजने की भी चेतावनी जारी की गई है।
यह भी पढ़ें: मौसम विज्ञान के शब्द पश्चिमी विक्षोभ और साइक्लोनिक सर्कुलेशन आखिर क्या होते हैं, जानिए पूरी जानकारी
Data Decode : जलवायु परिवर्तन से मुश्किल में किसान, अनियमित बारिश, सूखे और बढ़ते तापमान से फसलों की गुणवत्ता के साथ पैदावार पर भी असर
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी। मौसम में होने वाले बदलाव कृषि क्षेत्र के लिए लगातार चुनौतीपूर्ण होते जा रहे हैं। इन मौसमी घटनाओं से फसलों को होने वाला नुकसान भी बढ़ा है। तापमान में वृद्धि ने अनाज के विकास को सीमित कर दिया है, जिससे गेहूं के दाने सिकुड़ रहे हैं। 2016 में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें कहा गया था कि देश में कृषि जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। रिपोर्ट में कहा गया था कि अनिश्चित मौसम, विशेष रूप से सूखा, उत्पादन हानि और फलों की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है क्योंकि कृषि का बड़ा क्षेत्र अभी भी वर्षा पर निर्भर है। वहीं बारिश का अनियमित चक्र भी फसलों के लिए बड़ी मुश्किल बनता जा रहा है।
आईएमडी (भारतीय मौसम विभाग) के अनुसार पिछले 50 वर्षों में भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून (जून-सितंबर) के दौरान बरसात के दिनों की संख्या घटी है, लेकिन अत्यधिक बारिश की घटनाएं बढ़ी हैं। 1970-2000 के बीच मानसून में बारिश 2.5% घटी, लेकिन 2010-2020 के दशक में असमान वितरण के कारण बाढ़ और सूखे की घटनाएं बढ़ गईं। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे उत्तर भारतीय राज्यों में बारिश की सतत कमी देखी गई है, जिससे कृषि उत्पादन प्रभावित हो रहा है।
महाराष्ट्र, केरल और कर्नाटक में अत्यधिक बारिश की घटनाएं बढ़ गई हैं, जिससे बाढ़ की स्थिति बन रही है। पूर्वोत्तर भारत में कभी भारी बारिश तो कभी लंबे सूखे की स्थिति देखी जा रही है। एनएसओ (नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2010-2020 के बीच हर साल औसतन 30% जिलों में बारिश का पैटर्न असामान्य रहा। 2019 में महाराष्ट्र, बिहार और असम में बाढ़ के कारण 3000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई। भारतीय कृषि का 55% हिस्सा वर्षा पर निर्भर है।
मानसून में देरी से धान, गेंहू और दलहन उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। एक ही क्षेत्र में कभी अत्यधिक वर्षा, तो कभी सूखा देखा जा रहा है, जिससे पानी की अनिश्चितता बढ़ रही है। महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में 2016-2019 के बीच सूखा पड़ा, लेकिन 2021-22 में बाढ़ आई, जिससे भारी नुकसान हुआ।
बढ़ते तापमान से गेहूं की पैदावार होगी कमलोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में कृषि मंत्री ने कहा था कि स्थानीय और अस्थायी जलवायु परिवर्तनों के कारण 2050 तक 19.3 फीसदी और 2080 तक 40 फीसदी गेहूं के पैदावर में कमी होने का अनुमान है। जलवायु परिवर्तन के कारण खरीफ मक्के के भी पैदावार में 2050 तक 18 फीसदी और 2080 तक 23 फीसदी कमी आ सकती है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने देश के 573 ग्रामीण जिलों में जलवायु परिवर्तन से भारतीय कृषि पर खतरे का आकलन किया है। इस आकलन के अनुसार 2020 से 2049 तक 256 जिलों में अधिकतम तापमान 1 से 1.3 डिग्री सेल्सियस और 157 जिलों में 1.3 से 1.6 डिग्री सेल्सियस बढ़ने की उम्मीद है। इससे गेहूं की खेती प्रभावित होगी। इंटरनेशनल सेंटर फॉर मेज एंड व्हीट रिसर्च के प्रोग्राम निदेशक डॉ. पीके अग्रवाल के एक अध्ययन के मुताबिक तापमान एक डिग्री बढ़ने से भारत में गेहूं का उत्पादन 4 से 5 मिलियन टन तक घट सकता है। तापमान 3 से 5 डिग्री बढ़ने पर उत्पादन में 19 से 27 मीट्रिक टन तक कमी आएगी।
वैज्ञानिकों ने अलग अलग अध्ययनों में पाया कि फसलों के लिए जरूरी बारिश के दिनों में लगातार कमी आ रही है। मौसम विभाग (IMD) के जनरल मौसम में छपे एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि हर एक दशक में बारिश के दिनों में औसतन 0.23 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। अध्ययन के मुताबिक आजादी के बाद से अब तक देश में बारिश का लगभग डेढ़ दिन कम हो गया है। अध्ययन में बारिश का एक दिन का मतलब ऐसे दिन से है जिस दिन कम से कम 2.5 मिलिमीटर या उससे ज्यादा बारिश हुई हो। वैज्ञानिकों के मुताबिक पिछले एक दशक में एक्सट्रीम इवेंट्स भी काफी तेजी से बढ़े हैं।
आईएमडी जर्नल मौसम में प्रकाशित ये अध्ययन 1960 से 2010 के बीच मौसम के डेटा के आधार पर किया गया है। अध्ययन में पाया गया कि बारिश के लिए जिम्मेदार लो क्लाउड कवर देश में हर एक दशक में लगभग 0.45 फीसदी कम हो रहा है। खास तौर पर मानसून के दिनों में इनमें सबसे ज्यादा कमी देखी जा रही है। अध्ययन में पाया गया है कि मानसून के दौरान गिरावट औसतन प्रति दशक 1.22 प्रतिशत रही है।
दक्षिण-पश्चिम मानसून के लिए 1971 से 2020 तक के आंकड़ों के आधार पर नई अखिल भारतीय वर्षा का आंकलन 868.8 मिमी का रहा है है। 1961 से 2010 के आंकड़ों के आधार पर गाणना करने पर देश में औसत वर्ष प्रति वर्ष 880.6 मिमी दर्ज की गई थी । ऐसे में हम सकते हैं कि 1961 से 2010 और 1971 से 2020 के बीच दक्षिण पश्चिम मानसून के आंकड़ों की तुलना करने पर पता चलाता है कि इस बीच मानसून की बारिश में औसतन 12 मिलीमीटर की कमी आई है। वहीं देश में वार्षिक तौर पर औसत बारिश में लगभग 16.8 मिलीमीटर की कमी आई है।
पांच साल से फरवरी में बढ़ रही है गर्मी
केरल कृषि विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश के फैजाबाद कृषि विश्वविद्यालय और हरियाणा के हिसार स्थित कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने 1970 से 2019 के डेटा का अध्ययन किया। इससे पता चलता है कि फरवरी में न्यूनतम तापमान 5 से 8 डिग्री के बीच रहता है। लेकिन पिछले पांच सालों के दौरान फरवरी में कई दिन औसत तापमान इससे 5 डिग्री तक ज्यादा दर्ज किया गया। सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ड्राईलैंड एग्रीकल्चर के वैज्ञानिक डॉ. चंद्रशेखर के मुताबिक, पूर्वी उत्तर प्रदेश में फरवरी में बढ़ते तापमान ने गेहूं की फसल को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया है। इस साल 14 फरवरी से 11 मार्च तक रात में तापमान सामान्य से अधिक दर्ज किया गया। 30 जनवरी को रात का तापमान सामान्य से 7.5 डिग्री अधिक था।
वर्षा पैटर्न का फसलों पर असरउत्तर भारत के कई राज्यों में वर्षा की मात्रा घटी है, जबकि पश्चिमी और दक्षिणी भारत में अत्यधिक बारिश की घटनाएं बढ़ी हैं। यह बदलाव न केवल कृषि उत्पादकता को प्रभावित कर रहा है बल्कि किसानों की आर्थिक स्थिति पर भी भारी असर डाल रहा है।
भारत में लगभग 55% कृषि भूमि सिंचाई के लिए मानसून पर निर्भर करती है। वर्ष 2022 में, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में मानसून की देरी के कारण धान की बुआई में 20% तक की गिरावट दर्ज की गई थी। दूसरी ओर, महाराष्ट्र, केरल और कर्नाटक जैसे राज्यों में अत्यधिक बारिश और बाढ़ के कारण फसलों को भारी नुकसान हुआ। कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, 2015 से 2023 के बीच कृषि उत्पादन में 12% की गिरावट देखी गई, जिसका एक बड़ा कारण मानसून की अनिश्चितता थी।
धान और गेहूं की पैदावार पर वर्षा पैटर्न में बदलाव का गहरा प्रभाव पड़ा है। हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में पिछले कुछ वर्षों में धान उत्पादन में गिरावट आई है, क्योंकि इन क्षेत्रों में औसत वर्षा में कमी आई है। 2020 में, पंजाब में धान उत्पादन 18.5 मिलियन टन था, जो 2022 में घटकर 17 मिलियन टन रह गया। यह गिरावट वर्षा की कमी और बढ़ते तापमान के कारण हुई, जिससे मिट्टी की नमी प्रभावित हुई और फसल की गुणवत्ता भी घटी। इसके अलावा, अत्यधिक बारिश और बाढ़ के कारण भी कई इलाकों में धान की फसल नष्ट हो गई।
मानसून में किस महीने में होती है कितनी बारिश
मौसम विभाग के अध्ययन के मुताबिक 1971 से 2020 के बीच आंकड़ों पर नजर डालें तो दक्षिण पश्चिम मानसून देश की कुल बारिश में लगभग 74.9 फीसदी की हिस्सेदारी रखता है। इसमें से जून महीने में लगभग 19.1 फीसदी बारिश होती है। वहीं जुलाई महीने में लगभग 32.3 फीसदी और अगस्त महीने में लगभग 29.4 फीसदी बारिश होती है। सितंबर महीने में औसतन 19.3 फीसदी बारिश दर्ज की जाती है।
कम बारिश और तापमान बढ़ने से घट रहा उत्पादनभारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने देश के 573 ग्रामीण जिलों में जलवायु परिवर्तन से भारतीय कृषि पर खतरे का आकलन किया है। इसमें कहा गया है कि 2020 से 2049 तक 256 जिलों में अधिकतम तापमान 1 से 1.3 डिग्री सेल्सियस और 157 जिलों में 1.3 से 1.6 डिग्री सेल्सियस बढ़ने की उम्मीद है। इससे गेहूं की खेती प्रभावित होगी। गौरतलब है कि पूरी दुनिया की खाद्य जरूरत का 21 फीसदी गेहूं भारत पूरी करता है। वहीं, 81 फीसदी गेहूं की खपत विकासशील देशों में होती है। इंटरनेशनल सेंटर फॉर मेज एंड वीट रिसर्च के प्रोग्राम निदेशक डॉ. पीके अग्रवाल के एक अध्ययन के मुताबिक तापमान एक डिग्री बढ़ने से भारत में गेहूं का उत्पादन 4 से 5 मीट्रिक टन तक घट सकता है। तापमान 3 से 5 डिग्री बढ़ने पर उत्पादन 19 से 27 मीट्रिक टन तक कम हो जाएगा। हालांकि बेहतर सिंचाई और उन्नत किस्मों के इस्तेमाल से इसमें कमी की जा सकती है।
दलहन और तिलहन पर मौसम की मारदलहन और तिलहन की फसलें भी जलवायु परिवर्तन से अछूती नहीं रही हैं। महाराष्ट्र और राजस्थान में चना और मसूर जैसी दलहन फसलों की उत्पादकता में कमी आई है, क्योंकि इन राज्यों में शीतकालीन वर्षा (रबी सीजन) अनियमित हो गई है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में 2021 में चने की उपज 2.4 मिलियन टन थी, जो 2023 में घटकर 2 मिलियन टन रह गई। इसी तरह, तिलहन फसलों जैसे सरसों और मूंगफली की पैदावार भी प्रभावित हुई है, क्योंकि तापमान में वृद्धि और वर्षा पैटर्न में असमानता ने उनके उत्पादन को कम कर दिया है।
देश में शुष्क क्षेत्रों में कपास और गन्ने की खेती भी जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को महसूस कर रही है। कपास उत्पादन, जो मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गुजरात और तेलंगाना में होता है, हाल के वर्षों में कीट प्रकोप और असमान वर्षा के कारण प्रभावित हुआ है। महाराष्ट्र में, 2019 में कपास उत्पादन 8.2 मिलियन गांठ था, जो 2022 में घटकर 7.5 मिलियन गांठ रह गया। दूसरी ओर, गन्ना, जो अत्यधिक जल की खपत करता है, वर्षा की कमी के कारण संकट में है। महाराष्ट्र और कर्नाटक में गन्ने की खेती के लिए जल उपलब्धता में कमी आई है, जिससे चीनी उत्पादन भी प्रभावित हुआ है।
दुनिया के आधे से अधिक गेहूं उत्पादन पर पड़ेगा असर
हार्वर्ड विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक गेहूं पूरी दुनिया की 20 फीसदी खाद्य जरूरत पूरी करता है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जलवायु परिवर्तन के चलते सदी के अंत तक दुनिया का आधा से अधिक गेहूं उत्पादन प्रभावित हो सकता है। यह रिपोर्ट साइंस एडवांस पत्रिका में प्रकाशित हुई है। वर्ष के उस समय सूखे की स्थिति का अध्ययन करने के लिए एक मॉडल बनाया गया जब गेहूं उगाया जाता है, फिर 27 जलवायु मॉडल से सिमुलेशन कर विश्लेषण किया गया। परिणाम बताते हैं कि अगर जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए तत्काल कदम नहीं उठाए गए, तो ग्लोबल वार्मिंग दुनिया के 60% गेहूं उगाने वाले क्षेत्रों में बड़े सूखे का कारण बन सकती है।
मौजूदा सूखे की स्थिति 15% गेहूं उत्पादन को प्रभावित करती है। यहां तक कि अगर पेरिस समझौते के अनुरूप पूर्व-औद्योगिक (प्री-इंडस्ट्रियल) स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस ऊपर तापमान स्थिर करने का लक्ष्य हासिल किया जाता है, तो भी अगले 20 से 50 वर्षों में पानी की गंभीर कमी के मामले लगभग दोगुने हो जाएंगे। रिसर्च यह भी बताती है कि विकासशील देश, अफ्रीका और पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशिया के निम्न-आय वाले क्षेत्रों में गेहूं उत्पादन पर सबसे अधिक असर होगा। इन देशों में दुनिया की अधिकांश कुपोषित और गेहूं खाने वाली आबादी रहती है।
भारत के 30 फीसदी भूभाग में उपजाऊ मिट्टी का क्षरणभारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) दिल्ली के 2024 के एक अध्ययन के अनुसार, भारत के 30% भूभाग में उपजाऊ मिट्टी का क्षरण हो रहा है। यही नहीं, 3% क्षेत्र में तो यह क्षरण बहुत तेजी से हो रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो भारत प्रति वर्ष प्रति हेक्टेयर 20 टन से अधिक उपजाऊ मिट्टी खो देता है। असम की ब्रह्मपुत्र घाटी और ओडिशा में मिट्टी का क्षरण सबसे तेजी से हो रहा है। शिवालिक और हिमालय के आसपास के क्षेत्र भी उपजाऊ मिट्टी के नुकसान से गंभीर रूप से प्रभावित हैं।
किसानों का दस अरब डॉलर का नुकसान
कृषि पर जलवायु परिवर्तन का आर्थिक प्रभाव भी चिंताजनक है। भारतीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार, 2015 से 2022 के बीच जलवायु परिवर्तन के कारण भारतीय किसानों को लगभग 10 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। सूखा, बाढ़ और असामान्य तापमान के कारण फसल उत्पादन में गिरावट आई, जिससे किसानों की आय में भी कमी आई। छोटे और सीमांत किसान इस बदलाव से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं, क्योंकि उनके पास जलवायु जोखिमों से निपटने के लिए आवश्यक संसाधन नहीं हैं।
इसके अलावा, मानसून की अनियमितता से ग्रामीण रोजगार पर भी असर पड़ा है। ग्रामीण भारत में कृषि ही मुख्य रोजगार का साधन है, और जब फसलें प्रभावित होती हैं, तो किसानों को मजबूरन अन्य कामों की तलाश करनी पड़ती है। नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) की रिपोर्ट के अनुसार, 2017 से 2022 के बीच लगभग 15 लाख किसान खेती छोड़कर अन्य क्षेत्रों में काम करने लगे, जिनमें से अधिकांश ने मजदूरी या अन्य अस्थायी नौकरियों का सहारा लिया।
तेलंगाना सुरंग हादसे में बचाव अभियान तेज, रविवार को बरामद हुआ था गुरप्रीत सिंह का शव; पत्नी ने पंजाब सरकार से मांगी मदद
पीटीआई, नगरकुरनूल। तेलंगाना सुरंग हादसे में जान गंवाने वाले गुरप्रीत सिंह के पार्थिव शरीर को पंजाब में उनके पैतृक स्थान भेज दिया गया है। सुरंग में फंसे सात अन्य लोगों का पता लगाने के लिए सोमवार को 17वें दिन भी बचाव अभियान जारी रहा। रविवार को तलाशी अभियान के दौरान टनेल बोरिंग मशीन (टीबीएम) ऑपरेटर गुरप्रीत का शव बरामद किया गया था।
गुरप्रीत रॉबिन्स कंपनी के लिए टीबीएम ऑपरेटर के रूप में काम करते थे। 22 फरवरी को सुरंग के आंशिक रूप से ढहने के बाद अंदर फंसे आठ लोगों में गुरप्रीत भी थे। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि नगरकुरनूल के सरकारी अस्पताल में पोस्टमार्टम और अन्य प्रक्रियाओं के बाद शव को एक विशेष एम्बुलेंस में पंजाब में उनके पैतृक स्थान ले जाया गया।
गाद के नीचे दबा था शव- मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी ने उनके परिवार को 25 लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 48 घंटे से अधिक समय तक बहुत सावधानी से खोदाई और अन्य प्रयासों के बाद शव को निकाला जा सका। करीब 10 फीट की गहराई पर गाद के नीचे शव दबा हुआ था।
- गुरप्रीत सिंह की पहचान उसके बाएं कान की बाली और दाहिने हाथ पर टैटू के आधार पर की गई। अधिकारी ने बताया कि शेष श्रमिकों की तलाश जारी है। गुरप्रीत के अलावा फंसे हुए सात अन्य लोगों में मनोज कुमार (यूपी), सनी सिंह (जम्मू-कश्मीर), और संदीप साहू, जेगता जेस तथा अनुज साहू शामिल हैं जो सभी झारखंड के हैं।
- गौरतलब है कि श्रीशैलम लेफ्ट बैंक कैनाल (एसएलबीसी) परियोजना की सुरंग का एक हिस्सा 22 फरवरी को ढह जाने के बाद इंजीनियर और मजदूर सहित आठ लोग उसमें फंस गए थे। एनडीआरएफ, भारतीय सेना, नौसेना और अन्य एजेंसियों के विशेषज्ञ उन्हें सुरक्षित बाहर निकालने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं।
गुरप्रीत सिंह के परिवार में उनकी पत्नी और दो बेटियां हैं। पत्नी ने पंजाब सरकार से मुआवजा और सहायता की मांग की है, क्योंकि गुरप्रीत ही परिवार का एकमात्र कमाने वाला था। उनकी पत्नी ने अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए सरकारी नौकरी का अनुरोध किया है।
उन्होंने कहा, 'सरकार से मेरा अनुरोध है कि या तो मेरी बेटियों को या मुझे सरकारी नौकरी दी जाए ताकि मैं अपने बच्चों की देखभाल कर सकूं।' गुरप्रीत के चाचा कुलवंत सfxह ने इस बात पर निराशा जताई है कि पंजाब सरकार का कोई भी प्रतिनिधि उनके घर संवेदना या समर्थन देने नहीं आया।
यह भी पढ़ें: बिहार के सुभाष शर्मा को तेलंगाना में मिली मौत की सजा, गुनाह जानकार कांप उठेगा कलेजा
असम के पास होगा अपना सैटेलाइट, ISRO से चल रही बात; हिमंत बिस्वा सरमा ने किया एलान
पीटीआई, गुवाहाटी। असम सरकार ने कहा है कि उसका अपना उपग्रह होगा। इससे सीमा पर निगरानी रखने के अलावा महत्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए आंकड़े एकत्र करने में मदद मिलेगी।
असम की वित्त मंत्री अजंता नियोग ने 2025-26 के लिए राज्य का बजट पेश करते हुए यह घोषणा की। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने बाद में दावा किया कि असम देश का पहला राज्य होगा जिसके पास अपना उपग्रह होगा।
इसरो की ली जाएगी मददवित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा कि केंद्र सरकार के अंतरिक्ष विभाग के सहयोग से हम महत्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए डेटा का निरंतर, विश्वसनीय प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए अपना स्वयं का उपग्रह 'असमसैट' स्थापित करना चाहते हैं।
मुख्यमंत्री ने बाद में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि यदि हमारे पास अपना उपग्रह होगा तो यह हमें बता सकेगा कि क्या कोई विदेशी अवैध रूप से प्रवेश करने का प्रयास कर रहा है।
सरमा ने कहा कि यह आने वाली बाढ़ के बारे में पूर्व सूचना दे सकेगा। मौसम संबंधी रिपोर्ट में मदद कर सकेगा। इससे हमारे किसानों को लाभ होगा।
D-St indices give up gains to end in red on weak global cues
Rupee loses nearly 50 Paise in a day, closes at 87.33
रेलवे सुरक्षा पर हर साल खर्च हो रहे 1.14 लाख करोड़, अश्विनी वैष्णव बोले- दुर्घटनाओं पर राजनीति न करे विपक्ष
पीटीआई, नई दिल्ली। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सोमवार को कहा कि सरकार रेलवे में सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही है। रेलवे सुरक्षा पर प्रतिवर्ष 1.14 लाख करोड़ रुपये खर्च कर रहा है।
राज्य सभा में रेलवे संशोधन विधेयक 2024 पर चर्चा का जवाब देते हुए मंत्री ने कहा कि वार्षिक रेल दुर्घटना दर 171 घटनाओं से घटकर 30 हो गई है। रेलवे संशोधन विधेयक 2024 को राज्यसभा में ध्वनिमत से मंजूरी दे दी गई। यह विधेयक पिछले साल 11 दिसंबर को लोकसभा में पारित किया गया था। रेलवे संशोधन विधेयक, 2024 में रेलवे बोर्ड की स्वतंत्रता को बढ़ाने और कामकाज बेहतर करने का प्रविधान है।
रेलवे संशोधन विधेयक पर दिया जवाबरेल मंत्री ने कहा, 'संप्रग सरकार में सुरक्षा बढ़ाने के लिए निवेश आठ हजार से 10 हजार करोड़ रुपये के बीच हुआ करता था। आज हम सुरक्षा बढ़ाने पर हर साल 1.14 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पटरियों, सुरक्षा उपकरणों और लेवल क्रासिंग को बेहतर बनाने के लिए कदम उठाए गए हैं।'
उन्होंने कहा कि संप्रग के कार्यकाल में 4.11 लाख नौकरियां दी गईं, राजग सरकार में 5.02 लाख नौकरियां दी गई हैं। उन्होंने कहा, अब महाप्रबंधकों के पास अनुबंध स्वीकार करने का 100 प्रतिशत अधिकार है, चाहे निविदा राशि 10 करोड़ रुपये हो या 1,000 करोड़ रुपये। महाप्रबंधकों को 50 करोड़ रुपये से कम की परियोजनाओं को मंजूरी देने का अधिकार भी दिया गया है। वैष्णव ने विपक्ष की इस आशंका को खारिज कर दिया कि रेलवे संशोधन विधेयक राज्य सरकारों की शक्ति कम करेगा।
विपक्ष को दी राजनीति न करने की नसीहत- रेल मंत्री ने कुंभ के दौरान नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ जैसी रेल दुर्घटनाओं को लेकर राजनीति नहीं करने की नसीहत देते हुए कहा कि रेल मंत्रालय ने इस घटना से सीख लेते हुए तमाम उपाय किए हैं जिनमें देश के प्रमुख स्टेशनों पर भीड़ को नियंत्रित करने के लिए प्रतीक्षा क्षेत्र बनाना शामिल है।
- वैष्णव ने कहा कि इस मामले की जांच चल रही है। उल्लेखनीय है कि 15 फरवरी को नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ में 18 लोगों की मौत हो गई थी। विपक्षी सदस्यों ने सरकार पर रेलवे संशोधन विधेयक, 2024 के जरिये रेलवे बोर्ड पर नियंत्रण करने की कोशिश करने का आरोप लगाया और कहा कि वह संसदीय समिति की जांच से बच रही है।
- कांग्रेस सदस्य विवेक के. तन्खा ने आरोप लगाया कि प्रस्तावित कानून के तहत रेलवे बोर्ड की स्वतंत्रता खत्म हो गई है। उन्होंने रेलवे बोर्ड को स्वायत्तता दिए जाने की मांग की। तृणमूल कांग्रेस के प्रकाश बराइक ने कहा कि विधेयक को संसद की प्रवर समिति के पास भेजा जाना चाहिए।
यह भी पढ़ें: भीड़ से बचने के लिए देश के 60 रेलवे स्टेशनों पर नई व्यवस्था, कंफर्म टिकट पर ही मिलेगा प्रवेश
अदालती कार्यवाही के क्लिप अपलोड करना पड़ेगा महंगा, SC के जज बोले- गाइडलाइन बनानी पड़ेगी
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई ने कानूनी कार्यवाही की संपादित क्लिप्स को इंटरनेट मीडिया पर प्रसारित करने की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को अदालतों की लाइव स्ट्रीमिंग के लिए दिशानिर्देश बनाने पड़ सकते है।
न्यायपालिका के भीतर प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल विषय पर केन्या में एक कार्यक्रम के दौरान जस्टिस गवई ने कहा कि अदालती कार्यवाही के क्लिप्स को संदर्भ से बाहर संपादित कर इंटरनेट मीडिया पर साझा किया जाता है, जिससे कार्यवाही सनसनीखेज बन जाती है।
कई क्रिएटर अपलोड कर रहे वीडियोउन्होंने कहा कि इस प्रकार की क्लिप्स से गलत सूचना, न्यायिक चर्चाओं की गलत व्याख्या और गलत रिपोर्टिंग हो सकती है। उन्होंने कहा कि यूट्यूबर्स सहित कई कंटेंट क्रिएटर ने सुनवाई के छोटे अंशों को अपने कंटेंट के रूप में पुन: अपलोड किया, जिससे बौद्धिक संपदा अधिकारों और न्यायिक रिकॉर्डिंग के स्वामित्व पर चिंताएं पैदा हुईं।
जस्टिस गवई ने कहा कि ऐसी चुनौतियों का प्रबंधन न्यायपालिका के लिए एक उभरता हुआ मुद्दा है और अदालतों को लाइव-स्ट्रीम की गई कार्यवाही के उपयोग पर दिशानिर्देश तय करने पड़ सकते हैं। न्यायाधीश ने कहा कि यद्यपि प्रौद्योगिकी की वजह से न्यायिक कार्यवाहियों तक पहुंच में उल्लेखनीय सुधार हुआ है लेकिन इसने कई नैतिक चिंताओं को भी जन्म दिया है।
जस्टिस गवई ने कहा कि दुनिया भर की अदालतें कार्यकुशलता में सुधार लाने, निर्णय लेने की क्षमता बढ़ाने तथा न्याय तक पहुंच को बढ़ावा देने के लिए प्रौद्योगिकी को तेजी से एकीकृत कर रही हैं। न्यायाधीश ने कानूनी अनुसंधान में एआई के उपयोग से जुड़े महत्वपूर्ण जोखिमों को भी रेखांकित किया।
यह भी पढ़ें: 'सरकारी नौकरी के पद कम, कैंडिडेट ज्यादा', सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी; इस मामले में हाईकोर्ट का आदेश पलटा
कांग्रेस नेताओं के संपर्क में थी रान्या राव? भाजपा ने राज्य सरकार पर लगाए गंभीर आरोप
पीटीआई, बेंगलुरु। कन्नड़ फिल्मों की अभिनेत्री रान्या राव की सोना तस्करी मामले में कथित संलिप्तता को लेकर कर्नाटक में राजनीतिक राजनीतिक घमासान शुरू हो गया है। सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी भाजपा एक दूसरे पर पक्षपात और मामले को दबाने का आरोप लगा रही है। भाजपा ने रान्या को बचाने में प्रभावशाली मंत्री की संलिप्तता का आरोप लगाया है, जबकि कांग्रेस ने कहा कि भाजपा जब सत्ता में थी तो उसने स्टील फैक्ट्री के लिए रान्या को 12 एकड़ जमीन आवंटित की थी।
रान्या को तीन मार्च को सोने की तस्करी करते हुए बेंगलुरु अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर उस समय गिरफ्तार किया गया था जब वह दुबई से बेंगलुरु पहुंची थी। उसके पास से जब्त सोने की कीमत लगभग 12.56 करोड़ रुपये है। रान्या कर्नाटक के डीजीपी रैंक के अधिकारी रामचंद्र राव की सौतेली बेटी है। रामचंद्र कर्नाटक राज्य पुलिस आवास और बुनियादी ढांचा विकास निगम लिमिटेड के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक हैं।
भाजपा ने लगाया आरोप- प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बीवाई. विजयेंद्र ने एक्स पर पोस्ट किया, हाल के दिनों में सबसे बड़ी सोने की तस्करी में सिद्दरमैया सरकार के प्रमुख मंत्री की संलिप्तता को लेकर मीडिया में आई खबरों पर आश्चर्य की बात नहीं है! सरकारी प्रोटोकॉल का घोर उल्लंघन, जिसके कारण रान्या को सोने की तस्करी में सफलता मिली। सरकार के भीतर प्रभावशाली व्यक्तियों के प्रत्यक्ष समर्थन के बिना यह संभव नहीं हो सकता।
- विधानसभा में भी उठा मुद्दा कर्नाटक विधानसभा में भी सोमवार को यह मामला उठाया गया। भाजपा विधायक सुनील कुमार ने शून्यकाल के दौरान सोना तस्करी मामले और इसमें कर्नाटक के मंत्रियों की कथित संलिप्तता की खबरों पर सवाल उठाए।
- इसके जवाब में राज्य के गृह मंत्री जी. परमेश्वर ने कहा कि कर्नाटक सरकार को रान्या से जुड़े सोना तस्करी मामले की कोई जानकारी नहीं है क्योंकि मामले की जांच कर रहे राजस्व खुफिया निदेशालय और सीबीआई से सरकार का कोई संपर्क नहीं हुआ है।
- मंत्री ने कहा कि अभिनेत्री के सौतेले पिता डीजीपी रैंक के अधिकारी हैं। आरोप हैं कि उन्होंने रान्या की मदद की और पुलिस ने भी उसकी मदद की। सीबीआई जांच कर रही है। विपक्ष के नेता आर. अशोक ने भी पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाया।
आईएएनएस ने सूत्रों के हवाले से बताया कि डीआरआई ने अदालत को बताया कि पता चला है कि 12.56 करोड़ रुपये मूल्य का सोना तस्करी किया गया है। रान्या सोना तस्करी रैकेट के सरगनाओं में से एक है। जांच की जा रही है कि रान्या ने सोने की तस्करी में पुलिस प्रोटोकॉल का दुरुपयोग कैसे किया। सुनवाई के बाद विशेष अदालत ने रान्या को 24 मार्च तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया है।
रान्या तीन दिनों से डीआरआई की हिरासत में थी। सूत्रों ने बताया कि डीआरआई के अधिकारियों को वर्तमान और पूर्व मंत्रियों के नंबर मिले हैं और वह प्रभावशाली लोगों के संपर्क में थी। उसके मोबाइल में शीर्ष स्तर के अधिकारियों के नंबर भी मिले हैं। अधिकारियों ने रान्या का लैपटॉप भी जब्त कर लिया है।
एक और आरोपित गिरफ्तार राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) ने रान्या से जुड़े सोना तस्करी मामले में होटल कारोबारी के बेटे तरुण राजू को गिरफ्तार किया है। आरोपी तरुण को सोमवार को आर्थिक अपराध न्यायालय में पेश किया गया। अदालत ने उसे पांच दिनों के लिए डीआरआइ की हिरासत में भेज दिया। पता चला है कि तरुण रान्या का दोस्त है। तरुण पर रान्या राव के साथ कई बार दुबई जाने का भी आरोप है।
यह भी पढ़ें: 'मैं सदमे में हूं', कोर्ट में रो पड़ी अभिनेत्री रान्या राव; 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा गया
'कैदियों के पास मुचलका भरने के पैसे नहीं', संसद में पेश रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे
पीटीआई, नई दिल्ली। संसद की एक समिति ने यह पाया है कि देशभर की जेलों में बंद 70 प्रतिशत कैदी विचाराधीन हैं और मुचलका नहीं भरने या जुर्माना राशि अदा न कर पाने के कारण उन्हें रिहा नहीं किया जा रहा है।
गृह मामलों पर संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ड्रग्स का पता लगाने के लिए जेलों के प्रत्येक प्रवेश द्वार पर निगरानी प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाना चाहिए। राज्यसभा में प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि जेल प्रशासन ऐसे कैदियों को जेलों में रखने पर, उनकी रिहाई के लिए आवश्यक जमानत राशि से कहीं अधिक धन खर्च कर रहा है।
राज्यों से कोष बनाने की अपीलरिपोर्ट में कहा गया है कि गरीब कैदियों के लिए जुर्माना राशि के भुगतान के लिए आंध्र प्रदेश जेल विभाग द्वारा की गई पहल की तर्ज पर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एक कोष बनाया जाना चाहिए।
समिति ने कहा कि जेलों में ड्रग्स की तस्करी की चुनौतियों से निपटने के लिए भी प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाना चाहिए। इसने कहा कि जेल कर्मियों को इस समस्या से निपटने के लिए प्रौद्योगिकी की मदद लेने की आवश्यकता है।
जेलकर्मियों पर भी लगे आरोप- समिति ने पाया कि जेल के अंदर मोबाइल फोन आदि का इस्तेमाल कैदियों द्वारा जेल के बाहर आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने के लिए किया जाता है। कैदियों के पास मोबाइल फोन होने से जेल के अंदर गिरोहों के बीच झड़पें भी हो सकती हैं।
- समिति ने पाया कि जेल कर्मी कैदियों को प्रतिबंधित वस्तुएं जेल के अंदर पहुंचाने में मदद कर रहे हैं। इसने सिफारिश की कि जेलों में तलाशी के मानकों को बढ़ाया जाना चाहिए।
यह भी पढ़ें: चम्मचों और लोहे के पाइपों से खूनी खेल, पटियाला सेंट्रल जेल में कैदियों के बीच ये क्या हुआ?
Realtors unlock sops, freebies to lure buyers
Pages
