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Pahalgam Terrorist Attack: समाजवादी पार्टी नेता अबू आसिम आज़मी ने कहा- आतंकवाद पर सियासत नहीं, देशहित में एकजुट हो देश
एएनआई, मुंबई। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम स्थित बैसरन घाटी में 22 अप्रैल 2025 को हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया। इस हमले में 26 पर्यटकों की निर्मम हत्या कर दी गई, जिनमें अधिकांश हिंदू पुरुष थे। हमलावरों ने पीड़ितों की धार्मिक पहचान पूछकर उन्हें निशाना बनाया।
इसके बाद अब समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अबू आसिम आज़मी ने इस हमले की कड़ी निंदा की और कहा, "हर मज़हब का बच्चा वतन पर जान देने को तैयार है। सरकार जो कार्रवाई करेगी, कोई उसका विरोध नहीं करेगा। आतंकवाद का खात्मा होना चाहिए और इस पर सियासत नहीं होनी चाहिए।"
उन्होंने यह भी कहा कि आतंकवाद के खिलाफ सभी धर्मों और समुदायों को एकजुट होकर खड़ा होना चाहिए।
#WATCH | Mumbai | #PahalgamTerroristAttack | Maharashtra Samajwadi Party President Abu Asim Azmi says, "...Every child of every religion is ready to sacrifice their life for the country. The government will decide what action needs to be taken and no one will oppose it. Terrorism… pic.twitter.com/9qnBXPoHOP
— ANI (@ANI) April 28, 2025यह भी पढ़ें: NIA कैसे करती है Investigation, अधिकारियों के पास कितनी होती है Power? यहां जानिए सबकुछ
तो ये है पाकिस्तान का इलाज; विशेषज्ञों ने बताया क्या करे भारत, जिससे घुटनों पर आ जाएगा पड़ोसी मुल्क
जेएनएन, नई दिल्ली। पाकिस्तान एक देश है लेकिन इसकी पहचान के साथ बहुत से ऐसी चीजें जुड़ गई हैं जो किसी भी देश के लिए चिंता की बात होनी चाहिए। जैसे एक असफल देश, आतंक की नर्सरी, ढहती अर्थव्यवस्था वाला देश, जो पुराने कर्ज की किश्तों को भरने के लिए नए कर्ज का जुगाड़ करता है।
वैश्विक स्तर पर पाकिस्तान की कुल यही पहचान है। हिंदू और मुसलमान एक अलग कोम है और मुसलमानों का एक अलग देश होना चाहिए। इसी बुनियाद पर हिंदुस्तान से अलग होकर पाकिस्तान बना।
हालांकि, 1971 में बांग्लादेश बनने बलुचिस्तान में आजादी की जंग और सिंधका राष्ट्रवाद इस बुनियाद को खारिज करते हैं, लेकिन पकिस्तान के नेता और सैन्य अधिकारी आज भी हिंदू और भारत विरोध को ढाल बनाकर ही अपनी सत्ता मजबूत करते हैं।
भारत से तीन युद्ध हारने के बाद पाकिस्तान ने कश्मीर हासिल करने के लिए आतंकवाद का सहारा लिया और भारत के खिलाफ अप्रत्यक्ष युद्ध छेड़ दिया। पिछले 35 वर्ष में बहुत कुछ बदला लेकिन पाकिस्तान की भारत को लेकर नीति नहीं बदली।
अलग-अलग राजनीतिक दलों की सरकारों ने अलग-अलग समय पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने के प्रयास किए। भारत को इसके बदले कभी कारगिल, तो कभी पठानकोट। हाल में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद हर भारतीय की जुबान पर एक ही सवाल है कि इस पाकिस्तान का इलाज क्या है, आज हम इसके बारे में बताएंगे...
अल्लाह, आर्मी और चीनपाकिस्तान एक लोकतांत्रिक देश है, लेकिन वास्तविक सत्ता चुनी हुई सरकार के पास नहीं रही है। कहा जाता है कि पाकिस्तान को अल्लाह, आर्मी और अमेरिका चलाते हैं। अमेरिका का पाकिस्तान पर वैसा प्रभाव नहीं रह गया है, जैसा एक दशक पहले हुआ करता था। एक हद तक अमेरिका की जगह चीन ने ली है। आज के लिहाज से यह कहना ज्यादा सही होगा कि अल्लाह, आर्मी और चीन पाकिस्तान को चला रहे हैं।
भारत को हजार घाव देने की रणनीति1948 और 1965 युद्ध के बाद 1971 के युद्ध में शर्मनाक हार और देश के दो टुकड़े होने के बाद पाकिस्तान भारत को थाउजेंड कट यानी हजार घाव देने की रणनीति पर अमल शुरू किया। पाकिस्तान ने बीसवीं सदी के आठवें दशक में पंजाब में खालिस्तानी अलगाववाद को हवा दी और सदी के अंतिम दशक में राज्य की नीति के तौर पर कश्मीर में आतंकवाद का दौर शुरू किया।
पूरे भारत को बनाया निशानातत्कालीन वैश्विक व्यवस्था भी उस समय पाकिस्तान के अनुकूल थी। सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका एकमात्र महाशक्ति था। उसी समय भारत कमजोर अर्थव्यवस्था और राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा था। भारत की ओर से मजबूत जवाबी कार्रवाई न होने से पाकिस्तान का हौसला बढ़ा और उसने पूरे भारत
में आतंकी घटनाओं का अंजाम देना शुरू कर दिया। 1993 में मुंबई का बम धमाका, 2002 में संसद पर हमला और 2008 का 26/11 मुंबई हमला पाकिस्तान के आतंकी नेटवर्क की क्षमता दिखाता है।
सैन्य, आर्थिक, कूटनीतिक दबाव जरूरी- भाषा और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के प्रयो आतंकवाद का जवाब देने और उसे रोकने के लिए राजनयिक, आर्थिक, रणनीतिक और कानूनी जैसे कई विकल्प मौजूद हैं। सबसे पहले भारत को पाकिस्तान के प्रति वैश्विक स्तर पर "कूटनीतिक अलगाव" की नीति अपनानी चाहिए, जिससे पकिस्तान को अलग- थलग किया जा सके।
- इसके अंतर्गत द्विपक्षीय वार्ता को निलंबित करें सिंधु जल समझौते के साथ-साथ पूर्व में हुई महत्वपूर्ण संधियों को रद्द करना चाहिए जिससे पाकिस्तान के प्रति भारत के नरम रुख को अब पुनः परिभाषित करने का मौका मिलेगा तथा सात दशकों से चली आ रही जम्मू-कश्मीर समस्या का भी समाधान किया जा सकता है।
- आतंकवाद के खिलाफ भारत की चिंताओं के प्रति सहानुभूति रखने वाले देशों के साथ गठबंधन को मजबूत कर पाकिस्तान को आतंकवाद का प्रायोजक देश घोषित करने के लिए भारत को वैश्विक समर्थन जुटाना चाहिए।
- अंतर्राष्ट्रीय राय को अपने पक्ष में करके भारत संयुक्त राष्ट्र, जी20 और एफएटीएफ (वित्तीय कार्रवाई कार्य बल) जैसे मंचों पर प्राक्सी आतंकवाद के लिए पाकिस्तान के कथित समर्थन को उजागर करने के लिए सहयोगियों के साथ काम कर सकता है तथा निरंतर या बढ़े हुए प्रतिबंधों और निगरानी के लिए दबाव भी डाल सकता है।
- आज भारत सैन्य रूप से काफी शक्तिशाली और आधुनिक राष्ट्र है। सैन्य और सुरक्षा विकल्प के तहत भारत को व्यापक स्तर पर कारवाई करते हुए गुलाम कश्मीर के साथ पाकिस्तान के अंदर मौजूदा आतंकी नेटवर्क और उनके बुनियादी ढांचे के खिलाफ लक्षित सैन्य कार्रवाई करनी चाहिए। हालांकि इससे दो परमाणु शक्ति संपन्न राज्यों के बीच तनाव बढ़ने का जोखिम है, परंतु भारत को ऐसे जोखिम भरे कदम लेने से पीछे नही हटना चाहिए।
- कानूनी और बहुपक्षीय कार्रवाई के लिए भारत को बहुपक्षीय एजेंसियों को अपने साथ शामिल करना चाहिए। इसके तहत पाकिस्तान के आतंकवाद विरोधी वित्तपोषण उपायों और अनुपालन की निरंतर एफएटीएफ से जांच के लिए दबाव डालना, आतंकवाद के वित्तपोषण के खिलाफ अपर्याप्त कार्रवाई के लिए पाकिस्तान को "ग्रे लिस्ट" में रखने के लिए एफएटीएफ (वित्तीय कार्रवाई कार्य बल) जैसे मंच पर वैश्विक दबाब बनाना शामिल है, जिससे पकिस्तान को वैश्विक आर्थिक सहयोग तथा मदद मिलनी मुश्किल होगी।
- पाकिस्तान को दी जाने वाली अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सहायता को निलंबित या कम करने के लिए भारत को अपने वैश्विक भागीदारों के साथ काम करना चाहिए, जिसमे भारत पकिस्तान के साथ ना सिर्फ अपने द्विपक्षीय व्यापार को निलंबित करें बल्कि अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रतिबन्ध भी लगवाना चाहिए। लंबे समय तक आर्थिक प्रतिबन्ध तथा वैश्विक आर्थिक अलगाव से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान पहुंचाया जा सकता है।
- आतंकवाद से निपटना एक गंभीर और संवेदनशील मामला है। कूटनीतिक, रणनीतिक, आर्थिक तथा कानूनी माध्यमों के अलावा पकिस्तान को चलाने वाले तीन एम "मिलिट्री- मिलिटेंट- मुल्ला" गठजोड़ के लिए अकेले सैन्य या दंडात्मक कार्रवाई पर्याप्त नहीं होगी। इस आतंकी गठजोड़ को मजबूत करने वाले वैचारिक, सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक कारकों को भी सीमित करना होगा।
- पाकिस्तान इस समय बहुआयामी का सामना कर रहा है। आंतरिक असंतोष, आर्थिक पतन और घटती अंतरराष्ट्रीय प्रासंगिकता के बीच वह एक खतरनाक और जानी-पहचानी रणनीति का सहारा लेता दिख रहा है। यह रणनीति है बाहरी खतरों का निर्माण और धार्मिक दरारों का दोहन।
- पहलगाम में हुआ आतंकी हमला पाकिस्तानी सेना का घरेलू स्तर पर मजबूत बनने का हताश प्रयास है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय और विशेष रूप से भारत, इस नाटक को एक अलग संकल्प के साथ देख रहा है।
- कोर कमांडर के घर लूट, पाकिस्तानी प्रतिष्ठान के दिल पर एक प्रतीकात्मक हमला था। यह पाकिस्तान की जनता के गुस्से और सेना के अधिकार के क्षरण को रेखांकित करता है। यह अभूतपूर्व घटना 1971 के ऐतिहासिक आघात को प्रतिध्वनित करती है, जहां पूर्वी पाकिस्तान में सेना की कठोर प्रतिक्रिया पाकिस्तान की टूटने का कारण बनी।
- वर्तमान में इमरान खान जैसे राजनीतिक विपक्षी नेताओं को नजरबंद करने से जनता में आक्रोश और बढ़ गया है। बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी ने आर्थिक संकट की वजह से पहले से कायम अनश्चितता में अस्थिरता की एक और परत जोड़ दी है। अंतरराष्ट्रीय बेलआउट के लिए हाथ पांव मारने के सरकार के प्रयास को बढ़ते संदेह के साथ देखा जा रहा है। इससे पता चलता है कि पाकिस्तान कितनी गहराई तक आर्थिक दलदल में फंस चुका है।
- अफगानिस्तान के साथ पश्चिमी सीमा पर तालिबान और बलूचिस्तान में विद्रोह सुरक्षा खतरे इस चुनौती को और गंभीर बना रहे हैं। संकटों के इस संगम में पाकिस्तान एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। अब वह जो कदम उठाएगा, उससे उसका भविष्य तय होगा।
- पाकिस्तान के अशांत इतिहास और स्थायी अस्थिरता के कारण क्षेत्र के रणनीतिक दृष्टिकोण में एक साहसिक और निर्णायक बदलाव की आवश्यकता है। आकांक्षा अब केवल "स्थिर" पड़ोसी नहीं होनी चाहिए, बल्कि मौजूदा पाकिस्तानी राज्य के रणनीतिक विखंडन के माध्यम से क्षेत्रीय परिदृश्य को मौलिक रूप से नया आकार देना चाहिए।
- पाकिस्तान को पश्चिमी पंजाब के अपने जातीय केंद्र तक सीमित कर देना चाहिए। अन्य विशिष्ट जातीय संस्थाओं बाल्टिस्तान से लेकर सिंध और बलूचिस्तान को स्वतंत्र मातृभूमि के रूप में उभरने में मदद करनी चाहिए।
- इस रणनीतिक उद्देश्य के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसकी शुरुआत लक्षित सर्जिकल स्ट्राइक और प्रमुख आतंकी सरगनाओं को मिटा कर आतंकवाद के केंद्रों को बेअसर करने के लिए एक निर्णायक अभियान से होती है।
पाकिस्तान के लिए स्थिर पड़ोसी का विचार छोड़ कर रणनीतिक विखंडन के जरिये क्षेत्रीय परिदृश्य को नया आकार देना समय की जरूरत है। सिंघ, बलूचिस्तान अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं। भारत को इनकी मदद करनी चाहिए। -डीपीके पिल्लई, रिसर्च फेलो. आइडीएसए
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NIA कैसे करती है Investigation, अधिकारियों के पास कितनी होती है Power? यहां जानिए सबकुछ
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। What Is NIA: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले में 26 पर्यटकों की मौत हुई। इस आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ सरकार ने कई बड़े एक्शन लिए हैं।
इस आंतकी हमले की जांच सरकार ने एनआईए को सौंपी है। एनआईए इस मामले की जांच में भी जुट गई है आइए आपको बताते हैं कि एनआईए काम कैसे करता है, इसका गठन कब किया गया था और एनआईए के पास कितनी पावर होती है?
क्या है एनआईए?- एनआईए (NIA) का पूरा नाम National Investigation Agency है। इसे राष्ट्रीय जांच एजेंसी के नाम से भी जाना जाता है। अमूमन जब भी देश के किसी भी हिस्से में कुछ संदिग्ध गतिविधियां होती हैं तो केंद्र सरकार उस मामले की जांच एनआईए को सौंप सकती है। एनआईए का गठन साल 2008 में किया गया था।
- दरअसल, 26/11 के आतंकी हमले के बाद सरकार ने आतंकवाद से मुकाबला करने के लिए एक केंद्रीय जांच एजेंसी स्थापित करने की योजना बनाई। एजेंसी का गठन एनआईए अधिनियम-2008 के तहत किया गया है।
- इस जांच एजेंसी के पहले महानिदेशक राधा विनोद राजू थे। राजू दास का कार्यकाल 31 जनवरी 2010 तक था। जानकारी दें कि NIA का उद्देश्य देश में आतंकवादी गतिविधियों को रोकना है और भारत से आतंकवाद समाप्त करना है।
केंद्र सरकार ने एनआईए (संशोधन) अधिनियम 2019 के जरिए भारत के बाहर होने वाले कई सूचीबद्ध अपराधों की जांच का भी अधिकार इस जांच एजेंसी को दिया है। हालांकि, इन अपराधों में भारतीय नागरिकों का शामिल होना, भारत का इनसे संबंध होना आवश्यक है। इसके अलावा मानव तस्करी, साइबर आतंकवाद और हथियार अधिनियम-1959, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम-1908 के जरिए भी जांच एजेंसी को कई अधिकार दिए गए हैं।
कैसे अपराधों की जांच करती है एनआईए?राष्ट्रीय जांच एजेंसी के पास मानव तस्करी, जाली मुद्रा और बैंक नोटों से जुड़े अपराध, साइबर आतंकवाद, विस्फोटक पदार्थों से जुड़े क्राइम, प्रतिबंधित हथियारों के निर्माण, प्रतिबंधित हथियारों की बिक्री से जुड़े अपराधों के जांच का अधिकार होता है।
वहीं, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के अधिकारियों के पास ऐसे सभी प्रकार के अपराधों की जांच के लिए पुलिस के अधिकारियों जितनी ही शक्तियां प्राप्त होती हैं।
कैसे किया जाता है कि NIA का गठनध्यान देने वाली बात है कि एनआईए के अधिकारियों के लिए किसी प्रकार की कोई भर्ती अलग से करने का प्रावधान नहीं है। इन्हें भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस), भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) जैसी केंद्रीय सेवाओं के अलावा राज्य पुलिस और आयकर विभाग और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों जैसे सीआरपीएफ, आईटीबीपी और बीएसएफ के अधिकारियों में से ही चुना जाता है।
कहां है एनआईए का मुख्यालय?गौरतलब है कि दिसंबर साल 2024 में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राज्य सभा में एक सवाल के लिखित जवाब में बताया कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी का मुख्यालय दिल्ली में स्थित है। वहीं, इस जांच एजेंसी के दो जोनल कार्यालय भी हैं। जो गुवाहाटी और जम्मू में स्थित हैं। पूरे देश में इस जांच एजेंसी के 21 शाखा कार्यालय भी फैले हुए हैं।
एनआईए के पास मौजूद हैं स्पेशल कोर्टएनआईए के पास अपना स्पेशल कोर्ट भी होता है। सरकार ने देश भर में कुल 51 एनआईए स्पेशल कोर्ट भी स्थापित किए हैं। इनमें से एक एनआईए स्पेशल कोर्ट रांची और एक एनआईए कोर्ट जम्मू में स्थित है। इन सभी न्यायालयों को खास तौर से एनआईए की जांच के अधीन आने वाले मामलों की सुनवाई के लिए स्थापित किया गया है।
इन न्यायालयों में मामलों की सुनवाई काफी जल्दी होती है। वहीं, फैसले भी जल्दी आते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, एनआईए के गठन के बाद से दिसंबर 2024 तक 640 केस दर्ज किए थे। वहीं, इन मामलों में से 147 मामलों में फैसला भी आ चुका है। एनआईए कोर्ट में सजा की दर 95.23 प्रतिशत रहती है।
पहलगाम मामले की जांच कर रही है एनआईएजम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले की जांच भी गृहमंत्रालय ने एनआईए को सौंपी है। एनआईए पहलगाम पहुंच गई है और मामले की जांच शुरू कर दी है।
22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने 26 पर्यटकों को मौत के घाट उतार दिया था। इस आतंकी हमले के बाद पूरे देश में पाकिस्तान के खिलाफ गुस्सा है। सरकार से पाकिस्तान के खिलाफ बड़ी कार्रवाई करने की मांग देशवासी कर रहे हैं।
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