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Waqf Law: 'सैकड़ों साल पुरानी मस्जिदों...' सिब्बल-सिंघवी की दलीलों पर क्या बोले CJI? पढ़ें सुनवाई डे-1 में क्या-क्या हुआ
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। वक्फ कानून (Waqf Law) के खिलाफ दायर याचिकाओं पर आज (16 अप्रैल) सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। देश के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच इस मामले पर सुनवाई कर रही है। बता दें कि वक्फ कानून के खिलाफ करीब 70 याचिकाओं पर अदालत सुनवाई कर रही है।
एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी, वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, सहित अन्य याचिकाकर्ता के वकील कोर्ट में उपस्थित थे। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता पैरवी कर रहे हैं। कोर्ट अब अगली सुनवाई गुरुवार दोपहर 2 बजे करेगा।
वक्फ कानून के मामले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने क्या-क्या बड़ी बातें कही?सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने कहा, "केवल मुस्लिम ही बोर्ड का हिस्सा हो सकते थे। अब हिंदू भी इसका हिस्सा होंगे। यह अधिकारों का हनन है। आर्टिकल 26 कहता है कि सभी मेंबर्स मुस्लिम होंगे। यहां 22 में से 10 मुस्लिम हैं। अब कानून लागू होने के बाद से बिना वक्फ डीड के कोई वक्फ नहीं बनाया जा सकता है।
सिब्बल की इस टिप्पणी पर CJI जस्टिस खन्ना ने कहा,"इसमें क्या समस्या है? जस्टिस कुमार ने कहा, 'हमें उदाहरण दीजिए। क्या तिरुपति बोर्ड में भी गैर-हिंदू हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा," क्या वह मुसलमानों को हिंदू धार्मिक ट्रस्टों का हिस्सा बनने की अनुमति देने को तैयार है। हिंदुओं के दान कानून के मुताबिक, कोई भी बाहरी बोर्ड का हिस्सा नहीं हो सकता है। वक्फ प्रॉपर्टी है या नहीं है, इसका फैसला अदालत को क्यों नहीं करने देते।"
14वीं और 16वीं शताब्दी की मस्जिद कहां से दिखाएंगे दस्तावेज: कोर्टसुप्रीम कोर्ट ने वक्फ बाई यूजर के प्रावधान पर भी सवाल किया। CJI खन्ना ने कहा कि कई पुरानी मस्जिदें हैं। 14वीं और 16वीं शताब्दी की मस्जिदें है, जिनके पास रजिस्ट्रेशन सेल डीड नहीं होगी। सीजेआई ने केंद्र से पूछा कि ऐसी संपत्तियों को कैसे रजिस्टर किया जाएगा? उनके पास क्या दस्तावेज होंगे? ऐसे वक्फ को खारिज कर देने पर विवाद ज्यादा लंबा चलेगा।
हम यह जानते हैं कि पुराने कानून का कुछ गलत इस्तेमाल हुआ, लेकिन कुछ वास्तविक वक्फ संपत्तियां हैं, जिनकी इस्तेमाल के दौरान लंबे समय से वक्फ संपत्ति के तौर पर पहचान हुई। वक्फ बाई यूजर मान्य किया गया है, अगर आप इसे खत्म करते हैं तो समस्या होगी।
आर्टिकल 26 सभी धर्मों पर लागू होता है: कोर्ट
सुनवाई के दौरान जब कपिल सिब्बल ने आर्टिकल 26 यानी धर्मनिरपेक्ष की बात कही तो सीजेआई ने कहा कि आर्टिकल 26 धर्मनिरपेक्ष, यह सभी कम्युनिटी पर लागू होता है। हिंदुओं के मामले में भी सरकार ने कानून बनाया है। संसद ने मुस्लिमों के लिए भी कानून बनाया है। आर्टिकल 26 धर्मनिरपेक्ष है। यह सभी कम्युनिटी पर लागू होता है।
सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने कहा, हम उस प्रावधान को चुनौती देते हैं, जिसमें कहा गया है कि केवल मुसलमान ही वक्फ बना सकते हैं।
सरकार कैसे कह सकती है कि केवल वे लोग ही वक्फ बना सकते हैं जो पिछले 5 सालों से इस्लाम को मान रहे हैं? इतना ही नहीं राज्य कैसे तय कर सकता है कि मैं मुसलमान हूं या नहीं और इसलिए वक्फ बनाने के योग्य हूं?' वक्फ सैकड़ों साल पहले बनाया गया है। अब ये 300 साल पुरानी संपत्ति की वक्फ डीड मांगेंगे। यह एक परेशानी है।
सिब्बल की टिप्पणियों पर क्या बोले सॉलिसिटर जनरल?सिब्बल के इन सवालों पर केंद्र की ओर से SG तुषार मेहता ने कहा,"वक्फ का रजिस्ट्रेशन हमेशा अनिवार्य रहेगा। 1995 के कानून में भी ये जरूरी था। सिब्बल साहब कह रहे हैं कि मुतवल्ली को जेल जाना पड़ेगा। अगर वक्फ का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ तो वह जेल जाएगा। यह नियम 1995 से लागू है।
अदालत ने वक्फ बाई यूजर के प्रावधान पर भी सवाल किया। CJI खन्ना ने कहा कि कई पुरानी मस्जिदें हैं। 14वीं और 16वीं शताब्दी की मस्जिद है, जिनके पास रजिस्ट्रेशन सेल डीड नहीं होगी। सीजेआई ने केंद्र से पूछा कि ऐसी संपत्तियों को कैसे रजिस्टर करेंगे? उनके पास क्या दस्तावेज होंगे? ऐसे वक्फ को खारिज कर देने पर विवाद ज्यादा लंबा चलेगा।
सीजेआई ने आगे कहा,"हम यह जानते हैं कि पुराने कानून का कुछ गलत इस्तेमाल हुआ, लेकिन कुछ वास्तविक वक्फ संपत्तियां हैं, जिनकी इस्तेमाल के दौरान लंबे समय से वक्फ संपत्ति के तौर पर पहचान हुई। वक्फ बाई यूजर मान्य किया गया है, अगर आप इसे खत्म करते हैं तो समस्या होगी।"
यह भी पढ़ें: 'सरकार कैसे तय करेगी मैं मुस्लिम हूं या नहीं', वक्फ कानून के खिलाफ सिब्बल रख रहे SC में दलील
Bihar: 10वीं के फर्जी प्रमाण पत्र पर पास की BPSC परीक्षा, नौकरी मिलते ही अवैध संपत्ति बनाने में जुटे
राज्य ब्यूरो, पटना। भ्रष्टाचार के खिलाफ जारी लड़ाई में बुधवार को विशेष निगरानी इकाई (एसवीयू) ने सुपौल के तत्कालीन निलंबित अंचलाधिकारी (सीओ) प्रिंस राज के दो ठिकानों पर एक साथ छापा मारा। छापेमारी के दौरान इनके ठिकानों से अकूत चल-अचल संपत्ति बरामद की गई है। अपने छह वर्ष के सेवा काल में प्रिंस राज ने आय से करीब 93 प्रतिशत ज्यादा अवैध संपत्ति अर्जित की है।
यहीं नहीं छापामारी में यह प्रमाण भी मिले हैं कि इन्होंने फर्जी मैट्रिक परीक्षा प्रमाण पत्र बनवाया, चार साल उम्र घटाई और इसी के आधार पर बिहार लोक सेवा आयोग की परीक्षा तक पास की।
मधुबनी और शेखपुरा में एक साथ मारा छापाप्रिंस राज निलंबन के बाद फिलहाल कोसी प्रमंडल में प्रतिनियुक्ति पर हैं। इनके बारे में एसवीयू को प्रमाण मिले थे कि पद का दुरुपयोग कर इन्होंने अकूत संपत्ति अर्जित की है। जिसके बाद इनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति और भ्रष्टाचार का मामला दर्ज कर कोर्ट की अनुमति मिलने के बाद एसवीयू की टीम ने बुधवार की सुबह इनके मधुबनी और शेखपुरा के ठिकानों पर एक साथ छापा मारा।
छापेमारी में यह जानकारी मिली है कि इन्होंने विभिन्न पदस्थापन के दौरान काफी काली कमाई की। छापामारी में कई आवासीय मकान, फ्लैट, विभिन्न बैंकों में प्रिंस राज और उनकी पत्नी के नाम के बैंक खाते, फिक्स डिपाजिट में निवेश के प्रमाण के साथ ही लाखों रुपये के सोने-चांदी के जेवरात बरामद किए गए हैं।
आरोपित की पत्नी अंकु गुप्ता के नाम बैंक ऑफ इंडिया हजारीबाग में एक लाकर की जानकारी भी प्राप्त हुई है। अब तक की कार्रवाई में मिली संपत्ति इनकी वर्णित आय की तुलना में कई गुना अधिक है।
अब तक बरामद संपत्ति- प्रिंस राज का आवासीय घर, चंडी चौक, खिरहर, बेनीपट्टी, मधुबनी
- पत्नी अंकु गुप्ता का आवासीय परिसर, अरियरी, शेखपुरा बाजार
- आवासीय परिसर, दीपगढ़ा, सदर, हजारीबाग
- निर्माणाधीन आवासीय परिसर, रेलवे स्टेशन के पास मधुबनी
- विभिन्न बैंकों में प्रिंस राज और उनकी पत्नी के नाम के बैंक खाते
- फिक्स डिपाजिट में निवेश के प्रमाण व लाखों के सोने-चांदी के जेवरात
- हजारीबाग में पत्नी के नाम एक बैंक लाकर के प्रमाण भी मिले
विशेष निगरानी के अनुसार छापामारी के दौरान प्रिंस राज के बारे में यह जानकारी सामने आई कि इन्होने धर्मेद्र कुमार के नाम पर मैट्रिक की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में पास की थी। जिस वजह से यह आइटीआइ प्रवेश के लिए मान्य नहीं थे।
फिर आरोपित ने अपना प्रिंस राज के नाम से दूसरा फर्जी प्रमाण पत्र बनाया और इसका उपयोग कर बिहार लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास की। अभियुक्त ने जन्म तिथि में भी हेरफेर की और चार साल का लाभ भी लिया। जिसकी जांच अलग से होगी। विशेष निगरानी इकाई ने इन्हें एक भ्रष्ट अधिकारी बताया है।
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कैब ड्राइर ने बीच सड़क पर रोक दी कार... बेंगलुरु में आधी रात को युवती के साथ ये कैसी हरकत!
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश के कौन-कौन से शहर महिलाओं की सुरक्षा के लिहाज से ज्यादा संवेदनशील हैं, इस पर विस्तृत बहस की जा सकती है। लेकिन आए दिन सामने आ रहे मामलों ने कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में महिलाओं की सुरक्षा पर गंभीर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है।
ताजा मामला एक टेक फर्म में काम करने वाली युवती के साथ सामने आया है। दरअसल सोशल मीडिया साइट एक्स पर श्रविका जैन नामक युवती ने बेंगलुरु में देर रात अपने साथ हुआ वाकया शेयर किया है। इसके बाद से ही ये पोस्ट काफी वायरल हो गया।
तेज आवाज में बजा रहा था गानाश्रविका ने बताया कि 'लोग पूछते हैं कि क्या बेंगलुरु सुरक्षित है। पिछली रात मैं एयरपोर्ट से कैब कर अपने घर लौट रही थी। लेकिन ये मेरी जिंदगी का सबसे भयानक अनुभव था। ड्राइवर ने कैब ड्राइव करने के साथ ही मुझे घूरना शुरू कर दिया था।'
श्रविका ने लिखा, 'उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं कन्नड़ जानती हू्ं। इसके बाद उसने यूट्यूब पर काफी तेज आवाज में गाने बजाने शुरू कर दिए। वह अपनी जांघों को थपथपाते हुए चिल्ला-चिल्लाकर गा रहा था।'
कैब में सिगरेट पीने लगा ड्राइवर- श्रविका ने कहा कि 'जब मैंने उससे आवाज धीमी करने को कहा, तो उसने मुझे घूरा और बिल्कुल हल्की सी आवाज कम की। उसने कैब के अंदर ही सिगरेट पीना शुरू कर दिया और मेरे मना करने पर भी नहीं माना। उसने अचानक कार बीच में ही रोक दी और कहा कि मुझे चाय पीनी है।'
- युवती ने कहा कि जब मैंने पहले घर छोड़ने के लिए कहा, तो भी वह तुरंत कार से नीचे उतर गया और 10 मिनट बाद लौटा। इसके बाद भी वह रास्ते भर मुझे घूरता रहा। मैं काफी डर गई थी, लेकिन शुक्र है कि मैं घर पहुंच गई।
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Waqf Law: 'मैंने तो सुना है कि संसद भी...', कोर्टरूम में सिंघवी ने दलील देते हुए मजाकिया अंदाज में ये क्या कह दिया ?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। वक्फ कानून (Waqf Law) के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में आज (16 अप्रैल) सुनवाई हुई। कोर्ट में तकरीबन दो घंटे से ज्यादा समय तक इस मामले पर बहस चली।
देश के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच इस मामले पर सुनवाई कर रही है। वक्फ कानून के खिलाफ करीब 70 याचिकाओं पर अदालत सुनवाई कर रही है। कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे वरिष्ठ वकीलों ने नए कानून को लेकर कोर्ट में सवाल खड़े किए।
आइए पढ़ें कि कोर्टरूम में सिंघवी ने नए कानून के खिलाफ क्या-क्या दलीलें दी?अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट में दलील दी कि देशभर में 8 लाख वक्फ संपत्तियां हैं, जिनमें से आधी यानी 4 लाख से अधिक प्रॉपर्टी ‘वक्फ बाई यूजर’ के तौर पर रजिस्ट्रर है। सिंघवी ने आगे दलील दी और इस बात को लेकर चिंता जताई कि वक्फ अधिनियम में किए गए संशोधन के बाद इन संपत्तियों पर खतरा उत्पन्न हो गया है।
क्या है 'वक्फ बाई यूजर' का मतलब?यह वह परंपरा है जिसमें कोई संपत्ति लंबे समय तक इस्लामिक धार्मिक या परोपकारी उद्देश्यों के लिए प्रयुक्त होने के कारण वक्फ मानी जाती है, भले ही उसके पास लिखित दस्तावेज या रजिस्ट्री न हो।
वक्फ संशोधन को लागू नहीं किया जाना चाहिए: सिंघवीसुप्रीम कोर्ट में बहस के दौरान सिंघवी ने मजाकिया अंदाज में कहा कि उन्हें यह तक सुनने में आया है कि संसद भवन की जमीन भी वक्फ की है। उन्होंने कोर्ट से पूछा कि क्या अयोध्या केस में जो फैसले लिए गए, वे इस मामले में लागू नहीं होते? उन्होंने संशोधित वक्फ अधिनियम पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की और कहा कि जब तक इस पर अंतिम निर्णय नहीं आता, तब तक संशोधन लागू नहीं किया जाना चाहिए।
अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा,"यह केस इसका नहीं कि किस-किस याचिका को हाईकोर्ट भेजा जाए। नए कानून के प्रावधान तत्काल की प्रभावी हो गए हैं। इन पर स्टे लगाया जाना चाहिए।"
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Bihar: स्थानीय निकायों के तहत नियुक्त शिक्षकों का मामला, पटना HC ने नीतीश सरकार से मांगा जवाब
विधि संवाददाता, पटना। पटना हाई कोर्ट (Patna High Court) ने स्थानीय निकायों के तहत नियुक्त शिक्षकों से संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार (Bihar Government) को तीन सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।
साथ ही, कोर्ट ने सरकार से यह भी सुनिश्चित करने को भी कहा है कि जिला स्तर पर शिक्षकों की नियुक्ति उनके योगदान के अनुपात में की जाए। न्यायाधीश नानी तागिया की एकलपीठ ने कुमार गौरव और अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए उक्त आदेश दिया।
2012 की नियमावाली के तहत हुई थी नियुक्तियाचिकाकर्ताओं की ओर से वरीय अधिवक्ता आशीष गिरी और अधिवक्ता सुमित कुमार झा ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता शिक्षक हैं जिन्हें बिहार पंचायती प्रारंभिक शिक्षक (नियुक्ति एवं सेवा शर्तें) नियमावली, 2012 के अंतर्गत नियुक्त किया गया था।
वर्ष 2023 में राज्य सरकार ने बिहार स्कूल एक्सक्लूसिव शिक्षक नियमावली, 2023 लागू की, जिसका उद्देश्य स्थानीय निकायों के शिक्षकों को राज्य स्तरीय सेवा शर्तों के अनुरूप लाना था। नए नियमों के तहत इन शिक्षकों को “एक्सक्लूसिव शिक्षक” का दर्जा देने से पहले एक दक्षता परीक्षा उत्तीर्ण करना आवश्यक किया गया।
बिहार विद्यालय परीक्षा समिति, पटना द्वारा 25 जनवरी 2024 को विज्ञापन जारी कर शिक्षकों को इस दक्षता परीक्षा में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। सभी याचिकाकर्ताओं ने नियत समय पर आवेदन जमा कर अपनी पसंद के जिलों का विकल्प भी प्रस्तुत किया।
फरवरी 2024 में आयोजित परीक्षा में सभी याचिकाकर्ता सफल घोषित हुए और उसके बाद दस्तावेज सत्यापन व परामर्श (काउंसलिंग) की प्रक्रिया पूर्ण की गई। 20 नवंबर 2024 को अधिकांश याचिकाकर्ताओं को उनके वरीयता व योग्यता के आधार पर अस्थायी नियुक्ति पत्र जारी किए गए, जिसमें स्पष्ट उल्लेख था कि नियुक्ति बिहार स्कूल एक्सक्लूसिव शिक्षक नियमावली, 2023 के तहत की गई है।
रद हो गए नियुक्ति पत्रहालांकि, इसके पश्चात राज्य सरकार द्वारा उक्त नियमावली में संशोधन किया गया और संशोधित नियमों के तहत पूर्व में जारी नियुक्ति पत्र रद कर दिए गए। याचिकाकर्ताओं को पुनः उनके पूर्व कार्यस्थलों पर योगदान करने का निर्देश दिया गया।
याचिकाकर्ताओं की ओर से तर्क दिया गया कि नियुक्ति प्रक्रिया नियमों के उस प्रारूप के अंतर्गत पूरी की गई थी, जो नियुक्ति के समय प्रभावी था। ऐसे में संशोधित नियमों को पूर्वव्यापी प्रभाव देना उनके वैधानिक और अर्जित अधिकारों का उल्लंघन होगा।
कोर्ट ने मामले की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार से स्पष्ट स्थिति प्रस्तुत करने को कहा है और निर्देश दिया है कि नियुक्तियों में पारदर्शिता बनाए रखते हुए जिला वार योगदान के आधार पर सीटों का आरक्षण सुनिश्चित किया जाए। इस मामले पर तीन सप्ताह बाद सुनवाई होगी।
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Waqf Act: 'आप अतीत को दोबारा नहीं लिख सकते', सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून पर बहस के दौरान बोले चीफ जस्टिस
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। संसदों के दोनों सदनों से पारित होने और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद अस्तित्व में आए वक्फ कानून पर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में कानून के विरोध में जारी प्रदर्शन ने हिंसक रूप ले लिया। उधर सुप्रीम कोर्ट में कानून के खिलाफ 70 से अधिक याचिकाएं दाखिल की गई हैं।
आज सुनवाई के दौरान अदालत में करीब 2 घंटे तक बहस चली। CJI संजीव खन्ना और जस्टिस पीवी संजय कुमार, जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र से कई मुद्दों पर स्पष्टीकरण मांगा।
आइए आपको बताते हैं अदालत में सुनवाई की 5 बड़ी बातें:- चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने वकील अभिषेक मनु सिंघवी से कहा कि हमें बताया गया है कि दिल्ली हाई कोर्ट भी वक्फ की जमीन पर बना है। हम ये नहीं कह रहे हैं कि सभी वक्फ बाय यूजर गलत है, लेकिन ये वास्तविक चिंता है।
- जस्टिस खन्ना ने कहा कि किसी पब्लिक ट्र्स्ट को 100 या 200 साल पहले वक्फ घोषित किया गया और आप अचानक कहते हैं कि इसे वक्फ बोर्ड द्वारा अपने अधीन कर लिया गया है। आप अतीत को दोबारा नहीं लिख सकते हैं।
- पीठ ने कहा कि एक्ट के अनुसार 8 मेंबर मुस्लिम और 2 नॉन मुस्लिम हो सकते हैं। क्या आप यह कह रहे हैं कि अब से आप मुसलमानों को हिंदू बंदोबस्ती बोर्ड का हिस्सा बनने की अनुमति देंगे।
- नॉन मुस्लिमों को बोर्ड का हिस्सा बनाने की टिप्पणी पर सॉलिसिट जनरल तुषार मेहता ने जवाब देते हुए कहा कि फिर तो यह पीठ भी याचिका नहीं सुन सकती। इस पर सीजेआई ने कहा कि जब हम यहां बैठते हैं, तो धर्म नहीं देखते। आप इसकी तुलना जजों से कैसे कर सकते हैं?
- तुषार मेहता ने दलील देते हुए कहा कि यह कानून बनाने का मामला है। इसके लिए जेपीसी बनी थी। इसकी 38 बैठकें हुईं। इसने कई क्षेत्रों का दौरा किया। 98 लाख से अधिक ज्ञापनों की जांच की। फिर यह दोनों सदनों में गया और फिर बिल पारित किया गया।
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Profile of BR Gavai: जस्टिस बीआर गवई होंगे देश अगले CJI, मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने भेजी सरकार को सिफारिश
एएनआई, नई दिल्ली। भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने औपचारिक रूप से न्यायमूर्ति बी.आर. गवई Justice gavai, को अपना उत्तराधिकारी बनाने का प्रस्ताव दिया है। नियुक्ति प्रक्रिया के तहत यह सिफारिश विधि मंत्रालय को भेजी गई है।
न्यायमूर्ति गवई वर्तमान में सीजेआई खन्ना के बाद सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं। उम्मीद जताई जा रही है कि वो देश के 52वें मुख्य न्यायधीश होंगे। वो 14 मई को CJI के रूप में शपथ लेंगे।
परंपरा के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा चीफ जस्टिस ही अपने उत्तराधिकारी का नाम सरकार को भेजते हैं। इस बार भी यही प्रक्रिया अपनाई गई है। कानून मंत्रायल ने औपचारिक तौर पर जस्टिस खन्ना से उनके उत्तराधिकारी का नाम पूछा था, जिसके जवाब में उन्होंने जस्टिस गवई का नाम आगे बढ़ाया।
कौन हैं जस्टिस गवई?जस्टिस गवई को 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया था। उनका जन्म 24 नवंबर को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। वे दिवंगत आर.एस. गवई के बेटे हैं, जो बिहार और केरल के राज्यपाल रह चुके हैं।
बॉम्बे हाईकोर्ट में एडिशनल जज के रूप में उन्होंने 14 नवंबर 2003 को अपनी न्यायिक करियर की शुरुआत की थी। बतौर जज वो मुंबई, नागपुर, औरंगाबाद और पणजी के विभिन्न पीठों पर काम कर चुके हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इन अहम फैसलों का हिस्सा थे गवई- आर्टिकल 370 हटाए जाने वाले फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं की जिन पांच मेंबर वाली संवैधानिक बेंच सुनवाई कर रही थी, उनमें जस्टिस गवई भी थे।
- राजनीतिक फंडिंग के लिए लाई गई इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को खारिज करने वाली बेंच का भी गवई हिस्सा थे।
- नोटबंदी के खिलाफ दायर अर्जियों पर सुनवाई करने वाले बेंच में भी वो शामिल थे।
भारत की तकनीक ताकत एआई में खोलेगी आत्मनिर्भरता का रास्ता, अमेरिका-चीन के बीच बन रहा संतुलन
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। अमेरिका के एआई डिफ्यूजन नियम ने दुनिया भर में चल रही एआई जंग में एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। एआई में खुद की बादशाहत साबित करने को लेकर आतुर देशों की तकनीक को आत्मनिर्भरता पर एक बड़ा कुठाराघात माना जा रहा है। अमेरिका ने तकनीकी प्रभुत्व को बनाए रखने, चीन को सीमित करने और अपने सहयोगियों को सावधानीपूर्वक AI तकनीक उपलब्ध कराने के लिए लागू किया है। यह सिर्फ एक तकनीकी नियंत्रण नहीं, बल्कि नए शीतयुद्ध का हिस्सा है जहां हथियार चिप्स, मॉडल्स और डेटा हैं। दरअसल इस विवाद की शुरुआत दो दशक पहले शुरू हो चुकी थी। 2010 के दशक में चीन ने मेड इन चाइना 2025" नीति की घोषणा की। इस नीति का लक्ष्य उच्च तकनीक वाले क्षेत्रों (जैसे एआई, 5G, रोबोटिक्स) में आत्मनिर्भरता हासिल करना था। चीन की कंपनियों, जैसे हुआवेई, एसएमआईसी, और सेंसटाइम ने वैश्विक एआई मार्केट में प्रभाव बढ़ाना शुरू किया। अमेरिका को आशंका हुई कि ये टेक्नोलॉजीज न केवल आर्थिक, बल्कि सैन्य क्षमताओं को भी बढ़ा सकती हैं। अक्टूबर 2022 में यूएस ब्यूरो ऑफ इंडस्ट्री एंड सिक्योरिटी (बीआईएस) ने एआई और हाई-परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग के लिए इस्तेमाल होने वाले उन्नत जीपीयू चिप्स की चीन को बिक्री पर पाबंदी लगाई। अमेरिका की चीन पर तकनीक नकेल कसने की ये पहली शुरुआत थी।
विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत की टियर-2 स्थिति उसे एक सुरक्षा कवच देती है। वह अमेरिका के साथ मिलकर धीरे-धीरे आत्मनिर्भरता की दिशा में बढ़ सकता है। लेकिन अगर वह तेजी से चिप निर्माण व मॉडल डेवलपमेंट में निवेश नहीं करता, तो वह पीछे छूट सकता है। वहीं चीन पहले से ही अमेरिका से अलग होकर पूरी आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। इसका रास्ता तेज है लेकिन अलगाव, मानकों से भिन्नता, और सीमित प्रदर्शन की चुनौतियां बनी हुई हैं। भारत की गति भले ही धीमी हो, लेकिन वह वैश्विक एआई इकोसिस्टम में जुड़ा रहेगा। चीन तेजी से आत्मनिर्भर बन सकता है, लेकिन अलगाव और सीमित प्रतिस्पर्धा उसके लिए खतरा बन सकती है।
डेटा सेंटर्स बनाने में हो सकती है देरी
दीपक शर्मा कहते हैं कि अमेरिका का एआई डिफ्यूजन नियम भारत और चीन दोनों देशों की एआई तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा को प्रभावित करता है। वह बताते हैं कि भारत को टियर-2 देश के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिससे उसे सीमित रूप से उन्नत एआई चिप्स और बंद AI मॉडल वेट्स तक पहुंच मिलती है, वह भी केवल लाइसेंस और सुरक्षा अनुपालन के तहत। यह भारत की स्थिति को अमेरिका के रणनीतिक साझेदार के रूप में दिखाता है, हालांकि जापान और दक्षिण कोरिया जैसे टियर-1 सहयोगियों की स्थिति इससे अलग है।
भारत के लिए एआई इन्फ्रास्ट्रक्चर को बड़े पैमाने पर विकसित करने में बाधा आ सकती है क्योंकि चिप आयात की एक सीमा तय कर दी गई है। इससे रिलायंस जैसी भारतीय तकनीकी कंपनियों या बेंगलुरु की एआई स्टार्टअप्स को डेटा सेंटर्स बनाने में देरी हो सकती है। लेकिन इसका एक सकारात्मक पक्ष यह है कि यह नियम भारत को घरेलू एआई क्षमताओं को मजबूत करने के लिए भी प्रेरित करेगा। इंडिया AI मिशन जैसे कार्यक्रम लोकल चिप डिजाइन और ओपन-सोर्स AI मॉडल पर ध्यान दे रहे हैं।
भारत अपनी क्वाड और इंडो-पैसिफिक रणनीति के अंतर्गत अमेरिका से सहयोग करते हुए कुछ छूट प्राप्त करने की दिशा में प्रयास कर सकता है, जिससे चिप्स की निर्भरता कम हो। हालांकि, भारत के पास अभी एक परिपक्व सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन इकोसिस्टम नहीं है। इसकी पहली फैब यूनिट 2026 के अंत तक शुरू होगी। तब तक टीएसएमसी और अमेरिकी सप्लायर्स पर निर्भरता बनी रहेगी। इस स्थिति में यह नियम भारत को आत्मनिर्भरता की दिशा में प्रेरित करता है, लेकिन हार्डवेयर अंतराल के कारण इसकी राह लंबी होगी।
चीन का सॉफ्टवेयर इकोसिस्टम अमेरिका व पश्चिमी देशों के मुकाबले कम परिपक्व
दीपक शर्मा कहते हैं कि चीन को टियर-3 (आर्म्स एम्बार्गो) देश के रूप में रखा गया है, जहां उसे उन्नत AI चिप्स और बंद मॉडल वेट्स तक पहुंच के लिए लगभग सभी लाइसेंस नकार दिए जाते हैं। यह अमेरिका की रणनीति के अनुरूप है कि चीन की एआई आधारित सैन्य और आर्थिक शक्ति को सीमित किया जाए।
चीन को अत्याधुनिक जीपीयू और फ्रंटियर मॉडल्स तक पहुंच में बड़ी रुकावट का सामना करना पड़ रहा है। इससे वह बड़े पैमाने पर एआई मॉडल ट्रेन नहीं कर पा रहा है। हालांकि, हुआवेई, एसएमआईसी, और बाइरन टेक्नोलॉजी जैसी कंपनियां घरेलू हार्डवेयर के विकास में लगी हैं। यह नियम उन्हें और तेजी से आत्मनिर्भर बनने को मजबूर करता है। चीन संभवतः ओपन-सोर्स मॉडल्स या थर्ड पार्टी देशों के ज़रिए चिप्स की स्मगलिंग कर लूपहोल का लाभ उठा सकता है, लेकिन ये विधियां स्थायी और भरोसेमंद नहीं हैं। इसके कारण चीन को अपने ही प्लेटफॉर्म्स जैसे पैडलपैडल और हॉर्मोनी ओएस पर निर्भर रहना पड़ता है। चीन का दृष्टिकोण, विशाल शोध और अनुसंधान बजट, और वर्टिकल इंटीग्रेशन उसे तेजी से आत्मनिर्भरता की दिशा में ले जाते हैं। हालांकि, इसके चिप्स अभी भी प्रदर्शन में पीछे हैं, और सॉफ्टवेयर इकोसिस्टम अमेरिका व पश्चिमी देशों के मुकाबले कम परिपक्व हैं।
तक्षशिला फाउंडेशन के रिसर्च एनालिस्ट अश्विन प्रसाद कहते हैं कि अमेरिका के दृष्टिकोण से देखें तो यह नियम मुख्य रूप से चीन को लक्षित करता है, जबकि भारत को लेकर वह अपेक्षाकृत उदासीन है। अमेरिका का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि चीन उन्नत एआई मॉडल्स और कंप्यूटर संसाधनों तक पहुंच न बना सके, और इसलिए उसे टायर-3 में रखा गया है जो सबसे प्रतिबंधित श्रेणी है।
भारत के मामले में, अमेरिका यह समझता है कि भारत अभी वैश्विक AI सप्लाई चेन में कोई अपूरणीय भूमिका नहीं निभा रहा है। इसी वजह से अमेरिका ने भारत को टायर-1 में शामिल करने की आवश्यकता नहीं समझी।
यह सच है कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में रणनीतिक साझेदारी और हाल के वर्षों में भारत-अमेरिका के बीच तकनीकी सहयोग में वृद्धि हुई है, लेकिन इसके बावजूद भारत की मौजूदा एआई तकनीकी क्षमताएं इतनी मजबूत नहीं हैं कि अमेरिका उसे टायर-1 में प्रमोट करे।
अमेरिका की नीति चीन के खिलाफ प्रतिबंध और नियंत्रण की है, जबकि भारत के प्रति उसका रवैया नरम लेकिन सीमित भरोसे वाला है — जो भारत की तकनीकी आत्मनिर्भरता की वर्तमान स्थिति को दर्शाता है। यदि भारत को टायर-1 का दर्जा पाना है, तो उसे एआई चिप्स, मॉडल डेवलपमेंट और कंप्यूटर इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में तेजी से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना होगा।
भारत को टियर-2 में रखने से IndiaAI मिशन पर असरभारत की AI और तकनीकी आत्मनिर्भरता एक रणनीतिक आवश्यकता भी है और अवसर भी। यदि भारत कंप्यूटर-निर्भरता को कम करते हुए, वैश्विक साझेदारियों का लाभ उठाए, और नवाचार को प्रोत्साहित करे, तो वह अगले दशक में वैश्विक AI नेतृत्व की दौड़ में मजबूत स्थिति में आ सकता है। एक्सपर्ट मानते हैं कि स्टार्टअप फंडिंग, टैक्स बेनिफिट्स, इनोवेशन हब जैसी योजनाओं ने तकनीकी प्रतिभाओं को भारत लौटने के लिए प्रेरित किया है। वहीं स्किल इंडिया और एनईपी जैसे कार्यक्रम भारत को AI इनोवेशन के लिए दीर्घकालिक पूंजी प्रदान करते हैं।
अश्विन प्रसाद कहते हैं कि एआई डिफ्यूजन नियमों के तहत, प्रत्येक अधिकृत भारतीय इकाई 2025 में 1,00,000 GPU तक खरीद सकती है, और आने वाले वर्षों में यह सीमा और बढ़ सकती है। इसलिए, ये नियम "IndiaAI" के 18,000+ GPU आधारित कंप्यूटर इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के लक्ष्य को सीधे प्रभावित नहीं करते।
हालांकि, यह भारत की तकनीकी ताकत या आत्मनिर्भरता में कोई ठोस योगदान नहीं करता। कुछ वर्षों में ये जीपीयू पुराने हो सकते हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या भारत सरकार फिर से इन्हें आयात करने पर निर्भर रहेगी? और अगर भविष्य में एआई डिफ्यूजन नियम और सख्त हो गए तो क्या होगा?
एआई जैसी तकनीक में पूरी तरह आत्मनिर्भर बनना संभव नहीं है, क्योंकि इसकी सप्लाई चेन वैश्विक है। भारत को ऐसे क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करनी चाहिए, जिसमें उसकी मौजूदगी इतनी अहम हो जाए कि अगर अमेरिका भविष्य में कोई और निर्यात नियंत्रण नीति बनाए, तो वह भारत को नजरअंदाज न कर सके।
एआई फ्रंटियर में रह सकता है पीछेदीपक शर्मा कहते हैं कि IndiaAI मिशन के तहत 10,000-30,000 GPU की व्यवस्था की जानी है। NVIDIA H100 जैसे हाई-एंड चिप्स पर पाबंदी से गुजरात स्थित योट्टा जैसे डेटा सेंटर प्रभावित हो सकते हैं, जिससे हेल्थकेयर, एग्रीकल्चर जैसे सेक्टर्स में बड़े AI मॉडल ट्रेन करना मुश्किल होगा। 24 मार्च 2025 की चर्चाओं में सामने आया कि वैश्विक चिप संकट और अमेरिकी नियंत्रण पहले से ही भारत के आईटी सेक्टर को प्रभावित कर रहे हैं। पर्याप्त जीपीयू नहीं मिले तो भारत फ्रंटियर एआई में पीछे रह सकता है।
इनोवेशन और स्टार्टअप पर पड़ सकता है असरदीपक शर्मा बताते हैं कि सीमित चिप एक्सेस के कारण बड़े मॉडल पर आधारित समाधान (जैसे भाषाई जनरेटिव एआई, स्मार्ट कृषि समाधान) धीमे पड़ सकते हैं। उन्नत मॉडल पर ट्रेनिंग में बाधा आ सकती है। हार्डवेयर की कमी के चलते स्टार्टअप्स वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पिछड़ सकते हैं। गवर्नेंस पर असर नहीं, लेकिन आयात निर्भरता पर नीति बनानी पड़ेगी।
भारत को क्या करना चाहिए?घरेलू चिप निर्माण को गति देना
दीपक शर्मा कहते हैं कि टाटा की गुजरात फैब (2026-27 तक शुरू), CDAC के वेगा चिप जैसे स्वदेशी प्रयास करने होंगे। इससे लंबे अंतराल में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी। हालांकि इसमें 3 से 5 साल का समय और भारी निवेश लगेगा। वहीं वैकल्पिक चिप आपूर्तिकर्ता खोजना भी आवश्यक है जैसे कि जापान की कियोक्सिया, ताइवान की मीडिया टेक, चीन की हुआवेई एसेंड। इसके अलावा क्षेत्रीय गठजोड़ को भी मजबूत करना होगा। जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे टियर-1 देशों से मॉडल सह-विकास, GPU साझेदारी बढ़ानी होगी।
ओपन-सोर्स AI मॉडल को अपनानाLlama 3.1, BhashaAI जैसे मॉडल अपनाने होंगे। स्टार्टअप्स को कम कंप्यूटर में मॉडल ऑप्टिमाइज़ करने के लिए फंडिंग देनी होगी। अमेरिकी पाबंदियों से बचते हुए नवाचार संभव करने होंगे। सॉफ्टवेयर में भारत की ताकत से तत्काल लाभ होगा।
वैलिडेटेड एंड-यूज़र स्टेटस पानारिलायंस, इंफोसिस जैसी कंपनियां इस स्टेटस से 2 साल में 3.2 लाख GPU तक पा सकती हैं। अमेरिका के नियमों के अंदर रहते हुए चिप्स की पहुंच संभव हो सकेगी।
कंप्यूटर एफिशिएंसी को प्राथमिकता देनादीपक शर्मा मानते हैं कि मॉडल प्रूनिंग, क्वांटाइज़ेशन, फेडरेटेड लर्निंग जैसी तकनीकें अपनाना होगी। इससे कम GPU में बेहतर आउटपुट, ऊर्जा की बचत, टिकाऊ एआई संभव हो सकेगी। 10,000 AI प्रोफेशनल्स को ट्रेन करने का लक्ष्य रखना होगा। भारतीय भाषाओं में डेटा सेट तैयार करना होगा।
एआई में आत्मनिर्भर बनने के लिए चीन से लेना होगा सबकभारत की महत्वाकांक्षा है कि वह एआई में आत्मनिर्भर बने, जो अमेरिकी एआई डिफ्यूजन नियमों के तहत "टियर 2" दर्जे से प्रभावित है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत, चीन जैसे "टियर 3" देश से बहुत कुछ सीख सकता है। इस बारे में दीपक शर्मा कहते हैं कि 2019 के अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद, चीन ने तेजी से एआई हार्डवेयर और मॉडलों में आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाए। हालांकि भारत का लोकतांत्रिक ढांचा, आर्थिक सीमाएं और वैश्विक गठजोड़ अलग हैं, फिर भी चीन की रणनीतियां "IndiaAI Mission" के लिए व्यावहारिक सबक प्रदान करती हैं। भारत और चीन के बीच सहयोग की संभावना है, लेकिन भूराजनीतिक जटिलताओं के चलते वह सीमित है।
एआई चिप्स कर सकते हैं आयातअश्विन प्रसाद कहते हैं कि एआई डिफ्यूजन नियमों के तहत, भारतीय स्टार्टअप्स और उद्योग अपने लिए आवश्यक एआई चिप्स का आयात कर सकते हैं। इसमें कुछ नौकरशाही प्रक्रियाएं जरूर हैं, लेकिन पहले की तुलना में अब ये नियम अधिक स्पष्ट और व्यवस्थित हैं। पहले ये नियम मनमाने तरीके से लागू होते थे।
हालांकि, इन नियमों में एक सख्त सीमा तय है कि कोई भी भारतीय कंपनी कितनी एआई चिप्स खरीद सकती है, लेकिन यह सीमा इतनी ऊंची है कि निकट भविष्य में कोई भी भारतीय डेटा सेंटर उस सीमा तक नहीं पहुंचेगा। फिर भी, यह एक स्पष्ट संकेत है कि जब तक भारत के पास अपनी तकनीकी शक्ति नहीं होगी, तब तक कोई भी विदेशी देश भारत की तकनीकी पहुंच को नियंत्रित कर सकता है। यह रचनात्मक असुरक्षा ही भारत में तकनीकी शक्ति को विकसित करने की नीति और सोच को प्रेरित करेगी।
तकनीकी शक्ति का अर्थ केवल आत्मनिर्भरता नहीं है। इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि भारत किसी भी माध्यम से व्यापार, कूटनीति या साझेदारी के जरिए वह तकनीक प्राप्त कर सके जो उसे चाहिए।
चीन से सीखी जा सकने वाली प्रमुख बातें
1. हार्डवेयर में सरकारी निवेश
चीन का तरीका:
दीपक शर्मा बताते हैं कि चीन ने हर साल लगभग 400 अरब डॉलर R&D में निवेश कर एसएमआईसी और हुआवेई जैसी कंपनियों को आगे बढ़ाया। 'मेड इन चाइना 2025' जैसी योजनाओं ने हार्डवेयर से लेकर सॉफ्टवेयर तक संपूर्ण आपूर्ति श्रृंखला को प्राथमिकता दी।
भारत के लिए सबक:₹2,000 करोड़ के "IndiaAI कंप्यूटर बजट" को और बढ़ाना होगा। टाटा का गुजरात फैब (2026-27) और सी-डैक की "वेगा" चिप को तेजी से आगे बढ़ाना चाहिए। भारत के निजी क्षेत्र आधारित मॉडल को सरकार-निजी साझेदारी के रूप में मज़बूत करना होगा।
2. घरेलू AI इकोसिस्टम का निर्माणचीन का तरीका:
पैडलपैडल हॉरमोनीओएस और डीपसीक जैसे टूल्स ने चीन को टेंसरफ्लो, CUDA जैसे पश्चिमी प्लेटफॉर्म से कम निर्भर बनाया।
भारत के लिए सबक:BhashaAI जैसे प्लेटफॉर्म को एग्रीटेक, हेल्थटेक जैसे स्थानीय क्षेत्रों के लिए विकसित किया जा सकता है। भारत की वैश्विक सॉफ्टवेयर साख चीन से बेहतर है, जो विदेशी भागीदारों को आकर्षित कर सकती है।
3. प्रतिभा प्रतिधारण और अनुसंधान पर ध्यानचीन का तरीका:
हर साल 4.7 मिलियन स्टेम ग्रेजुएट्स तैयार कर, सरकार ने उन्हें स्थानीय कंपनियों से जोड़ा।
भारत के लिए सबक:IndiaAI द्वारा 10,000 विशेषज्ञ तैयार करने का लक्ष्य तभी सफल होगा जब स्टार्टअप अनुदान, टैक्स में छूट और प्रोत्साहन योजनाएं शुरू की जाएं ताकि टैलेंट देश में रहे।
4. संसाधनों का रचनात्मक उपयोगचीन का तरीका:
तीसरे देशों के जरिए चिप्स की ट्रांसशिपमेंट, ओपन-सोर्स टूल्स का उपयोग आदि तरीकों से चीन ने अमेरिकी प्रतिबंधों को मात देने की कोशिश की।
भारत के लिए सबक:"टियर 2" होने के नाते भारत 320,000 GPU तक वैध रूप से उपयोग कर सकता है। चीन की तरह हाइब्रिड क्लाउड और रीजनल कंप्यूटर शेयरिंग जैसे मॉडल अपनाए जा सकते हैं।
रणनीतिक सिफारिशें
हाइब्रिड आत्मनिर्भरता:
दीपक शर्मा कहते हैं कि भारत को चीन जैसे हार्डवेयर निवेश और भारत की सॉफ्टवेयर ताकत को मिलाकर काम करना चाहिए। ₹5,000 करोड़ अतिरिक्त बजट फेब्स और लोकल फ्रेमवर्क्स पर लगाया जाए।
ऑस्ट्रेलिया के साथ भागीदारी बढ़ाना अहमअश्विन प्रसाद कहते हैं कि चीन ने शिक्षा और शोध अवसंरचना जैसे बुनियादी तत्वों पर ध्यान केंद्रित करके अपनी घरेलू क्षमताएं विकसित की हैं। पिछले कुछ दशकों में, चीन ने अपने देश में एक ऐसा अनुसंधान और नवाचार इकोसिस्टम तैयार किया है, जिससे डीपसीक जैसे बड़े भाषा मॉडल विकसित किए जा सके।
चीन अब भी एआई में पूर्ण आत्मनिर्भरता से दूर है, लेकिन उसने अमेरिका के निर्यात नियंत्रण के बावजूद एक ऐसा इकोसिस्टम खड़ा कर लिया है जिससे वह नवाचार कर पा रहा है और आगे बढ़ भी रहा है। अगर भारत भविष्य में तकनीकी प्रगति की दौड़ में पीछे नहीं रहना चाहता, तो उसे भी ऐसा इकोसिस्टम तैयार करना होगा।
जहां तक सहयोग की बात है, सवाल यह है कि क्या मौजूदा आर्थिक प्रतिस्पर्धा के माहौल में दोनों देश सचमुच मिलकर काम करना चाहते हैं? एक ओर चीन भारत की टेक्नोलॉजी मैन्युफैक्चरिंग में प्रगति को रोकने के प्रयास कर रहा है, तो दूसरी ओर भारत सरकार भी चीनी निवेशों को हतोत्साहित कर रही है।
भारत के लिए ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ सहयोग करना ज्यादा लाभकारी हो सकता है, जिनकी एआई क्षमताएं भारत के समान स्तर पर हैं और जिनके साथ भू-राजनीतिक संबंध भी अनुकूल हैं।
वैश्विक गठजोड़
अमेरिका, जापान, ताइवान जैसे देशों के साथ प्राथमिकता में साझेदारी रखी जाए। दीपक शर्मा कहते हैं कि BRICS जैसे मंचों पर चीन से सीमित सहयोग किया जा सकता है जैसे ओपन-सोर्स मॉडल पर ज्ञान साझा करना। टाटा का फेब प्रोजेक्ट और 10,000 GPU लक्ष्य को तेजी से पूरा करने के लिए पीएलआई स्कीम को और मजबूत किया जाए।
अमेरिका और चीन के बीच अधिक अलगाव देखने को मिलेगाअश्विन प्रसाद का कहना है कि निर्यात नियंत्रण और रणनीतिक प्रतिस्पर्धा के कारण अमेरिका और चीन के बीच अधिक डिकप्लिंग (अलगाव) देखने को मिलेगा। इसका असर यह होगा कि दोनों देशों में तकनीक से जुड़े मानक, नियम और उसके संचालन के तरीके भी अलग हो जाएंगे। यह देखना बाकी है कि अन्य देश अमेरिका या चीन में से किसके साथ गठबंधन करना पसंद करेंगे। लेकिन भारी आर्थिक प्रभावों को देखते हुए, कुछ हद तक झुकाव के बावजूद, देश एआई में भारी निवेश करते रहेंगे और जहां तक संभव हो पूर्ण निर्भरता से बचने की कोशिश करेंगे। यह बात भारत के लिए भी उतनी ही प्रासंगिक है, क्योंकि भारत रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखना चाहता है।
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