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Data Decode : जलवायु परिवर्तन से मुश्किल में किसान, अनियमित बारिश, सूखे और बढ़ते तापमान से फसलों की गुणवत्ता के साथ पैदावार पर भी असर
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी। मौसम में होने वाले बदलाव कृषि क्षेत्र के लिए लगातार चुनौतीपूर्ण होते जा रहे हैं। इन मौसमी घटनाओं से फसलों को होने वाला नुकसान भी बढ़ा है। तापमान में वृद्धि ने अनाज के विकास को सीमित कर दिया है, जिससे गेहूं के दाने सिकुड़ रहे हैं। 2016 में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें कहा गया था कि देश में कृषि जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। रिपोर्ट में कहा गया था कि अनिश्चित मौसम, विशेष रूप से सूखा, उत्पादन हानि और फलों की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है क्योंकि कृषि का बड़ा क्षेत्र अभी भी वर्षा पर निर्भर है। वहीं बारिश का अनियमित चक्र भी फसलों के लिए बड़ी मुश्किल बनता जा रहा है।
आईएमडी (भारतीय मौसम विभाग) के अनुसार पिछले 50 वर्षों में भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून (जून-सितंबर) के दौरान बरसात के दिनों की संख्या घटी है, लेकिन अत्यधिक बारिश की घटनाएं बढ़ी हैं। 1970-2000 के बीच मानसून में बारिश 2.5% घटी, लेकिन 2010-2020 के दशक में असमान वितरण के कारण बाढ़ और सूखे की घटनाएं बढ़ गईं। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे उत्तर भारतीय राज्यों में बारिश की सतत कमी देखी गई है, जिससे कृषि उत्पादन प्रभावित हो रहा है।
महाराष्ट्र, केरल और कर्नाटक में अत्यधिक बारिश की घटनाएं बढ़ गई हैं, जिससे बाढ़ की स्थिति बन रही है। पूर्वोत्तर भारत में कभी भारी बारिश तो कभी लंबे सूखे की स्थिति देखी जा रही है। एनएसओ (नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2010-2020 के बीच हर साल औसतन 30% जिलों में बारिश का पैटर्न असामान्य रहा। 2019 में महाराष्ट्र, बिहार और असम में बाढ़ के कारण 3000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई। भारतीय कृषि का 55% हिस्सा वर्षा पर निर्भर है।
मानसून में देरी से धान, गेंहू और दलहन उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। एक ही क्षेत्र में कभी अत्यधिक वर्षा, तो कभी सूखा देखा जा रहा है, जिससे पानी की अनिश्चितता बढ़ रही है। महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में 2016-2019 के बीच सूखा पड़ा, लेकिन 2021-22 में बाढ़ आई, जिससे भारी नुकसान हुआ।
बढ़ते तापमान से गेहूं की पैदावार होगी कमलोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में कृषि मंत्री ने कहा था कि स्थानीय और अस्थायी जलवायु परिवर्तनों के कारण 2050 तक 19.3 फीसदी और 2080 तक 40 फीसदी गेहूं के पैदावर में कमी होने का अनुमान है। जलवायु परिवर्तन के कारण खरीफ मक्के के भी पैदावार में 2050 तक 18 फीसदी और 2080 तक 23 फीसदी कमी आ सकती है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने देश के 573 ग्रामीण जिलों में जलवायु परिवर्तन से भारतीय कृषि पर खतरे का आकलन किया है। इस आकलन के अनुसार 2020 से 2049 तक 256 जिलों में अधिकतम तापमान 1 से 1.3 डिग्री सेल्सियस और 157 जिलों में 1.3 से 1.6 डिग्री सेल्सियस बढ़ने की उम्मीद है। इससे गेहूं की खेती प्रभावित होगी। इंटरनेशनल सेंटर फॉर मेज एंड व्हीट रिसर्च के प्रोग्राम निदेशक डॉ. पीके अग्रवाल के एक अध्ययन के मुताबिक तापमान एक डिग्री बढ़ने से भारत में गेहूं का उत्पादन 4 से 5 मिलियन टन तक घट सकता है। तापमान 3 से 5 डिग्री बढ़ने पर उत्पादन में 19 से 27 मीट्रिक टन तक कमी आएगी।
वैज्ञानिकों ने अलग अलग अध्ययनों में पाया कि फसलों के लिए जरूरी बारिश के दिनों में लगातार कमी आ रही है। मौसम विभाग (IMD) के जनरल मौसम में छपे एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि हर एक दशक में बारिश के दिनों में औसतन 0.23 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। अध्ययन के मुताबिक आजादी के बाद से अब तक देश में बारिश का लगभग डेढ़ दिन कम हो गया है। अध्ययन में बारिश का एक दिन का मतलब ऐसे दिन से है जिस दिन कम से कम 2.5 मिलिमीटर या उससे ज्यादा बारिश हुई हो। वैज्ञानिकों के मुताबिक पिछले एक दशक में एक्सट्रीम इवेंट्स भी काफी तेजी से बढ़े हैं।
आईएमडी जर्नल मौसम में प्रकाशित ये अध्ययन 1960 से 2010 के बीच मौसम के डेटा के आधार पर किया गया है। अध्ययन में पाया गया कि बारिश के लिए जिम्मेदार लो क्लाउड कवर देश में हर एक दशक में लगभग 0.45 फीसदी कम हो रहा है। खास तौर पर मानसून के दिनों में इनमें सबसे ज्यादा कमी देखी जा रही है। अध्ययन में पाया गया है कि मानसून के दौरान गिरावट औसतन प्रति दशक 1.22 प्रतिशत रही है।
दक्षिण-पश्चिम मानसून के लिए 1971 से 2020 तक के आंकड़ों के आधार पर नई अखिल भारतीय वर्षा का आंकलन 868.8 मिमी का रहा है है। 1961 से 2010 के आंकड़ों के आधार पर गाणना करने पर देश में औसत वर्ष प्रति वर्ष 880.6 मिमी दर्ज की गई थी । ऐसे में हम सकते हैं कि 1961 से 2010 और 1971 से 2020 के बीच दक्षिण पश्चिम मानसून के आंकड़ों की तुलना करने पर पता चलाता है कि इस बीच मानसून की बारिश में औसतन 12 मिलीमीटर की कमी आई है। वहीं देश में वार्षिक तौर पर औसत बारिश में लगभग 16.8 मिलीमीटर की कमी आई है।
पांच साल से फरवरी में बढ़ रही है गर्मी
केरल कृषि विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश के फैजाबाद कृषि विश्वविद्यालय और हरियाणा के हिसार स्थित कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने 1970 से 2019 के डेटा का अध्ययन किया। इससे पता चलता है कि फरवरी में न्यूनतम तापमान 5 से 8 डिग्री के बीच रहता है। लेकिन पिछले पांच सालों के दौरान फरवरी में कई दिन औसत तापमान इससे 5 डिग्री तक ज्यादा दर्ज किया गया। सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ड्राईलैंड एग्रीकल्चर के वैज्ञानिक डॉ. चंद्रशेखर के मुताबिक, पूर्वी उत्तर प्रदेश में फरवरी में बढ़ते तापमान ने गेहूं की फसल को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया है। इस साल 14 फरवरी से 11 मार्च तक रात में तापमान सामान्य से अधिक दर्ज किया गया। 30 जनवरी को रात का तापमान सामान्य से 7.5 डिग्री अधिक था।
वर्षा पैटर्न का फसलों पर असरउत्तर भारत के कई राज्यों में वर्षा की मात्रा घटी है, जबकि पश्चिमी और दक्षिणी भारत में अत्यधिक बारिश की घटनाएं बढ़ी हैं। यह बदलाव न केवल कृषि उत्पादकता को प्रभावित कर रहा है बल्कि किसानों की आर्थिक स्थिति पर भी भारी असर डाल रहा है।
भारत में लगभग 55% कृषि भूमि सिंचाई के लिए मानसून पर निर्भर करती है। वर्ष 2022 में, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में मानसून की देरी के कारण धान की बुआई में 20% तक की गिरावट दर्ज की गई थी। दूसरी ओर, महाराष्ट्र, केरल और कर्नाटक जैसे राज्यों में अत्यधिक बारिश और बाढ़ के कारण फसलों को भारी नुकसान हुआ। कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, 2015 से 2023 के बीच कृषि उत्पादन में 12% की गिरावट देखी गई, जिसका एक बड़ा कारण मानसून की अनिश्चितता थी।
धान और गेहूं की पैदावार पर वर्षा पैटर्न में बदलाव का गहरा प्रभाव पड़ा है। हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में पिछले कुछ वर्षों में धान उत्पादन में गिरावट आई है, क्योंकि इन क्षेत्रों में औसत वर्षा में कमी आई है। 2020 में, पंजाब में धान उत्पादन 18.5 मिलियन टन था, जो 2022 में घटकर 17 मिलियन टन रह गया। यह गिरावट वर्षा की कमी और बढ़ते तापमान के कारण हुई, जिससे मिट्टी की नमी प्रभावित हुई और फसल की गुणवत्ता भी घटी। इसके अलावा, अत्यधिक बारिश और बाढ़ के कारण भी कई इलाकों में धान की फसल नष्ट हो गई।
मानसून में किस महीने में होती है कितनी बारिश
मौसम विभाग के अध्ययन के मुताबिक 1971 से 2020 के बीच आंकड़ों पर नजर डालें तो दक्षिण पश्चिम मानसून देश की कुल बारिश में लगभग 74.9 फीसदी की हिस्सेदारी रखता है। इसमें से जून महीने में लगभग 19.1 फीसदी बारिश होती है। वहीं जुलाई महीने में लगभग 32.3 फीसदी और अगस्त महीने में लगभग 29.4 फीसदी बारिश होती है। सितंबर महीने में औसतन 19.3 फीसदी बारिश दर्ज की जाती है।
कम बारिश और तापमान बढ़ने से घट रहा उत्पादनभारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने देश के 573 ग्रामीण जिलों में जलवायु परिवर्तन से भारतीय कृषि पर खतरे का आकलन किया है। इसमें कहा गया है कि 2020 से 2049 तक 256 जिलों में अधिकतम तापमान 1 से 1.3 डिग्री सेल्सियस और 157 जिलों में 1.3 से 1.6 डिग्री सेल्सियस बढ़ने की उम्मीद है। इससे गेहूं की खेती प्रभावित होगी। गौरतलब है कि पूरी दुनिया की खाद्य जरूरत का 21 फीसदी गेहूं भारत पूरी करता है। वहीं, 81 फीसदी गेहूं की खपत विकासशील देशों में होती है। इंटरनेशनल सेंटर फॉर मेज एंड वीट रिसर्च के प्रोग्राम निदेशक डॉ. पीके अग्रवाल के एक अध्ययन के मुताबिक तापमान एक डिग्री बढ़ने से भारत में गेहूं का उत्पादन 4 से 5 मीट्रिक टन तक घट सकता है। तापमान 3 से 5 डिग्री बढ़ने पर उत्पादन 19 से 27 मीट्रिक टन तक कम हो जाएगा। हालांकि बेहतर सिंचाई और उन्नत किस्मों के इस्तेमाल से इसमें कमी की जा सकती है।
दलहन और तिलहन पर मौसम की मारदलहन और तिलहन की फसलें भी जलवायु परिवर्तन से अछूती नहीं रही हैं। महाराष्ट्र और राजस्थान में चना और मसूर जैसी दलहन फसलों की उत्पादकता में कमी आई है, क्योंकि इन राज्यों में शीतकालीन वर्षा (रबी सीजन) अनियमित हो गई है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में 2021 में चने की उपज 2.4 मिलियन टन थी, जो 2023 में घटकर 2 मिलियन टन रह गई। इसी तरह, तिलहन फसलों जैसे सरसों और मूंगफली की पैदावार भी प्रभावित हुई है, क्योंकि तापमान में वृद्धि और वर्षा पैटर्न में असमानता ने उनके उत्पादन को कम कर दिया है।
देश में शुष्क क्षेत्रों में कपास और गन्ने की खेती भी जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को महसूस कर रही है। कपास उत्पादन, जो मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गुजरात और तेलंगाना में होता है, हाल के वर्षों में कीट प्रकोप और असमान वर्षा के कारण प्रभावित हुआ है। महाराष्ट्र में, 2019 में कपास उत्पादन 8.2 मिलियन गांठ था, जो 2022 में घटकर 7.5 मिलियन गांठ रह गया। दूसरी ओर, गन्ना, जो अत्यधिक जल की खपत करता है, वर्षा की कमी के कारण संकट में है। महाराष्ट्र और कर्नाटक में गन्ने की खेती के लिए जल उपलब्धता में कमी आई है, जिससे चीनी उत्पादन भी प्रभावित हुआ है।
दुनिया के आधे से अधिक गेहूं उत्पादन पर पड़ेगा असर
हार्वर्ड विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक गेहूं पूरी दुनिया की 20 फीसदी खाद्य जरूरत पूरी करता है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जलवायु परिवर्तन के चलते सदी के अंत तक दुनिया का आधा से अधिक गेहूं उत्पादन प्रभावित हो सकता है। यह रिपोर्ट साइंस एडवांस पत्रिका में प्रकाशित हुई है। वर्ष के उस समय सूखे की स्थिति का अध्ययन करने के लिए एक मॉडल बनाया गया जब गेहूं उगाया जाता है, फिर 27 जलवायु मॉडल से सिमुलेशन कर विश्लेषण किया गया। परिणाम बताते हैं कि अगर जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए तत्काल कदम नहीं उठाए गए, तो ग्लोबल वार्मिंग दुनिया के 60% गेहूं उगाने वाले क्षेत्रों में बड़े सूखे का कारण बन सकती है।
मौजूदा सूखे की स्थिति 15% गेहूं उत्पादन को प्रभावित करती है। यहां तक कि अगर पेरिस समझौते के अनुरूप पूर्व-औद्योगिक (प्री-इंडस्ट्रियल) स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस ऊपर तापमान स्थिर करने का लक्ष्य हासिल किया जाता है, तो भी अगले 20 से 50 वर्षों में पानी की गंभीर कमी के मामले लगभग दोगुने हो जाएंगे। रिसर्च यह भी बताती है कि विकासशील देश, अफ्रीका और पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशिया के निम्न-आय वाले क्षेत्रों में गेहूं उत्पादन पर सबसे अधिक असर होगा। इन देशों में दुनिया की अधिकांश कुपोषित और गेहूं खाने वाली आबादी रहती है।
भारत के 30 फीसदी भूभाग में उपजाऊ मिट्टी का क्षरणभारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) दिल्ली के 2024 के एक अध्ययन के अनुसार, भारत के 30% भूभाग में उपजाऊ मिट्टी का क्षरण हो रहा है। यही नहीं, 3% क्षेत्र में तो यह क्षरण बहुत तेजी से हो रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो भारत प्रति वर्ष प्रति हेक्टेयर 20 टन से अधिक उपजाऊ मिट्टी खो देता है। असम की ब्रह्मपुत्र घाटी और ओडिशा में मिट्टी का क्षरण सबसे तेजी से हो रहा है। शिवालिक और हिमालय के आसपास के क्षेत्र भी उपजाऊ मिट्टी के नुकसान से गंभीर रूप से प्रभावित हैं।
किसानों का दस अरब डॉलर का नुकसान
कृषि पर जलवायु परिवर्तन का आर्थिक प्रभाव भी चिंताजनक है। भारतीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार, 2015 से 2022 के बीच जलवायु परिवर्तन के कारण भारतीय किसानों को लगभग 10 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। सूखा, बाढ़ और असामान्य तापमान के कारण फसल उत्पादन में गिरावट आई, जिससे किसानों की आय में भी कमी आई। छोटे और सीमांत किसान इस बदलाव से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं, क्योंकि उनके पास जलवायु जोखिमों से निपटने के लिए आवश्यक संसाधन नहीं हैं।
इसके अलावा, मानसून की अनियमितता से ग्रामीण रोजगार पर भी असर पड़ा है। ग्रामीण भारत में कृषि ही मुख्य रोजगार का साधन है, और जब फसलें प्रभावित होती हैं, तो किसानों को मजबूरन अन्य कामों की तलाश करनी पड़ती है। नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) की रिपोर्ट के अनुसार, 2017 से 2022 के बीच लगभग 15 लाख किसान खेती छोड़कर अन्य क्षेत्रों में काम करने लगे, जिनमें से अधिकांश ने मजदूरी या अन्य अस्थायी नौकरियों का सहारा लिया।
तेलंगाना सुरंग हादसे में बचाव अभियान तेज, रविवार को बरामद हुआ था गुरप्रीत सिंह का शव; पत्नी ने पंजाब सरकार से मांगी मदद
पीटीआई, नगरकुरनूल। तेलंगाना सुरंग हादसे में जान गंवाने वाले गुरप्रीत सिंह के पार्थिव शरीर को पंजाब में उनके पैतृक स्थान भेज दिया गया है। सुरंग में फंसे सात अन्य लोगों का पता लगाने के लिए सोमवार को 17वें दिन भी बचाव अभियान जारी रहा। रविवार को तलाशी अभियान के दौरान टनेल बोरिंग मशीन (टीबीएम) ऑपरेटर गुरप्रीत का शव बरामद किया गया था।
गुरप्रीत रॉबिन्स कंपनी के लिए टीबीएम ऑपरेटर के रूप में काम करते थे। 22 फरवरी को सुरंग के आंशिक रूप से ढहने के बाद अंदर फंसे आठ लोगों में गुरप्रीत भी थे। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि नगरकुरनूल के सरकारी अस्पताल में पोस्टमार्टम और अन्य प्रक्रियाओं के बाद शव को एक विशेष एम्बुलेंस में पंजाब में उनके पैतृक स्थान ले जाया गया।
गाद के नीचे दबा था शव- मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी ने उनके परिवार को 25 लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 48 घंटे से अधिक समय तक बहुत सावधानी से खोदाई और अन्य प्रयासों के बाद शव को निकाला जा सका। करीब 10 फीट की गहराई पर गाद के नीचे शव दबा हुआ था।
- गुरप्रीत सिंह की पहचान उसके बाएं कान की बाली और दाहिने हाथ पर टैटू के आधार पर की गई। अधिकारी ने बताया कि शेष श्रमिकों की तलाश जारी है। गुरप्रीत के अलावा फंसे हुए सात अन्य लोगों में मनोज कुमार (यूपी), सनी सिंह (जम्मू-कश्मीर), और संदीप साहू, जेगता जेस तथा अनुज साहू शामिल हैं जो सभी झारखंड के हैं।
- गौरतलब है कि श्रीशैलम लेफ्ट बैंक कैनाल (एसएलबीसी) परियोजना की सुरंग का एक हिस्सा 22 फरवरी को ढह जाने के बाद इंजीनियर और मजदूर सहित आठ लोग उसमें फंस गए थे। एनडीआरएफ, भारतीय सेना, नौसेना और अन्य एजेंसियों के विशेषज्ञ उन्हें सुरक्षित बाहर निकालने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं।
गुरप्रीत सिंह के परिवार में उनकी पत्नी और दो बेटियां हैं। पत्नी ने पंजाब सरकार से मुआवजा और सहायता की मांग की है, क्योंकि गुरप्रीत ही परिवार का एकमात्र कमाने वाला था। उनकी पत्नी ने अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए सरकारी नौकरी का अनुरोध किया है।
उन्होंने कहा, 'सरकार से मेरा अनुरोध है कि या तो मेरी बेटियों को या मुझे सरकारी नौकरी दी जाए ताकि मैं अपने बच्चों की देखभाल कर सकूं।' गुरप्रीत के चाचा कुलवंत सfxह ने इस बात पर निराशा जताई है कि पंजाब सरकार का कोई भी प्रतिनिधि उनके घर संवेदना या समर्थन देने नहीं आया।
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असम के पास होगा अपना सैटेलाइट, ISRO से चल रही बात; हिमंत बिस्वा सरमा ने किया एलान
पीटीआई, गुवाहाटी। असम सरकार ने कहा है कि उसका अपना उपग्रह होगा। इससे सीमा पर निगरानी रखने के अलावा महत्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए आंकड़े एकत्र करने में मदद मिलेगी।
असम की वित्त मंत्री अजंता नियोग ने 2025-26 के लिए राज्य का बजट पेश करते हुए यह घोषणा की। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने बाद में दावा किया कि असम देश का पहला राज्य होगा जिसके पास अपना उपग्रह होगा।
इसरो की ली जाएगी मददवित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा कि केंद्र सरकार के अंतरिक्ष विभाग के सहयोग से हम महत्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए डेटा का निरंतर, विश्वसनीय प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए अपना स्वयं का उपग्रह 'असमसैट' स्थापित करना चाहते हैं।
मुख्यमंत्री ने बाद में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि यदि हमारे पास अपना उपग्रह होगा तो यह हमें बता सकेगा कि क्या कोई विदेशी अवैध रूप से प्रवेश करने का प्रयास कर रहा है।
सरमा ने कहा कि यह आने वाली बाढ़ के बारे में पूर्व सूचना दे सकेगा। मौसम संबंधी रिपोर्ट में मदद कर सकेगा। इससे हमारे किसानों को लाभ होगा।
रेलवे सुरक्षा पर हर साल खर्च हो रहे 1.14 लाख करोड़, अश्विनी वैष्णव बोले- दुर्घटनाओं पर राजनीति न करे विपक्ष
पीटीआई, नई दिल्ली। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सोमवार को कहा कि सरकार रेलवे में सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही है। रेलवे सुरक्षा पर प्रतिवर्ष 1.14 लाख करोड़ रुपये खर्च कर रहा है।
राज्य सभा में रेलवे संशोधन विधेयक 2024 पर चर्चा का जवाब देते हुए मंत्री ने कहा कि वार्षिक रेल दुर्घटना दर 171 घटनाओं से घटकर 30 हो गई है। रेलवे संशोधन विधेयक 2024 को राज्यसभा में ध्वनिमत से मंजूरी दे दी गई। यह विधेयक पिछले साल 11 दिसंबर को लोकसभा में पारित किया गया था। रेलवे संशोधन विधेयक, 2024 में रेलवे बोर्ड की स्वतंत्रता को बढ़ाने और कामकाज बेहतर करने का प्रविधान है।
रेलवे संशोधन विधेयक पर दिया जवाबरेल मंत्री ने कहा, 'संप्रग सरकार में सुरक्षा बढ़ाने के लिए निवेश आठ हजार से 10 हजार करोड़ रुपये के बीच हुआ करता था। आज हम सुरक्षा बढ़ाने पर हर साल 1.14 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पटरियों, सुरक्षा उपकरणों और लेवल क्रासिंग को बेहतर बनाने के लिए कदम उठाए गए हैं।'
उन्होंने कहा कि संप्रग के कार्यकाल में 4.11 लाख नौकरियां दी गईं, राजग सरकार में 5.02 लाख नौकरियां दी गई हैं। उन्होंने कहा, अब महाप्रबंधकों के पास अनुबंध स्वीकार करने का 100 प्रतिशत अधिकार है, चाहे निविदा राशि 10 करोड़ रुपये हो या 1,000 करोड़ रुपये। महाप्रबंधकों को 50 करोड़ रुपये से कम की परियोजनाओं को मंजूरी देने का अधिकार भी दिया गया है। वैष्णव ने विपक्ष की इस आशंका को खारिज कर दिया कि रेलवे संशोधन विधेयक राज्य सरकारों की शक्ति कम करेगा।
विपक्ष को दी राजनीति न करने की नसीहत- रेल मंत्री ने कुंभ के दौरान नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ जैसी रेल दुर्घटनाओं को लेकर राजनीति नहीं करने की नसीहत देते हुए कहा कि रेल मंत्रालय ने इस घटना से सीख लेते हुए तमाम उपाय किए हैं जिनमें देश के प्रमुख स्टेशनों पर भीड़ को नियंत्रित करने के लिए प्रतीक्षा क्षेत्र बनाना शामिल है।
- वैष्णव ने कहा कि इस मामले की जांच चल रही है। उल्लेखनीय है कि 15 फरवरी को नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ में 18 लोगों की मौत हो गई थी। विपक्षी सदस्यों ने सरकार पर रेलवे संशोधन विधेयक, 2024 के जरिये रेलवे बोर्ड पर नियंत्रण करने की कोशिश करने का आरोप लगाया और कहा कि वह संसदीय समिति की जांच से बच रही है।
- कांग्रेस सदस्य विवेक के. तन्खा ने आरोप लगाया कि प्रस्तावित कानून के तहत रेलवे बोर्ड की स्वतंत्रता खत्म हो गई है। उन्होंने रेलवे बोर्ड को स्वायत्तता दिए जाने की मांग की। तृणमूल कांग्रेस के प्रकाश बराइक ने कहा कि विधेयक को संसद की प्रवर समिति के पास भेजा जाना चाहिए।
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अदालती कार्यवाही के क्लिप अपलोड करना पड़ेगा महंगा, SC के जज बोले- गाइडलाइन बनानी पड़ेगी
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई ने कानूनी कार्यवाही की संपादित क्लिप्स को इंटरनेट मीडिया पर प्रसारित करने की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को अदालतों की लाइव स्ट्रीमिंग के लिए दिशानिर्देश बनाने पड़ सकते है।
न्यायपालिका के भीतर प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल विषय पर केन्या में एक कार्यक्रम के दौरान जस्टिस गवई ने कहा कि अदालती कार्यवाही के क्लिप्स को संदर्भ से बाहर संपादित कर इंटरनेट मीडिया पर साझा किया जाता है, जिससे कार्यवाही सनसनीखेज बन जाती है।
कई क्रिएटर अपलोड कर रहे वीडियोउन्होंने कहा कि इस प्रकार की क्लिप्स से गलत सूचना, न्यायिक चर्चाओं की गलत व्याख्या और गलत रिपोर्टिंग हो सकती है। उन्होंने कहा कि यूट्यूबर्स सहित कई कंटेंट क्रिएटर ने सुनवाई के छोटे अंशों को अपने कंटेंट के रूप में पुन: अपलोड किया, जिससे बौद्धिक संपदा अधिकारों और न्यायिक रिकॉर्डिंग के स्वामित्व पर चिंताएं पैदा हुईं।
जस्टिस गवई ने कहा कि ऐसी चुनौतियों का प्रबंधन न्यायपालिका के लिए एक उभरता हुआ मुद्दा है और अदालतों को लाइव-स्ट्रीम की गई कार्यवाही के उपयोग पर दिशानिर्देश तय करने पड़ सकते हैं। न्यायाधीश ने कहा कि यद्यपि प्रौद्योगिकी की वजह से न्यायिक कार्यवाहियों तक पहुंच में उल्लेखनीय सुधार हुआ है लेकिन इसने कई नैतिक चिंताओं को भी जन्म दिया है।
जस्टिस गवई ने कहा कि दुनिया भर की अदालतें कार्यकुशलता में सुधार लाने, निर्णय लेने की क्षमता बढ़ाने तथा न्याय तक पहुंच को बढ़ावा देने के लिए प्रौद्योगिकी को तेजी से एकीकृत कर रही हैं। न्यायाधीश ने कानूनी अनुसंधान में एआई के उपयोग से जुड़े महत्वपूर्ण जोखिमों को भी रेखांकित किया।
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कांग्रेस नेताओं के संपर्क में थी रान्या राव? भाजपा ने राज्य सरकार पर लगाए गंभीर आरोप
पीटीआई, बेंगलुरु। कन्नड़ फिल्मों की अभिनेत्री रान्या राव की सोना तस्करी मामले में कथित संलिप्तता को लेकर कर्नाटक में राजनीतिक राजनीतिक घमासान शुरू हो गया है। सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी भाजपा एक दूसरे पर पक्षपात और मामले को दबाने का आरोप लगा रही है। भाजपा ने रान्या को बचाने में प्रभावशाली मंत्री की संलिप्तता का आरोप लगाया है, जबकि कांग्रेस ने कहा कि भाजपा जब सत्ता में थी तो उसने स्टील फैक्ट्री के लिए रान्या को 12 एकड़ जमीन आवंटित की थी।
रान्या को तीन मार्च को सोने की तस्करी करते हुए बेंगलुरु अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर उस समय गिरफ्तार किया गया था जब वह दुबई से बेंगलुरु पहुंची थी। उसके पास से जब्त सोने की कीमत लगभग 12.56 करोड़ रुपये है। रान्या कर्नाटक के डीजीपी रैंक के अधिकारी रामचंद्र राव की सौतेली बेटी है। रामचंद्र कर्नाटक राज्य पुलिस आवास और बुनियादी ढांचा विकास निगम लिमिटेड के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक हैं।
भाजपा ने लगाया आरोप- प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बीवाई. विजयेंद्र ने एक्स पर पोस्ट किया, हाल के दिनों में सबसे बड़ी सोने की तस्करी में सिद्दरमैया सरकार के प्रमुख मंत्री की संलिप्तता को लेकर मीडिया में आई खबरों पर आश्चर्य की बात नहीं है! सरकारी प्रोटोकॉल का घोर उल्लंघन, जिसके कारण रान्या को सोने की तस्करी में सफलता मिली। सरकार के भीतर प्रभावशाली व्यक्तियों के प्रत्यक्ष समर्थन के बिना यह संभव नहीं हो सकता।
- विधानसभा में भी उठा मुद्दा कर्नाटक विधानसभा में भी सोमवार को यह मामला उठाया गया। भाजपा विधायक सुनील कुमार ने शून्यकाल के दौरान सोना तस्करी मामले और इसमें कर्नाटक के मंत्रियों की कथित संलिप्तता की खबरों पर सवाल उठाए।
- इसके जवाब में राज्य के गृह मंत्री जी. परमेश्वर ने कहा कि कर्नाटक सरकार को रान्या से जुड़े सोना तस्करी मामले की कोई जानकारी नहीं है क्योंकि मामले की जांच कर रहे राजस्व खुफिया निदेशालय और सीबीआई से सरकार का कोई संपर्क नहीं हुआ है।
- मंत्री ने कहा कि अभिनेत्री के सौतेले पिता डीजीपी रैंक के अधिकारी हैं। आरोप हैं कि उन्होंने रान्या की मदद की और पुलिस ने भी उसकी मदद की। सीबीआई जांच कर रही है। विपक्ष के नेता आर. अशोक ने भी पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाया।
आईएएनएस ने सूत्रों के हवाले से बताया कि डीआरआई ने अदालत को बताया कि पता चला है कि 12.56 करोड़ रुपये मूल्य का सोना तस्करी किया गया है। रान्या सोना तस्करी रैकेट के सरगनाओं में से एक है। जांच की जा रही है कि रान्या ने सोने की तस्करी में पुलिस प्रोटोकॉल का दुरुपयोग कैसे किया। सुनवाई के बाद विशेष अदालत ने रान्या को 24 मार्च तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया है।
रान्या तीन दिनों से डीआरआई की हिरासत में थी। सूत्रों ने बताया कि डीआरआई के अधिकारियों को वर्तमान और पूर्व मंत्रियों के नंबर मिले हैं और वह प्रभावशाली लोगों के संपर्क में थी। उसके मोबाइल में शीर्ष स्तर के अधिकारियों के नंबर भी मिले हैं। अधिकारियों ने रान्या का लैपटॉप भी जब्त कर लिया है।
एक और आरोपित गिरफ्तार राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) ने रान्या से जुड़े सोना तस्करी मामले में होटल कारोबारी के बेटे तरुण राजू को गिरफ्तार किया है। आरोपी तरुण को सोमवार को आर्थिक अपराध न्यायालय में पेश किया गया। अदालत ने उसे पांच दिनों के लिए डीआरआइ की हिरासत में भेज दिया। पता चला है कि तरुण रान्या का दोस्त है। तरुण पर रान्या राव के साथ कई बार दुबई जाने का भी आरोप है।
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'कैदियों के पास मुचलका भरने के पैसे नहीं', संसद में पेश रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे
पीटीआई, नई दिल्ली। संसद की एक समिति ने यह पाया है कि देशभर की जेलों में बंद 70 प्रतिशत कैदी विचाराधीन हैं और मुचलका नहीं भरने या जुर्माना राशि अदा न कर पाने के कारण उन्हें रिहा नहीं किया जा रहा है।
गृह मामलों पर संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ड्रग्स का पता लगाने के लिए जेलों के प्रत्येक प्रवेश द्वार पर निगरानी प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाना चाहिए। राज्यसभा में प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि जेल प्रशासन ऐसे कैदियों को जेलों में रखने पर, उनकी रिहाई के लिए आवश्यक जमानत राशि से कहीं अधिक धन खर्च कर रहा है।
राज्यों से कोष बनाने की अपीलरिपोर्ट में कहा गया है कि गरीब कैदियों के लिए जुर्माना राशि के भुगतान के लिए आंध्र प्रदेश जेल विभाग द्वारा की गई पहल की तर्ज पर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एक कोष बनाया जाना चाहिए।
समिति ने कहा कि जेलों में ड्रग्स की तस्करी की चुनौतियों से निपटने के लिए भी प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाना चाहिए। इसने कहा कि जेल कर्मियों को इस समस्या से निपटने के लिए प्रौद्योगिकी की मदद लेने की आवश्यकता है।
जेलकर्मियों पर भी लगे आरोप- समिति ने पाया कि जेल के अंदर मोबाइल फोन आदि का इस्तेमाल कैदियों द्वारा जेल के बाहर आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने के लिए किया जाता है। कैदियों के पास मोबाइल फोन होने से जेल के अंदर गिरोहों के बीच झड़पें भी हो सकती हैं।
- समिति ने पाया कि जेल कर्मी कैदियों को प्रतिबंधित वस्तुएं जेल के अंदर पहुंचाने में मदद कर रहे हैं। इसने सिफारिश की कि जेलों में तलाशी के मानकों को बढ़ाया जाना चाहिए।
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दैनिक वेतनभोगियों और विशिष्ट जरूरत वाले बच्चों के लिए सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, अधिकारियों को भी लगाई फटकार
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने दैनिक वेतनभोगियों को नियमित किए जाने के मामले में हाईकोर्ट के आदेश का पालन न करने पर जम्मू-कश्मीर के अधिकारियों को फटकार लगाई है। कोर्ट ने इसे हठ का स्पष्ट एवं पाठ्यपुस्तक वाला उदाहरण बताया।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि ग्रामीण विकास विभाग में 14-19 साल तक काम करने वाले दैनिक वेतनभोगियों को नियमित करने के लिए हाईकोर्ट के 2007 के आदेश का पालन करने के बजाय, राज्य के अधिकारी उन्हें परेशान करने के लिए गुप्त आदेश पारित करते रहे।
पीठ ने क्या कहा?- पीठ ने सात मार्च को अपने आदेश में कहा कि हम यह मानने के लिए बाध्य हैं कि वर्तमान मामला राज्य के अधिकारियों/प्राधिकारियों द्वारा प्रदर्शित हठधर्मिता का एक स्पष्ट और पाठ्यपुस्तक वाला उदाहरण है। वे खुद को कानून की पहुंच से ऊपर और परे मानते हैं। कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों ने तीन मई, 2007 के हाईकोर्ट के सरल आदेश का पालन करने में लगभग 16 साल लगा दिए।
- उनकी यह निष्कि्रयता चौंकाने वाली और प्रथम ²ष्टया अवमाननापूर्ण थी। इसलिए, पीठ ने हाईकोर्ट की खंडपीठ द्वारा लगाए गए 25,000 रुपये के जुर्माने में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और कहा कि अधिकारियों के साथ सख्ती से निपटा जाना चाहिए।
- कोर्ट ने कहा कि हमें जिस बात की चिंता है, वह केवल वर्षों की देरी नहीं है, बल्कि यह अकाट्य तथ्य भी है कि बेचारे जो दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी हैं उनको याचिकाकर्ताओं द्वारा बार-बार रहस्यमय आदेश पारित करके परेशान किया गया है।
- इससे एकल जज द्वारा तीन मई, 2007 को पारित आदेश के वास्तविक महत्व और भावना की अनदेखी की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने महसूस किया कि हाईकोर्ट द्वारा 25,000 रुपये के प्रतीकात्मक जुर्माने में किसी भी हस्तक्षेप का औचित्य नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देशित किया है कि 28 मार्च तक विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों के शिक्षण के लिए अध्यापकों के पदों को भरने के लिए अधिसूचित करें। जस्टिस सुधांशु धूलिया और के.विनोद चंद्रन ने पाया कि वर्ष 2021 के फैसले के बावजूद किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश ने निर्देशित पदों पर अभी तक नियुक्तियां नहीं की हैं। असल में ज्यादातर राज्यों ने तो ऐसे पदों को चिन्हित तक नहीं किया है।
अदालत ने कहा कि प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश को इन पदों की संख्या को लेकर अधिसूचना जारी करनी होगी और फिर विशेष बच्चों की जरूरतों के अनुरूप ही अधिसूचित पदों पर नियुक्तियां की जाएंगी।
कोर्ट ने तीन हफ्तों का दिया समयविगत सात मार्च के इस आदेश में कहा गया है कि इन पदों को मंजूर और अधिसूचित तीन हफ्तों के अंदर किया जाना है। साथ ही इस विषय में दो बड़े सकुर्लेशन वाले दो अखबारों में इसका विज्ञापन देना होगा। खंडपीठ ने अधिवक्ता प्रशांत शुक्ला के जरिये रजनीश कुमार पांडेय की याचिका पर सुनवाई की है।
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इस वर्ष गेहूं और चावल का होगा रिकॉर्ड उत्पादन, ऐसे तैयार किया गया उत्पादन का आंकड़ा
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने 2024-25 के लिए मुख्य कृषि फसलों (खरीफ एवं रबी) के उत्पादन का दूसरा अग्रिम अनुमान जारी कर दिया है। इसमें चावल, गेहूं, मक्का, मूंगफली एवं सोयाबीन के रिकॉर्ड उत्पादन की उम्मीद जताई गई है।
मंत्रालय की ओर से जारी डाटा के अनुसार, खरीफ चावल का उत्पादन 1,206.79 लाख टन हो सकता है, जो 2023-24 की तुलना में 74.20 लाख टन ज्यादा है। पिछले वर्ष 1,132.59 लाख टन हुआ था। इसी तरह गेहूं का उत्पादन 1,154.30 लाख टन होने का आकलन है, जो 21.38 लाख टन अधिक है। पिछले वर्ष 1,132.92 लाख टन गेहूं का उत्पादन हुआ था।
खाद्यान्न का उत्पादनकेंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसे केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न कृषि योजनाओं के जरिए किसानों को सहायता एवं प्रोत्साहन का प्रतिफल बताया है।खरीफ और रबी मिलाकर कुल खाद्यान्न 3,328.18 लाख टन होने का अनुमान है। इसमें खरीफ 1,663.91 लाख टन और रबी 1,645.27 लाख टन शामिल है। पिछले वर्ष कुल 3,322.98 लाख टन खाद्यान्न का उत्पादन हुआ था।
खरीफ मक्का की उपजयानी इस वर्ष 5.20 लाख टन ज्यादा खाद्यान्न के उत्पादन का अनुमान है। अभी तीसरा अनुमान आना अभी बाकी है। डाटा के अनुसार, खरीफ मक्का की उपज 248.11 लाख टन रहने का अनुमान है, जो अबतक का सबसे ज्यादा है। रबी मक्का 124.38 लाख टन होने का अनुमान है। खरीफ श्रीअन्न का 137.52 लाख टन और रबी 30.81 लाख टन उत्पादन हो सकता है।
तिलहन का उत्पादनदालों की चाल भी अच्छी दिख रही है। तुअर (अरहर) 35.11 लाख टन, चना 115.35 लाख टन और मसूर 18.17 लाख टन होने का अनुमान है। तिलहन का उत्पादन भी पिछले वर्ष से ज्यादा है। खरीफ और रबी मिलाकर 416.69 लाख टन हो सकता है। पिछले वर्ष 396.69 लाख तिलहन का उत्पादन हुआ था।
रेपसीड एवं सरसों का अनुमानमूंगफली 104.26 लाख टन और रबी 8.87 लाख टन होने का अनुमान है। सोयाबीन का भी रिकॉर्ड 151.32 लाख टन उत्पादन हो सकता है। रेपसीड एवं सरसों का अनुमान 128.73 लाख टन का है। गन्ना निराश करने वाला है। पिछले वर्ष 4,531.58 लाख टन हुआ था, जबकि इस बार 4,350.79 लाख टन पर ही सिमट सकता है। कपास उत्पादन 294.25 लाख गांठ होने का अनुमान है। एक गांठ में 170 किलोग्राम कपास होती है।
ऐसे तैयार किया गया उत्पादन का आंकड़ाकृषि मंत्रालय ने इस आंकड़े को राज्यों से मिले फसलों के क्षेत्रफल को रिमोट सेंसिंग , फसल मौसम निगरानी समूह एवं अन्य एजेंसियों से प्राप्त इनपुट के आधार पर सत्यापित किया है।
इसके अलावा अनुमान को अंतिम रूप देने से पहले मंत्रालय ने खरीफ एवं रबी मौसम के लिए उद्योग एवं अन्य विभागों के अधिकारियों की राय ली है।
हितधारकों से परामर्श किया। साथ ही उपज अनुमान फसल कटाई प्रयोगों, पिछली प्रवृत्तियों एवं अन्य सहयोगी कारकों की भी पड़ताल कर तैयार किया है।
वोटर लिस्ट विवाद पर संसद में पहले दिन हंगामा, विपक्षी सांसदों ने किया वॉकआउट; राहुल गांधी ने की जांच की मांग
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। विपक्षी दलों ने महाराष्ट्र, हरियाणा और पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों में वोटर लिस्ट तथा मतदाता पहचान पत्र में कथित हेर-फेर की शिकायतों का दावा करते हुए सत्रावकाश के बाद शुरू हुए बजट सत्र के पहले ही दिन आक्रामक तरीके से इस उठाते हुए संसद में इस पर बहस की मांग की है।
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने वोटर लिस्ट में गंभीर विसंगतियों का दावा करते हुए स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के इस पर चर्चा को जरूरी करार दिया।
विपक्ष ने सदन से वॉकआउट कियाराहुल गांधी ने कहा कि महाराष्ट्र सहित देश भर में विपक्ष की ओर से एक स्वर में मतदाता सूची पर सवाल उठाए जा रहे हैं जिस पर सदन में चर्चा होनी चाहिए। राज्यसभा में ईपीआईसी-वोटर लिस्ट की विसंगतियों पर तत्काल चर्चा का नोटिस खारिज होने के बाद समूचे विपक्ष ने हंगामा करते हुए सदन से वॉकआउट किया।
टीएमसी ने पूछा- सूचियों में गलती क्यों हुई?लोकसभा में शून्यकाल के दौरान तृणमूल कांग्रेस के सौगत रॉय ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा राज्य के मुर्शिदाबाद और बर्धमान संसदीय क्षेत्रों और हरियाणा में समान नंबर के ईपीआईसी मौजूद होने के दावे को उठाते हुए कहा कि चुनाव आयोग को देश को यह जवाब देना चाहिए कि मतदाता सूचियों में यह गलतियां क्यों हुईं? जबकि वोटर लिस्ट में खामियों का मसला महाराष्ट्र और हरियाणा में आया तो इस पर ध्यान दिलाया गया।
राहुल गांधी ने की चर्चा की मांगटीएमसी सांसद के मुद्दा उठाने के बाद राहुल गांधी ने विपक्ष की ओर से स्पीकर के समक्ष चर्चा की मांग रखी। इसके बाद शून्यकाल में टीएमसी के कल्याण बनर्जी ने बंगाल में मतदाताओं की संख्या में वृद्धि का दावा करते हुए आरोप लगाया कि गुजरात और हरियाणा से इन्हें लाया जा रहा जो बर्दाश्त करने लायक नहीं है।
उन्होंने कहा कि आयोग चाहे दावे करे मगर स्पष्ट है कि पिछले कुछ सालों में कोई निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव नहीं हुआ है और उचित काम नहीं करने के लिए चुनाव आयोग के खिलाफ कार्यवाही की जानी चाहिए।
विपक्षी सांसदों का नोटिस खारिजराज्यसभा में उपसभापति हरिवंश ने वोटर लिस्ट विसंगतियों पर नियम 267 के तहत चर्चा का विपक्षी सांसदों का नोटिस खारिज कर दिया। नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने इसे उठाने की कोशिश की मगर इजाजत नहीं दी तो विरोध में विपक्षी सांसदों ने पहले हंगामा-नारेबाजी की और फिर वॉकआउट कर विरोध दर्ज कराया।
इससे पूर्व द्रमुक के त्रिची शिवा और केपी विल्सन, एमडीएमके के वाइको, सीपीआई के के संतोष कुमार आदि ने अगले परिसीमन में दक्षिण के राज्यों में लोकसभा सीटें घटने की चिंताओं पर चर्चा की मांग उठाई। जबकि कांग्रेस के प्रमोद तिवारी और अजय माकन और टीएमसी के साकेत गोखले और सागरिका घोष ने राज्यों में डुप्लीकेट मतदाता पहचान पत्र जारी किए जाने में चुनाव आयोग की कथित चूक पर चर्चा का मुद्दा उठाया।
सरकार हर मुद्दे पर चर्चा को तैयार: नड्डाकेंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री सदन के नेता जेपी नड्डा ने वॉकआउट को गैर-जिम्मेदाराना बताते हुए विपक्षी सांसदों को संसदीय नियमों का रिफ्रेशर कोर्स करने की नसीहत दी और आरोप लगाया कि 267 के तहत नोटिस देकर संसद और लोकतंत्र को बदनाम करने की कोशिश हो रही है। सरकार किसी भी मुद्दे पर चर्चा के लिए तैयार है मगर विपक्ष की बहस में दिलचस्पी नहीं।
पूरा विपक्ष विस्तृत चर्चा चाहता है: खरगेमल्लिकार्जुन खरगे ने एक्स पर बयान जारी कर कहा कि पूरा विपक्ष मतदाता सूची में विभिन्न विसंगतियों को लेकर उत्पन्न शंकाओं पर विस्तृत चर्चा चाहता है। खरगे ने कहा कि महाराष्ट्र में लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों के बीच सिर्फ छह महीनों में लाखों मतदाताओं की अचानक वृद्धि का मुद्दा उठाते हुए कांग्रेस ने मतदाता सूची मांगी है मगर चुनाव आयोग ने जवाब नहीं दिया है।
नेता विपक्ष ने कहा कि संसद को लोकतंत्र और संविधान के प्रति लोगों की आस्था की रक्षा करनी चाहिए और चुनावी प्रक्रिया की अखंडता को प्रभावित करने वाले ऐसे अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा कराए जाने की आवश्यकता है।
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Tamil-Hindi Row: 'छात्रों का भविष्य बर्बाद कर रही DMK', संसद से स्टालिन पर बरसे प्रधान; NEP पर हंगामा
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के त्रिभाषा फार्मूले और परिसीमन के मुद्दे पर तमिलनाडु की स्टालिन सरकार के साथ केंद्र सरकार की पहले से चल रही तनातनी सोमवार को तब और बढ़ गई, जब संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण के पहले दिन ही केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने एनईपी पर स्टालिन सरकार के रवैए की कड़ी आलोचना की और यूटर्न लेने का आरोप लगाया।
उन्होंने तमिलनाडु की स्टालिन सरकार को 'बेईमान' और 'असभ्य' भी बताया। हालांकि बाद में डीएमके सांसदों की आपत्ति के बाद प्रधान ने अपने इस शब्दों को वापस भी ले लिया।
डीएमके सांसदों ने सदन में किया हंगामाइस बीच डीएमके सांसदों ने लोकसभा में वेल में आकर पहले जमकर हंगामा किया और बाद में सदन का बहिर्गमन कर गए। राज्यसभा में भी डीएमके के सांसदों ने इस मुद्दे पर जमकर नारेबाजी और हंगामा किया है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने डीएमके सांसदों के रवैए की कड़ी आलोचना की।
लोकसभा अध्यक्ष ने दी चेतावनीउन्होंने कहा यदि ऐसा ही रवैया रहा तो उन्हें सवाल पूछने का मौका नहीं मिलेगा। लोकसभा में यह हंगामा तब हुआ, जब पीएम-श्री स्कीम से जुड़े सवाल पर तमिलनाडु को राशि नहीं दिए जाने को लेकर डीएमके सांसद ने पूरक सवाल पूछे। इस पर शिक्षा मंत्री प्रधान ने कहा कि पीएम श्री की राशि किसी भी राज्य को तभी मिलती है, जब वह एनईपी को लागू करने को लेकर वह करार करते है।
तमिलनाडु भी इसे लेकर तैयार हो गया था। जिसमें उसे भी कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश व पंजाब जैसे गैर-भाजपा शासित राज्यों की तरह यह छूट दी गई थी कि उन्हें कौन सी भाषा पढ़ानी है यह फैसला उन्हें करना है। केंद्र किसी पर कुछ थोपेगा नहीं। बाद में करार के समय तमिलनाडु सरकार इससे पलट गई।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने लगाए आरोपप्रधान ने आरोप लगाया कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन व राज्य के शिक्षा मंत्री इसे लेकर तैयार थे। इस संबंध में शिक्षा मंत्रालय के उनकी सहमति भी बन गई थी, लेकिन राज्य के 'सुपर सीएम' के दबाव में सीएम को अपने फैसले को बदलना पड़ा। इस बीच प्रधान ने कहा कि जिनके पास कोई तथ्य नहीं है वह केवल हल्ला करके विषय को भ्रमित करना चाहते है। हम किसी भी राज्य पर कोई भाषा नहीं थोप रहे है।
उन्होंने कहा कि तमिलनाडु सरकार शिक्षा जैसे मुद्दे पर ओछी राजनीति और राज्य के बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है। इस बीच सदन की कार्यवाही दोबारा शुरू होने पर डीएमके सांसद कनिमोझी ने प्रधान के असभ्य शब्द पर गहरी नाराजगी जताई और कहा कि यह राज्य के लोगों का अपमान है।
धर्मेंद्र प्रधान ने अपने शब्दों को लिया वापसप्रधान ने कहा कि यदि उन्हें किसी शब्द से तकलीफ हुई है, तो मैं उसे वापस लेता हूं। राज्यसभा में भी डीएमके सांसदों ने जमकर हंगामा किया व एनईपी के मुद्दे पर केंद्र सरकार को तमिल भाषा के साथ भेदभाव को आरोप लगाया। गौरतलब है कि तमिलनाडु में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए स्टालिन सरकार इन दिनों भाषा और परिसीमन के मुद्दे को गरमाए हुए है।
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Maharashtra Budget 2025: मुंबई और आसपास के शहरों की बदलेगी सूरत, ग्रोथ हब के तौर पर होंगे विकसित; बजट में एलान
जागरण, राज्य ब्यूरो, मुंबई। प्रचंड बहुमत के साथ नई पारी शुरू करने के तीन महीने बाद महाराष्ट्र की सत्तारूढ़ महायुति (राजग) सरकार ने मुंबई महानगर क्षेत्र (एमएमआर) को एक बड़े विकास केंद्र (ग्रोथ हब) के रूप में विकसित करने और मुंबई-पुणे-नासिक के बीच के स्वर्णिम त्रिभुज में विकास को बढ़ावा देने की अपनी योजना का अनावरण किया है।
उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने कहा कि मुंबई में अंतरराष्ट्रीय स्तर के सात व्यावसायिक केंद्रों की स्थापना की जाएगी। इससे शहर की अर्थव्यवस्था को मौजूदा 140 अरब डॉलर से बढ़ाकर 2047 तक 1.5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य है।
एमएमआर में ये जिले शामिलसोमवार को देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार ने 2025-26 का बजट पेश करते हुए कई नई पहलों की घोषणा की। फडणवीस ने कहा कि बजट महाराष्ट्र के विकास को बढ़ावा देनेवाला है। उनके साथ उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और अजीत पवार भी थे। पवार राज्य के वित्त और योजना मंत्री भी हैं। एमएमआर में मुंबई शहर और मुंबई उपनगरीय जिले और समीपवर्ती ठाणे, पालघर और रायगढ़ जिले शामिल हैं।
1.5 ट्रिलियन डॉलर लक्ष्यआज प्रस्तुत बजट में कहा गया है कि एमएमआर को अंतरराष्ट्रीय स्तर के आर्थिक विकास केंद्र (ग्रोथ हब) के रूप में विकसित किया जाएगा। बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स, कुर्ला-वर्ली, वडाला, गोरेगांव, नवी मुंबई, खारघर और विरार-बोइसर जैसे सात स्थानों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर के व्यावसायिक केंद्र स्थापित किए जाएंगे। इसका उद्देश्य मुंबई महानगर क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के आकार को मौजूदा 140 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़ाकर 2030 तक 300 बिलियन अमरीकी डॉलर और 2047 तक 1.5 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंचाना है।
नई मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का काम पूरा1,160 हेक्टेयर में फैले नई मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का 85 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। वहां से अप्रैल 2025 में घरेलू उड़ानें संचालित होंगी। इस बीच मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को नई मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से जोड़ने के लिए जल्द ही मेट्रो का काम भी शुरू किया जाएगा। एमएमआर के लिए तीसरा हवाई अड्डा पालघर जिले में वधावन बंदरगाह के पास बनाने की सहमति भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दे चुके हैं।
वधावन में बनेगा बुलेट ट्रेन का स्टेशनमुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन मार्ग पर वधावन बंदरगाह के पास एक स्टेशन स्थापित किया जाएगा। इसके अलावा वधावन बंदरगाह को मुंबई-नागपुर समृद्धि महामार्ग से भी जोड़ा जाएगा। रायगढ़ जिले के काशिद में फ्लोटिंग जेटी का काम जल्द ही शुरू होगा।
फडणवीस के अनुसार मुंबई के गेटवे ऑफ इंडिया से मांडवा और एलीफेंटा तक सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित करने के लिए आधुनिक, सुसज्जित नौकाओं के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करने हेतु एक नीति की घोषणा की जाएगी। ठाणे से नई मुंबई तक एक एलिवेटेड मार्ग भी बनाया जाएगा। स्वातंत्र्यवीर सावरकर वर्सोवा-बांद्रा सी लिंक परियोजना, बांद्रा और वर्सोवा के बीच 14 किलोमीटर तक फैली हुई है, जिसकी अनुमानित लागत 18,120 करोड़ रुपए है। इसे मई 2028 तक पूरा किया जाना है।
यहां शुरू होंगी नई मेट्रो लाइनपुणे से शिरूर तक 564 किलोमीटर लंबी सड़क के लिए 7,515 करोड़ रुपये की लागत से काम शुरू किया जाएगा। इसके अलावा मुंबई-नासिक-पुणे त्रिकोण पर स्थित तलेगांव से चाकन तक 25 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण किया जाएगा, जिसमें 4 एलिवेटेड सड़कें शामिल हैं। इस योजना पर 6,499 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। मुंबई, नागपुर और पुणे महानगरों की कई मेट्रो लाइनें अगले पांच वर्षों में चालू हो जाएगी।
कुंभ मेले की योजना भी बनी2027 के सिंहस्थ कुंभ मेले की मेजबानी करने वाले नासिक जिले में भी बड़े पैमाने पर विकास की योजना बनाई गई है। रामकाल पथ विकास परियोजना के तहत नासिक में रामकुंड, कालाराम मंदिर और गोदावरी नदी तट के विकास के लिए 146.10 करोड़ रुपए आवंटित किए जाएंगे। कुंभ मेले से पहले नमामि गोदावरी अभियान की रूपरेखा तैयार की गई है। कुंभ मेले के व्यवस्थित आयोजन के लिए एक विशेष प्राधिकरण की स्थापना भी की जाएगी।
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बिहार के सुभाष शर्मा को तेलंगाना में मिली मौत की सजा, गुनाह जानकार कांप उठेगा कलेजा
आईएएनएस, हैदराबाद। तेलंगाना के नलगोंडा की एक विशेष अदालत ने सोमवार को 2018 के ऑनर किलिंग मामले में एक भाड़े के हत्यारे को मौत की सजा और छह अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। एससी/एसटी अदालत ने छह साल पहले अनुसूचित जाति के युवक पी. प्रणय की हत्या के लिए बिहार के मूल निवासी सुभाष कुमार शर्मा को मौत की सजा सुनाई।
सरेआम की गई थी प्रणय की हत्याप्रणय की सार्वजनिक रूप से उस समय हत्या कर दी गई, जब वह गर्भवती पत्नी अमृता और मां के साथ 14 सितंबर 2018 को मिर्यालगुडा के एक निजी अस्पताल से बाहर आ रहा था। यह हत्या सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई थी। प्रणय ने ऊंची जाति की अमृता से विवाह किया था। वे बचपन के दोस्त थे। उनकी शादी 30 जनवरी 2018 को हैदराबाद के आर्य समाज मंदिर में हुई थी।
अमृता के पिता ने की आत्महत्याप्रणय की हत्या के लिए भाड़े पर हत्यारे बुलाने वाले अमृता के पिता मामले में पहले आरोपित थे। वह जब जमानत पर थे तो सात मार्च 2020 को आत्महत्या कर ली। मारुति राव पर अन्य आरोपित के माध्यम से भाड़े के हत्यारे सुभाष शर्मा को एक करोड़ रुपये देकर हत्या की साजिश रचने का आरोप था। छह साल तक चली सुनवाई के बाद अदालत ने शर्मा को दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई।
बाकी दोषियों को हुई आजीवन कारावास की सजाअन्य दोषियों में असगर अली, अब्दुल बारी, एमए करीम, मारुति राव के भाई श्रवण कुमार, ऑटो चालक निजाम और मारुति राव के कार चालक शिवा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। असगर अली 2003 में गुजरात के पूर्व गृह मंत्री हरेन पंड्या की हत्या का भी आरोपित है।
प्रणय के पिता पी बालास्वामी की शिकायत पर पुलिस ने आठ आरोपितों को गिरफ्तार किया था। 12 जून 2019 को पुलिस ने ट्रायल कोर्ट में 1,600 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की थी। सुभाष शर्मा को छोड़कर सभी आरोपितों को 2019 में जमानत मिल गई थी।
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'न काम के घंटे तय, न साप्ताहिक अवकाश', 29 साल से हो रही मांग; आखिर पुलिस सुधारों पर कब लगेगी मुहर?
जागरण टीम, नई दिल्ली। देश में सभी नागरिक भयमुक्त और सुरक्षित जीवन जी सकें, इसमें पुलिस व्यवस्था की अहम भूमिका है। तमाम कमियों के बावजूद पुलिस 365 दिन और चौबीसों घंटे कानून व्यवस्था बनाए रखने का काम करती है, लेकिन वर्तमान व्यवस्था में ऐसा लगता है कि पुलिसकर्मी इंसान नहीं, मशीन हैं। वे दिन रात काम करते हैं। उनके काम के घंटे तय नहीं हैं। उनको अवकाश मिलना भी उच्च अधिकारियों के विवेक पर निर्भर करता है।
अब सर्वोच्च न्यायालय उनके काम के घंटे तय करने और साप्ताहिक अवकाश सुनिश्चित करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हुआ है। सवाल उठता है कि जब पुलिस की जवाबदेही तय करने के लिए राजनीतिक दल और समाज हमेशा मुखर रहता है तो एक कर्मचारी के तौर पर उनको न्यूनतम मानवीय अधिकारों से वंचित रखे जाने के खिलाफ कहीं से कोई आवाज क्यों नहीं उठती है।
आजादी के बाद से ही पुलिस सुधारों की बात हो रही है। 1996 में प्रकाश सिंह पुलिस सुधारों की मांग लेकर सर्वोच्च अदालत पहुंचे थे, लेकिन आज भी जमीन पर हालात बदले नहीं हैं। पुलिसकर्मियों को जरूरी मानवीय सुविधाओं से वंचित रखने और पुलिस सुधार लागू न हो पाने के कारणों की पड़ताल ही आज का मुद्दा है?
पुलिस क्या काम करती है?पुलिस को अपराध की जांच, कानून व्यवस्था से जुड़ी ड्यूटी, सूचनाएं जुटाने के साथ पेट्रोलिंग भी करनी पड़ती है। पुलिसकर्मियों को वीआइपी ड्यूटी और त्योहारों व विशेष आयोजनों के दौरान व्यवस्था की देखरेख में भी लगाया जाता है। इन कामों के साथ पुलिसकर्मियों को अदालत से जुड़े जटिल काम भी करने होते हैं।
धर्मवीर आयोग (राष्ट्रीय पुलिस आयोग) ने क्या सिफारिश की थी?पुलिस सुधारों को लेकर सबसे पहले 1977 में धर्मवीर की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया गया। इसे राष्ट्रीय पुलिस आयोग कहा जाता है। चार वर्षों में इस आयोग ने केंद्र सरकार को आठ रिपोर्ट सौंपी थीं, लेकिन इसकी सिफारिशों पर अमल नहीं किया गया।
धर्मवीर आयोग की प्रमुख सिफारिशें- हर राज्य में एक प्रदेश सुरक्षा आयोग का गठन किया जाए
- जांच कार्यों को शांति व्यवस्था संबंधी कामकाज से अलग किया जाए
- पुलिस प्रमुख की नियुक्ति के लिए एक विशेष प्रक्रिया अपनाई जाए
- पुलिस प्रमुख का कार्यकाल तय किया जाए
- -एक नया पुलिस अधिनियम बनाया जाए
गृह मंत्रालय के स्टेटस नोट के अनुसार, पुलिस सुधारों के लिए पिछले कई वर्षों में विभिन्न समितियों/आयोगों का गठन किया गया। पुलिस के पुनर्गठन पर पद्मनाभैया समिति (2000) और आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधारों पर मलीमठ समिति (2002-03) के सुझाव उल्लेखनीय हैं।
साल 1998 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर जूलियो रिबेरो की अध्यक्षता में एक अन्य समिति का गठन किया गया था। इसका काम केंद्र सरकार/राज्य सरकारों/संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों द्वारा की गई कार्रवाई की समीक्षा करने और आयोग की लंबित सिफारिशों को लागू करने के तरीके सुझाना था।
पुलिस सुधारों पर 2006 में सुप्रीम कोर्ट के सात निर्देश- स्टेट सिक्योरिटी कमीशन का गठन किया जाए, ताकि पुलिसकर्मी बिना दवाब के काम कर सकें।
- पुलिस कंप्लेंट अथॉरिटी बनाई जाए, जो पुलिस के खिलाफ आने वाली गंभीर शिकायतों की जांच कर सके।
- थाना प्रभारी से लेकर पुलिस प्रमुख तक का एक स्थान पर दो वर्ष का ही कार्यकाल हो।
- नया पुलिस अधिनियम लागू किया जाए।
- अपराध की विवेचना और कानून व्यवस्था के लिए अलग पुलिस की व्यवस्था की जाए।
- पुलिस उपाधीक्षक के पद से नीचे के अधिकारियों के स्थानांतरण, पोस्टिंग, पदोन्नति और सेवा से संबंधित अन्य मामलों को तय करने के लिए राज्य स्तर पर पुलिस स्थापना बोर्ड बनाया जाए।
- केंद्र सरकार को सुझाव दिया गया कि वह केंद्रीय स्तर पर एक राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग बनाए। इसका काम केंद्रीय पुलिस संगठनों के प्रमुखों के चयन और नियुक्ति के लिए एक पैनल तैयार करना था, जिनका न्यूनतम कार्यकाल दो वर्ष का हो।
सर्वोच्च न्यायालय में मामला अंतिम बार 16 अक्टूबर, 2012 को सुनवाई के लिए आया था। सभी राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और भारत संघ को निर्देश दिया गया था कि वे 2006 में शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए निर्देशों के संदर्भ में स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करें।
गृह मंत्रालय ने 26 फरवरी, 2013 को सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामे के माध्यम से एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल की थी और मामला फिलहाल विचाराधीन है।
दूसरे देशों में पुलिस के काम के घंटेब्रिटेन- 40 घंटे प्रति सप्ताह काम करते हैं पुलिस वाले ब्रिटेन में
- 22 दिन की न्यूनतम सालाना छुट्टी मिलती है
- सप्ताह में एक दिन की छुट्टी का है प्रावधान
- सैलरी के साथ मिलती है सिक लीव
- 40 घंटे प्रति सप्ताह का वर्क शेड्यूल लागू
- 8 घंटे 35 मिनट की शिफ्ट में काम करती है न्यूयॉर्क पुलिस
- 5 दिन काम के बाद दो दिन मिलता है आफ
- 9 घंटे की शिफ्ट में काम करती है सिएटल पुलिस
- 10 घंटे की शिफ्ट होती है दिन व शाम की। रात में 8.30 घंटे की शिफ्ट
- 3 शिफ्ट में संचालित होते हैं पुलिस स्टेशन
- लंबी शिफ्ट के बाद पुलिसकर्मियों को मिलता है रेस्ट डे
- 12 घंटे की शिफ्ट का सिस्टम 2009 तक लागू था
- अब 8 घंटे की शिफ्ट में काम करती है स्थानीय पुलिस
पढ़ाई हो चुकी पूरी... मगर कैंपस प्लेसमेंट में क्यों आ रही दिक्कत, AI ने बढ़ाई टेंशन या कुछ और है कहानी?
जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली। पिछले वर्ष की तुलना में वर्ष 2025 में उद्योगों में होने वाली नियुक्ति में 11.1 प्रतिशत वृद्धि होने का अनुमान है। समग्रता में तो यह युवाओं के लिए अच्छा है, लेकिन कॉलेजों में इसी वर्ष पढ़ाई पूरी कर कैंपस प्लेसमेंट की आस संजोने वालों के लिए चुनौती बनी हुई है। इसका प्रमुख कारण यह है कि उद्योग जगत में सर्वाधिक मांग एक से पांच वर्ष तक अनुभव वालों की है।
14 फीसदी प्रेशर्स रखना चाहती है कंपनियांताजा रिपोर्ट में वर्ष 2025 के लिए नियुक्तियों की मांग का आकलन किया गया है। इसमें बताया गया है कि कंपनियां नई नियुक्तियों में फ्रेशर्स मात्र 14 प्रतिशत रखना चाहती हैं। इसमें भी कैंपस प्लेसमेंट के लिए अनुमान लगभग दस प्रतिशत है। महत्वपूर्ण यह भी है कि नियुक्ति प्रक्रिया में एआई का उपयोग कुछ ही समय में 38 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान है।
इस सर्वे में सामने आए चौंकाने वाले आंकड़ेइंडिया हायरिंग इंटेंट सर्वे- 2025 भारत में रोजगार के बाजार की नब्ज टटोलता है। इसके निष्कर्ष बताते हैं कि सभी उद्योगों में एक से पांच वर्ष के अनुभव वाले उम्मीदवारों के बीच प्रतिभा की मांग सबसे अधिक है। इस वर्ग के अभ्यर्थियों की नियुक्ति के लिए 55.2 प्रतिशत कंपनियों ने सकारात्मक रुख दिखाया है।
सभी वर्गों में फ्रेशर्स की मांग घटीकुल नियुक्तियों में इस वर्ग की भागीदारी 47 प्रतिशत संभावित है। सभी अनुभव वर्गों में फ्रेशर्स की मांग कम है। सभी उद्योगों से औसतन 14 प्रतिशत नई नियुक्तियां फ्रेशर्स की होने की उम्मीद है। 26 प्रतिशत नई नियुक्तियां 6-10 वर्ष के अनुभव वाले उम्मीदवारों के अनुभव वर्ग से होने की उम्मीद है।
ऑटोमोटिव उद्योग में फ्रेशर्स की मांगयहां इसे इस रूप में नहीं देखा जा सकता कि अनुभव को ही हाथों-हाथ लिया जा रहा है, क्योंकि दस वर्ष से अधिक अनुभव रखने वालों की मांग तो फ्रेशर्स से भी कम आंकी गई है। हालांकि, कुछ उद्योग अभी भी फ्रेशर्स को काम पर रखने में रुचि दिखा रहे हैं। इनमें ऑटोमोटिव उद्योग 21 प्रतिशत नए कर्मचारियों के साथ सबसे आगे है। इसके विपरीत विनिर्माण उद्योग में फ्रेशर्स की सबसे कम मांग होने का अनुमान है, जिसमें केवल पांच प्रतिशत नए कर्मचारियों के इस समूह से आने की उम्मीद है।
बैंकिंग, फाइनेंशियल सर्विसेज व इंश्योरेंस सेक्टर भी फ्रेशर्स को लेकर सकारात्मक है। इस क्षेत्र में 20 प्रतिशत नए कर्मचारी इस अनुभव वर्ग से आते हैं। फार्मा-हेल्थकेयर और आईटी जैसे अन्य उद्योगों में मांग क्रमश: नौ और 20 प्रतिशत नए कर्मचारी फ्रेशर्स होने की उम्मीद है। बाजार की इस डिमांड स्टोरी के लिए नियुक्ति प्रक्रिया का प्रचलन भी गौर करने लायक है।
जॉब पोर्टल पर अधिक विश्वासनियुक्ति के माध्यम की बात करें तो कंपनियां दस प्रतिशत नई नियुक्ति कैंपस प्लेसमेंट के माध्यम से करना चाहती हैं, जबकि सबसे अधिक विश्वास उन्हें जॉब पोर्टल पर है। दूसरे स्थान पर वह कंपनियों की आंतरिक अनुशंसा (इंटरनल रेफरल) पर विश्वास रखती हैं। इसी तरह आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) के बढ़ते प्रभाव से रोजगार का बाजार भी अछूता नहीं है।
इंडिया स्किल्स रिपोर्ट का यह संस्करण संकेत देता है कि भर्ती प्रक्रिया में स्क्रीनिंग, मूल्यांकन, भर्ती अनुशंसा से लेकर साक्षात्कार में एआई के उपयोग में 38 प्रतिशत वृद्ध होने की संभावना है। बैंकिंग, फाइनेंशियल सर्विसेज व इंश्योरेंस सेक्टर के 100 प्रतिशत नियोक्ताओं ने एआई पर विश्वास जताया है, जबकि आईटी में इसका दखल 67 प्रतिशत तक पहुंच चुका है।
अनुभव वर्ग और मांग
फ्रेशर्स 14 प्रतिशत 1 से 5 वर्ष 47 प्रतिशत 6 से 10 वर्ष 26 प्रतिशत 10 वर्ष या उससे अधिक 13 प्रतिशत नियुक्ति माध्यमप्रतिशत जॉब पोर्टल 37 प्रतिशत इंटरनल रेफरल 32.5 प्रतिशत सोशल मीडिया और नेटवर्क 13 प्रतिशत कैंपस प्लेसमेंट 10 प्रतिशत रिक्रूटमेंट एजेंसी 5 प्रतिशत कंपनी वेबसाइट 2.5 प्रतिशत
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यूरोपियन यूनियन के ट्रेड में भारत का हिस्सा सिर्फ 2.2%, मुक्त व्यापार समझौते से इसे बढ़ाने की गुंजाइश
जागरण प्राइम, नई दिल्ली।
भारत और यूरोपियन यूनियन के बीच मुक्त व्यापार समझौता पर सोमवार को फिर बातचीत शुरू हुई है। वैसे तो यूरोपियन यूनियन (ईयू) के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर चर्चा करीब डेढ़ दशक पुरानी है, लेकिन कई मुद्दों पर दोनों पक्षों में सहमति नहीं बन पाने के कारण इसे अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है। विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका में ट्रंप प्रशासन की तरफ से टैरिफ का दबाव बढ़ने के बाद भारत के साथ ईयू भी निर्यात की संभावनाएं तलाश रहा है। इसलिए इस साल के अंत तक इसे अंतिम रूप दे दिए जाने की संभावना है।
हालांकि विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि समझौते को अंतिम रूप देना काफी जटिल काम है। यूरोपियन यूनियन चाहता है कि भारत कारों पर आयात शुल्क कम करे जो अभी 100% तक है। ईयू की मांग वाइन तथा व्हिस्की पर भी टैरिफ कम करने की है। भारत की मांग है कि फार्मास्यूटिकल, टेक्सटाइल तथा अपैरल पर ईयू व्यापार बाधाएं कम करे और भारत को बेहतर मार्केट एक्सेस प्रदान करे।
भारत-ईयू द्विपक्षीय कारोबारयूरोपियन यूनियन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। वर्ष 2023-24 में भारत के कुल विदेश व्यापार (वस्तु आयात और निर्यात) में 12.3% हिस्सेदारी ईयू की थी। तुलनात्मक रूप से देखें तो भारत के कुल व्यापार में अमेरिका के हिस्सेदारी 10.7% और चीन की 10.6% थी। दूसरी तरफ, यूरोपियन यूनियन के लिए भारत नौवां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। वर्ष 2023 में ईयू के कुल ट्रेड में भारत का हिस्सा सिर्फ 2.2% था।
वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2023-24 में भारत ने कुल 437 अरब डॉलर का मर्केंडाइज निर्यात किया था। इसमें से 75.92 अरब डॉलर का निर्यात यूरोपियन यूनियन को हुआ। यह अमेरिका को 77.51 अरब डॉलर के निर्यात के बाद सबसे अधिक है। भारत ने चीन को 16.65 अरब डॉलर का निर्यात किया। उस वर्ष ईयू से आयात 61.48 अरब डॉलर का हुआ। सबसे अधिक आयात चीन से 101.73 अरब डॉलर का और अमेरिका से 42.19 अरब डॉलर का हुआ। इस तरह कुल व्यापार (आयात और निर्यात) ईयू के साथ सबसे अधिक 137.4 अरब डॉलर का रहा।
एफटीए की संभावनाओं पर अमेरिका की जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल इकोनॉमिक पॉलिसी में विशिष्ट विजिटिंग स्कॉलर डॉ. अजय छिब्बर जागरण प्राइम से कहते हैं, “ईयू भारत के सबसे बड़े निर्यात बाजारों में एक है। 2023 में भारत ने ईयू को 75.2 अरब डॉलर की वस्तुओं और 31.13 अरब डॉलर की सेवाओं का निर्यात किया। उस वर्ष ईयू का आयात करीब 2.8 लाख करोड़ डॉलर का था। इसलिए भारत के पास निर्यात बढ़ाने की गुंजाइश बहुत अधिक है। ईयू ने 2.8 लाख करोड़ डॉलर का निर्यात भी किया, जिसमें भारत को वस्तुओं का निर्यात 63.44 अरब डॉलर और सेवाओं का 31.35 अरब डॉलर का था। इस तरह देखें तो ईयू के लिए भारत बहुत छोटा बाजार है। लेकिन भारत काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है और अगर ट्रेड डील हो जाए तो वर्ष 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार 600 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है।”
मुक्त व्यापार समझौते की अड़चनेंफरवरी के अंत में यूरोपियन कमीशन की प्रेसिडेंट उर्सुला वॉन डेर लायेन के नेतृत्व में एक बड़ा दल भारत आया था। भारत के साथ जल्दी एफटीए की उम्मीद जताते हुए लायेन ने कहा कि यह समझौता अपनी तरह का दुनिया का सबसे बड़ा समझौता होगा। लायेन के अनुसार सेमीकंडक्टर, क्लीन टेक्नोलॉजी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ऐसे सेगमेंट हैं जिन्हें ट्रेड एग्रीमेंट से फायदा होने की उम्मीद है। उस बैठक के बाद भारत सरकार ने भी कहा था कि ईयू के साथ साझेदारी बढ़ाई जाएगी और इसमें तेजी लाई जाएगी।
पिछले एक दशक में भारत और ईयू के बीच व्यापार लगभग 90% बढ़ा है। द्विपक्षीय व्यापार बढ़ने के के बावजूद एफटीए पर सहमति नहीं बन पाई है। डॉ. अजय छिब्बर इसके कई कारण बताते हैं। वे कहते हैं, “कार, वाइन और बल्क कृषि उत्पादों पर भारत का टैरिफ बहुत अधिक है। निवेश सुरक्षा का समझौता अपर्याप्त है, सरकारी खरीद में भागीदारी का भी सवाल है। भारत के लिहाज से देखें तो ईयू ने लगभग 700 फार्मा प्रोडक्ट की बिक्री पर रोक लगा रखी है, जबकि भारत में उनका परीक्षण हो चुका है। डेटा सुरक्षा का मसला है जिसकी वजह से भारत आईटी से संबंधित सर्विसेज का निर्यात ईयू को नहीं कर सकता। इसके अलावा ईयू में काम करने के लिए भारतीय प्रोफेशनल के जाने, पेटेंट की एवरग्रीनिंग और कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मेकैनिज्म (CBAM) के मुद्दे हैं। सीबीएएम या कार्बन टैक्स के रूप में 20 से 35 प्रतिशत शुल्क लगने की संभावना है।”
भारत ने ईयू के पर्यावरण संबंधी नियमों पर भी आपत्ति जताई है। इसमें स्टील, एल्यूमिनियम और सीमेंट पर बॉर्डर कार्बन टैक्स शामिल है। यह टैक्स अगले साल लागू होने वाला है। भारत अपने स्किल्ड प्रोफेशनल्स के लिए ईयू में आसान एक्सेस चाहता है। इससे भारत के आईटी प्रोफेशनल्स को फायदा मिलेगा। यूरोप से आयात के मामले में भारत की चिंता कारों के साथ कृषि उत्पादों को लेकर भी है। ईयू में कृषि पर काफी सब्सिडी दी जाती है। यूरोप से सस्ता आयात होने पर भारतीय किसानों को नुकसान हो सकता है।
ईयू चाहता है कि भारत खासकर यूरोप की छोटी कंपनियों को निर्यात बढ़ाने के लिए बाधाएं हटाए, सर्विसेज के साथ सरकारी खरीद को विदेशी कंपनियों के लिए और खोले, ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) की रक्षा सुनिश्चित की जाए, जिन नियमों पर सहमति बने उनका पालन हो तथा निवेशकों को सुरक्षित निवेश का माहौल उपलब्ध कराया जाए। गौरतलब है कि भारत में यूरोपियन यूनियन की 6000 से अधिक कंपनियां बिजनेस कर रही हैं।
थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के फाउंडर अजय श्रीवास्तव कहते हैं, “भारत और यूरोपियन यूनियन के बीच एफटीए में मुख्य गतिरोध कृषि, ऑटोमोबाइल शुल्क और प्रोफेशनल्स की आसान मोबिलिटी को लेकर है। ईयू भारत से ऑटोमोबाइल आयात शुल्क कम करने की मांग कर रहा है, लेकिन भारत इसे लेकर सहज नहीं है। इसी तरह, भारत ईयू से प्रोफेशनल्स के लिए आसान मोबिलिटी (वर्क वीजा, परमिट आदि) की मांग कर रहा है, जिस पर अब तक आश्वासन नहीं मिला है। इसके अलावा, ईयू भारत से डेयरी उत्पादों पर शुल्क घटाने की मांग कर रहा है, जिसके लिए भारत तैयार नहीं है।”
समझौते की संभावना कितनीडॉ. छिब्बर कहते हैं, निश्चित रूप से ट्रंप की टैरिफ की धमकी इसके पीछे काम कर रही है। अगर ट्रंप के टैरिफ का दोनों पक्षों पर बड़ा प्रभाव पड़ता है तो वे बातचीत के लिए आगे बढ़ेंगे। भारत इसी तरह की डील के लिए अमेरिका के साथ भी बात कर रहा है, लेकिन वहां भी अनेक अड़चनें हैं। अगर ईयू और भारत टैरिफ घटाने पर सहमत होते हैं तो उससे द्विपक्षीय वार्ता में काफी मदद मिलेगी। अभी यूरोपियन फ्री ट्रेड एसोसिएशन (ईएफटीए) के चार देशों- आइसलैंड, लीचटेंस्टीन, नॉर्वे और स्विट्जरलैंड के साथ भारत का समझौता है जिस पर पिछले साल 10 मार्च को दस्तखत किए गए थे। उसमें द्विपक्षीय निवेश 100 अरब डॉलर से अधिक ले जाने की बात है। उस ट्रेड डील के नतीजे अच्छे रहे हैं।
वे कहते हैं, ईयू और भारत की ट्रेड एवं टेक्नोलॉजी काउंसिल को आगे का रास्ता तैयार करना होगा। कृषि दोनों पक्षों के लिए राजनीतिक और आर्थिक लिहाज से सबसे बड़ी बाधा होगी और इस पर सहमति बनाना आसान नहीं होगा। सीबीएएम पर सहमति बनाने के लिए भी अधिक समय की जरूरत पड़ेगी।
कैसे वार्ता तक सीमित रहा भारत-ईयू एफटीएवर्ष 2008 में एक ट्रेड इंपैक्ट एसेसमेंट हुआ था जिसमें बताया गया कि अगर भारत और यूरोपियन यूनियन के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट होता है तो इससे दोनों पक्षों को शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म में फायदा होगा। शॉर्ट टर्म में दोनों पक्षों का बिजनेस 3 अरब यूरो से 4.4 अरब यूरो तक बढ़ने की संभावना है।
उसके बाद भारत और ईयू के बीच एफटीए पर बातचीत शुरू हुई लेकिन 2013 में टूट गई। अप्रैल 2022 में यूरोपियन कमीशन की प्रेसिडेंट उर्सुला लायेन दिल्ली आई थीं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी यूरोप का दौरा किया था। तब भी एफटीए पर तेजी लाने का फैसला हुआ था।
नौ साल तक बातचीत ठप रहने के बाद जून 2022 में दोनों पक्षों ने एफटीए पर बातचीत शुरू की थी। तब से नौ दौर की बातचीत हो चुकी है। उस समय एफटीए के अलावा इन्वेस्टमेंट प्रोटेक्शन एग्रीमेंट (आईपीए) और ज्योग्राफिकल इंडिकेटर एग्रीमेंट (जीआईए) पर भी वार्ता शुरू हुई थी।
जून 2022 में नए सिरे से वार्ता शुरू होने के बाद 23-27 सितंबर 2024 को नई दिल्ली में नौवें दौर की बातचीत हुई थी। अगले दौर की बातचीत 2025 की पहली तिमाही में ब्रसेल्स में होनी तय हुई थी। यूरोपियन कमीशन की तरफ से दी गई जानकारी के मुताबिक उस वार्ता में मार्केट एक्सेस पर फोकस था, लेकिन कोई खास प्रगति नहीं हुई। टेक्सटाइल प्रोडक्ट, वुड और पेपर प्रोडक्ट, केमिकल प्रोडक्ट, बहुमूल्य धातु और इनके प्रोडक्ट पर मामूली प्रगति ही हुई। ज्यादातर मामलों में दोनों पक्षों की राय एक-दूसरे से काफी जुदा थी। ईयू की कंपनियों और उनके वस्तुओं पर मेक इन इंडिया नीति के प्रभाव पर भी बात कुछ खास नहीं बढ़ पाई।
बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत और यूरोपियन यूनियन, दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है। वस्तु और सेवा मिलाकर भारत से यूरोपियन यूनियन को करीब 100 अरब डॉलर का निर्यात होता है। लेकिन ईयू का वस्तुओं और सेवाओं का करीब 2.8 लाख करोड़ डॉलर का आयात करता है। इस तरह देखें तो भारत के लिए ईयू के बाजार में बिजनेस बढ़ाने की काफी गुंजाइश है। भारत हमेशा इस डील का इच्छुक रहा है क्योंकि ईयू एक विशाल बाजार है जिसमें भारत की पहुंच बहुत सीमित है।
दूसरी तरफ यूरोपियन यूनियन को भी भारत को जरूरत है। ईयू के प्रति अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का रवैया स्पष्ट है। अमेरिका को उसका निर्यात कम होगा, इसलिए उसे दूसरे बाजारों की तलाश है। भारत जल्दी ही दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बन जाएगा। इस तरह ईयू के लिए भी भारत को निर्यात बढ़ाने के मौके बनेंगे।
डॉ. छिब्बर के अनुसार, “ईयू को सस्ती जेनरिक दवाओं, विमान और कारों के पार्ट्स, इलेक्ट्रिकल मशीनरी, हीरा तथा केमिकल के क्षेत्र में फायदा हो सकता है। भारत के लिहाज से देखें तो सस्ती स्पिरिट और डेयरी प्रोडक्ट का फायदा मिलेगा। साथ ही आईटी से संबंधित बैक ऑफिस कार्य के सौदे अधिक मिलेंगे।”
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत और ईयू दोनों दुनिया में बढ़ते संरक्षणवाद और ट्रेड टैरिफ के प्रभाव को कम करना चाहते हैं। बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव के कारण जो आर्थिक जोखिम पैदा हुए हैं, इस डील से उन्हें भी कम करने में मदद मिलेगी।
Air India: एअर इंडिया फ्लाइट का टॉयलेट जाम, वापस शिकागो लौटा विमान; एयरलाइन ने कहा- 'पैसे रिफंड होंगे'
एजेंसी, नई दिल्ली। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, सोमवार सुबह बम की धमकी के बाद मुंबई से न्यूयॉर्क जाने वाली एयर इंडिया की फ्लाइट वापस मुंबई लौट गई है। 320 से अधिक लोगों को लेकर जा रहा यह विमान सुरक्षित रूप से मुंबई उतरा और सुरक्षा एजेंसियों द्वारा अनिवार्य जांच की जा रही है।
एयर इंडिया का आया बयान
एयर इंडिया ने एक बयान में कहा, "आज 10 मार्च 2025 को मुंबई-न्यूयॉर्क (जेएफके) उड़ान भरने वाले एआई119 में उड़ान के दौरान संभावित सुरक्षा खतरे का पता चला। आवश्यक प्रोटोकॉल का पालन करने के बाद, विमान में सवार सभी लोगों की सुरक्षा के हित में विमान को वापस मुंबई ले जाया गया।"
सूत्रों ने बताया कि विमान में बम होने की धमकी दी गई थी और विमान के एक शौचालय में एक नोट मिला था। एक सूत्र ने बताया कि बोइंग 777-300 ईआर विमान में 119 चालक दल के सदस्यों सहित 322 लोग सवार थे।
एअर इंडिया विमान का शौचालय जामवहीं एक अन्य मामले में एअर इंडिया के विमान ने गुरुवार को अमेरिका के शिकागो से दिल्ली के लिए उड़ान भरी थी, लेकिन करीब 10 घंटे बाद विमान को वापस शिकागो लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा। अमेरिकी मीडिया के अनुसार, शिकागो से दिल्ली के लिए उड़ान भरने वाले विमान में कथित तौर पर सभी शौचालय जाम हो गए थे। विमान के 12 में से 11 शौचालय काम नहीं कर रहे थे और सिर्फ बिजनेस क्लास का ही एक शौचालय चल रहा था।
अब घटना को लेकर एयरलाइन ने सफाई दी है। एअर इंडिया के प्रवक्ता ने बताया कि छह मार्च को शिकागो से दिल्ली के लिए उड़ान भरने वाली एआइ126 विमान तकनीकी समस्या के कारण शिकागो वापस लौट गया। शिकागो में उतरने पर, यात्रियों और चालक दल को आवासीय सुविधा प्रदान की गई। इसके बाद यात्रियों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की गई।
एयरलाइन ने ये भी बताया कि यात्रियों को उड़ान रद होने पर पैसे रिफंड कर दिए जाएंगे। एयरलाइन ने कहा कि उनके लिए यात्रियों की सुविधा और सुरक्षा सर्वोपरि है। विमान में सवार 300 यात्रियों की परेशानी को देखते हुए विमान को वापस शिकागो ले जाया गया।
14 घंटे की यात्रा में मात्र पांच घंटे बाद ही यह समस्या उत्पन्न हो गई, जिसके कारण विमान को शिकागो के ओहारे अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर वापस लौटना पड़ा। यात्रियों ने दावा किया कि उन्हें अपनी उड़ानों को पुनर्निर्धारित करने या पैसे वापस पाने के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ी।
Hindon Airport: गोवा के बाद अब गाजियाबाद से मुंबई के लिए भरें उड़ान, टिकट बुकिंग को लेकर पढ़ें अपडेट
'ओडिशा का हिस्सा बनना कोशल की ऐतिहासिक भूल', BJP विधायक के बयान पर भड़का विवाद; जयराम रमेश ने खूब सुनाया
पीटीआई, नई दिल्ली। कांग्रेस ने सोमवार को ओडिशा के विधायक जयनारायण मिश्रा की उस टिप्पणी को लेकर भाजपा पर हमला बोला जिसमें उन्होंने कहा था कि कोशल का ओडिशा का हिस्सा बनना एक 'ऐतिहासिक' भूल थी। साथ ही, इस मुद्दे पर केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की चुप्पी पर भी सवाल उठाया।
कांग्रेस महासचिव और संचार प्रभारी जयराम रमेश ने एक्स पर एक मीडिया रिपोर्ट साझा की जिसमें दावा किया गया था कि एक कार्यक्रम में राज्य गीत 'बंदे उत्कल जननी' गाए जाने पर मिश्रा खड़े नहीं हुए थे।
जयराम रमेश ने एक्स पर लिखा, "प्रिय धर्मेंद्र प्रधान जी, आप अपने संबलपुर के साथी के बयानों और कार्यों पर चुप क्यों हैं, जो ओडिशा राज्य गीत 'बंदे उत्कल जननी' गाए जाने पर खड़े नहीं हुए।"
क्या था भाजपा विधायक का बयान
बता दें, वरिष्ठ भाजपा विधायक जयनारायण मिश्रा ने शनिवार को कहा था कि 1936 में कोशल का ओडिशा का हिस्सा बनना एक ऐतिहासिक भूल थी, क्योंकि यह क्षेत्र उपेक्षित रहा है।
संबलपुर में एक सरकारी समारोह को संबोधित करते हुए, विधायक मिश्रा ने कहाथा कि ओडिशा का गठन तीन क्षेत्रों- उत्कल जिसमें तटीय क्षेत्र शामिल था, दक्षिण में कलिंग और पश्चिम में कोशल को मिलाकर किया गया था।
क्षेत्र के सबसे बड़े शहर संबलपुर से भाजपा विधायक जयनारायण मिश्रा ने कहा, "ओडिशा के गठन के दौरान कोशल का विलय एक गलती थी। हमें नजरअंदाज किया गया है।" उन्होंने कहा, "इस क्षेत्र के लोगों ने ओडिशा के साथ विलय के आंदोलन में भाग लिया। लेकिन यह हमारी सबसे बड़ी गलती थी।"
'तीसरा बच्चा पैदा करो और इनाम पाओ', TDP सांसद ने क्यों किया ऐसा एलान?
एएनआई,अमरावती। तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) के सांसद कालीसेट्टी अप्पाला नायडू ने महिलाओं को तीसरा बच्चा होने पर गिफ्ट देने का वादा किया है। अगर बच्चा लड़का हुआ तो गाय और लड़की हुई तो 50,000 रुपये दिए जाएंगे। सांसद ने कहा कि यह रकम वह अपने वेतन से देंगे।
सांसद ने यह एलान अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर एक कार्यक्रम में की। इस खबर से आंध्र प्रदेश में हलचल मच गई है। मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू समेत तेदेपा के कई नेता युवा आबादी घटने पर चिंता जता चुके हैं और इसे बढ़ाने की बात कर रहे हैं। सांसद अप्पलनायडू का यह कदम इसी दिशा में एक प्रयास माना जा रहा है।
क्यों लिया ये फैसला?आंध्रप्रदेश के विजयनगरम से तेदेपा सांसद कालीसेट्टी अप्पाला नायडू ने कहा
उनका यह कदम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री नायडू के आह्वान के बाद उठाया गया है। दोनों नेताओं ने जनसंख्या वृद्धि के लिए कदम उठाने और तीसरा बच्चा होने पर प्रोत्साहन देने की बात कही थी। उन्होंने कहा कि पचास हजार रुपये का बैंक में फिक्सड डिपाजिट करेंगे, जो रकम बेटी की शादी की उम्र तक दस लाख रुपये हो जाएगी।
महिलाओं ने दिया ऐसा रिएक्शन- तेदेपा सांसद की यह घोषणा इंटरनेट मीडिया में तेजी से प्रसारित हो रही है।
- इंटरनेट मीडिया पर अप्पा नायडू की इस पेशकश को तेदेपा नेता और कार्यकर्ता पूरे जोरशोर से साझा कर रहे हैं।
- तेदेपा नेताओं का दावा है कि महिलाओं ने भी इस घोषणा को हाथोंहाथ लिया है और वह इसे लेकर काफी उत्साहित हैं।
- इससे पहले, मार्च में ही दिल्ली दौरे के दौरान मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने भी चिंता जताते हुए कहा था कि दक्षिण भारत में आबादी के उम्रदराज होने से कई चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं।
- जबकि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों की जनसंख्या खासी युवा है।
इसलिए अब जनसंख्या नियंत्रण के बजाय दीर्घावधि के जनसंख्या नियोजन की आवश्यकता है। सीएम नायडू ने घोषणा की थी कि सभी महिला कर्मचारियों को प्रसव के समय मातृत्व अवकाश दिया जाएगा, चाहे उनके कितने भी बच्चे हों।
Weather Update: फिर करवट लेने जा रहा मौसम... कहीं लू, तो कहीं भयंकर बारिश की चेतावनी; इन राज्यों के लिए आया अलर्ट
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बीते कुछ दिनों में देश के ज्यादातर हिस्सों में तापमान में थोड़ी गिरावट देखने को मिली है। पहाड़ों पर हो रही बारिश और बर्फबारी के चलते आसपास के मैदानी इलाकों में ठंडी हवाएं महसूस की गईं। लेकिन अब मौसम एक बार फिर से करवट लेने जा रहा है।
अगर बीते 24 घंटे की बात करें, तो अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह, असम, केरल और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में बारिश से जनजीवन अस्त-व्यस्त रहा। हालांकि कोस्टल कर्नाटक, कोंकण व गोवा, सौराष्ट्र व कच्छ में मौसम पहले की तरह ही गर्म रहा।
पश्चिम विक्षोभ दिखाएगा असरइराक के आस-पास एक पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय हो रहा है, जो आने वाले दिनों में देश के कुछ हिस्सों पर असर डाल सकता है। मौसम विभाग की मानें तो गुजरात में 12 मार्च तक लू चलने की संभावना है। वहीं उत्तर पश्चिमी भारत में भी अगले कुछ दिनों तक तापमान में वृद्धि देखने को मिलेगी।
यही हाल मध्य भारत, महाराष्ट्र, गुजरात और उत्तर प्रायद्वीपीय भारत का भी रहेगा। यहां भी अगले कुछ दिनों में अधिकतम तापमान में 2 से 3 डिग्री की बढ़ोतरी देखने को मिलेगी। हालांकि कुछ हिस्सों में तापमान में वृद्धि के बाद थोड़ी गिरावट भी देखने को मिलेगी।
बारिश का भी आया अलर्ट- मौसम विभाग के मुताबिक, 10 मार्च को जम्मू-कश्मीर में बर्फबारी और बारिश होने की संभावना है। इसके साथ ही हिमाचल प्रदेश में भी तेज गरज के साथ बारिश देखने को मिलेगी। वहीं तमिलनाडु में भी बौछारें पड़ने की संभावना है।
- वहीं 11 मार्च को तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और असम के लिए बारिश का अलर्ट जारी किया गया है। लगभग यही स्थिति 12 मार्च को भी बनी रहेगी। जबकि 13 मार्च को जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और हरियाणा में भी बारिश होने की संभावना है।
जहां एक ओर गुजरात में हीट वेव का यलो अलर्ट जारी किया गया है, वहीं दिल्ली में आने वाले दिनों में तेज हवाएं लोगों को परेशान कर सकती हैं। मौसम विभाग के मुताबिक, 10 मार्च को दिल्ली के आसमान में हल्के बादल छाए रहेंगे। 14 मार्च तक दिल्ली में तेज हवाएं चलने की संभावना है।
इस दौरान अधिकतम तापान 31 से 34 डिग्री के आसपास बना रह सकता है। वहीं न्यूनतम तापमान 14 से 18 डिग्री के लगभग रहेगा। बारिश के बाद तापमान में थोड़ी गिरावट देखने को मिलेगी। बता दें कि 9 मार्च को दिल्ली में सीजन का सबसे गर्म दिन रिकॉर्ड किया गया।
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