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बेंगलुरु में मार्च में ही बढ़ रहे सनबर्न के मामले, क्या है इसके पीछे का कारण और कैसे किया जा सकता इससे बचाव?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अपने ठंडे मौसम के लिए जाना जाने वाला शहर बेंगलुरु इन दिनों कड़ी तेज धूप की मार झेल रहा है। शहर में तेज धूप की वजह से लोगों में सनबर्न के मामले देखे जा रहे हैं। लोग तेज गर्मी और धूप से परेशान नजर आ रहे हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, शहर में कथित तौर पर सनबर्न की घटनाओं में वृद्धि देखी जा रही है। बेंगलुरु में सनबर्न आमतौर पर अप्रैल के महीने में दिखाई देते थे, लेकिन इस बार मार्च में ही मामले सामने आने लगे हैं।
डॉक्टर ने क्या दी सलाह?
अपोलो क्लिनिक की डॉ. सफिया तनीम ने बताया कि हर हफ्ते 10 सनबर्न और 20 सन एलर्जी के मामले सामने आ रहे हैं। उन्होंने कहा, "जब UV किरणें त्वचा पर पड़ती है, तो वे रिएक्टव ऑक्सीजन स्पीशीज के नाम से जाने जाने वाले इनफ्लेमेटरी को सक्रिय करती हैं। इससे जलन, सूजन और कई मामलों में चकत्ते हो जाते हैं।"
उन्होंने कहा, आम तौर पर सनबर्न के मामले अप्रैल और मई में सबसे ज्यादा होते हैं, लेकिन इस साल हमने देखा कि मामले फरवरी में ही सामने आ रहे हैं। सनबर्न जल्दी शुरू हो गए इसके पीछे ग्लोबल वॉर्मिंग और बढ़ता तापमान कारण हो सकते हैं। वायु प्रदूषण भी एक कारण है, जिससे त्वचा की जलन बढ़ रही है।
एस्टर सीएमआई अस्पताल की डॉ. शिरीन फर्टाडो के अनुसार, ऐसे मामलों में 50% की वृद्धि हुई है। सनबर्न और सन एलर्जी के दैनिक मामले एक या दो से बढ़कर पांच हो गए हैं, और आगे भी इसमें वृद्धि की उम्मीद है।
सनबर्न: क्या करें और क्या न करें
- ब्रॉड-स्पेक्ट्रम सनस्क्रीन लगाएं और डॉक्टर की सलाह के अनुसार हर दो घंटे में दोबारा लगाएं
- अतिरिक्त सुरक्षा के लिए चौड़े किनारे वाली टोपी, UV-सुरक्षात्मक धूप का चश्मा और धूप से सुरक्षित कपड़े पहनें
- प्रतिदिन 2-3 लीटर पानी पीकर और इलेक्ट्रोलाइट्स का सेवन करके हाइड्रेटेड रहें
- जल-संतुलन बनाए रखने के लिए तरबूज, खीरा और संतरे जैसे पानी से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन करें
- पूरे दिन ठंडा और आरामदायक रहने के लिए सांस लेने योग्य सूती कपड़े पहनें
- बादल वाले दिनों में सनस्क्रीन लगाना न भूलें
- गीले कपड़ों में बहुत देर तक न रहें
- कान, गर्दन, पैर और हाथों के पीछे सनस्क्रीन लगाएं
Patna News: मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ED का बड़ा एक्शन, दो सहकारी समितियों के खिलाफ दाखिल की चार्जशीट
राज्य ब्यूरो, पटना। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मनी लाॉड्रिंग (धन शोधन) मामले में एक व्यक्ति और दो सहकारी समितियों के खिलाफ पटना के विशेष न्यायालय में अभियोजन शिकायत दायर की है। कोर्ट से मांग की गई है कि संबंधित व्यक्ति और दो सहकारी समितियों को दोषी ठहराया जाए और शिकायत का संज्ञान लिया जाए।
इनके खिलाफ दर्ज शिकायत पर शुरू की जांचED ने बिहार पुलिस द्वारा विभिन्न धाराओं के तहत मेसर्स महुआ जॉइंट लायबिलिटी ग्रुप डेवलपमेंट को-ऑपरेटिव सोसायटी और महुआ डेयरी डेवलपमेंट एवं प्रोसेसिंग सेल्फ-सपोर्टिंग को-ऑपरेटिव सोसाइटी के साथ ही जवाहर लाल शाह नामक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज शिकायत के आधार पर अपनी जांच शुरू की थी।
निवेश का लालच देकर पैसे हड़पने का आरोप- दोनों दो सहकारी समितियों पर आरोप है कि इन्होंने अन्य आरोपितों के साथ मिलकर आम जनता से निवेश कराते हुए उच्च रिटर्न का लालच देकर भारी मात्रा में धन हड़प लिया है।
- जांच में यह बात सामने आई कि सहकारी समितियां परिपक्वता पर सुनिश्चित रिटर्न का भुगतान करने में विफल रहीं और इन्होंने अपने कार्यालय तक बंद कर दिए।
इस मामले में ईडी ने इस वर्ष सात जनवरी को बिहार, बंगाल, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में आरोपितों के पांच स्थानों पर छापेमारी की, जहां से अपराध संकेती दस्तावेज और डिजिटल डिवाइस बरामद किए गए।
इसके बाद 20 जनवरी को जवाहर शाह को गिरफ्तार कर लिया गया। इस मामले में 1.41 करोड़ रुपये की हेराफेरी की गई है। इस मामले में आगे की जांच जारी है, जिसमें कई और नाम सामने आ सकते हैं।
हाजीपुर : जंदाहा के निजी नर्सिंग अस्पताल में छापा, मिली कई गड़बड़ियांएसडीएम महुआ और सिविल सर्जन तथा प्रभारी पदाधिकारी, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, जंदाहा द्वारा शुक्रवार को जंदाहा प्रखंड अंतर्गत चल रहे कई निजी नर्सिंग होम का औचक निरीक्षण किया है।
निरीक्षण के क्रम में कई गड़बड़ियां पाई गई तथा देखा गया कि ये निजी नर्सिंग होम स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन द्वारा स्थापित मानकों का उल्लंघन कर रहे हैं।
निरीक्षण में पाया गया की रिसर्च चाइल्ड केयर क्लिनिक निजी मकान में संचालित है। निरीक्षण के समय सभी कर्मी फरार पाए गए। बिना निबंधन के अवैध रूप से चल रहे इस नर्सिंग होम को सील करते हुए प्राथमिकी की गई।
इसी तरह नवजीवन केयर, मां शोभा हास्पिटल, हैप्पी लाइफ इमरजेंसी हास्पिटल को सील करते हुए प्राथमिकी की गई।
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जलवायु परिवर्तन के चलते तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर, भविष्य में बढ़ेगा विनाशकारी बाढ़ का खतरा
नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ी गर्मी से ग्लेशियर्स को काफी नुकसान पहुंचा है। पश्चिमी हिमालय में सुत्री ढाका ग्लेशियर पर जून 2024 में बर्फ की गहराई में 50% से अधिक की गिरावट आई। राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (एनसीपीओआर) के वैज्ञानिकों की ओर किए गए अध्ययन में इसे बड़ी चिंता बताया गया। वहीं एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि हिमायल की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट के ऊपरी हिस्से में हिम आवरण 150 मीटर तक घट गया है। से 2024-2025 में सर्दियों के मौसम के दौरान बर्फ जमने में आई कमी का संकेत है। सेटेलाइट से प्राप्त तस्वीरों के जरिए किए गए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने तेजी से घटते ग्लेशियरों को लेकर चिंता जताई है। वैज्ञानिकों का मानना है कि आने वाले समय में ग्लेशियरों के पिघलने में तेजी आ सकती है। ऐसे में भविष्य में विनाशकारी बाढ़ का खतरा बढ़ेगा। वहीं हिमालय के बर्फ भंडारों पर निर्भर जल संसाधन और पारिस्थितिकी तंत्र पर असर पड़ सकता है।
ग्लेशियरों के पिघलने के कारण ग्लेशियल झीलों में अधिक पानी जमा कर सकता है और ग्लेशियल झील के फटने से बाढ़ (जीएलओएफ) से संबंधित खतरों का जोखिम काफी हद तक बढ़ा सकता है। एनसीपीओआर के वरिष्ठ वैज्ञानिक परमानंद शर्मा, जो हिमालयी हिमनद अध्ययन में विशेषज्ञ हैं, कहते हैं कि ग्लेशियरों के पिघलने से डाउनस्ट्रीम जल उपलब्धता पर भी गंभीर प्रभाव पड़ेगा और समुद्र का स्तर बढ़ेगा। ग्लेशियरों के लगातार गर्म होने और तेजी से पिघलने के कारण, हिमालयी क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों में ग्लेशियरों का क्षेत्र और मात्रा तेजी से कम हो रही है। बर्फ और ग्लेशियर क्षेत्रों में ये बदलाव कई बारहमासी नदियों के जल बजट पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं जो भारत के प्रमुख आबादी वाले क्षेत्र की आजीविका के लिए महत्वपूर्ण हैं।"
अमेरिका स्थित निकोल्स कॉलेज में पर्यावरण विज्ञान के प्रोफेसर और ग्लेशियर का अध्ययन करने वाले ग्लेशियोलॉजिस्ट मौरी पेल्टो ने अपने इस अध्ययन में बताया है कि अक्तूबर 2023 से जनवरी 2025 की शुरुआत तक नासा के सेटेलाइट से प्राप्त चित्रों का विश्लेषण करने पर पाया गया है कि 2024 और 2025 में माउंट एवरेस्ट पर तेजी से बर्फ कम होती देखी गई। दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर माउंट एवरेस्ट पर बर्फ में कमी ये दर्शाती हे कि जलवायु खतरनाक स्तर पर गर्म होता जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक तापमान इतना बढ़ गया है कि बर्फ गल पर पानी नहीं बन रही बल्कि सीधे वाष्प में परिवर्तित हो जा रही है। ऐसे में बर्फ के सीधे वाष्प में बदलने से प्रतिदिन 2.5 मिमी बर्फ तक का नुकसान हो रहा है। दिसंबर 2024 में नेपाल में सामान्य से 20-25 फीसदी अधिक बारिश हुई, जबकि पहले मौसम काफी गर्म बना रहा। जनवरी 2025 में लगातार गर्म परिस्थितियां बनी रहीं, जिससे दिसंबर की शुरुआत से फरवरी 2025 की शुरुआत तक तेजी से बर्फ गलने से ऊंची हिम रेखाएं दिखनें लगीं।
जीबी पंत नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन इंवायरमेंट के पूर्व वैज्ञानिक डॉक्टर जेसी कुनियाल कहते हैं कि बढ़ते जलवायु परिवर्तन के कारण जंगलों में आग के मामले बढ़े हैं। इससे हवा में ब्लैक कार्बन का स्तर बढ़ा है। ये ब्लैक कार्बन हवा के साथ ग्लेशियर तक पहुंच रहा है। ब्लैक कार्बन ग्लेशियर की सतह पर जमा हो कर उसका तापमान तेजी से बढ़ा देता है। इससे भी ग्लेशियरों की गलने की गति में इजाफा हुआ है। वहीं पहाड़ों पर बढ़ती गाड़ियां भी ब्लैक कार्बन के उत्सर्जन का एक बड़ा कारण हैं।
एक दशक मे 2 मिलीमीटर घटी बर्फबारी
नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर और इसरो के वैज्ञानिकों के रिसर्च गेट में छपे एक अध्ययन के मुताबकि हिमालय पर्वतमाला के दो अलग-अलग भौगोलिक स्थानों, नुब्रा और भागीरथी घाटियों पर तीस वर्षों (1991-2020) के बर्फबारी के आंकड़ों पर नजर डालने पर पता चलता है कि 1991 से 2020 के बीच नुब्रा बासिन में बर्फबारी में हर 10 साल में 2 मिलीमीटर की कमी दर्ज की गई है। ये घाटियाँ काराकोरम और महान हिमालय पर्वतमाला के अंतर्गत आती हैं। जलवायु परिवर्तन के चलते दोनो घाटियों में बर्फबारी में तो कमी आई है लेकिन बारिश बढ़ी है। अध्ययन में पाया गया कि पिछले तीन दशकों में दिसंबर के महीने में काफी उतार चढ़ाव देखा गया है। डीआरडीओ के वैज्ञानिक एम. आर. भूटियानी ने अपने एक शोध में अगले 120 सालों में उत्तर-पश्चिमी हिमालय में अधिकतम तापमान 3 डिग्री तक बढ़ने की संभावना जताई है। तापमान में इस वृद्धि से पहाड़ों की जलवायु में बदलाव आएगा। ऐसे में आने वाले समय में बर्फबारी में और कमी देखी जा सकती है।
हिमांचल में लगातार घट रही बर्फबारी
हिमाचल प्रदेश के राज्य जलवायु परिवर्तन केंद्र (HIMCOSTE), (GHCAG), और अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (SAC-ISRO) की ओर से तैयार की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है पिछले एक दशक में, हिमाचल प्रदेश में बर्फबारी की अनियमित, असंगत और घटती प्रवृत्ति देखी जा रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण बर्फबारी और वर्षा के पैटर्न में भी बदलाव आया है। रिपोर्ट के मुताबिक 2021-22 की तुलना में 2022-2023 की सर्दियों में हिमाचल प्रदेश में बर्फ से ढके कुल क्षेत्र में लगभग 14.05% की कमी देखी गई है। वहीं हिमांचल प्रदेश का औसत अधिकतम और न्यूनतम तापमान लगातार बढ़ रहा है। रिपोर्ट के वैज्ञानिकों ने कहा है कि पर्वतीय पर्यावरण में घटता बर्फ का आवरण चिंता का विषय है। इससे जलविद्युत, जल स्रोतों, पेयजल, पशुधन, जंगलों, खेतों और बुनियादी ढांचे पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है।
नेनों प्लास्टिक ने बढ़ाया खतरा
हाल ही में चीन की एकेडमी ऑफ साइंस और कॉलेज ऑफ अर्थ एंड इनवायरमेंटल साइंस के शोधकर्ताओं ने अपने शोध में पाया कि सामान्य तौर ग्लेशियर में जमी बर्फ पर जब सूरज की रौशनी पड़ती है तो वो उसे 100 फीसदी परावर्तित कर देता है। लेकिन जब बर्फ के ऊपर जब प्लास्टिक के छोटे कण जमा हो जाते हैं तो सूरज की रौशनी को सोख लेते हैं। इससे ग्लेशियर में तापमान बढ़ता है और वो गलने लगता है। हवा के साथ ग्लेशियर तक पहुंच रहे ये प्लास्टिक के छोटे कण आकार में पांच मिलिमीटर से भी छोटे होते हैं। चीन के शोधकर्ताओं को आर्कटिक, आल्प्स, तिब्बत, एंडीज और अंटार्कटिका में माइक्रोप्लास्टिक के कण मिले हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक माइक्रोप्लास्टिक के असर को जानने के लिए अभी और शोध किए जाने की जरूरत है।
इन परिवर्तनों ने बड़े पैमाने पर जल संसाधनों और जल विज्ञान चक्र को प्रभावित किया है। संभावना जताई जा रही है कि 21वीं सदी में तिब्बती पठारों में जमा ग्लैशियर 21 फीसदी तक गल सकते हैं, इसके चलते यहां से निकलने वाली नदियों में ग्लेशियर में आने वाले पानी मात्रा में आने वाले समय में 28 फीसदी तक की कमी देखी जा सकती है। एक अध्ययन के मुताबिक 1960s से 2000 के बीच तब्बत में स्थित Nam Co Lake के करीब जमे ग्लेशियर को तेजी से गलाने में माइक्रोप्लास्टिक की हिस्सेदारी 8 फीसदी की रही। प्लास्टिक के छोटे कणों के चलते यहां का तापमान ढाई डिग्री तक बढ़ गया। माइक्रोप्लास्टिक के अलावा ब्लैक कार्बन के चलते भी ग्लेशियर तेजी से गल रहे हैं। आर्टिक के कुछ हिस्सों में ब्लैक कार्बन के चलते जुलाई से सितम्बर के बीच बर्फ के गलने की गति एक से तीन फीसदी तक बढ़ गई।
सीएसई के एक्स्पर्ट सिद्धार्थ सिंह ने कहा कि प्लास्टिक से होने वाला प्रदूषण आज बहुत बड़ी समस्या बन चुका है। प्लास्टिक के छोटे कणों का प्रकृति पर किस तरह का असर पड़ रहा है इस पर अभी शोध किए जाने की जरूरत है। प्लास्टिक के नैनो कण पानी के साथ वाष्प बन कर बादलों तक पहुंच रहे हैं। हाल ही अंटार्टिक में गिरने वाली ताजा बर्फ में भी माइक्रोप्लास्टिक के कण मिले हैं।
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पति के 70 घंटे काम वाले सुझाव पर क्या बोलीं सुधा मूर्ति? वर्क कल्चर और फैमिली पर दिया बेहतरीन जवाब
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। इन्फोसिस (Infosys) के फाउंडर नारायण मूर्ति (Narayan Murthy) कई बार अपने बयानों की वजह से सुर्खियों में आ चुके हैं। कुछ दिनों पहले वर्क कल्चर का जिक्र करते हुए कहा था कि युवाओं को प्रति सप्ताह 70 घंटे काम करना चाहिए। उनके इस बयान पर काफी बहस हुई थी। मूर्ति ने कहा कि उन्होंने इन्फोसिस में 40 साल तक हर सप्ताह 70 घंटे से ज्यादा काम किया।
नारायण मूर्ति के वर्क कल्चर पर दिए बयान को लेकर उनकी पत्नी सुधा मूर्ति ने प्रतिक्रिया दी है। सुधा मूर्ति ने कहा कि जब लोग गंभीरता और जुनून के साथ कुछ करने के लिए तत्पर रहते हैं तो "समय कभी सीमा नहीं बनता। राज्यसभा सांसद ने कहा कि अगर इंफोसिस इतनी बड़ी कंपनी बनी हो तो यह अपने आप नहीं हुआ है। उनके पति ने काफी मेहनत की है। कभी-कभी नारायण मूर्ति ने हफ्ते में 70 घंटे से ज्यादा काम किया है।
निजी जीवन को लेकर क्या बोलीं सुधा मूर्ति?वहीं, सुधा मूर्ति ने अपने निजी जीवन को लेकर भी बात की। उन्होंने कहा कि मैंने अपने पति से कहा था कि आप इंफोसिस का ख्याल रखें। वहीं मैं परिवार का ख्याल रखूंगी। सुधा मूर्ति ने कहा कि मुझे मेरे पति से कोई शिकायत नहीं है क्योंकि मुझे पता है कि वो (नारायण मूर्ति) एक बड़ा काम कर रहे हैं।
सुधा मूर्ति ने कहा कि मैंने स्वीकार किया कि पत्रकार और डॉक्टर जैसे अन्य व्यवसायों में काम करने वाले लोग भी "90 घंटे" काम करते हैं। उन्होंने कहा कि जब उनके पति इंफोसिस में व्यस्त थे, तब उन्होंने घर की देखभाल की, बच्चों का पालन-पोषण किया और यहां तक कि एक कॉलेज में कंप्यूटर विज्ञान पढ़ाना भी शुरू कर दिया।
देश के विकास के लिए कड़ी मेहनत करने की जरूरत: नारायण मूर्तिनारायण मूर्ति ने अपने कामकाज का जिक्र करते हुए कहा था कि वो सुबह 6:30 बजे कार्यालय पहुंचता थे और रात 8:30 बजे निकलता थे। उन्होंने इंडिया के वर्क कल्चर की तुलना चीन से की। उन्होंने कहा कि चीन के नागरिक भारत की तुलना में 3.5 गुना ज्यादा उत्पादक हैं। वह भारत के गरीबी स्तर की बात करते हुए के कि हमें अपनी आकांक्षाओं को ऊंचा रखना होगा।
उन्होंने आगे कहा था कि भारत में 80 करोड़ नागरिक को मुफ्त राशन मिलता है। इसका मतलब है कि 80 करोड़ भारतीय गरीबी रेखा में हैं। ऐसे में देश के विकास के लिए हमें ही कड़ी मेहनत करनी होगी। अगर हम कड़ी मेहनत नहीं करेंगे तो कौन करेगा।
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