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संयुक्त राष्ट्र ने की Ayushman Bharat Yojana की तारीफ, बाल मृत्यु दर में बड़ी गिरावट पर मिली सराहना
पीटीआई, संयुक्त राष्ट्र। संयुक्त राष्ट्र ने आयुष्मान भारत जैसी स्वास्थ्य पहल का उदाहरण देते हुए बाल मृत्यु दर में कमी लाने के लिए भारत के प्रयासों और प्रगति की सराहना की है। विश्व निकाय ने कहा है कि देश ने अपनी स्वास्थ्य प्रणाली में रणनीतिक निवेश के माध्यम से लाखों लोगों का जीवन बचाया है।
आयुष्मान भारत दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना है, जो प्रति वर्ष प्रति परिवार को पांच लाख रुपये की वार्षिक कवरेज प्रदान करता है। मंगलवार को जारी संयुक्त राष्ट्र अंतर-एजेंसी समूह की बाल मृत्यु दर आकलन रिपोर्ट में भारत, नेपाल, सेनेगल, घाना और बुरुंडी का उदाहरण दिया गया और बाल मृत्यु दर रोकने में हुई प्रगति में अहम भूमिका निभाने वाली विभिन्न रणनीतियों पर प्रकाश डाला गया है।
भारत को लेकर रिपोर्ट में क्या कहा गया?रिपोर्ट में कहा गया कि इन देशों ने दिखाया है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति, साक्ष्य-आधारित रणनीतियों और निरंतर निवेश से मृत्यु दर में पर्याप्त कमी लाई जा सकती है। भारत के बारे में रिपोर्ट में कहा गया कि देश ने स्वास्थ्य प्रणाली में निवेश के माध्यम से स्थिति को बेहतर किया है। अपनी स्वास्थ्य प्रणाली में रणनीतिक निवेश के माध्यम से भारत पहले ही लाखों लोगों का जीवन बचा चुका है और लाखों अन्य लोगों के लिए स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करने का मार्ग प्रशस्त किया है।
वर्ष 2000 से भारत ने पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर में 70 प्रतिशत की कमी तथा नवजात शिशुओं की मृत्यु दर में 61 प्रतिशत की कमी हासिल की है। स्वास्थ्य कवरेज बढ़ाने, मौजूदा स्थिति को सुधारने और स्वास्थ्य ढांचे तथा मानव संसाधन विकसित करने के लिए किए गए उपायों के कारण ऐसा संभव हुआ है।
इन उपायों से बची लाखों बच्चों की जिंदगीरिपोर्ट में कहा गया है कि प्रत्येक गर्भवती महिला मुफ्त प्रसव की हकदार है और शिशु देखभाल संस्थानों में मुफ्त परिवहन, दवाएं, निदान और आहार इसमें सहायता प्रदान करती है। स्वास्थ्य सेवाओं के लिए व्यापक कवरेज सुनिश्चित करने के लिए भारत ने प्रसूति प्रतीक्षा गृहों, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य विंग, बीमार नवजात की देखभाल, मातृ देखभाल और जन्म दोष जांच के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत किया है। इससे हर साल लाखों स्वस्थ गर्भधारण और जीवित बच्चों का जन्म सुनिश्चित होता है। भारत ने मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए दाइयों और कुशल प्रसव सहायकों के प्रशिक्षण तथा तैनाती को भी प्राथमिकता दी है।
- 2020 में भारत में शिशु मृत्यु दर (प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर) 29.85 थी।
- 2025 में भारत में शिशु मृत्यु दर (प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर) 24.98 होगी।
- 2000 में पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में खसरे से होने वाली मृत्यु दर के मामले में भारत सबसे आगे था।
- केवल 56 प्रतिशत शिशुओं को खसरे का टीका लगाया गया था और खसरे से 1.89 लाख शिशुओं की मृत्यु हुई थी।
- 2023 तक शिशुओं में खसरे के टीकाकरण की दर बढ़कर 93 प्रतिशत हो गई थी
- इस बीमारी के कारण पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में खसरे से संबंधित मृत्यु दर 97 प्रतिशत घटकर 5,200 रह गई थी।
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पीटीआई, नई दिल्ली। एआई एजेंट और चैटबॉट्स ग्राहक सेवा का अभिन्न अंग बनते जा रहे हैं, फिर भी वे ग्राहक सेवा की प्रतीक्षा अवधि को कम नहीं कर पा रहे हैं। सर्विसनाउ कस्टमर एक्सपीरियंस के एक सर्वेक्षण में इसकी जानकारी सामने आई है।
सर्वेक्षण में पता चला है कि भारतीय उपभोक्ताओं ने 2024 में ग्राहक सेवा में शिकायत दर्ज कराने के लिए 15 अरब घंटे से अधिक समय खर्च किए। ग्राहकों की बढ़ती अपेक्षाओं और ग्राहक सेवा की वास्तविकता के बीच बढ़ते अंतर का विश्लेषण करने के लिए सर्वेक्षण में 5,000 उपभोक्ताओं और 204 ग्राहक सेवा एजेंटों को शामिल किया गया।
खत्म होता जा रहा है धैर्यसर्वेक्षण में उपभोक्ताओं ने कहा कि अब उनका धैर्य खत्म होता जा रहा है। 89 प्रतिशत उपभोक्ता खराब सेवा के कारण ब्रांड बदलने की तैयारी कर रहे हैं। 84 प्रतिशत उपभोक्ताओं ने कहा कि वे खराब सेवा अनुभव के बाद ऑनलाइन या इंटरनेट मीडिया पर नकारात्मक समीक्षा छोड़ कर अपनी भड़ास निकालते हैं।
ग्राहक सेवा की कमी को पूरा करने तथा दक्षता की बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए बदलाव करने को इच्छुक व्यवसायों के पास दो ही विकल्प हैं, एआई संचालित दक्षता को अपनाएं या ग्राहक निष्ठा खोने का जोखिम उठाएं।
- सुमीत माथुर, सर्विसनाउ इंडिया के वरिष्ठ उपाध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
रिपोर्ट के अनुसार 80 प्रतिशत भारतीय उपभोक्ता अब शिकायत की स्थिति की जांच करने और उत्पाद से जुड़ी जानकारी के लिए एआई चैटबॉट पर निर्भर हैं, फिर भी वही उपभोक्ता सामूहिक रूप से हर साल 15 अरब घंटे प्रतीक्षा में बिताते हैं। हालांकि इस क्षेत्र में पहले की तुलना में मामूली प्रगति भी दर्ज की गई है।
ग्राहकों में बढ़ रही निराशा- 2023 की तुलना में 2024 में ग्राहकों ने किसी समस्या के समाधान के लिए 3.2 घंटे कम समय बिताया है। यह ग्राहकों की अपेक्षाओं और सेवा वितरण के बीच बड़े अंतर को दर्शाता है। इससे ग्राहकों में निराशा बढ़ रही है।
- सर्वेक्षण मे सामने आया है कि 39% उपभोक्ताओं को होल्ड पर रखा जाता है। 36% को बार-बार स्थानांतरित किया जाता है। 34% का मानना है कि कंपनियां जानबूझकर शिकायत प्रक्रिया को जटिल बनाती हैं।
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गिल्ली-डंडा, कबड्डी, खो-खो और कंचे...स्कूलों में फिर खेले जाएंगे पारंपरिक भारतीय खेल, शिक्षा मंत्रालय ने बनाई योजना
अरविंद पांडेय, जागरण, नई दिल्ली। यदि आप स्कूलों में पढ़ रहे है और अब तक गिल्ली-डंडा, कंचे, कबड्डी, लगड़ी, गुट्टी और राजा मंत्री-चोर सिपाही जैसे खेलों से परिचित नहीं है तो जल्द ही आपको इन परंपरागत प्राचीन भारतीय खेलों से परिचित होने का मौका मिल सकता है।
आधुनिकता और तकनीक के इस दौर में तेजी से लुप्त हो रहे इन परंपरागत भारतीय खेलों को बचाने को लेकर शिक्षा मंत्रालय ने एक नई मुहिम शुरू की है। जिसमें देश की नई पीढ़ी को इन भारतीय खेलों से स्कूली स्तर पर ही जोड़ा जाएगा। इनमें ऐसे परंपरागत खेलों को अधिक अहमियत दी जाएगी, जो समूहों में खेले जाते है।
सामाजिक जुड़ाव की भावना विकसित करने में मिलेगी मददमाना जा रहा है कि इससे बच्चों में सामाजिक जुड़ाव की भावना विकसित करने में मदद मिलेगी। देश के अलग-अलग हिस्सों में प्राचीन समय से खेले जाने वाले करीब 75 भारतीय खेलों को अब तक इस पहल के तहत चिन्हित किया गया है। इनमें खो-खो, लगड़ी, कबड्डी व गिल्ली-डंडा जैसे ऐसे खेल भी शामिल है, जो अलग-अलग नामों से देश के कई हिस्सों में और दुनिया के दूसरे देशों में खेले जाते है।
मंत्रालय फिलहाल कबड्डी की तर्ज पर इन खेलों के लिए एक स्टैंडर्ड नियम-कायदे बनाने में जुटा है। इसमें इन खेलों से जुड़े विशेषज्ञों की मदद ली जा रही है। अब तक कबड़ी, गिल्ली-डंडा, खो-खो और लगोरी या पिट्ठू जैसे खेलों के नियम कायदे व इसे खेलते हुए वीडियो अपलोड भी किए जा चुके है।
बाकी खेलों को लेकर भी ऐसी तैयारी चल रही है। मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक इस पहल के पीछे मकसद बच्चों को इन खेलों के जरिए भारतीय जड़ों से परिचित कराना शामिल है। इसका एक ढांचा तैयार किया जा रहा है। इन खेलों से जुड़े देश भर के प्रतिभाशाली लोगों की पहचान की जा रही है।
फिजिकल टीचर को ट्रेनिंग देने की तैयारीस्कूलों में तैनात खेल व व्यायाम शिक्षकों को इससे जुड़ा प्रशिक्षण देने की तैयारी भी की जा रही है। स्कूलों से इसका ब्यौरा मांगा है। इसके साथ ही इन खेलों के प्रति रुझान बढ़ाने के लिए देश भर में इससे जुड़ी प्रतियोगिताएं आयोजित करने जैसी पहल शामिल है। शिक्षा में भारतीय ज्ञान परंपरा को बढ़ावा देने की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) में की गई पहल को इससे जोड़कर देखा जा रहा है।
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अन्न भंडार भरने में जुटी केंद्र सरकार, दलहन खरीद पर जोर; चना खरीद को भी मंजूरी
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। किसान हित में केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों से किसी भी हाल में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम कीमत पर फसलों की खरीदारी नहीं करने का आग्रह किया है। सरकार का सबसे अधिक जोर दलहन खरीद पर है, क्योंकि दाल का बफर स्टाक अभी न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुका है और ऐसी स्थिति में अगले चार वर्षों के भीतर दलहन के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य आसान नहीं है।
कीमतों पर नियंत्रण रखते हुए देश की विशाल आबादी को दाल की आपूर्ति के लिए बफर स्टाक में कम से कम 35 लाख टन दाल होनी चाहिए, ताकि दाम बढ़ने की स्थिति में बाजार में हस्तक्षेप किया जा सके। मगर बफर स्टाक में मानक से अभी आधी मात्रा में ही दाल उपलब्ध है। इसलिए केंद्र सतर्क है।
'उपभोक्ताओं की बेहतरी के लिए प्रतिबद्ध केंद्र सरकार'कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दावा किया कि केंद्र सरकार किसानों के साथ उपभोक्ताओं की बेहतरी के लिए प्रतिबद्ध है।दालों का घरेलू उत्पादन बढ़ाने, किसानों को अत्यधिक खेती के लिए प्रोत्साहित करने एवं दलहन आयात पर निर्भरता कम करने के लिए सरकार ने मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत राज्यों के उत्पादन के सौ प्रतिशत अरहर, उड़द और मसूर खरीद को मंजूरी दी है। बजट में भी अपनी आवश्यकता के अनुसार दलहन उत्पादन का संकल्प जताया जा चुका है। इसके लिए अगले चार वर्षों तक उक्त तीनों तरह की दालों की सारी उपज की खरीदारी की जाएगी।
चालू खरीफ मौसम में उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक एवं तेलंगाना में अरहर खरीद को मंजूरी दी गई है। बिहार एवं उत्तर प्रदेश में अरहर की कीमत अभी एमएसपी से अधिक चल रही है। इसलिए यहां खरीदारी की रफ्तार सुस्त है। कर्नाटक में खरीद की अवधि को 90 दिनों से बढ़ाकर 120 दिन कर दिया गया है। यहां अब एक मई तक अरहर की खरीद हो सकती है। आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र एवं तेलंगाना में नेफेड एवं एनसीसीएफ के जरिए पौने दो लाख किसानों से अभी तक 2.46 लाख टन अरहर की खरीदारी हो चुकी है।
रबी मौसम के दौरान चना खरीद को भी मंजूरीकृषि मंत्री ने बताया कि दाल भंडार को समृद्ध करने के लिए रबी मौसम के दौरान चना खरीद को भी मंजूरी दी गई है। पीएम-आशा योजना को 2025-26 तक बढ़ाया गया है। इसके तहत किसानों से एमएसपी पर दालों एवं तिलहनों की खरीद होती रहेगी। चालू रबी मौसम में चने की खरीदारी के लिए कुल स्वीकृत मात्रा 27.99 लाख टन है।
तेलहन की कमी को देखते हुए 28.28 लाख टन सरसों की भी खरीदारी होगी। दाल उत्पादक प्रमुख राज्यों में राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात शामिल हैं। मसूर की कुल स्वीकृत मात्रा 9.40 लाख टन है। सरकार ने किसानों को पंजीकरण और प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए नेफेड और एनसीसीएफ पोर्टलों का उपयोग सुनिश्चित किया है।
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लंच-डिनर पर 5% और आइसक्रीम खाई तो 18% जीएसटी, स्लैब में बदलाव की मांग; क्या कम होंगीं टैक्स दरें?
राजीव कुमार, नई दिल्ली। अगर आप रेस्टोरेंट में खाना खाते हैं तो पांच प्रतिशत, लेकिन खाने के बाद आइसक्रीम खा लिया तो 18 प्रतिशत जीएसटी देना होगा। रोटी खाएंगे तो अलग, पराठा खाएंगे तो अलग जीएसटी। कोई ग्राहक एक रोटी और दो पराठा खा ले तो बिल बनाने में दुकानदार परेशान होगा और बिल देखकर ग्राहक भी। रेस्टोरेंट में एसी चल रहा हो या नहीं अगर रेस्टोरेंट को एसी रेस्टोरेंट का दर्जा प्राप्त है तो किसी भी फूड आइटम पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगेगा।
कपड़ा खरीदने जाएंगे तो 1000 रुपये से कम वाले पर अलग जीएसटी तो उनसे अधिक वाले पर अलग। फुटवियर में भी यही हाल है। खुले में फूड आइटम पर कोई टैक्स नहीं तो उसे पैक्ड रूप में दे दिया तो टैक्स लग जाएगा। जीएसटी में विसंगतियों के ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं। इन भ्रांतियों की वजह से व्यापारी कई बार गलती कर बैठते हैं और उन्हें पेनाल्टी या अन्य रूप में इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। ग्राहक भी खुद को ठगा महसूस करते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि अब जीएसटी की इन विसंगतियों को दूर करने के साथ जीएसटी की दरों में भी कमी लाने की जरूरत है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, जीएसटी काउंसिल की कुछ बैठकों में इस इस प्रकार की विसंगतियों को दूर करने को लेकर चर्चाएं तो हुईं, लेकिन जीएसटी कलेक्शन और राजनीतिक मजबूरियों की वजह से कोई फैसला नहीं हो सका। जैसे पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के दायरे में शामिल करने पर चर्चाएं तो कई बार हुईं, लेकिन कोई फैसला नहीं हो सका।
चार नहीं, तीन स्लैब होने चाहिएकेंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) के पूर्व चेयरमैन विवेक जोहरी कहते हैं, जीएसटी के लिए सबसे जरूरी चीज है कि सभी खाद्य पदार्थों के लिए एक प्रकार की जीएसटी दर होनी चाहिए व अन्य दरों को भी तार्किक बनाने की जरूरत है। चार स्लैब (5,12,18 और 28) की जगह तीन स्लैब होने चाहिए।
डेलायट के पार्टनर (अप्रत्यक्ष कर) हरप्रीत सिंह कहते हैं, जीएसटी दरों को तर्कसंगत बनाने से मुकदमेबाजी में भारी कमी आएगी। जीएसटी स्लैब कम होने से भारत विकसित देशों की श्रेणी में शामिल हो जाएगा। साथ ही, जीएसटी की रिटर्न प्रणाली और इनपुट टैक्स क्रेडिट नीति में भी बदलाव की जरूरत है।
जीएसटी काउंसिल की आगामी बैठक में जीएसटी दरों को तर्कसंगत बनाने और कई आइटम की दरों में कमी पर चर्चा शुरू हो सकती है, लेकिन माना जा रहा है कि राज्य राजस्व में कमी की आशंका से दर कम करने पर राजी नहीं होंगे।
GST दरों में कमी से क्या घट जाएगा राजस्व?अप्रत्यक्ष कर विशेषज्ञ एवं डेलायट के पार्टनर एम.एस. मनी के मुताबिक, यह सोचना गलत है कि जीएसटी दरों में कमी से राजस्व संग्रह में कमी आएगी। दर कम होने से वस्तुएं सस्ती होंगी, जिससे खपत बढ़ेगी। खपत बढ़ने से मैन्युफैक्चरिंग और रोजगार बढ़ेंगे। जाहिर है इससे राजस्व भी बढ़ेगा।
कांग्रेस नेता व छत्तीसगढ़ के पूर्व डिप्टी सीएम तथा बिक्री कर मंत्री टी.एस. सिंह देव भी मानते हैं कि उपभोक्ताओं के लिए जीएसटी टैक्स की दरों को कम करने की जरूरत है। वह कहते हैं कि चूंकि राज्य अपने राजस्व में कमी से समझौता नहीं करेंगे, इसलिए जीएसटी दरों को तर्कसंगत बनाने या स्लैब में बदलाव के दौरान राजस्व व उपभोक्ता के बीच का रास्ता निकालना होगा।
जानकार भी कहते हैं कि राजस्व बढ़ने पर राज्यों को वित्तीय रूप से कोई नुकसान नहीं होगा क्योंकि राज्यों को एसजीएसटी के साथ केंद्र के जीएसटी से भी हिस्सेदारी मिलती है।
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क्या कहते हैं विशेषज्ञ?विशेषज्ञों का कहना है कि पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी में लाने के लिए केंद्र सरकार को पहल करनी होगी। राज्यों के भरोसे छोड़ने पर पेट्रोलियम कभी भी जीएसटी के दायरे में नहीं आ पाएगा। आने वाले महीने में जीएसटी दर बदलाव पर चर्चा शुरू हो सकती है।
बिहार के उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी के मुताबिक, जीएसटी स्लैब में बदलाव को लेकर बनाए गए मंत्रियों के समूह (जीओएम) ने अभी अपनी रिपोर्ट वित्त मंत्री को नहीं सौंपी है। चौधरी इस जीओएम के अध्यक्ष हैं और उनके मुताबिक जल्द ही वे वित्त मंत्री को रिपोर्ट सौंपने वाले हैं।
Bihar News: टेंडर घोटाले में एक साथ बिहार के 8 अधिकारियों के यहां ED का छापा, करोड़ों कैश व दस्तावेज मिले
राज्य ब्यूरो, पटना। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गुरुवार की सुबह-सुबह टेंडर घोटाले से जुड़े एक मामले में एक मुख्य अभियंता, कई कार्यपालक अभियंता और बिहार प्रशासनिक सेवा से जुड़े चार अधिकारियों समेत आठ अधिकारियों के यहां एक साथ छापा मारा।
भवन निर्माण विभाग के मुख्य अभियंता (उत्तर) तारिणी दास के यहां सबसे पहले प्रवर्तन निदेशालय ने अपनी कार्रवाई प्रारंभ की। इसके बाद बुडको (बिहार अरबन डेवलपमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर कारपो.लि.) के र्कायपालक अभियंता, बुडको में तैनात एक अधिकारी समेत अन्य अधिकारियों के यहां भी जांच टीम ने छापा मारा।
करोड़ों कैश के साथ दस्तावेज और डिजिटल उपकरण बरामदसमाचार लिखे तक ईडी ने अपनी जांच में करोड़ी की नकदी के साथ कई अहम दस्तावेज, डिजिटल उपकरण के साथ ही जमीन में निवेश के कागजात बरामद किए हैं। छापामारी अभी भी जारी है। छापामारी के संबंध में ईडी आधिकारिक तौर पर कुछ भी बोलने से बच रही है।
सूत्रों से मिली जानकासूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्रवर्तन निदेशालय भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों की लगातार निगरानी कर रही है। इसी क्रम में के बिहार सरकार के भवन निर्माण विभाग में बड़े भ्रष्टाचार के सबूत मिले थे। जिसके बाद निदेशालय ने मनी लांड्रिंग का मामला दर्ज करते हुए गुुरुवार की सुबह-सुबह फुलवारीशरीफ के पूर्णेन्दु नगर स्थिति भवन निर्माण विभाग के मुख्य अभियंता (उत्तर) तारिणी दास के यहां ईडी ने छापा मारा।
तारिणी दास के साथ ही पूर्व नगर आयुक्त स्तर के एक बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी, वित्तीय मामलों से जुड़े एक अधिकारी जो बुडको में पदस्थापित हैं सहित नगर विकास एवं आवास विभाग, पुल निर्माण निगम के अन्य अधिकारियों के यहां छापा मारा है। जिनके नाम बताने से ईडी परहेज कर रही है।
प्रारंभिक छापामारी के दौरान तारिणी दास के ठिकाने से करोड़ों की नकदी बरामदसूत्रों की माने तो ईडी ने अपनी प्रारंभिक छापेमारी के दौरान ही तारिणी दास के ठिकाने से करोड़ों की नकदी बरामद करने की सफलता प्राप्त की। इसके अलावा जमीन के निवेश के दस्तावेज, टेंडर घोटाले से जुड़े कई अहम कागजात, कई बैंकों की पास के साथ ही डिजिटल उपकरण बरामद किए हैं। सूत्रों की माने तो जो नकदी बरामद की गई है वह तीन करोड़ के करीब है। हालांकि अब तक इसकी पुष्टि नही हो पाई है।
बड़ी नकदी देख निदेशालय की टीम ने नोट गिनने के लिए मशीनें भी मंगाई हैं। सूत्रों की माने तो यह पूरा मामला आइएएस संजीव हंस से जुड़ा हुआ है।
संजीव हंस मामले की जांच के क्रम में ही ईडी को भवन निर्माण, नगर विकास एवं आवास विभाग, बुडको में टेंडर घोटाले में गड़बड़ी के प्रमाण मिले थे। हालांकि सूत्रों की बातों में कितनी सच्चाई है यह ईडी का आधिकारिक बयान आने के बाद ही साफ हो पाएगा।
डिफेंस कॉलोनी आरडब्ल्यूए को सुप्रीम कोर्ट का आदेश, 40 लाख हर्जाना देना होगा
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली की डिफेंस कॉलोनी की आरडब्ल्यूए (रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन) को लोधी काल के स्मारक शेख अली की गुमटी से छह दशक पुराने अवैध कब्जे के हर्जाने के तौर पर 40 लाख रुपये पुरातत्व विभाग को देने को कहा है।
15वीं सदी का यह स्मारक पुरातत्व विभाग की देखरेख में होने के बावजूद डिफेंस कॉलोनी की आरडब्ल्यूए के कब्जे में है। इस मामले पर अगली सुनवाई आठ अप्रैल को होनी है।
पुरातत्व विभाग को मिलेगी हर्जाने की रकमजस्टिस सुधांशु धूलिया और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने इस अवधि की लागत को माफ करने से इनकार कर दिया है। खंडपीठ ने कहा कि उचित यही होगा कि आरडब्लूए 40 लाख रुपये का हर्जाना दिल्ली सरकार से संबद्ध पुरातत्व विभाग को दे दे।
यह विभाग इस स्मारक की देखरेख और मरम्मत का काम करता है। इससे पहले सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि आरडब्ल्यूए बताए कि क्यों न स्मारक पर अवैध कब्जे के लिए उस पर हर्जाना लगाया जाए। साथ ही स्मारक के मूल स्वरूप की बहाली के लिए पुरातत्व विभाग को एक कमेटी गठित करने को कहा गया है।
एएसआई को अदालत की फटकारअदालत ने दिल्ली में कला और सांस्कृतिक विरासत के लिए भारतीय राष्ट्रीय न्यास की पूर्व संयोजक स्वपना लिडिल को स्मारक के सर्वे और निगरानी के लिए नियुक्त किया है। उल्लेखनीय है कि खंडपीठ ने नवंबर, 2024 में एएसआइ को इस स्मारक में आरडब्लूए का कार्यालन होने पर फटकार लगाई थी।
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