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मुंबई के बीकेसी कॉम्प्लेक्स में खुलेगा टेस्ला का भारत में पहला शोरूम, कंपनी ने 4000 वर्ग फुट जगह किराए पर ली
पीटीआई, मुंबई। अमेरिकी इलेक्ट्रिक कार निर्माता कंपनी टेस्ला का भारत में पहला शोरूम मुंबई में खुलेगा। इसके लिए कंपनी बांद्रा कुर्ला काम्प्लेक्स (बीकेसी) में 4,000 वर्ग फुट जगह किराए पर ली है। कंपनी इसके लिए तगड़ा किराया भी चुकाने वाली है।
सीआरई मैट्रिक्स द्वारा साझा किए गए दस्तावेजों के अनुसार, अरबपति एलन मस्क की कंपनी इस स्थान के लिए प्रति माह 35 लाख रुपये से अधिक का किराया देगी, जिसमें कुछ पार्किंग स्थल भी शामिल हैं।
भारत में टेस्ला के आने का इंतजार लंबे समय सेदस्तावेजों के अनुसार, मेकर मैक्सिटी में जगह का पट्टा पांच साल की अवधि के लिए है और मासिक किराया प्रति माह लगभग 43 लाख रुपये तक हो जाएगा, जिसमें प्रति वर्ष पांच प्रतिशत किराया वृद्धि होगी। भारत में टेस्ला के आने का इंतजार लंबे समय से किया जा रहा है। खुद एलन मस्क 2022 से ही इसके लिए प्रयासरत हैं, लेकिन हर बार मामला भारत में इलेक्ट्रिक व्हीकल पर लगने वाली इंपोर्ट ड्यूटी को लेकर अटक जाता था।
देश में नई इलेक्ट्रिक व्हीकल पॉलिसी लागूसरकार ने हाल में नई इलेक्ट्रिक व्हीकल पॉलिसी लागू की है। इसके हिसाब से अगर कोई विदेशी कंपनी भारत में कम से कम 50 करोड़ डॉलर के निवेश की प्रतिबद्धता जताती है और यहां तीन साल के अंदर अपना असेंबलिंग प्लांट लगाती है, तो वह 15 प्रतिशत की इंपोर्ट ड्यूटी पर ईवी का आयात कर सकती हैं। पहले टैक्स की ये दर 70 से 110 प्रतिशत तक थी।
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पुलिसकर्मियों के काम के घंटों पर सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट, केंद्र और राज्य सरकारों पर भी समाधान का दबाव
जेएनएन, नई दिल्ली। पुलिसकर्मियों के काम के घंटों को तय करने का मामला सुप्रीम कोर्ट के एजेंडे में आ गया है। पुलिस सुधार से जुड़े इस अहम मुद्दे को लेकर दाखिल याचिका पर बुधवार को हालांकि सुनवाई नहीं हो सकी। अब शीर्ष अदालत बाद में इस याचिका की सुनवाई की तारीख तय करेगी।
साप्ताहिक अवकाश की मांग पर याचिका दाखिलपुलिसकर्मियों के काम के घंटे तय करने और साप्ताहिक अवकाश की मांग पर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है। याचिका में कहा गया है कि पुलिसकर्मियों को अभी रोजाना 14 घंटे से लेकर 18 घंटे तक काम करना पड़ता है।
उन्हें साप्ताहिक अवकाश भी नहीं मिल पाता, जबकि अमेरिका और ब्रिटेन में पुलिसकर्मियों को सप्ताह में सिर्फ 40 घंटे काम करना होता है। शीर्ष अदालत इस याचिका पर सभी राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब मांग चुकी है।
पुलिसकर्मियों के काम के घंटे के लिए नए सिरे से सुप्रीम कोर्ट से गुहारध्यान देने की बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2007 में पुलिस सुधारों को लेकर अहम दिशा-निर्देश जारी किए थे। इनमें अपराध की जांच और कानून-व्यवस्था संभालने के लिए अलग-अलग पुलिसकर्मियों की व्यवस्था, पुलिस को राजनीति से मुक्त रखने के लिए डीजीपी के दो साल के सुनिश्चित कार्यकाल से लेकर राज्यों में पुलिसकर्मियों की पर्याप्त भर्ती जैसे मुद्दे थे। लेकिन, 18 साल बाद भी इन दिशा-निर्देशों का पूरी तरह से क्रियान्वयन नहीं हो सका है। यही कारण है कि पुलिसकर्मियों के काम के घंटे के लिए नए सिरे से सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगानी पड़ी है।
संविधान में कानून-व्यवस्था पूरी तरह से राज्य सूची का विषयसमस्या यह है कि संविधान में कानून-व्यवस्था पूरी तरह से राज्य सूची का विषय होने के कारण केंद्र सरकार इसमें दखल नहीं दे सकती। उम्मीद है कि अगली तारीख में सुप्रीम कोर्ट पुलिस सुधारों को प्राथमिकता पर लेकर सुनवाई सुनिश्चित करेगा और राज्य सरकारों को पर्याप्त पुलिस कर्मियों की भर्ती और उनके काम के घंटे सुनिश्चित करने का स्पष्ट निर्देश देगा।
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एहतियातन हिरासत को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, नगालैंड सरकार और हाई कोर्ट का आदेश किया खारिज
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एहतियातन हिरासत को सख्त उपाय बताते हुए ड्रग्स मामले में एक जोड़े को दिए गए नगालैंड सरकार के आदेश को खारिज कर दिया।
जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस ऑगस्टीन जार्ज मसीह ने कहा कि दिमाग लगाए बिना जारी किए गए हिरासत के यह गुप्त आदेश गलत हैं। पीठ ने गुवाहाटी हाई कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें अशरफ हुसैन चौधरी और उसकी पत्नी अदालियू चावांग की एनडीपीएस एक्ट, 1988 की धारा 3(1) के तहत हिरासत के आदेश के खिलाफ याचिका खारिज कर दी गई थी।
अदालत ने एहतियाती हिरासत पर कही ये बात
पीठ ने कहा, ''एहतियातन हिरासत एक सख्त उपाय है, जिसके अंतर्गत किसी व्यक्ति (जिसके खिलाफ ना कोई मुकदमा चला और ना ही उसे दोषी ठहराया गया) को निश्चित अवधि तक हिरासत में बंद करके रखा जा सकता है, ताकि उस व्यक्ति द्वारा प्रत्याशित आपराधिक गतिविधि को रोका जा सके।''
पीठ ने कहा कि भले ही एहतियातन हिरासत को संविधान के अनुच्छेद 22(3)(बी) द्वारा मंजूरी दी गई है, लेकिन अनुच्छेद 22 में इसके लिए पालन किए जाने वाले कड़े मानदंड भी दिए गए हैं। 1988 का अधिनियम ऐसा ही एक कानून है जिसे संसद द्वारा एनडीपीएस सामग्री की अवैध तस्करी को रोकने के लिए एहतियातन हिरासत में रखने के लिए लागू किया गया था।
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